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Monday, 30 October 2023

नदी नहीं तो हम नहीं! नवम्बर उत्सव उल्लास नीलम भागी Importance of River Neelam Bhagi



कार्तिक मास के उत्सव, नदी केन्द्रित हैं। अपने आस पास जो भी नदी झील, सरोवर होता हैं। वहाँ स्नान किया जाता है। मसलन कपूरथला में व्यासा की एक धारा बहती है, उसे कांजली कहते हैं। तो कार्तिक माह में वहाँ के स्नान को कहते हैं कांजली नहान कहते हैं। प्रतिदिन स्नान और तुलसी पूजन के साथ उत्सव नवम्बर को और भी जीवंत करते हैं। 


हमीर उत्सव (नवम्बर का पहला सप्ताह) ये उत्सव पर्वत प्रेमियों को हिमाचल आने का एक अनुरोध है। इसमें प्रसिद्ध गायकों का लाइव प्रर्दशन, शोभा यात्रा, नृत्य, भोजन आदि और प्राकृतिक सौन्दर्य तो है ही। 

 सौभाग्यवती महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए निर्जला करवाचौथ(1नवम्बर) का व्रत रखती हैं। 

अहोई अष्टमी(5नवम्बर) पुत्रवती महिलाएं पुत्र की लम्बी आयु और उसके सुखमय जीवन की कामना के लिये वे निर्जला व्रत रखती हैं। 

धनतेरस(11नवम्बर) को खूब खरीदारी की जाती है। दीपावली उत्सव(13 नवम्बर) धूमधाम से मिट्टी के दिए जलाकर मनाया जाता है। लक्ष्मी जी की पूजा खील बताशे से ही होती है ताकि गरीब अमीर सब करें। लेकिन मेवा, मिठाई खूब खाया जाता है।

दिवाली के अगले दिन पर्यावरण और समतावाद का संदेश देता, गोर्वधन पूजा अन्नकूट(14 नवम्बर) का उत्सव दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला कृष्ण प्रेमी परिवार सामूहिक रुप से मनाता है। जिसमें 56 भोग बनते हैं।




 यम द्वितीया का त्यौहर, भाई दूज(15 नवम्बर) है। मथुरा में बहन भाई यमुना जी में नहा कर मनाते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को विश्राम घाट पर यमराज और यमुना जी का मिलन हुआ था। यमुना जी भाई को मिल कर बहुत प्रसन्न हुईं। उनके लिए स्वयं भोजन बनाया। यमराज बहन के व्यवहार से प्रसन्न होकर बोले कि वह उनसे कोई भी वरदान मांगे।  यमुना जी बोली,’’ जो बहन भाई आज के दिन यहां स्नान करेंगे या आज के दिन भाई, बहन के घर जाकर भोजन करेगा, उसे यमपुरी न जाना पड़े।’’ कहते हैं कि विवाह के बाद कृष्ण भी पहली बार सुभद्रा से यहीं मिले थे। 


सादगी, पवित्रता, लोकजीवन की मिठास का पर्व ’छठ’(19 नवम्बर) है। छठ पर्व में प्रकृति पूजा सर्वकामना पूर्ति,  सूर्योपासना, निर्जला व्रत के इस पर्व को स्त्री, पुरुष और बच्चों के साथ अन्य धर्म के लोग भी मनाते हैं। 


इन सब से अलग बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के जन सामान्य द्वारा किसान और ग्रामीणों के रंगों में रंगी अपनी उपासना पद्धति है। सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु सबसे जो कुछ उसे प्राप्त हैं, उसके आभार स्वरुप छठ मइया की कुटुम्ब, पड़ोसियों के साथ पूजा करना है, जल में खड़े होकर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। 

कृष्ण और बलराम कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से गाय चराने गए और गोपाल बने। गोपाष्टमी पर्व(20नवम्बर) को है। यह उत्सव श्री कृष्ण और उनकी गायों को समर्पित है। इस दिन गौधन की पूजा की जाती है। गाय और बछड़े की पूजा करने की रस्म महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी के समान है। भगवान कृष्ण के जीवन में गौ का महत्व बहुत अधिक था। उनकी गौसेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा।

माजुली महोत्सव(21 से 24 नवम्बर) पूर्वोत्तर भारत में दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप, असम में लुइत नदी के तट पर मनाया जाता है। जो द्वीप की समृद्ध संस्कृति और प्रचुर प्राकृतिक सौन्दर्य को दर्शाता है।

 दक्षिण भारत में भी कार्तिक मास के पावन अवसर पर काकड़ आरती का प्रारंभ परम्परानुसार शरदपूर्णिमा के दूसरे दिन से होता हैं। देवउठनी एकादशी(24 नवम्बर) के अवसर पर काकड़ आरती को भव्य स्वरूप दिया जाता है। तुलसी सालिगराम के विवाह उत्सव को मनाया जाता है। वारकरी सम्प्रदाय के बुजुर्ग बताते हैं कि संत हिरामन वाताजी महाराज ने 365 वर्ष पहले काकड़ आरती की शुरुआत की थी। आरती में शामिल होने के लिए श्रद्धालु प्रातः 5 बजे विटठल मंदिर में आते हैं और भजन मंडलियां पकवाद, झांज, मंजीरों एवं झंडियों के साथ नगर भ्रमण करती है। जगह जगह चाय, कॉफी, दूध एव ंनाश्ते की व्यवस्था श्रद्धालुओं द्वारा रहती है। प्रत्येक मंदिर में सामुहिक काकड़ा जलाकर काकड़ आरती प्रातः 7 बजे तक प्रशाद वितरण के साथ सम्पन्न होती है। उत्तर भारत में प्रभात फेरी निकाली जाती है। 

लोक चाय उत्सव (24,25,26 नवम्बर) को हातिपति टी एस्टेट, बिश्वनाथ चरियाली, असम और अरुणाचल की हरि भरी पहाड़ियों में फोक टी फैस्टिवल एक अनूटा कार्यक्रम है। 

कार्तिक पूर्णिमा को पवित्र नदी, सरोवर एवं गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरुक्षेत्र अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे देव दीपावली(26 या 27 नवम्बर) गंगा दीपावली के रूप में मनाते हैं। गंगा नदी और देवी देवताओं के सम्मान में घरों में रंगोली बना कर तेल के दियों से सजाते हैं।

 महाभारत काल में हुए 18 दिन युद्ध के बाद की स्थिति से युधिष्ठिर कुछ विचलित हो गए तो श्री कृष्ण पाण्डवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान में आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पाण्डवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद दिवंगत आत्माओं की शंांित के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रुप से गढ़मुक्तेश्वर में स्नान करने का विशेष महत्व है। यह देश भक्ति से भी जुड़ा हैं। इस दिन बहादुर सैनिक जो भारत के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए हैं उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।  

  गुरू नानक जयंती(27नवंबर) को उत्सव की तरह मनाया जाता है। गुरुद्वारों में शबद कीर्तन होता है और लंगर वरताया जाता है। जैन का धार्मिक दिवस प्रकाश पर्व है। तमिल नाडु में अरुणाचलम पर्वत की 13 किमी की परिक्रमा की जाती है। यहाँ कार्तिक स्वामी का मंदिर है।

सामाजिक समरसता का प्रतीक ’वन भोजन’ भी कार्तिक मास में आयोजित किए जाते हैं। इसमें कुछ लोग मिलकर अपनी सुविधा के दिन, अपना बनाया खाना लेकर प्राकृतिक परिवेश में पिकनिक मनाते हैं। शाम को पास में जो भी नदी, झील हो वहाँ दीपक जला कर लौटते हैं।

पुष्कर मेला 20 नवम्बर से शुरु होकर 27 नवम्बर को समाप्त होगा। कई किलोमीटर तक यह मेला रेत में लगता है जिसमें खाने, झूले, लोक गीत, लोक नृत्य होते हैं। रात को आलाव जला कर गाथाएं भी सुनाई जाती हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाखांे श्रद्धालु पुष्कर झील में स्नान करके ब्रह्मा जी के मंदिर में दर्शन करते हैं। 

वंगाला(10नवंबर)मेघालय में गारो समुदाय द्वारा फसल कटाई से सम्बन्धित वंगाला उत्सव है। गारो भाषा में ’वंगाला’ का अर्थ ’सौ ढोल’ है। वर्षा अधिक होने के कारण सूर्यदेवता(सलजोंग) के सम्मान में गारो आदिवासी नवम्बर के दूसरे सप्ताह में ’वांगला’ नामक त्योहार मनाते हैं। 

रण उत्सव(1नवंबर से 20 फरवरी) गुजरात का रण उत्सव अपनी रंगीन कला और संस्कृति के लिए विश्व प्रसिद्ध है। 

सोनपुर मेला(20 नवंबर से ) गंगा और गंडक नदी के संगम पर एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। पर आज की जरुरत के अनुसार यह आटो एक्पो मेले का रुप लेता जा रहा हैं। हरिहर नाथ की पूजा होती है। नौका दौड़, दंगल खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।  

बूंदी महोत्सव(11से 13) राजस्थान के हड़ौती क्षेत्र में छोटा सा बूंदी अपनी ऐतिहासिक वास्तुकला और संस्कृति के लिए जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा की रात में महिला पुरुष दोनों पारंपरिक वेशभूषा पहनकर चंबल नदी के तट पर दिया जला कर, आर्शीवाद लेते हैं। 

का पोमबलांग नोंगक्रम नवम्बंर(तिथि घोषित होने वाली हैं)

 में मेघालय की खासी जनजातियों द्वारा मनाया जाता है। 

भगवान बाल्मिकी आश्रम, रामतीर्थ मंदिर अमृतसर में 3 किमी परीधि का सरोवर है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को यहाँ चार दिवसीय मेला लगता है। ’माता सीता की बावली’ जहाँ वे स्नान करतीं थीं। ऐसी मान्यता है कि उसमें नहाने से संतान की प्राप्ति होती है और वहां ईंटो का घर बनाने से अपना घर बन जाता है। सीता जी को भी तो असहायावस्था में भगवान बाल्मीकि पिता तुल्य का घर मिला और वे लव कुश पुत्रों की मां बनी।

   कार्तिक मास में तीर्थस्थान पर स्नान करते हैं। धर्म और लोककथाओं के बाद उत्सव की एक महत्वपूर्ण उत्पत्ति कृषि है। धार्मिक स्मरणोत्सव और अच्छी फसल के लिए धन्यवाद दिया जाता है। रवि की फसल की बुआई हो जाती है फिर बड़ी श्रद्धा और उत्साह से उत्सव मनाते हैं। इन सभी उत्सवों में प्रकृति वनस्पति और जल है। बेटों के लिए अहोई उत्सव व्रत अब बेटियों के लिए भी व रखा जाने लगा है यानि संतान के लिए। इसी तरह अब हमें नदियों को प्रदूषित होने से युद्ध स्तर से बचाना होगा क्योंकि नदी नहीं तो हम नहीं। 

नीलम भागी(लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, टैवलर)  यह लेख प्रेरणा शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित पत्रिका प्रेरणा विचार में प्रकाशित हुआ है।





Wednesday, 25 October 2023

कन्या पूजन नीलम भागी

 

69वें नेशनल फिल्म अवार्ड में, गंगुबाई कठियावारी के बेस्ट स्क्रीन प्ले और बेस्ट डायलॉग लेखन का अवार्ड लेने के लिए उत्कर्षनी भारत आई। गीता और दित्या अपने पापा के पास  रहीं।  उत्कर्षनी मुझे यही कहती रही, "मां बीच में संडे आ गया, मेरा मंडे को जरूरी काम है, वरना मैं जाकर कन्या पूजन तो कर लेती।"


कन्या पूजन में गीता अपनी सहेलियां बुलाती है। कभी उनको अपना लहंगा भी पहना देती है। वे लहंगे को मिनी स्कर्ट की तरह कर लेती है

पर बच्चियां बहुत खुश होती है। लेकिन इस बार उत्कर्षनी ने अमेरिका में घर पहुंचते ही मुझे तस्वीर भेजी। उनके परिवारिक मित्र निशि अमित ने कन्या पूजन किया। दित्त्या को  सजा कर उसका पूजन किया। दित्या  बहुत खुश थी और उत्कर्षिणी भी।



Thursday, 19 October 2023

दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से सम्मानित उत्कर्षनी वशिष्ठ गंगूबाई काठियावाड़ी काठियावाड़ी ! नीलम भागी

 





यहां बैठने के अलग-अलग ब्लॉक थे। अवार्ड  विनर का अलग ब्लॉक था। उसके पीछे विनर  के गेस्ट के बैठने के लिए हमारा डी ब्लॉक था। हम आराम से तस्वीर देखते हुए गए। मैं समझी थी कि मुंबई की तरह यहां सीटिंग अरेंजमेंट होगा पर हमारे जाने तक हमारे ब्लॉक की सीट भर गई थी। हमें तीनों को पीछे अलग-अलग सीट मिली तुरंत पूरा हॉल भर गया।  प्रोग्राम के बाद मीडिया के जवाबों को देकर उत्कर्षिणी  हमारे पास आई। अंजना पता नहीं कहां चली गई थी। उसने एक पुरस्कार डॉ. शोभा भारद्वाज मासी के हाथ में रखा, दूसरा मेरे और तस्वीरें ली फिर शोभा मासी ने दोनों पुरस्कार मेरे हाथ में  देकर उत्कर्षनी से कहा," तेरी मां की मेहनत है, जिसको तूने सफल कर दिया। मैं गर्वित हूं कि 69वें समारोह में सिर्फ़ तुझे दो नेशनल अवार्ड मिले हैं।" इतने में फिर उत्कर्षनी को बुला लिया। हम लोग आ गए अंजना भी मिल गई।  उत्कर्षनी का फोन आया,"मां स्वर्गीय माया शर्मा मासी को बहुत मिस किया। आज  होती तो मेरी तीनों मासियां, मां के साथ इस समारोह को देखती हैं।" मैं जल्दी घर आऊंगी।

https://youtu.be/AnL1GqCuTYg?si=lEZLE9aVQUWovpQK





Friday, 13 October 2023

चुप, मुझे टोकने की जरूरत नहीं! नीलम भागी

 दीदी ने पुम्मू को बहुत कमेरा बना दिया है। कोने कोने से कचरा निकालता है। काम करते समय उसे कोई टोके उसे पसंद नहीं है। श्वेता उसे ऑफिस से कैमरे में डस्टिंग में, हरी सब्जियां पालक, मेथी आदि के पत्ते तोड़ने में दीदी की मदद करते हुए देख, मुझे भी तस्वीरें शेयर करती है और कहती है कि अच्छा है घर के काम में इसके हाथ चलेंगे।



Monday, 9 October 2023

नदी नारे न जाओ, श्याम पैंया पढ़ूँ! नदी संस्कृति! उत्सव उल्लास अक्तूबर प्रेरणा विचार नीलम भागी Neelam Bhagi

  

नेपाल में खतरनाक रास्ते से मुक्तिनाथ जो 3800 मीटर की ऊँचाई पर है, जा रही थी। बाजू में काली गंडकी नदी बह रही थी। उसके पत्थर शालिग्राम हैं।  


 मैं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के 15वें अधिवेशन में जबलपुर गई थी। सांस्कृतिक कार्यक्रम में डिंडोरी से आये आदिवासियों ने जो भी प्रस्तुति दी, उनके लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश सब कुछ माँ नर्मदा थी। नदी में तो इतनी शक्ति हैं वह पत्थर को भी भगवान बना देती है। तभी तो कहते हैं

नर्मदा के कंकर, सब शिव शंकर।  

नदियों के किनारे प्राचीन नगर, महानगर या तीर्थस्थल हैं। र्तीथस्थल हमारी आस्था के केन्द्र हैं। यहाँ जाकर मानसिक संतोष मिलता है। देश के कोने कोने से तीर्थयात्री आते हैं। एक ही स्थान पर समय बिताते हैं। अपने प्रदेश की बाते करते हैं और दूसरे की सुनते हैं। कुछ हद तक देश को जान जाते हैं। उनमें सहभागिता आती है। अपने परिवेश से नये परिवेश में थोड़ा समय बिताते हैं। कुछ एक दूसरे से सीख कर जाते हैं, कुछ सीखा जाते हैं। मानसिक सुख भी प्राप्त करते  हैं। धर्म लाभ तो होता ही है।  

हर नदी वहाँ के स्थानीय लोगो के लिये पवित्र है और उनकी संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ी है। हमारे अवतारों की जन्मभूमि भी नदियों वाले शहरों में है। उनका जन्मदिन उत्सव है। इसलिए हमारे उत्सव में नदी में स्नान करना शामिल है। हमारे यहाँ नदियों को माँ कहा जाता है। जैसे माँ निस्वार्थ संतान का पोषण करती है। वैसे ही नदी हमें देती ही देती है। जीवनदायनी नदियों को लोग पूजते हैं, मन्नत मानते हैं। 

हमारे यहाँ नदियों की दंत कथाएं हैं, कविताएं, चालीसा, आरती और गीत हैं। पद्मश्री विलक्षण लोकगायिका, मलिका ए नौटंकी गुलाब बाई का एक बहुत मशहूर गाना ’’नदी नारे न जाओ, श्याम पैंया पढ़ूँ! उनका गाना फिल्म में ले लिया पर उनको क्रैडिट भी नहीं दिया। एस.डी.बर्मन के नदी गीत बहुत मशहूर हैं।

साबरमती के संत गांधी जी का जन्मदिन 2 अक्तूबर ’विश्व अहिंसा दिवस’ के रुप में मनाया जाता है।    

   15 अक्तूबर से नवरात्र शुरु हैं, 20 अक्तूबर से दुर्गा पूजा  है। यह भारतीय उपमहाद्वीप व दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला सामाजिक-सांस्कृतिक धार्मिक वार्षिक हिन्दू पर्व है। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा और त्रिपुरा में सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। नेपाल और बंगलादेश में भी बड़े त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। हिन्दू सुधारकों ने ब्रिटिश राज में इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। दिसम्बर 2021 में कोलकता की दुर्गापूजा को यूनेस्को की अगोचर सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। 

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य की महिलाएं बड़े उत्साह से पूरे नौ दिन बतुकम्मा महोत्सव मनातीं हैं। ये शेष भारत के शरद नवरात्रि से मेल खाता है। प्रत्येक दिन बतुकम्मा उत्सव को अलग नाम से पुकारा जाता है। जंगलों से ढेर सारे फूल लाते हैं। फूलों की सात पर्तों से गोपुरम मंदिर की आकृति बनाकर बतुुकम्मा अर्थात देवियों की माँ पार्वती महागौरी के रूप में पूजा जाता है। लोगों का मानना है कि बतुकम्मा त्यौहार पर देवी जीवित अवस्था में रहती हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करतीं हैं। त्योहार के पहले दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। नौ दिनों तक अलग अलग क्षेत्रिय पकवानों से गोपुरम को भोग लगाया जाता है। और इस फूलों के उत्सव का आनन्द उठाया जाता है। नवरात्रि की अष्टमी को यह त्यौहार दशहरे से दो दिन पहले समाप्त है।

 बतुकम्मा से मिलता जुलता, तेलंगाना में कुवांरी लड़कियों द्वारा बोडेम्मा पर्व मनाया जाता है। जो सात दिनों तक चलने वाला गौरी पूजा का पर्व है। महाअष्टमी और महानवमी को नौ बाल कन्याओं की पूजा की जाती है जो देवी नवदुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। हम भारतीय कन्या पूजन विदेश में रह कर भी करते हैं। 

15 से 23 अक्तूबर तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया जा रहा है किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया था। तिरूमाला में तो हर दिन एक त्यौहार है और धन के भगवान श्री वेंकटेश्वर साल में 450 उत्सवों का आनन्द लेते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मोत्सव है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ’ब्रह्मा का उत्सव’ जिसमें हजारो श्रद्धालू इस राजसी उत्सव को देखने जाते हैं।

दशहरे की छुट्टियों में जगह जगह  रात को रामलीला मंचन मंच पर होता है। जिसे बच्चे बहुत ध्यान से देखते हैं। लौटते हुए रामलीला के मेले से गत्ते, बांस, चमकीले कागजों से बने चमचमाते धनुष बाण, तलवार और गदा आदि शस्त्र खरीद कर लाते और वे दिन में पार्कों में रामलीला का मंचन करते हैं। जिसमें सभी बच्चे कलाकार होते। उन्हें दर्शकों की जरुरत ही नहीं होती। इन दिनों सारा शहर ही राममय हो जाता।

बहू मेला जम्मू और कश्मीर, जम्मू में आयोजित होने वाले सबसे बड़े हिंदू त्योहारों में से एक है। यह जम्मू के बहू किले में साल में दो बार नवरात्रों के दौरान मनाया जाता है। इस दौरान पर्यटक और स्थानीय लोग रंगीन पोशाकें पहनते हैं और मेले में खरीदारी करते हैं और खाने के स्टॉल में वहाँ के पारम्परिक खानों का स्वाद लेते हैं।


शरदोत्सव दुर्गोत्सव एक वार्षिक हिन्दू पर्व है। जिसमें प्रांतों में अलग अलग पद्धति से देवी पूजन, क्न्या पूजन है। गुजरात का नवरात्र में किया जाने वाला गरबा, डांडिया नृत्य तो पूरे देश का हो गया है। जो नहीं करते, वे देखने जाते हैं।

तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में दशहरे से पहले नौ दिनों को तीन देवियों की समान पूजा के लिए तीन तीन दिनों में बांट दिया है। पहले तीन दिन धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं। अगले तीन दिन शिक्षा और कला की देवी सरस्वती को समर्पित है और माँ शक्ति दुर्गा को समर्पित हैं और विजयदशमी का दिन बहुत शुभ माना जाता है। बच्चों के लिए विद्या आरंभ के साथ कला में अपनी अपनी शिक्षा शुरु करने के लिए इस दिन सरस्वती पूजन किया जाता है। 

कावेरी संकरमना 18 अक्तूबर हमारे देश की पाँच पवित्र नदियों में शुमार दक्षिण की गंगा, कावेरी का उदगम स्थल, ताल कावेरी है, ब्रहमगिरि की पहाड़ियों में भागमंडला मंदिर है। यहाँ से आठ किलामीटर की दूरी पर तालकावेरी है, कावेरी का उद्गम स्थल, मंदिर के प्रांगण में ब्रह्मकुण्डिका है, जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं। 17 अक्टूबर को कावेरी संक्रमणा का त्यौहार  है। जीवनदायिनी माता कावेरी ने दूर दूर तक कैसा अतुलनीय प्राकृतिक सौंदर्य और प्राकृतिक संपदा बिखेरी है। 

कोंगाली बिहु(18 अक्टूबर) इस समय धान की फसल लहलहा रही होती है। लेकिन किसानों के खलिहान खाली होते हैं। इसमें खेत में या तुलसी के नीचे दिया जला कर अच्छी फसल की कामना करते हैं यानि यह प्रार्थना उत्सव है। भेंट में एक दूसरे को गमुशा, हेंगडांग(तलवार) देते हैं। कोंगाली बिहू से ये भी युवाओं को समझ आ जाता है कि मितव्यवता से भी उत्सव मनाया जाता है।

 महाभारत के रचियता वेदव्यास महाभारत के बाद मानसिक उलझनों में उलझे थे, तब शांति के लिये वे तीर्थाटन पर चल दिए। दंडकारण्य(बासर का प्राचीन नाम) तेलंगाना में, गोदावरी के तट के सौन्दर्य ने उन्हें कुछ समय के लिए रोक लिया था। 

  यहीं ऋषि वाल्मिकी ने रामायण लेखन से पहले, माँ सरस्वती को स्थापित किया और उनका आर्शीवाद प्राप्त किया था। मंदिर के निकट वाल्मीकि जी की संगमरमर की समाधि है। बासर गाँव में आठ तालाब हैं। जिसमें वाल्मीकि तीर्थ है। पास में ही वेदव्यास गुफा है। लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा की मूर्तियाँ हैं। पास ही महाकाली का विशाल मंदिर है। नवरात्र में बड़ी धूमधाम रहती है।  आज उस माँ शारदे निवास को ’श्री ज्ञान सरस्वती मंदिर’ कहते हैं। हिंदुओं का महत्वपूर्ण संस्कार ’अक्षर ज्ञान’ विजयदशमी को मंदिर में मनाया जाता है जो बच्चे के जीवन में औपचारिक शिक्षा को दर्शाता है।  बासर में गोदावरी तट पर स्थित इस मंदिर में बच्चों को अक्षर ज्ञान से पहले अक्षराभिषेक के लिए लाया जाता है और प्रसाद में हल्दी का लेप खाने को दिया जाता है।

विजयदशमी को देश में कहीें महिषासुर मर्दिनी को सिंदूर खेला के बाद नदी में विसर्जित किया जाता है। नदी किनारे मेले का दृश्य होता है। तो कहीं श्री राम की रावण पर विजय पर रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले दहन किए जाते हैं। सबसे अनूठा 75 दिन तक मनाया जाने वाला बस्तर के दशहरे का रामायण से कोई संबंध नहीं है। अपितु बस्तर की आराध्या देवी माँ दन्तेश्वरी और देवी देवताओं की पूजा हैं।

मैसूर का दस दिवसीय दशहरा का मुख्य आर्कषण शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक मैसूर पैलेस की रोशनी, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम और विजयदशमी पर दशहरा जुलूस और प्रदर्शनी है।     

आज हर रामकथा के मूल में भगवान बाल्मीकि की रामायण है।

पहले महाकाव्य ’रामायण’ के रचयिता महाकवि महर्षि वाल्मिकी जयंती अश्विन महीने की पूर्णिमा(28 अक्तूबर) शरद पूर्णिमा को मनाई जाती है। जगह जगह जुलूस और शोेभायात्रा निकाली जाती है। लोगों में बहुत उत्साह होता है। 

कहीं कहीं अविवाहित लड़कियाँ सुबह नदी स्नान करने जाती हैं कहते हैं कि ऐसा करने से उन्हें अच्छा वर मिलता है। और अगले दिन से कार्तिक स्नान, तुलसी पूजन शुरु हो जाता है।

इन सभी उत्सवों में प्रकृति वनस्पति और नदियाँ(जल)है। यानि हमारी एक ही संस्कृति, हमें जोड़ती है।

नीलम भागी( लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, ट्रेवलर) 

प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित पत्रिका "प्रेरणा विचार" के अक्टूबर अंक में प्रकाशित हुआ है यह लेख 





Thursday, 5 October 2023

लाज़वाब झटपट पकाने के तरीक़े नीलम भागी

 


मुंबई में नेहा मनपुरिया के घर ज्यादा मेहमान हो गए। दीदी कई तरह का सबकी पसंद का खाना बनाती। तीन बर्नर पर कुकिंग चलती। साथ में तैयारी, फिर चौथे बर्नर पर भी। एक मेहमान ऐसे जिनके लिए फीका खाना निकालती। वे डाइनिंग टेबल पर ख़ुद नमक मिलाकर सेवन करते।  मसलन दीदी बाकि उपमा में कैसे नमक स्वादानुसार मिलाती! और इतनी जल्दी और लज़ीज़ खाना कैसे बनाती? कुकिंग टिप्स #cooking Tips   का मैंने वीडियो दीदी को डिस्टर्ब किए बिना बनाया है।

https://youtu.be/3s6CtWBkBqo?si=UOySi1kjh2ka3UBO



Wednesday, 4 October 2023

कोरोनाकाल में शहीद हुए पत्रकारों की याद में राष्ट्रीय स्मारक लोकार्पण

 

2 अक्टूबर को नोएडा के सेक्टर 72, नोएडा स्थित स्मृति पार्क में पत्रकार मेमोरियल का विधिवत लोकार्पण किया गया। ये मेमोरियल कोरोनकाल में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करते हुए शहीद हुए देशभर के 497 पत्रकारों की याद में स्थापित किया गया है। इस लोकार्पण कार्यक्रम में शहीद पत्रकारों को श्रद्धांजलि देने के लिए सुबह 11 बजे से 3 बजे तक विशेष यज्ञ अनुष्ठान  व भंडारे का आयोजन किया गया। देशभर से आए शहीद पत्रकारों के परिजनों, पत्रकारों, राजनेताओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हवन में आहुति देकर दिवंगत पत्रकारों को याद किया व उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना भी की।

शहीद पत्रकारों को श्रद्धांजलि देने के लिए यहां नोएडा (गौतमबुद्धनगर) के सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. महेश शर्मा, राज्यसभा सांसद व भाजपा नेता सुरेंद्र सिंह नागर, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता व प्रसिद्ध किसान नेता राकेश टिकैत, पूर्व केन्द्रीय मंत्री डीपी यादव,  डा. वीएस चौहान, भारतीय जनता पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष सतेंद्र सिसोदिया, भारतीय जनता पार्टी के नोएडा मीडिया प्रभारी तन्मय शंकर, समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजकुमार भाटी, रामशरण नागर एडवोकेट, भाजपा नेता संजय बाली, मनीष शर्मा,  रालोद के राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी, रालोद के युवा नेता मनोज चौधरी, रालोद के प्रदेश उपाध्यक्ष अजित सिंह दौला, रालोद के मेरठ मंडल प्रभारी इंद्रवीर सिंह एडवोकेट, जेवर विधानसभा क्षेत्र के विधायक धीरेन्द्र सिंह, उ.प्र. के पूर्व मंत्री व भाजपा नेता नवाब सिंह नागर, 

केंद्रीय राज्य मंत्री भानु प्रताप वर्मा,आम आदमी पार्टी के जिलाध्यक्ष भूपेन्द्र सिंह जादौन, सपा नेता सुनील चौधरी, यमुना विकास प्राधिकरण के सीईओ अरुण वीर सिंह,नोएडा कमिश्नरी में तैनात एडीसीपी शक्तिमोहन अवस्थी, एसीपी रजनीश वर्मा, डीएफओ प्रमोद श्रीवास्तव, कांग्रेस नेता चौधरी रघुराज सिंह, पवन शर्मा, सपा नेता दीपक विग, मनोज चौहान,

कॉंग्रेस महानगर अध्यक्ष रामकुमार तंवर, विपिन मल्हन , वी के सेठ, कुंवर बिलाल बर्नी, अन्नू पंडित, , रालोद प्रवक्ता यतेन्द्र सिंह कसाना, नोएडा मीडिया क्लब के अध्यक्ष पंकज पाराशर सहित क्लब केे पदाधिकारियों में विनोद सिंह राजपूत, भूपेन्द्र चौधरी, रिंकू यादव, वरिष्ठ पत्रकार एस एन सिन्हा, मानवेन्द्र वशिष्ठ, सीपी सिन्हा, सईद अंसारी, पुनीत , संजय ब्राक्टा,सुरेश चव्हाण, अतुल अग्रवाल,विनोद शर्मा, सुरेश चौधरी,  अनिल चौधरी, मोहम्मद आजाद, विनोद अग्निहोत्री, संजीव यादव, आर.पी. रघुवंशी,  मुखराम सिंह, दिनेश शर्मा, अभिमन्यु पांडेय, इकबाल चौधरी, देवदत्त शर्मा, सलामत मियां, संतोष सिंह, वीके अवस्थी, , देवेन्द बेसौया, निरंकार सिंह, जगदीश शर्मा, अम्बरीश त्रिपाठी, सौरभ राय,आसिफ,ईश्वर , मनोहर त्यागी, एन के दास, प्रमोद पंडित,रवि यादव, संगीता चौधरी, प्रिया राणा, सुनैना सिंह, आंचल यादव, देवेंद्र राघव, देव गुर्जर,अकरम चौधरी, देव गुर्जर, अंजना भागी, नीलम भागी, सुमन चौधरी,अरविंद उत्तम, मोहम्मद इमरान एवं हिमांशु शुक्ला समेत बड़ी संख्या में पत्रकार मौजूद थे। साथ ही प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता सरदार मनजीत सिंह, हरेन्द्र नागर, डीपी गोयल, एल.बी. सिंह, एस.पी. जैन, सपा नेता राघवेन्द्र दुबे, बबलू यादव , समाजसेवी अनूप खन्ना, फोनरवा के अध्यक्ष योगेन्द्र शर्मा समेत अनेक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता मौजूद थे।





















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