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Sunday 4 February 2024

भुवनेश्वर दर्शन, उड़ीसा यात्रा भाग 5 नीलम भागी Odisha Yatra Part 5 सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह भुवनेश्वर

 


 भुवनेश्वर दर्शन पर गंभीर चर्चा पर बैठे ही थे कि खाना बनाने वाली ने कह दिया कि कल वह छुट्टी  करेगी। यह सुनते ही मीताजी अपसेट हो गईं और उसे कहा, "बस  सुबह आ जाना जल्दी फिर छुट्टी कर लेना, वह मान गई। मैं तो यह सब ट्रेन में सुनकर ही आई थी। मीताजी इतने में ही खुश हो गई फिर हम अपनी चर्चा पर आए। मैंने बताया कि मुझे ट्रेन में समझाया था कि कल संडे है आप पुरी मत जाइएगा। संडे को पूरा वेस्ट बंगाल वहां आया होता है और देश दुनिया से तो श्रद्धालु आते ही हैं। कल आप भुवनेश्वर घूमें। मंडे को पुरी और कोणार्क इससे आप दोनों जगह घूम सकती हैं। मेरी यात्रा पर जो कमीशन बैठा था उस पर दोनों ने काफी देर गंभीर चर्चा करने के बाद तय किया कि नरेंद्र सुबह 9:00 बजे गाड़ी लेकर आएगा, मीताजी मेरे साथ कंपनी  देने जाएंगी।  मैं घूमुंगी वे गाड़ी में बैठी रहेंगी। नरेंद्र भरोसे का आदमी है। मोहंती जी ने कागज पर सब लिख लिया कि कैसे-कैसे, कहां-कहां वह लेकर जाएगा।  मुझे तो बस जाना ही था। अब वे टीवी पर समाचार सुनने लगे। टीवी का वॉल्यूम इतना कम था कि मुझे तो सुनाई नहीं दे रहा था। मैं और मीता जी  पसंद का  टॉपिक 'बाई'  पर बात करने लगे😃।  उन्होंने कहा, "यह मेरे घर में 15 साल से है लेकिन जब कोई मेहमान आता है। यह बीमार हो जाती है या इसको जरूरी काम  पड़ जाता है। यह हमारा पढ़ाई के प्रति लगाव देख कर,  अब कह रही है कि कल  बेटी,  बच्चों के स्कूल पीटीएम में जाएगी। यह उसका घर देखने जाएगी। आपने मुंबई में देखा न, नेहा की वंदना दीदी को! हम दोनों भी वहां थे। आप और उत्कर्षिनी भी आ गए थे। उसके चेहरे पर जरा शिकन नहीं थी। सबकी पसंद पूछ कर, खाना बनाती थी। इनके  लच्छन देखकर मेरी बेटियों श्वेता, संचिता ने कहा कि आप दो काम वाली रखो। खाने की अलग, बाकि कामों की अलग। कम से कम छुट्टी करने पर आप पर आधा काम पड़ेगा या दूसरी से करवा सकते हो। दूसरी सफाई, बर्तन वाली लगाई तो वह कहने लगी कि वह हफ्ते में 2 दिन पोछा लगाएगी बाकि दिन झाड़ू।"  मैं हैरान! ऐसा तो मैंने कहीं नहीं सुना था। मैंने पूछा फिर। उन्होंने कहा,"  पोछा रोज  लगेगा और सफाई मैं  दिन दो बार करवाऊंगी, सुबह शाम। वह मान गई।" मैंने कहा," मानती क्यों न! दोनों सीनियर सिटीजन हो, बच्चे बाहर गए हैं, घर गंदा होता ही नहीं। घर इस तरीके से है जूती चप्पल सब बाहर उसके बाद भी फुट मैट से घर के अंदर धूल मिट्टी आती ही नहीं और दो समय का पैसा।" वे बोली," श्वेता संचिता आती हैं,  वे भी  इन्हें खूब दे कर जाती हैं ताकि ये हमारे काम हमारे अनुसार करें।" मोहंती जी टीवी बंद करके आए और मुझसे पूछा, "आपको यहां कैसा लग रहा है?" मैंने जवाब दिया," मैं जिंदगी में इतनी शांति में कभी नहीं रही, यहां तो स्ट्रे डॉग भी नहीं भोंकते😃।" शायद तभी उनके कान इतने सेंसिटिव है कि इतने कम वॉल्यूम पर टीवी सुन  रहे थे। वे हंसते हुए अपने रूम में चले गए। मीताजी बताने लगी कि वह सुबह 4:00 बजे उठ जाती हैं और पूजा करती हैं। मुझे सुबह जब भी चाय लेनी हो तो उन्हें बता देना। मैंने उन्हें बताया कि मैं देर से सोती हूं और  देर से उठती हूं। आप आराम से पूजा करना। लेकिन नरेंद्र के आने से पहले मैं तैयार मिलूंगी। वे भी सोने चली गईं । 

  मैं सोचने लगी कि इतनी तो उनकी उम्र नहीं है जितना इन्होंने अपने को उम्रदराज मान लिया है और लौटने से पहले, मैंने उन्हें यह बात कह भी दी थी। अधिकतर काम तो बाइयां निपटा जाती हैं। घर इतना व्यवस्थित है कि अंधेरे में भी कोई चीज की जरूरत हो तो मिल जाएगी। सुबह उठकर जब मैंने देखा, पौधे खूब लगाए हुए हैं । मोहंती जी उसमें व्यस्त रहते हैं। सैर करने जाते हैं। मीता जी का समय, उनके खान पान का ध्यान रखने में, पूजा पाठ में और बच्चों की उनसे बातें करने में और याद करते बीतता है। उन्होंने घूमने की पूरी तैयारी कर ली। मेड से दालमा बनवा ली। डाइनिंग टेबल पर चावल और उसमें कितना पानी डलेगा। रख दिया। मेड छुट्टी पर है। अगर हम लेट हो गए तो मोहंती जी चावल बना लेंगे। आकर हम भी खा लेंगे। नाश्ते में उन्होंने डोसा और टमाटर का खट्टा बनाया जो बहुत लज़ीज़ था और चावली बींस। वो खट्टी मीठी सोंठ की तरह लग रहा था  पर स्वाद एकदम अलग था।



उसमें उन्होंने आम पापड़ कद्दूकस कर के मिलाया था। 9:00 बजे हम भुवनेश्वर दर्शन को निकल गए खंडगिरि नहीं रुके क्योंकि मेरा पहले का देखा हुआ था और घर के पास था इसलिए मैंने सोचा इसको तो कभी भी देख लूंगी। वैसे तो भुवनेश्वर भी देखा हुआ था तब मैं बी. एस. सी. की छात्रा थी। दिमाग में साधना बलवते(राष्ट्रीय मंत्री) को हरदोई में सोलवें राष्ट्रीय अधिवेशन अखिल भारतीय साहित्य परिषद में सुना था उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा था कि लेखक का देखने का नजरिया और होता है। अब मैं लेखन की छात्रा हूं। देखती हूं क्या फर्क है! रास्ते में दीवारों पर चित्रकारियां हैं। भुवनेश्वर में जगह-जगह मंदिर हैं। हमने उन्हें बाहर से ही हाथ जोड़ा और जो हमारी मोहंती जी की बनाई लिस्ट में थे, उनमें हम रुके। सबसे पहले जगन्नाथ मंदिर भुवनेश्वर। क्रमशः






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