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Tuesday, 27 February 2024

मणि पर्वत, श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र, अयोध्या धाम की यात्रा भाग 6 नीलम भागी

 


हमारे टेंट सिटी से 500 मीटर की दूरी पर  मणि पर्वत था। यहां पैदल ही  चल दिए। वहां खूब बंदर बैठे हुए थे जो किसी को कुछ नहीं कह रहे थे। लेकिन बंदरों का खाना बेचने वाले, आपके पीछे बुरी तरह लग जाते हैं। तोते से भविष्य बताने वाले और सौभाग्यवतियों का सामान बेचने वालों की दुकाने थीं । इसकी ऊंचाई 65 फीट है । इस ऊंचाई पर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। यहां पर कहते हैं कि राम रावण युद्ध में हनुमान जी लक्ष्मण मूर्छा के बाद संजीवनी बूटी की पहचान न होने के कारण पर्वत लिए जा रहे थे तो भरत जी ने अयोध्या की रक्षा के कारण,  गलतफहमी में उन्हें तीर मार दिया। वह इस स्थान पर रुक गए। कारण पता लगने पर भरत जी को बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने क्षमा मांगते हुए उन्हें तुरंत जाने को कहा। उस पर्वत का एक टुकड़ा यहीं पर गिर गया जो मणि पर्वत कहलाता है। पास ही दूसरा टीला है जो सुग्रीव पर्वत कहलाता है। यहां मंदिरों के समूह हैं। चारों धर्म हिंदू, जैन, बौद्ध एवं सिखों के धर्मस्थल हैं। यहां महात्मा बुद्ध  बौद्धित्व प्राप्त करने के बाद 6 साल तक रहे थे और उपासिका विशाखा को दीक्षा दी थी। अपने शिष्यों को धम्म ज्ञान दिया था। अशोक द्वारा बनाया अशोक  स्तूप भी है। ऐसा प्रचलित है कि यहां पर श्री राम और सीता झूला झूलते थे ऊपर से अयोध्या का दृश्य बहुत सुंदर लगता है। यहां एक शेयरिंग ऑटो वाला कुछ सवारियों को अयोध्या जी के दर्शन करा रहा था। उससे मैंने पूछा कि वह हमें ले चलेगा। जिन स्थानो पर मैंने जाना था। उनमें से सिर्फ अम्मा जी का मंदिर  ही उसकी राह में पढ़ रहा था। वह हमें ₹50 सवारी के हिसाब से वहां छोड़ने को राजी हो गया। हम बैठ गए और उनकी सवारियों के आते ही चल पड़े। यहां रेलवे क्रॉसिंग पर समय बहुत खराब होता है।

 क्रमशः 








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