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Wednesday, 31 July 2024

समरसता का पर्व रक्षाबंधन नीलम भागी Rakshabandhan

    बहन की सुरक्षा के लिए भाई की प्रतिबद्धता, भाई बहन के स्नेह का प्रतीक रक्षा बंधन सावन मास की पूर्णिमा को (इस वर्ष 19 अगस्त) को मनाया जाता है। हमारे विशाल भारत में कहीं न कहीं प्रतिदिन उत्सव है और हिंदू धर्म में उत्सव के बारे में प्रचलित कथाएँ उसे और भी लोकमंगलकारी बना देती हैं। रक्षाबंधन के बारे में भी कई पौराणिक कथाएँ हैं, मसलन भगवान कृष्ण ने जब शिशुपाल का वध किया था तो सुर्दशन चक्र से उनकी अंगुली पर घाव हो गया था। उनकी अंगुली से रक्त बहता देखकर द्रोपदी ने अपनी साड़ी चीर कर उसका टुकड़ा, उनकी अंगुली पर बांधा था। श्री कृष्ण उनके स्नेह से प्रभावित हुए। जब द्रोपदी का चीरहरण हो रहा था तो श्रीकृष्ण उसकी रक्षा के लिए पहुँचे। तभी से रक्षा बंधन मनाने की परंपरा है। इतिहास में भी कई कहानियां हैं। रक्षा बंधन मनाने के पीछे हमारे पूर्वजों की बहुत प्यारी सोच है। गांव की बेटी, दूसरे गांव में ब्याही जाती है। उसके सुख दुख की खबर भी रखनी है। माता पिता सदा तो रहते नहीं हैं। उनके बाद भाई बहन की सुध लेता रहे। इस त्यौहार पर भाई के घर बहन आती है या भाई, बहन के घर राखी बंधवाने जाता है। बहन भाई का यह उत्सव परिवारिक मिलन है। इसे देश विदेश में रहने वाले समस्त हिन्दू मनाते हैं। पहले राजपुरोहित राजा को रक्षा सूत्र बांधते थे। राजा धर्म और सत्य की रक्षा का संकल्प लेता था। पारिवारिक उत्सव तो है ही जो चलता आ रहा है। धार्मिक मान्यताओं के कारण समस्त हिन्दू धर्म का प्रत्येक वर्ग, जाति और वर्ण इसे मनाता है। इस पर्व की उत्पत्ति लोक संस्कृति से हुई, जिसमें पारंपरिक रूप से एक जिम्मेदारी का हिस्सा दिया जाता है। जो रक्त से रिश्तेदार नहीं हैं, वे भी आपस में रक्षासूत्र बांधने से स्वैक्षिक संबंधों की परम्परा के सम्मान के प्रतीक के रूप में बंध जाते हैं।  

   संघ परिवार के साथ परम पूजनीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने समस्त हिन्दू समाज में सामजस्य स्थापित करने के लिए इस दिन परम पवित्र भगवा ध्वज पर रक्षा सूत्र बांधकर उस संकल्प का स्मरण करवाया जिसमें कहा गया है कि धर्मों रक्षित रक्षितः अर्थात हम सब मिलकर धर्म की रक्षा करें। समस्त हिन्दू समाज मिलकर, समस्त हिन्दू समाज की रक्षा का संकल्प ले। स्वयंसेवकों ने समस्त हिन्दू धर्म की रक्षा का संकल्प लिया। इस प्रकार इस सुन्दर स्वरूप के साथ रक्षा बंधन, चौथा संघ उत्सव हो गया। संघ का मानना है कि सबके सुखी हुए बिना हम सुखी नहीं होंगे। उसके लिए विकास पहली सीढ़ी है। विकास के लिए सुरक्षा बहुत जरूरी है। हम सुरक्षित नहीं हैं तो विकास कैसे संभव है! लंबे पराधीन काल के दौरान समाज का प्रत्येक वर्ग संकट में था। इसके लिए सभी वर्ग, वर्ण, जाति जो अलग थलग पड़ गईं थी,ं उनमें असुरक्षा की भावना घर कर गई थी। सभी को अपने अस्तित्व और सुरक्षा की चिंता थी।  इसलिए उनके भी छोटे छोटे वर्ग बने और वे अपने छोटे से वर्ग मेें अपने को सुरक्षित महसूस करते थे। इसका लाभ तो हुआ लेकिन विभिन्न वर्गों मेें दूरियाँ बढ़ती गईं। कहीं कहीं तो हिन्दू समाज में एक दूसरे को छूना तो दूर, उनकी परछाईं भी पड़ना वंचित का अपराध माना जाता  था। जिसकी परछाईं पड़ गई उसे अपराधी समझते थे। जातियों के भेद बहुत गहरे हो रहे थे। प्रांत और भाषाओं की विविधता के कारण विद्वेष पैदा हो रहा था। ऐसा लगता था कि अगर यह खाई नहीं पाटी गई तो समाज अनगिनत टुकड़ों में बट जायेगा। वैमनस्य की खाई को और चौड़ा करने में विदेशी शक्तियों ने आग में घी का काम किया। धर्म का काम है जोड़ना, सबको धारण करना, अंधकार रूपी अज्ञान से उभारना है। रक्षा बंधन, धर्म का बंधन है जो परिवार को बांधता है और परिवारों से राष्ट्र है। राष्ट्र की सुरक्षा और विकास के लिए बंधन में रहना होगा तभी उन्नति है। संघ (यानि जुड़ना) के इसी विश्वास को स्वयंसेवकों ने समाज में पुनः स्थापित करने का श्रेष्ठ कार्य किया है। उन्होंने इसके स्थायी निवारण के लिए संकल्प लिया। समाज का एक भी अंग अपने को अलग थलग या असुरक्षित न समझे, प्रत्येक में यह भावना जाग्रत करना संघ का उद्देश्य है। रक्षाबंधन के पर्व पर स्वयंसेवक श्रद्धेय भगवा ध्वज को रक्षा सूत्र बांध कर इस संकल्प को दोहराते हैं जिसमें कहा गया है कि धर्मो रक्षति रक्षितः अर्थात् हम सब मिल कर धर्म की रक्षा करें। अपनी श्रेष्ठ परंपराओं का रक्षण करें। यही धर्म का व्यवहारिक पक्ष है। जिससे यह कार्यक्रम अनोखा बन गया है। इसके बाद अब देश में लाखों स्वयंसेवक मलिन बस्तियों में जाकर, वहाँ निवास करने वाले लाखों वंचितों के परिवारों में बैठ कर रक्षाबंधन बड़े भाव से मनाते हैं। उन्हें रक्षा सूत्र बांधते हैं और उनसे अपने को रक्षासूत्र बंधवाते हैं। इसका भाव यही होता है कि सम्पूर्ण समाज, सम्पूर्ण समाज की रक्षा का व्रत ले। लोग श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की रक्षा का व्रत लें। सामाजिक आंदोलन और सांस्कृतिक समरसता राष्ट्र को एकात्मकता के सूत्र में पिरो देते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण, उसके शब्द शब्द और व्यवहार के निर्वाह से परिलक्षित होता है। भारत दुनिया का इकलौता पर्वों का देश है जो उत्सवों में इतना प्रचुर है। जिसमें संघ का चौथा पर्व यानि रक्षा बंधन पर मनोरंजन के लिए भाषण नहीं दिया जाता है। ऐसा भाषण होता है जिस पर चिंतन होता है जो परिवर्तन लाता है। मेरा समाज मेरा धर्म, धर्म से चलते हुए, सबका विकास हो। यह सब तुरंत तो नहीं होता है। विकास के रास्ते पर निरंतर लगना है और लगाना है। क्योंकि अगर गरीबों की संख्या बढ़ेगी तो गरीबी का विस्फोट भी सबको झेलना होगा। नए समय में नया सीखना होगा और सिखाना होगा।              

   सबसे श्रेष्ठ संबंध भातृत्व भाव है। इस भावना से स्वयंसेवक किसी भी प्रांत या भाषा के वंचित गरीब परिवारों में जाकर वहाँ रक्षाबंधन का त्यौहार मनाते हैं। उनके साथ भोजन करते हैं। जो रक्षाबंधन पर रक्षासूत्र बंध गया तो इन परिवारों के संपर्क में रहते हैं। इस उत्सव के द्वारा समाज के वे वर्ग जो हाशिए पर खड़े थे, वे भी मुख्यधारा में आने लगे हैं। यह व्यक्तिगत  बहन भाई का उत्सव, संघ के प्रयास से धीरे धीरे सभी प्रांतों में सामाजिक स्तर पर मनाया जाने लगा है। अब रक्षाबंधन सामाजिक समरसता का प्रतीक है। स्वयंसेवक रक्षासूत्र बांधते समय और बंधवाते समय कभी गरीबी, अमीरी, जाति, प्रांतीयता का मन में भाव नहीं लाते। बस एक दूसरे की रक्षा का प्रण लेते हैं। भारत हमारी मातृभूमि है, हम सब भारत माता की संताने हैं। हमें यह हमेशा याद रखना है कि हमारा राष्ट्र के प्रति कर्तव्य है। उसकी रक्षा का प्रण कभी न भूलें। सबको साथ लेकर चलना और एकात्मता का भाव जागृत करना ही संघ का उद्देश्य है। रक्षाबंधन मनाने के पीछे सशक्त, समरस और संस्कार संपन्न समाज निर्माण का भाव है। जिन प्रांतों में इसे जिस रूप में मनाया जाता है। वहाँ स्वयंसेवक ध्वज पूजन के बाद उनमें शामिल होते हैं। भाव तो एक ही है न। महाराष्ट्र, गोआ, केरल, गुजरात सागर तटीय प्रांतों में इसे नारियल पूर्णिमा भी कहते हैं। इसमें वर्षा के देवता वरूण की पूजा करके समुद्र से शांत रहने की प्रार्थना करते हैं और समुद्र को नारियल भेट करते हैं। फिर बहने भाई को रक्षासूत्र बांधतीं हैं। इस दिन से फिर से मछली पकड़ना शुरू किया जाता है। उड़ीसा में किसान मवेशियों को भी रक्षा सूत्र बांधते हैं क्योंकि इस दिन खेती के देवता बलभद्र का जन्मदिन है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में कजरी पूर्णिमा है तो पंजाब हरियाणा में इसे सलोनो कह कर मनाया जाता है। झारखंड, उत्तराखंड में तो श्रावणी मेला लगता है। देवघर जाने पर मैंने देखा वहाँ तो भगवा के सिवाय कोई रंग ही नज़्ार नहीं आ रहा था। संघ ने इस गौरवशाली व भावना प्रधान पर्व को व्यक्तिगत के स्थान पर सामाजिक स्तर पर मनाने की परंपरा डाली। रक्षाबंधन सामाजिक परिवारिक एकसूत्रता का संास्कृतिक उपाय है। अब कुछ और भी परिवर्तन होने लगे हैं। आजकल दो बच्चों का, देश विदेश में नौकरी के कारण एकल परिवार है। कहीं दो बहनें हैं तो कहीं दो भाई हैं। त्यौहार भारतीय संस्कृति की आधारशिला है वो तो मनाया जायेगा ही इसलिए बहन बहन को राखी बांधती है और भाई भाई को और मिलकर पकवान बनाते हैं। हम पर्यावरण को भी नहीं भूलें हैं इसलिए पेड़ों की रक्षा के लिए उन्हें भी राखी बांधने लगे हैं।   

यह लेख प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा  से प्रकाशित  प्रेरणा विचार पत्रिका के अगस्त विशेषांक में प्रकाशित हुआ है। 

अमेरिका  में  उत्कर्षनी की बेटियां गीता और दित्या एक दूसरे को राखी बांधती हैं और मां के साथ पकवान बनाने में मदद करती हैं।   

नीलम भागी(लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, टैªवलर)








 

नमी के मौसम में पिघला गुड़ बचाना! नीलम भागी


 

कई बार गुड़ के डिब्बे का ढक्कन ढंग से न बंद होने के कारण गुड़ ढीला पड़ जाता है और पिघल जाता है फिर खराब होने लगता है। उसे खराब होने से पहले, समय पर गुड़ को निकाल लें ।कढ़ाई में डालकर, लो फ्लेम पर उसको पिघाले। और लगातार चलाते हुए मीडियम फ्लेम कर जब  सारा गुड़  पिघल जाए तो जैसे ही उबले,  फ्लेम बंद कर दें। अब एक किनारे वाली थाली में जमा हुआ देसी घी अच्छी तरह लगा दें। जो देखने में सफेद सा लगे। इसके लिए हम थाली फ्रिज में रख सकते हैं ताकि हल्के से उस पर घी जमा रहे। गुड़ घी नहीं पीता इसलिए कम लगाएं पर कोई जगह छूटे ना। अब पिघला हुआ गुड थाली में डाल दें। छूने लायक होने पर  चाकू से इसके टुकड़े काटकर किसी एयर टाइट कंटेनर में फ्रिज में रखकर, जरूरत के समय  निकालते रहे। मौसम ठीक होने पर  बाहर रख दो।




Monday, 29 July 2024

नवधा फिल्मोत्सव 2024 | Navdha Film Festival 2024

 


नवधा फिल्मोत्सव कार्यक्रम के पोस्टर का अनावरण 22 जुलाई, सोमवार को प्रेरणा भवन नोएडा में हुआ। नवाधा फिल्मोत्सव का आयोजन विश्व संवाद केंद्र और दीनदयाल कामधेनु गौशाला समिति, मथुरा दोनों मिलकर कर रहे हैं। इस फिल्मोत्सव में भारतीय संस्कृति और अर्थव्यवस्था में गोधन के महत्व को दर्शाया गया है। फिल्मोत्सव कार्यक्रम में शामिल प्रतिभागी को पुरस्कार भी प्रदान किया जाएगा। जिसमें प्रथम विजेता को 51000 का पुरस्कार दिया जाएगा। इसके अलावा द्वितीय एवं तीसरे स्थान प्राप्त करने वाले प्रतिभागी को भी सम्मानित किया जाएगा। 

    इस अवसर पर श्रीमान महेंद्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचारक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पोस्ट अनावरण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में गाय आत्मनिर्भरता और मानवीय आदर्शों की आधार है इसलिए वैदिक काल से लेकर आज तक भारतीय लोक जीवन का गौ सेवा और संरक्षण से सीधा संबंध रहा है अब तो देश-विदेश में कई वैज्ञानिक शोध से भी यह सिद्ध हो चुका है कि गाय का व्यापक आर्थिक और पर्यावरणीय महत्व है। प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में गौ माता उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक रही है। यह अनगिनत लोगों के जन जीवन का आर्थिक संबल रही है। ऐसे में गाय के महत्व को जन-जन तक पहुंचाने के लिए नवधा फिल्म उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। गौरतलब है कि दीनदयाल कामधेनु गौशाला समिति, मथुरा द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। जिसमें तीन प्रमुख विषय शामिल हैं। पहला पंचगव्य तक चिकित्सा, दूसरा  गौ उत्पाद (कॉस्मेटिक गोबर के विभिन्न वस्तुएं), तीसरा प्राकृतिक खेती में गाय का योगदान। इसके अलावा नवधा फिल्म महोत्सव पोस्ट अनावरण कार्यक्रम में श्रीमान सुशील, नोएडा विभाग के विभाग संघसंचालक और श्रीमान मधुसूदन दादू ,प्रेरणा शोध संस्थान न्यास के अध्यक्ष सहित आदि लोग उपस्थित रहे। समापन पर पोस्ट के साथ उपस्थित लोगों ने अपने फोटो खींचे। 





-रजिस्ट्रेशन की अंतिम तिथि : 01 सितम्बर 2024    


Google Form Link: https://forms.gle/vyeLWEwTZsAfXTRbA


#RSS #NavdhaFilmFestival #Noida #PrernaMedia #DeendayalKamdhenuGaushalaSamiti #Mathura #VSKbraj 


Video Link : https://youtu.be/atjjgqxsPJE

Friday, 26 July 2024

व्यास जयंती कार्यक्रम इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती दिल्ली प्रदेश

  


23 जुलाई मंगलवार 20 24 को 4:00 बजे डॉ. अवनिजेश अवस्थी (प्रदेश अध्यक्ष इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती दिल्ली प्रदेश) की अध्यक्षता में मंगल सृष्टि अहिंसा  विहार सेक्टर 9 रोहिणी  दिल्ली में व्यास  जयंती का  कार्यक्रम आयोजित किया गया।

वक्ता परम श्रद्धेय बालव्यास दिवाकर वेदांश जी (श्रीधाम अयोध्या प्रसिद्ध कथावाचक) ने  गुरु की महिमा का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा,"ज्ञान के बिना व्यक्ति पशु के समान है । वेद व्यास जी अवतरित हुए संसार में कोई ज्ञान नहीं है जिसको उन्होंने नहीं लिखा। वेद व्यास जी ने भी गुरु परम्परा का पालन किया।" 

प्रवीण आर्य: व्यास पूजा के सफल कार्यक्रम की सभी को हार्दिक बधाई और आज सभी ने अपनी जिम्मेदारी सफलतापूर्वक निर्वहन की। आज के कार्यक्रम की विशेष उल्लेखनीय बात रही कि आज हमारे बीच में आदरणीय मनोज कुमार जी बैठक में और कार्यक्रम में रहे। मुख्य वक्ता आचार्य प्रवर दिवाकर  का उद्बोधन विषयानुकूल बेहद सागर गर्भित रहा। सभी ने इसका हृदय से श्रवण किया।

BK Garg: 💐🙏आज के कार्यक्रम की आप सभी को हार्दिक बधाई एवम् धन्यवाद ।💐🙏🙏

मनोज शर्मा 'मन' : बहुत ही सुन्दर उद्बोधन, बहुत ही सरल तरीके से ज्ञान चक्षु खोल दिए, सटीक उदाहरण प्रस्तुत किये गुरु की महिमा पर,  आज का समाज  चमत्कारों को गुरु मान रहा है जबकि परोपकारी भाव सिखाने वाला गुरु होता। उन्होंने गुरु के बारे में बताया कि किस तरह वो हमारे जीवन से तिमिर को हटाता है। आपका धन्यवाद की इतने ज्ञानी संत से हमारा मार्गदर्शन करवाया, आपको बहुत बहुत साधुवाद।

 rdmishraanmol: *इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती* द्वारा आज बड़े ही गरिमामय वातावरण में 'व्यास उत्सव' मनाया गया। 

डॉ. अखिलेश द्विवेदी

बहुत ही सुंदर उद्बोधन रहा। व्यास या गुरु की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया। चतुर्भुज और पंचानन की नई व्याख्या सुनने को मिली।

समापन पर अवनिजेश अवस्थी जी ने उपस्थित साहित्यकारों का धन्यवाद किया।

 









Monday, 22 July 2024

हमारा बच्चा खाता नहीं है अरे! उसे ..... नीलम भागी

 

    उत्कर्षनी अमेरिका से आई। समय कम होने के कारण, मुझे अपने साथ ही मुंबई ले गई क्योंकि उसकी मीटिंग रहतीं हैं।  और मैं बच्चियों के साथ समय बिता लूं ,इस भावना के साथ क्योंकि बहुत कम  समय के लिए आती है। गीता तो मेरे साथ ही रहती थी, लेकिन दिव्या वहां पैदा हुई है। वह मुझसे बहुत देर में मिक्स हुई। शाम को मैं दोनों को पार्क ले जाती थी। वहां सब बच्चे बबुआ बने हुए, इंग्लिश बोलते हुए, अजीब अजीब नाम के मसलन तिया, दिया, लिया आदि। सब बच्चों के साथ मेड और हर एक मेड के हाथ में एक खाने का बॉक्स जो खुला ही रहता था और  मेड के हाथ में पकड़ा चम्मच भरा ही रहता था। मेड जैसे ही बच्चे का मुंह खुला देखती, उसके मुंह में चम्मच ठूस देती। इसलिए बच्चे अपनी मेड के पास आना पसंद नहीं करते थे लेकिन मेड झूलों के पास जमघट लगाए रहतीं। यानि वे अपनी  ड्यूटी बहुत ईमानदारी से करतीं ।


वहां अमेरिका में उत्कर्षनी लेखन, घर संभालना, बच्चे संभालना सब खुद से करती है। जब मुंबई में थी तो गीता के लिए अलग मेड रखी हुई थी। गीता खुद से खाना ही नहीं जानती थी। छोटी दित्या पर मैं हैरान!  खुद से खाना खाती थी। मैंने उत्कर्षनी से पूछा," बेटी यह तो बड़ी समझदार है! खुद खाती है।" उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया," मां, वहां सब बच्चे खुद खाते हैं। जब गीता को वहां मैं अपने  हाथ से खिलाती तो सब हैरान होकर मुझे देखते थे। दित्या जब बैठने  लगी तो इन्फेंट चेयर पर उसका टॉप बर्तनों की तरह, अच्छी तरह साफ किया जाता। उसकी प्लेट उस पर रखी  जाती। वह हमें गुस्से से देखी। फिर देखते ही सारा खाना पलट देती।




हम परवाह नहीं करते हालांकि खिलाने से ज्यादा समय, सफाई करने में हमारा लगता। अब खाना तो समय से मिलने पर भूख लगी होती। तो ट्रे पर बिखरा हुआ, चुन चुन के खाने लगती। ऐसे में ही थोड़ी हम मदद भी कर देते हैं। जब लिक्विड खाना होता तो उसमें शुरुआत में मदद की।  इसी तरह से धीरे-धीरे वह खाना सीख गई। मैं पार्क में सिर्फ पानी की बोतल लेकर जाती।


बच्चियां खेल कर आते ही अपने शूज रैक में रखती, अपने हाथ  धोती। उनके आगे प्लेट में खाना लगा दिया जाता। आराम से खा लेतीं। और चाहिए होता तो "मोर प्लीज" कहती, मैं और दे देती। और मुझे वह बच्चों की मेड याद आतीं, जो घर जाने से पहले कीमती खाना, वहां डस्टबिन में चुपचाप डाल देती। नहीं तो मैडम पूछती खाना  क्यों नहीं खिलाया? क्योंकि बच्चों को पता ही नहीं की भूख क्या होती है? जब भूख ही नहीं पता तो स्वाद का भी क्या पता होगा? पर कभी-कभी दित्या को भी मैं, गीता की तरह अपने हाथ से खिलाने लगती। तो  उसी समय गीता भी आकर, अपना मुंह खोल देती। यह देखकर उत्कर्षिनी हंसने लगती। बहुत जल्दी उनके लौटने का समय हो जाता।



Wednesday, 17 July 2024

" भारत की विश्व को देन"

 


मध्यभारतीय हिन्दी साहित्य सभा ग्वालियर (अखिल भारतीय साहित्य परिषद से सम्बद्ध) के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन सम्पन्न किया। जो दिनांक  ६ जनवरी २०२४  प्रातः १० बजे से" उद्घाटन सत्र" से लेकर  दिनांक ७ जनवरी २०२४ को सायंकाल  ५ बजे समापन हुआ।  भारत के विभिन्न प्रांतों से आए विद्वानों ने विभिन्न सत्रों में  केन्द्रीय विषय " भारत की विश्व को देन" पर चर्चा सत्र हुए। इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री, श्रीयुत् श्रीधर पराड़कर जी का मार्ग  दर्शन, विशेष सानिध्य एवं पाथेय प्राप्त हुआ।  कार्यक्रम में श्री ऋषि कुमार मिश्र , राष्ट्रीय महामंत्री  अखिल भारतीय साहित्य परिषद की सभी सत्रों में महती भूमिका रही। इस अवसर पर  मध्यभारत प्रांत, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अध्यक्ष एवं मध्यभारतीय हिन्दी साहित्य सभा ग्वालियर के अध्यक्ष डॉ कुमार संजीव सहित श्री आशुतोष शर्मा महामंत्री मध्य भारत प्रांत,अखिल भारतीय साहित्य परिषद सभी सत्रों में उपस्थित होकर विशेष भूमिका में रहे। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अनेक प्रांतो के पदाधिकारी उपस्थित । समाचार, विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए। सहभागिता करने वाले सभी साहित्यकारों को हार्दिक बधाई।  समाचार संकलन/ संप्रेषण :- राम चरण "रुचिर ", प्रचार-प्रसार मंत्री,मध्यभारतीय हिन्दी साहित्य सभा ग्वालियर।🌷🌻💐🌹🌸🌺













Sunday, 14 July 2024

मेकअप किसने किया! नीलम भागी

 


छोटे बच्चों को मेकअप का बहुत शौक होता है। मेकअप का समान समान देखते ही लीपापोती शुरू हो जाती है। जो थोड़ा बड़ा बच्चा होता है, वह मेकअप एक्सपर्ट होता है। छोटे का मेकअप करके बहुत खुश होता है। मेकअप की शौकीन दित्या का मेकअप, उसकी गीता दीदी करती है। उत्कर्षिनी की मेहनत से दित्त्या बहुत अच्छी हिंदी समझने लग गई है। बोलने की कोशिश भी करती है। मां को बताती है कि मेकअप उसने नहीं, गीता दीदी ने किया है नीलम  भागी







Thursday, 11 July 2024

पौधों की हत्या न करें! नीलम भागी

 


अगर आप पौधे की देखभाल कर सकते हैं, तभी आप नर्सरी से पौधे लेना। सेल्फी लेने के लिए अपने को पर्यावरण प्रेमी दिखाने के लिए नहीं।  नर्सरी से पौधा खरीदने से पहले उसके लिए पूरी तैयारी करें। कहां लगाना है? कितना बड़ा पॉट होना चाहिए? क्या पौधा लाकर उसको लगाने का आपके पास टाइम है? यह नहीं कि पौधे लाकर रख दिए, कारण जो मर्जी हो, पौधे तो पड़े पड़े मर गए न! आप लाकर उसकी हत्या न करें। नीलम भागी