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Monday, 1 April 2024

लिंगराज मंदिर Lingaraj Mandir Bhuvneshwar Odisha उड़ीसा यात्रा भाग 15 नीलम भागी Part 15 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


लिंगराज मंदिर दूर से ही नजर आने लगा। मीता जी ने कहाकि वे गाड़ी पर ही बैठी रहेंगी, वह इतना नहीं चल पाएंगी। मैं उतर गई ये लोग पार्किंग के लिए चले गए। पार्किंग की सुविधा है। बाहर दूर-दूर तक बहुत अच्छी सफाई है। कुछ मंदिरों के बाहर मैंने देखा है पूजा के लिए फूल और थाली सजाने वाले, बहुत सुंदर सजाते हैं। यह मैं जरूर देखने जाती हूं। यहां पर भी देखा कागज के गिलास में जल चढ़ाने के लिए थाली में पानी भी है और दूध लेना है तो थोड़ा सा दूध भी है मंदिर का प्रवेश द्वारा छोटा है। चप्पल बाहर उतरनी पड़ती है।  भुवनेश्वर का मुख्य और प्राचीनतम हरिहर मंदिर है। हरि विष्णु जी और हर शिवजी को समर्पित है। मंदिर 22720 वर्ग मीटर में फैला है और लंबाई  180 फिट है। इसमें  डेढ़ सौ छोटे छोटे मंदिर हैं।

 इसे सोमवंशी ययाति केसरी ने 11वीं शताब्दी में बनाया था। कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। इसका वर्णन छठी शताब्दी के लिखे, लेखों में मिलता है। इसके बारे में कथा है कि पार्वती देवी ने इस स्थान पर लिट्टी और वसा दो भयंकर राक्षसों का वध किया था। वध करने के बाद, उन्हें बहुत प्यास लगी। शिवजी ने कूप बनाकर, सभी पवित्र नदियों  के जल का आवाहन किया और जिससे यहां पर बिंदु सागर पवित्र सरोवर बन गया। यह शैव संप्रदाय  का मुख्य केंद्र रहा है।  मध्य युग में इसमें 7000 मंदिर थे। अब 500 रह गए हैं। मंदिर का निर्माण उड़िया शैली और कालिंग स्थापत्य शैली में किया गया है। विश्व प्रसिद्ध उत्तर भारत का सर्वश्रेष्ठ सबसे अधिक जटिल नक्काशी वाला मंदिर है। जिसकी वास्तु कला देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। इसकी प्रत्येक शिला की कारीगरी  और शिल्पकला  हैरान करती है। गर्भ ग्रह, जगमोहन, , भोग मंडप, नाट्यशाला, सिंह मूर्तियां के साथ, अन्य देवी देवताओं की कलात्मक मूर्तियां देखने लायक हैं। कलात्मकता का तो कोई जवाब ही नहीं है। पूजा पद्धति भी इस प्रकार है सबसे पहले बिंदुसागर में स्नान करते हैं और क्षेत्रपति अनंत वासुदेव का पूजन होता है । मंदिरों में जाकर गणपति पूजा,  गोपालानी देवी ,  शिव जी के वाहन नंदी पूजा करते हैं , फिर  लिंगराज की पूजा की जाती है। यहां लिंगराज स्वयंभू हैं। हजारों लोग प्रतिदिन यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं लेकिन प्रवेश सिर्फ हिंदुओं को ही मिलता है। कोई वीडियो ग्राफी नहीं, कोई फोटोग्राफी नहीं, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स अंदर ले जाना माना है और मैं अपनी आदत के अनुसार जहां मना होता है, वहां कभी नहीं नियम तोड़ती और ऐसा होना भी चाहिए। अब मैं मन की आंखों से दर्शन करती हूं और जो दिल में उतारती हूं  वही लिख देती हूं। मंदिर का वर्णन ब्रह्म पुराण में भी मिलता है।

  यहां दो पर्व मुख्य रूप से मनाए जाते हैं शिवरात्रि और चंदन यात्रा जिसे कार सेवा भी कहते हैं, मंदिर का वार्षिक महोत्सव हैं जो लगभग 21 दिन तक चलता है। अक्षय तृतीया को मूर्तियां गर्भ ग्रह से बाहर लाकर सुसज्जित रथों में बिठाया जाता है और बिंदु सागर में पवित्र स्नान कराया जाता है, चंदन लेप होता है। आठवां दिन अशोकाष्टमी कहलाता है। तब भगवान रामेश्वर मंदिर (मासी मां मंदिर) वहां जाते हैं। बिंदु सागर अनुष्ठान  और चार दिन बाद, अपने मुख्य देवस्थान लिंगराज मंदिर लौट आते हैं। 

मंदिर में प्रवेश निशुल्क है।

सुबह 6:00 से शाम 7:00 तक दर्शन कर सकते हैं। एयरपोर्ट से 4.4 किमी और रेलवे स्टेशन से 4.8 किमी दूर है। टैक्सी ऑटो रिक्शा कैब खूब मिलते हैं। मुझे ट्रेन में भुवनेश्वर के मेरे सहयात्रियों ने मो बस के बारे में बताया था कि उसकी सर्विस बहुत अच्छी है और रेट भी कम है पर मेरा अभी तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफ़र नहीं हुआ पर इसका अनुभव तो मैं जरूर लूंगी। यहां का पता है रथ रोड, लिंगराज नगर, ओल्ड टाउन भुवनेश्वर 

 क्रमशः 







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