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Friday 5 April 2024

पुरी कैसे जाना है!! Bhuvneshwar Odisha उड़ीसा यात्रा भाग 18 नीलम भागी Part 18 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह


घर पहुंचते ही मीताजी चाय बनाने चल दी और  नरेंद्र ने किमी. के हिसाब से  बिल बनाया कुल ₹2100 पार्किंग  के अलग। फिर भी दिल्ली नोएडा से कम है। मीताजी ने चाय बनाते हुए मोहंती जी को काम दे दिया, मेरी कल की पुरी और कोणार्क यात्रा का प्लान बनाने का।  मोहंती जी ने मुट्ठी भर दवा की गोलियां मीताजी को दी, उन्होंने फांक ली। यह देखकर, कल की यात्रा में मैंने मन ही मन उनको ले जाना स्थगित कर दिया। हालांकि आज वह दिन भर बहुत खुश थी। मोहंती जी  बहुत मेहनत से काम में लग गए। मैंने उन्हें भी मो बस के बारे में बताया। सबसे आखिर में बस के टाइम टेबल पर वे आए। चाय पीकर मैं रेस्ट करने लगी। मोहती जी  काम में लगे हुए पर बीच-बीच में मीताजी उन्हें टोकती कि अभी तक आपसे यात्रा का प्लान नहीं बना! वह और लगन से मोबाइल पर लग जाते हैं। उन्हें इस तरह व्यस्त देखकर  मुझे बहुत हंसी आती । काफी मेहनत मशक्कत के बाद उन्होंने कागज पर प्लान बनाया। उससे पहले मीताजी बोलीं,"पहले डिनर कर लेते हैं।" मैं और मीताजी खाने लगे।  मुझे बहुत अच्छा लगा कि मोहंती जी हमारी प्लेट पर ध्यान रख रहे थे कि क्या कम है और उसको लेकर आते। यानि मीताजी का सहयोग करते हैं।



डिनर के बाद, हम फिर कल की यात्रा की चर्चा पर बैठे। मेरा ट्रेन में बना प्लान था कि सोमवार सुबह बस से पहले कोणार्क जाऊंगी, वहां से पूरी, पुरी से भुवनेश्वर इससे मेरी दोनों जगह की यात्रा हो जाएगी। मीताजी चिंता में डूबी जा रही थी कि मैं अकेली कैसे कर पाऊंगी! मोहंती जी ने बस का टाइम टेबल निकाल लिया। पूरे समय की कैलकुलेशन करके 9 बजे की  बस से घर से जाना और वहां से तीन या चार बजे की बस से लौटना। 6 बजे तक मैं घर आ जाऊंगी। यह निष्कर्ष निकाला कि मैं कोणार्क जाना छोड़ दूं और सिर्फ पुरी यात्रा कर लूं क्योंकि पुरी में मुझे महाप्रसाद भी खाना था। मैंने आज्ञाकारी बच्चे की तरह हां में सिर हिला दिया। मीताजी ने मेरे लिए एक बैग लगाया, जिसमें खाने पीने का सामान  था। पानी की बोतल उन्होंने सुबह रखनी थी। मोहंती जी न्यूज़ सुनने लग गए। मैं रूम में आ गई। मीताजी को मेरी कल की चिंता थी और कहा  कि मैं उनको फोन से सब अपडेट बताती रहूंगी। कुछ देर बाद वह कच्चेे केले केे कटलेट्स बना लाई। जिसकी उन्होंने पहले से तैयारी कर रखी थी।  जो बेहद लज़ीज़  थे।

यहां सुबह शाम सर्दी थी, दिन में स्वेटर वगैरह की जरूरत नहीं थी बिल्कुल गर्मी लगती थी। मीताजी सलवार कुर्ते में थी।  फोन आया कि उनका देवर चार दिन पहले उनके यहां शादी हुई थी, शादी की मिठाई देने आ रहे हैं।

वे बोली," मैं साड़ी पहन कर आती हूं।" मैंने हैरानी से पूछा," आप तो अपने घर में हैं, अपने घर में तो कोई कैसे भी रहे!  उन्होंने उत्तर दिया,"हां ,अपने घर में कोई कैसे भी रहे पर परिवार के लोग  आते ही कितने समय के लिए हैं, उस समय जो परिवार का रिवाज है, वैसा करने में क्या हर्ज है!" ठंड में चेंज करना थोड़ा मुश्किल है उन्होंने सूट के ऊपर ही कॉटन की बड़ी प्यारी ओरिया साड़ी पहन ली और शॉल ले ली। मुझे ट्रेन की सरिता याद आई जो बिना दुपट्टे के मेरे पास चूड़ीदार पजामा ,कुर्ते में बैठी थी। अपना छोटा सा स्टेशन आने से कुछ समय पहले वह वहां से उठ कर चली गई। जब मैंने प्लेटफार्म पर देखा तो वह साड़ी पहने हुए थे और दो लोग परिवार के उन्हें गांव से रिसीव करने आए थे। तो मेरे मन में आया था कि गांव  की है शायद इसलिए। उसने पता नहीं किस समय साड़ी, गाड़ी के अंदर पहनी। यहां मीता जी अपने समय  में कॉन्वेंट एजुकेटेड शहर में पली बड़ी , अध्यापिका रहीं, अब राजधानी में रह रही है और ग्रैंडमदर है लेकिन फैमिली वैल्यूज,  परंपरा में  सरिता की तरह ही हैं। मेहमानों के जाने के बाद मेरे पास आकर हंसते हुए बोली," कितना टाइम लगा साड़ी पहनने में! इतने में ही सब खुश हैं, मैं भी खुश।" सब सोने चल दिए। मुझे 9:00 की बस से पुरी जाना था। मैं 8:30 बजे ब्रेकफास्ट करके बिल्कुल तैयार थी। बरमूडा बस स्टैंड से बस पकड़ने थी। मोहंती जी ने मुझे कागज जिसमें बस का टाइम टेबल, बस स्टैंड का नाम लिखा था, दिया और कहा," लौटने से पहले फोन कर देना, बस स्टैंड से हम ले जाएंगे।" सुबह 8:30 हम घर से निकले, 8 मिनट में हम बस स्टैंड पर पहुंच गए। वहां पुरी की बसों की लाइन लगी हुई थी। कंडक्टर चिल्ला चिल्ला कर  पुरी पुरी कर रहे थे। मोहंती जी वहां मो बस के बारे में पता करने जाने लगे। एक प्राइवेट खाली बस में मैं चढ़ने लगी और मोहंती जी को कहा कि जो पहले मिली है, मैं निकल जाती हूं ताकि टाइम से लौट आऊं। वे मान गए अब मैं अच्छी सी ड्राइवर के पीछे वाली विंडो सीट पर बैठ गई। और इन्हें जाने को बोला। ड्राइवर और कंडक्टर बस को भरने की मुहिम में लगे हुए थे और साथ ही साथ पुरी पुरी दहाड़ रहे थे। वहां सावरियां लेने में होड़ मची हुई थी। समय पर बस चल दी। पुरी तक का किराया कुल ₹100 है।

 क्रमशः 









Monday 1 April 2024

लिंगराज मंदिर Lingaraj Mandir Bhuvneshwar Odisha उड़ीसा यात्रा भाग 15 नीलम भागी Part 15 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


लिंगराज मंदिर दूर से ही नजर आने लगा। मीता जी ने कहाकि वे गाड़ी पर ही बैठी रहेंगी, वह इतना नहीं चल पाएंगी। मैं उतर गई ये लोग पार्किंग के लिए चले गए। पार्किंग की सुविधा है। बाहर दूर-दूर तक बहुत अच्छी सफाई है। कुछ मंदिरों के बाहर मैंने देखा है पूजा के लिए फूल और थाली सजाने वाले, बहुत सुंदर सजाते हैं। यह मैं जरूर देखने जाती हूं। यहां पर भी देखा कागज के गिलास में जल चढ़ाने के लिए थाली में पानी भी है और दूध लेना है तो थोड़ा सा दूध भी है मंदिर का प्रवेश द्वारा छोटा है। चप्पल बाहर उतरनी पड़ती है।  भुवनेश्वर का मुख्य और प्राचीनतम हरिहर मंदिर है। हरि विष्णु जी और हर शिवजी को समर्पित है। मंदिर 22720 वर्ग मीटर में फैला है और लंबाई  180 फिट है। इसमें  डेढ़ सौ छोटे छोटे मंदिर हैं।

 इसे सोमवंशी ययाति केसरी ने 11वीं शताब्दी में बनाया था। कुछ हिस्से 1400 वर्ष से भी ज्यादा पुराने हैं। इसका वर्णन छठी शताब्दी के लिखे, लेखों में मिलता है। इसके बारे में कथा है कि पार्वती देवी ने इस स्थान पर लिट्टी और वसा दो भयंकर राक्षसों का वध किया था। वध करने के बाद, उन्हें बहुत प्यास लगी। शिवजी ने कूप बनाकर, सभी पवित्र नदियों  के जल का आवाहन किया और जिससे यहां पर बिंदु सागर पवित्र सरोवर बन गया। यह शैव संप्रदाय  का मुख्य केंद्र रहा है।  मध्य युग में इसमें 7000 मंदिर थे। अब 500 रह गए हैं। मंदिर का निर्माण उड़िया शैली और कालिंग स्थापत्य शैली में किया गया है। विश्व प्रसिद्ध उत्तर भारत का सर्वश्रेष्ठ सबसे अधिक जटिल नक्काशी वाला मंदिर है। जिसकी वास्तु कला देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। इसकी प्रत्येक शिला की कारीगरी  और शिल्पकला  हैरान करती है। गर्भ ग्रह, जगमोहन, , भोग मंडप, नाट्यशाला, सिंह मूर्तियां के साथ, अन्य देवी देवताओं की कलात्मक मूर्तियां देखने लायक हैं। कलात्मकता का तो कोई जवाब ही नहीं है। पूजा पद्धति भी इस प्रकार है सबसे पहले बिंदुसागर में स्नान करते हैं और क्षेत्रपति अनंत वासुदेव का पूजन होता है । मंदिरों में जाकर गणपति पूजा,  गोपालानी देवी ,  शिव जी के वाहन नंदी पूजा करते हैं , फिर  लिंगराज की पूजा की जाती है। यहां लिंगराज स्वयंभू हैं। हजारों लोग प्रतिदिन यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं लेकिन प्रवेश सिर्फ हिंदुओं को ही मिलता है। कोई वीडियो ग्राफी नहीं, कोई फोटोग्राफी नहीं, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स अंदर ले जाना माना है और मैं अपनी आदत के अनुसार जहां मना होता है, वहां कभी नहीं नियम तोड़ती और ऐसा होना भी चाहिए। अब मैं मन की आंखों से दर्शन करती हूं और जो दिल में उतारती हूं  वही लिख देती हूं। मंदिर का वर्णन ब्रह्म पुराण में भी मिलता है।

  यहां दो पर्व मुख्य रूप से मनाए जाते हैं शिवरात्रि और चंदन यात्रा जिसे कार सेवा भी कहते हैं, मंदिर का वार्षिक महोत्सव हैं जो लगभग 21 दिन तक चलता है। अक्षय तृतीया को मूर्तियां गर्भ ग्रह से बाहर लाकर सुसज्जित रथों में बिठाया जाता है और बिंदु सागर में पवित्र स्नान कराया जाता है, चंदन लेप होता है। आठवां दिन अशोकाष्टमी कहलाता है। तब भगवान रामेश्वर मंदिर (मासी मां मंदिर) वहां जाते हैं। बिंदु सागर अनुष्ठान  और चार दिन बाद, अपने मुख्य देवस्थान लिंगराज मंदिर लौट आते हैं। 

मंदिर में प्रवेश निशुल्क है।

सुबह 6:00 से शाम 7:00 तक दर्शन कर सकते हैं। एयरपोर्ट से 4.4 किमी और रेलवे स्टेशन से 4.8 किमी दूर है। टैक्सी ऑटो रिक्शा कैब खूब मिलते हैं। मुझे ट्रेन में भुवनेश्वर के मेरे सहयात्रियों ने मो बस के बारे में बताया था कि उसकी सर्विस बहुत अच्छी है और रेट भी कम है पर मेरा अभी तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफ़र नहीं हुआ पर इसका अनुभव तो मैं जरूर लूंगी। यहां का पता है रथ रोड, लिंगराज नगर, ओल्ड टाउन भुवनेश्वर 

 क्रमशः