मुख्य मार्ग छोड़कर पतली पतली गलियों से बृजेश जी के सुपरविजन में, हमारी ई-रिक्षाएं हनुमानगढ़ की ओर जा रही थीं। बीच में मेन होल दोनों साइड में खुली नालियां हैं। एक जगह पर तो मेन हॉल का मुंह खुला हुआ था, ढक्कन पास में भी नहीं रखा था। वैसे इस समय अयोध्या जी में हर जगह विकास चल रहा है। थोड़ा समय तो लगेगा ही। अगले दिन मोनी अमावस के कारण बहुत ज्यादा भीड़ थी। सामने से कोई रिक्शा आ जाती तो ऐसे लगता, हमारी रिक्शा का पहिया नाली में जाएगा, पर ऐसा नहीं हुआ। मेरा हनुमानगढ़ की ओर ध्यान बिल्कुल नहीं था। रास्ते को मैं देख रही थी। एक जगह पर हमें उतार दिया क्योंकि आगे वाहन नहीं जा सकते थे। यहां से पैदल जाना था। रास्ता बिल्कुल साफ सुथरा है। रास्ते के दोनों और लड्डू और पेड़े की दुकाने थीं। यहां इन दुकानों में लड्डू पेड़े बन नहीं रहे थे, बिक रहे थे और कहीं से बनकर दुकानों पर आते जा रहे थे। रेट भी नोएडा दिल्ली से बहुत कम था। बिल्कुल अनुशासित लाइन थी। श्रद्धालु भक्ति भाव से चल रहे थे और मन में जाप कर रहे थे। मंदिर दिखने लगा जो 76 सीढ़ियां चढ़ने के बाद है। प्रथा है कि रामलला के दर्शन से पहले उनके परम भक्त हनुमान जी के दर्शनों के लिए हनुमानगढ़ आना होता है। न आने पर आपकी यात्रा अधूरी होगी। दूर तक व्यवस्थित लाइन थी। हमने एक प्रसाद की दुकान पर चप्पल जूते उतारे और जल्दी से दर्शनों के लिए चल दिए। यह मंदिर दसवीं शताब्दी से है। सुबह 4:00 बजे से रात 10:00 बजे तक खुलता है। रेलवे स्टेशन से 1 किलोमीटर की दूरी पर किले की तरह है और 52 बाघे का इसका परिसर है। यह मुगल कालीन और नागर शैली में निर्मित सिद्धपीठ है। 300 साल पहले महंत बाबा अभयराम जी ने इसका निर्माण करवाया था। इसके बारे में एक दंत कथा है। नवाब सिराजूदौला के शहजादे बहुत गंभीर बीमार हुए। बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए। तब हिंदू मंत्रियों ने नवाब से कहा कि आप बाबा अभयराम को दिखा दीजिए। अभयराम जी हनुमान जी का चरणामृत ले कर आए, शहजादे को पिलाया। अपने साथ लाए जल को मंत्र पढ़ कर शहजादे पर छिड़का। शहजादा ठीक हो गया।
यहां पर हनुमान जी मां अंजनी की गोद में है। जहां बहुत भीड़ है। एक साथ तीन पुजारी अटेंड करते हैं। उस दिन शुक्रवार था। मंगल और शनिवार को तो क्या हाल होता होगा! पर दर्शन सबको हो जाते हैं। लंका विजय करके महावीर, श्री राम के साथ ही आ गए थे। श्री राम ने यह स्थान उनका निवास बनाया। कहते हैं हनुमान जी अयोध्या जी के कोतवाल है। अभी रामकोट की रक्षा करते हैं। यहां लंका से लाई से निशानियां हैं। दीवारों पर संगमरमर में चौपाइयां, हनुमान चालीसा उकेरी हुई हैं। श्रद्धालु पढ़ते हुए चलते हैं। दर्शन के बाद हम लोगों ने 9 तारीख की रात में ही श्रीराम जन्मभूमि के दर्शन का प्लान बना लिया। वैसे हमें समय 10 तारीख को 10:00 बजे समय मिला था पर इतनी भीड़ बढ़ती देखकर, हमने आज ही दर्शनो की कोशिश करने चल दिए।
https://youtu.be/DQ7L7H3BEbw?si=lgUk_MM0nf1uo6VF
क्रमशः
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