पांडव भवन से दो किमी दूर और नक्की झील के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सूर्यास्त बिंदू से डूबते हुए सूर्य के सौंदर्य को देखने हम चल पड़े । नक्की झील के बाजू में अच्छी बनी साफ़ सुथरी सड़क से पैदल, खच्चर या धकेलने वाली गाड़ी से जाया जा सकता है। हम बहुत लेट थे। धकेल में तो मैं बिल्कुल ही नहीं बैठ सकती थी। श्रद्धा थकी सी चल रही थी। अमित और प्रवीण भाई तेज़ी से सनसेट प्वाइंट की ओर चल दिए। मैं तो वैसे ही पता नहीं क्या देखती हुई, स्लो मोशन में हो जाती हूं। यहाँ से दूर तक फैले हरे भरे अरावली पर्वतमाला के दृश्य आँखों को शांति पहुँचाते हैं। सूर्यास्त के समय आसमान के बदलते रंगों की छटा देखने सैकड़ों पर्यटक यहाँ आते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य का नैसर्गिक आनंद देनेवाली यह झील चारों ओऱ पर्वत शृंखलाओं से घिरी है। यहाँ के पहाड़ी टापू बड़े आकर्षक हैं। जैसे-जैसे शाम होती जा रही है, वैसे ही खाली ठेले वालों से भी मोलभाव शुरू हो जाता है। सनसेट पॉइंट को कुछ लोग हनीमून प्वाइंट भी कह रहे थे। जो नौजवान जोड़े थे, उनमें महिला धकेल का मोल भाव कर रही थी लेकिन पुरुष बैठने को राजी नहीं होता क्योंकि उससे कम उम्र का लड़का ही तो धकेल रहा था। महिला ने शॉर्ट पहना हुआ था और उसमें बैठकर अपना वीडियो बनाने लगी और साथ में उसको कहे जल्दी चलो, मेरा वीडियो लंबा हो जाएगा। और सूखा सा लड़का पूरी ताकत लगाकर मोहतरमा को सनसेट दिखाने ले जा रहा था। पति तो बहुत दूर रह गया था। रास्ते में खाने-पीने का भी सामान खूब बिक रहा था। अचानक चलते-चलते मेरे दिमाग में आया यह तो ढलान है। मैं अभी गई तो लौटते समय तो चढ़ाई होगी। मेरे लिए तो मुश्किल हो जाएगा और मैं वापस हो ली।
https://youtu.be/u_HiJHaE3SQ?si=-saxcawELnsYCnI_
वही झील के किनारे उसकी सुंदरता और पर्यटकों को देखते हुए लौट पड़ी। श्रद्धा के मिलने पर हम दोनों बैठ गईं। अमित और प्रवीण भाई के इंतजार में। झील को विभिन्न रंगों में जल फव्वारा लगाकर आकर्षक बनाया गया है। जिसकी धाराएँ ८० फुट की ऊँचाई तक जाती हैं। झील में नौका विहार की भी व्यवस्था है। झील के किनारे शाम के समय घूमने और नौकायन के लिए पर्यटकों का हुजूम उमड़ा हुआ है। दोनों के आते ही हम गाड़ी के लिए चल दिए। मई के महीने में भी मौसम बहुत अच्छा था । गाड़ी आ गई और अब हम ज्ञान सरोवर पहुंच गए। क्रमशः
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