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Sunday, 25 February 2024

रामलला के दर्शन! श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र, अयोध्या धाम की यात्रा भाग 5 नीलम भागी



हनुमानगढ़ी से लगभग 500 मी की दूरी पर राम जन्मभूमि है। अब हम रामलाल के दर्शन के लिए चल दिए क्योंकि इतनी बड़ी संख्या श्रद्धालुओं की आ रही थी। अगले दिन हमें दिए गए समय पर दर्शन में बहुत समय लगेगा, ऐसा लग रहा था। और हम बहुत तेजी से चल रहे थे। वहां सामान रखने के लिए बहुत इंतजाम थे। जिसमें स्कैनिंग मशीन तक लगी हुई थी। पर यहां जो लोग सीधे सामान लेकर और जिन्होंने अभी तक कहीं स्टे नहीं लिया था। वे भी आ रहे थे और उनका सामान बड़े-बड़े लॉकर में जमा हो रहा था। हमारे पास तो हैंडबैग ही थे और मोबाइल। हमें कहा गया कि आप आगे चलिए, वहां पर भी हैं । यहां हमें रात हो रही थी, दर्शनों की लालसा में मोबाइल जहां तक ले जा सकते थे। वहां पर भी हमने वीडियो नहीं बनाया, न ही फोटो ली। हमारा लक्ष्य सिर्फ दर्शन था और कुछ याद नहीं आ रहा था। जहां से मोबाइल नहीं ले जा सकते, वहां  लाकर पर गए, यहां कई सारी विंडो थी। सब लोग दौड़ दौड़ के छोटी से छोटी लाइन में लग रहे थे।   चार नंबर विंडो पर मेरा नंबर आ गया, उस समय हमारा कोई साथ नहीं देख रहा था, जिसका नंबर आता था, उसके बैग में ही अपना समान डाल देते थे। वे लेते समय  बस एक मोबाइल नंबर रसीद पर लिखते और  कितने मोबाइल है उनकी संख्या  रसीद पर लिखते और स्लिप दे देते। यह जमा करके आते ही मन बिल्कुल शांत हो गया। अब जो देखना है, हमने मन की आंखों से देखना है और दिल में उतारना है। याद आया चप्पल! वहीं काउंटर के सामने चप्पल उतार के लाइन में लग गए ताकि याद रहे,जो होगा देखा जाएगा। जब बिल्कुल भवन दिखने लगा तो यहां से सुरक्षाकर्मी भी बड़े मुस्कुराते हुए इशारा करते, जल्दी आ जाओ, जल्दी आओ क्योंकि मंदिर बंद होने का समय हो रहा था। बहुत ही भव्य कारीगरी  है। यहां चारों तरफ एक अजीब सा श्रद्धालुओं की श्रद्धा के कारण भाव था। जब  सीढ़ियां आई तो मैं सहारे के लिए साइड में हो गई। सीढ़ियां सफ़ेद और बहुत चिकनी थीं । सब चल रहे थे पर मैं एक्सीडेंट से ठीक हुई थी इसलिए मैं पकड़ के चल रही थी।  लाइन में  ऊपर पहुंचने पर बीच में थोड़े-थोड़े लला दिख जाते।  बाजू की लाइन में जब व्यक्ति लंबा होता तो वह भगवान राम के बाल रूप का अपने  साथ के छोटों को वर्णन करता, पर आंखें सामने लगी हुई थी। लाइन खिसकती जा रही थी। मैं लला के सामने विस्मय विमुग्ध सी उनको निहार रही थी। कोई कह रहा है आगे बढ़िए, नहीं बढ़ पा रही हूं।  सुरक्षा कर्मी ने हंसते हुए मुझे थोड़ा सा खिसका दिया। मैं वहां खड़ी हो गई फिर किसी ने थोड़ा उधर कर दिया, मैं वहां खड़ी हो गई फिर किसी ने खिसका दिया, मैं बाहर थी। उस बाल रूप की छवि का तो मैं  वर्णन नहीं कर सकती। आप भी देखेंगे तो आपका भी यही हाल होगा। मुझे नहीं लगता कि कोई भी वहां से हटना चाहता होगा। आसपास देख रही हूं। अभी भी निर्माण चल रहा है। अभी इतना खूबसूरत है, भविष्य में तो और भी लाजवाब होगा। कुछ दूरी पर प्रसाद दिया गया थोड़ा सा आगे आई, तो याद आया अपर्णा सिंगापुर से आई है। मैं पहुंचूंगी तो जाएगी।  मैं एकदम पलटी, कहा," एक और  दे दीजिए। उन्होंने दे दी, इलायची दाना का प्रसाद था। वह मैंने उसके  लिए रख लिया। जाएगी तो सिंगापुर में अपने मिलने वालों को इस अमूल्य प्रसाद को देगी। रास्ता इस तरीके से बनाया है कि बस आप लाइन में चलते रहो, हम भी चलते जा रहे थे। लाकर भवन के पास पहुंच गए। देखा उससे पहले जूते चप्पलों  को रखने की बहुत बढ़िया व्यवस्था थी! जाते समय हमें तो दर्शनों के कारण दाएं बाएं कुछ दिखाई नहीं दिया। खैर चार नंबर काउंटर पर पहुंचकर रसीद दिखाई। सामान मिला उन्होंने पूछा," मोबाइल नंबर बोलो।" मैंने बोला तो सामान दिया और पूछा जितने मोबाइल लिखें हैं उतने  है न?" मैंने धन्यवाद किया अब पीछे मुड़कर देखा जहां चप्पल उतारी थी। वैसी वह जगह नहीं थी। वहां पर तो  कुर्सियां रखी थी।  वहां खड़ी सिक्योरिटी से पूछा कि हमने सामान जमा कर के यहीं पर चप्पल सामने उतारी थी। वह मिल नहीं रही हैं, उन्होंने कहा इसकी बैक साइड के काउंटर से जमा होता है और यहां से सामान दिया जाता है, लौटती हुई लाइन से। अब हमें फिर पूछते हुए खूब लंबा चक्कर काटना पड़ा। चार नंबर काउंटर डिपॉजिट वाले पर पहुंचे फिर पीछे मुड़ के देखा, वही हमारी चप्पल पड़ी हुई थी। आप सोचिए कितनी उत्तम व्यवस्था है। यही हम चप्पलों को उनके स्थान पर रखते तो हमें इतना लंबा चक्कर काट कर नहीं आना पड़ता। अब वहां पड़ी कुर्सी पर पहले कुछ देर बैठी। पीने के पानी की भी उत्तम व्यवस्था थी। पानी पिया फिर हम चल दिए। अब बिल्कुल खाली खाली। बहुत सुंदर रात के समय रास्ता लग रहा था। पेड़ों को भी बहुत सुंदर सजाया गया था। आते समय इतनी भीड़ देखकर चिंता हो रही थी कि जाते समय सवारी मिल जाएगी! हमारा बाकि ग्रुप कहीं और ठहरा था। जहां से सवारी मिलती है, वहां तक सड़क के दोनों ओर  मेले जैसा माहौल था। एक बात मैंने देखी, दुकानों के बोर्ड का साइज सभी का एक सा था। उसके अंदर लिखा मैटर अलग पर सभी बिल्कुल एक सी। जो भी ऑटो, या ई रिक्शा आती, सब उसको फटाफट लपक लेते। हम दो सवारी ई रिक्शा में बैठे। उसे मणि पर्वत की ओर 3 सवारियां नहीं मिल रही थीं। सब 10-5 के टोलों में थी। आते ही रिक्शा भर जाती। हमारा तो आज दर्शन का प्रोग्राम अचानक, दूसरे ग्रुप के साथ बन गया और दर्शन भी हो गया। अब यह ई रिक्शा वाला बोला," मैं अपना टाइम नहीं खराब करूंगा। आप या तो उतर जाओ या पांच  सवारी का ₹50 के हिसाब से पेमेंट करना।" हम तीन सवारी उसके लिए कहां से लाते हैं!😃 बोले ," दे देंगे, पहले बोल देते ठंड में बिठाए रखा।" तभी वह चल पड़ा। बहुत तेज चला रहा था। उसे बार-बार टोकना पड़ रहा था। एक बार तो रिक्शा पलटने लगा, बीच सड़क में सड़क से नीचा मेनहोल था। मैं तो डर गई , अभी तो मेरा फ्रैक्चर ठीक हुआ है, फिर दोबारा ना हो। पर वह बाज नहीं आया। वह सिद्धांतवादी 'ज्यादा चक्कर ज्यादा कमाई' के सिद्धांत पर चल रहा था। राम राम करके हम डेरे पर पहुंचे।  हैरानी मुझे इस बात की हुई कि खाना उस समय भी मिला और गर्म पानी। चाय तो रहती ही है। अपने रूम में आई, अनु ने दरवाजा खोला।  दोपहर को जब मैं सरयू जी के लिए निकली थी तो बहुत हल्का सा जैकेट पहना था क्योंकि गर्मी हो रही थी। अब इस वक्त रात में ठंड हो चुकी थी । मुझे बहुत ठंड लग रही थी। दो मोटे-मोटे कंबल मेरे बैड पर रखे थे, उनमें दुबक गई। मेरे पीछे ही दो महिलाएं और आ गई थी। वह सब सो रही थी। मैंने गर्म पानी पिया। 3:30 बजे यह सब लोग उठ गई। इन्होंने दर्शन के लिए 4:00 बजे निकलना था। अब एक महिला ने बिस्तर छोड़ दिया तो अपने कंबल मेरे ऊपर और डाल दिए, मुझे बहुत अच्छा लगा। जब यह महिलाएं जाने लगे तब मैंने इन्हें  लॉकर के बारे में, चप्पल रखने की व्यवस्था पर, पीने  के पानी, साफ़  शौचालय आदि के बारे में जानकारी दी। और कहा बिल्कुल व्यवस्था के  अनुसार चलना। बहुत अच्छे दर्शन होते हैं। लाइन में चलना  बहुत आराम से दर्शन होंगे। व्यवस्था बहुत उत्तम है। इन सब के जाते ही मैं सो गई। 9:00 बजे दरवाजा खटखटाया की सफाई करनी है। तब मैं उठी नित्य क्रम  निपटा कर, पैकिंग करके नाश्ते के लिए गई । नाश्ता करके धूप में बैठकर भारत के कोने कोने से आए श्रद्धालुओं को देखती रही, परिचय  होता रहा और बतियाती रही। कल पूरा दिन चलायमान रही इसलिए धूप में बैठकर थकान उतर गई। मन में प्लानिंग बना रही थी कि मुझे क्या-क्या देखना है। दशरथ महल तो हनुमानगढ़  से 50 मीटर है राम जन्मभूमि जाते हुए बाहर से देखा था। यहां भगवान जी का बचपन बीता था। राजा दशरथ यहां नाते रिश्तेदारों के साथ रहते थे। इसका अब कई बार जीर्णोद्वार हो चुका है। अब यह मंदिर है जिसमें राम परिवार की  मूर्तियां हैं। 
क्रमशः






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