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Tuesday, 2 December 2025

सांस्कृतिक उत्सवों का दिसम्बर


धर्म और लोककथाओं के बाद उत्सव की एक महत्वपूर्ण उत्पत्ति कृषि है। धार्मिक स्मरणोत्सव और अच्छी फसल के लिए धन्यवाद दिया जाता है। रवि की फसल की बुआई सितम्बर से नवम्बर तक हो जाती है। फिर बड़ी श्रद्धा और उत्साह से उत्सव मनाते हैं। संगीत के बिना उत्सव कैसा! विद्वानों का मानना है जो जनजातियाँ नाचती गाती नहीं-उनकी संस्कृति मर जाती है।

नृत्य, गायन उत्सवों की शुरूआत भारत के मंदिरों में हुई थी। लेकिन अब देश विदेश से इन उत्सवों को देखने पर्यटक आते हैं।

कोणार्क नृत्य महोत्सव(1 से 5 दि0) कोणार्क सूर्य मंदिर में पूरे भारत से नर्तक अपनी कलात्मकता दिखाने को एकजुट होते हैं।


अर्न्तराष्ट्रीय रेत कला महोत्सव(1से 5 दि0) सबसे अधिक उड़ीसा के पुरी  और चंद्रभागा के तटीय रेत पर कलाकार जटिल कलाकृतियाँ बनाते हैं। श्री क्षेत्र उत्सव, पुरी की परंपराओं को जीवित करती रेत की कला है।

गीता जयंती(1दिसम्बर) का उत्सव मार्गशीष महीने के शुक्ल पक्ष की एकदशी तिथि को मनाया जाता है। 15 नव. से 5दिस. अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर कुरुक्षेत्र में ब्रह्म सरोवर के आस पास 300 से अधिक राष्ट्रीय स्टॉल लगाए गए हैं। यहाँ के 75 तीर्थों पर इस दौरान गीता पूजन, गीता यज्ञ, अंतरराष्ट्रीय गीता सेमिनार, गीता पाठ, वैश्विक गीता पाठ, संत सम्मेलन आदि मुख्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। तीर्थयात्री कुरुक्षेत्र की 48 कोस परिक्रमा करके गीता महोत्सव मनाते हैं। महोत्सव के मुख्य कार्यक्रम 24 नवंबर से 1 दिसम्बर तक होंगे।  गीता पढ़ना, घर में रखना हमारे यहाँ परंपरा है। 18 अध्यायों और 700 श्लोकों में चारों वेदों का संक्षिप्त ज्ञान है। गीता जयंती के दिन श्रीमदभागवत गीता के अलावा भगवान श्री कृष्ण और वेद व्यास की भी पूजा की जाती है। 

  पौराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता का ज्ञान दिया था। ऐसी भी मान्यता है कि यही ज्योतिसर तीर्थ वह पावन धरती है, जहां भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता रुपी अमृतपान कराया था। यहां एक प्राचीन सरोवर और एक पवित्र अक्षय वट है जो भगवान श्रीकृष्ण के गीता उपदेश का एकमात्र साक्षी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस एकादशी से मोह का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी कहते हैं।


हॉर्नबिल उत्सव(1 से 10 दिसम्बर नागालैंड) नागालैंड की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है तो ज़ाहिर है त्यौहार भी खेती के आसपास ही घूमते हैं। पर हॉर्नबिल उत्सव! ये हॉर्निबल पक्षी के नाम पर है जिसके पंख सिर पर लगाते हैं। धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। बहादुर नायकों की प्रशंसा के गीत गाए जाते हैं। तरह तरह के पकवान, लोकनृत्य और कहानियाँ इस त्योहार का हिस्सा हैं। इस उत्सव पर नागा संस्कृति देखने के लिए देश विदेश से पर्यटक आते हैं। 

कुंभलगढ़ उत्सव(1से 3 दिसम्बर) को कुंभलगढ़ किले में मनाया जाता है। इसमें अलग अलग संस्कृतियों से जुड़े कार्यक्रम को देखने देशी विदेशी पर्यटक भाग लेते हैं।

दत्तात्रेय जयंती(4दिसम्बर) त्रिगुण स्वरुप यानि ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का सम्मलित स्वरुप, इसके अलावा भगवान दत्तात्रेय जी को गुरु के रूप में पूजनीय, की जयती मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक हैं और माता अनुसूया को सतीत्व के रूप में जाना जाता है। राजा कार्तीवीर्य अर्जुन सहस्त्रबाहु भगवान दत्तात्रेय के अनन्य भक्तों में से एक हैं। ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य सुबह काशी में गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका, दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेेलगाम में स्थित है। देशभर में दत्तात्रेय को गुरु का रूप मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है। भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। नरसिंहवाडी दत्ता भक्तों की राजधानी के लिए जाना जाता है। कृष्णा और पंचगंगा नदियों के पवित्र संगम पर स्थित, महाराष्ट्रीयन इतिहास के प्रसंगों में इसका व्यापक महत्व है। दक्षिण भारत सहित पूरे देश में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं।

पुथरी तिरुअप्पम(5 दिस.) कर्नाटक का मुख्य फसल उत्सव है जो नए चावल की फसल आने पर मनाया जाता है। इस दिन घरों को सजाकर परिवार के सदस्य पारंपरिक पोशाक पहन कर धान की कटाई की खुशी मनाते हैं। इस उत्सव में विशेष पकवान (अप्पम) है।

 संकष्टी चर्तुथी(7दिसम्बर) दादी हमेशा किसी भी उत्सव की पूजा करते समय परिवार को बिठा कर उसकी बड़ी रोचक कथा सुनाती थी। गणेश चतुर्थी जिसे वह सकट बोलती थी। उसमें गणेश जी की चार कथाएं एक साथ सुनाती और हर कथा के बाद एक तिल का लड्डू देती। कड़ाके की ठंड में हम चारों लड्डू खा जाते थे।

चुम्फा महोत्सव तंगुल नागाओं द्वारा मणिपुर में मनाया जाने वाला चुम्फा उत्सव (10 से 16 दि.) सप्ताह भर चलने वाला फसल उत्सव है। इसमें पुरुष और महिलाएं विभिन्न सांस्कृतिक प्रदर्शनों और अनुष्ठानों में एक साथ भाग लेते हैं। उत्सव का समापन भव्य जुलूस के साथ होता है। 


कार्थिगाई दीपम(13दिसम्बर) हिन्दु तमिलों, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और श्रीलंका में इस रोशनी के त्यौहार को कार्तिगई पूर्णिमा कहा जाता है। केरल में इस त्यौहार को त्रिकार्तिका के नाम से जाना जाता है जो देवी कार्तियेनी(चोटनिककारा अम्मा) भगवती के स्वागत के लिए मनाया जाता है। शेष भारत में, कार्तिक पूणर््िामा अलग तारीख में मनाया जाता है। तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में ’लक्षभा’ के नाम से मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश तेलंगाना के घरों में कार्तिक मासालु(माह) को बहुत शुभ माना जाता है। स्वामीनारायण संप्रदाय भी इस त्यौहार को बहुत उत्साह से मनाता है।

पेरुमथिट्टा थरवड विरासत गृह समारोह-(14 दिस.) केरल की विरासत घरों की वास्तुकला और जीवनशैली, सांस्कृतिक कार्यक्रम की झलकियाँ देखने के लिए दिसम्बर में आयोजित समारोह में शामिल होना होगा।

गलदान नामचोट(14दिसम्बर) प्राकृतिक सुन्दरता के साथ, लददाख में नामचोट उत्सव के समय जाना सोने पर सुहागा है। यह एक ऐसा त्यौहार है जिसमें तिब्बती विद्वान को सम्मानित करने के लिए बौद्व भिक्षुओं द्वारा नाटक किए जाते हैं।

चेन्नई नृत्य एवं संगीत समारोह मध्य दिसम्बर से एक महीने तक चलने वाला उत्सव है। दक्षिण भारत की समृद्ध सांस्कृतिक असाधारणता का अनुभव करने देश विदेश से संगीत प्रेमी दर्शक, संगीतकार और कलाकार यहाँ आते हैं।

गुरु घासीदास जयंती(18 दिस.) छत्तीसगढ़ राज्य में हिंदूधर्म के सतनामी समुदाय के प्रमुख की जयंती मनाई जाती है। उन्होंने सतनामी समुदाय की स्थापना की। 

दिसबंर में आयोजित उत्सव सनबर्न फेस्टिवल (गोवा, 19 से 21दिसम्बर ) संगीत नृत्य का उत्सव 18 साल से गोवा में हो रहा था इस वर्ष मुंबई में होगा। 

शिल्पग्राम महोत्सव(21से 30दिसम्बर) उदयपुर के शिल्पग्राम के उत्सव में एक जगह पर देशभर  की संस्कृति की झलक देश भर से आये कलाकारों के आने से देखने को मिलती है। कला, संस्कृति, खानपान और वेशभूषा पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

पौष मेला(23-28 दिसम्बर) शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल, इसमें बाउल, छाऊ सहित पारंपरिक लोक नृत्यों में भाग ले सकते हैं। रंगारंग और लयबद्ध प्रर्दशन उत्सव का मुख्य आर्कषण है। 

पंचमढ़ी उत्सव(26दि0से 1 दि0) भारत का सबसे लोकप्रिय प्रकृति की प्रचुरता का आनन्द उत्सव है। संगीत, नृत्य प्रर्दशन, साहसिक गतिविधियाँ, प्रर्दशनियाँ यहाँ की समृद्ध विरासत को दर्शाती हैं।

रण उत्सव(गुजरात 1नवम्बर से 20 फरवरी) तीन महीने तक मनाये जाने वाले इस उत्सव में कला, संगीत, संस्कृति के साथ इसमें बुनकर, संगीतकार, लोक नर्तक और राज्य के श्रेष्ठ व्यंजन निर्माताओं के साथ कारीगर भी आते हैं। इस दौरान कलाकार रेत में भारत के इतिहास की झलक पेश करते हैं। रेगिस्तान में सांस्कृतिक कार्यक्रम गरबा लोक संस्कृति, हस्तशिल्प और गुजराती व्यंजन आदि के लिए प्रसिद्ध है। 

ममल्लपुरम डांस फेस्टिवल चेन्नई, दिसम्बर के तीसरे सप्ताह से 20 दिन तक चलने वाला नृत्य उत्सव) खुले आकाश के नीचे, नृत्य संगीत, शास्त्रीय और लोक नृत्य का उत्सव जिसका देश दुनिया के पर्यटक आनन्द उठाते हैं। 

 कोचीन कार्निवाल मनोरंजन कार्यक्रम है जो हर साल दिसंबर के अंतिम दो सप्ताह तक मनाया जाता है। केरल के कोच्चि में र्फोट कोच्चि में वास्कोडिगामा स्क्वायर पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फैहरा कर उद्घाटन किया जाता हैं। जिसमें संस्कृति और मनोरंजन का अनूठा मेल देखने को मिलता है। मसलन संगीत, रंगारंग जुलूस, पोशाकें, मुखौटे लगाए पर्यटक और स्थानीय लोग घूमते हैं। ंएक जनवरी को कार्निवाल का विशाल जुलूस है जिसका नेतृत्व हाथी करते हैं और नृत्य मुख्य आर्कषण हैं।  

विष्णुपुर महोत्सव 27 से 31 दिसम्बर के बीच मदनमोहन मंदिर, विष्णुपुर के पास  पश्चिमी बंगाल में आयोजित यह महोत्सव, अपने खूबसूरत टेराकोटा मंदिरों सिल्क की साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी विशेषता स्थानीय हस्तशिल्प और संगीत है। विष्णुपुर अपने स्वयं के शास्त्रीय संगीत के घराने के लिए भी प्रसिद्ध है।

चंपा षष्ठी 26 दि. को महाराष्ट्र का प्रमुख त्यौहार भगवान खंडोबा के भक्तों द्वारा मनाया जाता हैं। इस धार्मिक उत्सव में भक्ति के साथ अनुष्ठान, जुलूस, आध्यामिक प्रवचनों के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। भगवान खंडोबा को योद्धा देवता के रुप में पूजा जाता है। 

रणथंभौर संगीत और वन्यजीव महोत्सव(27 से 29) राष्ट्रीय उद्यान के हरे भरे जंगल की पृष्ठभूमि में स्ंागीत समारोह का आयोजन होता है। 

मंडला पूजा 27 दिसम्बर को केरल के अयप्पा मंदिर में मनाया जाने वाला अनुष्ठान है। 16 नवम्बर से शुरू 41 दिवसीय उत्सव है। इस तपस्या उत्सव का अंत 27 दिसम्बर को मंडला कलम के रूप में जाना जाता है। 41 दिन का उपवास मलयालम महीने के वृश्रिच्कम के पहले दिन से शुरू होता है। पड़ोसी राज्यों से भी श्रद्धालु मंडला पूजा और ’मकर विलक्कु’ सबरीमाला अयप्पा मंदिर में आयोजित दो प्रमुख कार्यक्रमों में पहुँचते हैं। अयप्पा के अनुयायी सूर्य की उपासना करते हैं। तिल और गुड़ का भोग लगाते हैं। भोजन, दान दक्षिणा जरूरतमंदों को देते हैं जिससे समाज में सदभावना बढ़ती है। परिवार मित्रों के साथ भोजन कर त्यौहार का आनंद लेते हैं। कई रोचक और पौराणिक कथाएं इस त्योहार के महत्व को दर्शाती हैं। दो कथाएं बहुत प्रचलित हैंः

बचपन में छोड़े गए कर्ण, महान धर्नुधारी और कुशल योद्धा बने। यह जानने पर कि सूर्यदेव उनके पिता हैं। वे बहुत खुश हुए। उन्होंने अपने पिता के सम्मान में भव्य यज्ञ का आयोजन किया। ऐसा माना जाता है कि यही दिन मंडला पूजा के रूप में मनाया जाने लगा।

दूसरी कथाः देवताओं और दानवों में लम्बे समय तक युद्ध चला। देवताओं ने सूर्यदेव की सहायता से विजय प्राप्त की। देवताओं ने सूर्यदेव का आभार प्रकट करने के लिए और उनकी शक्ति का सम्मान करने के लिए मंडला पूजा की शुरूआत की।

इस उत्सव पर खरीफ़ की फसल की कटाई होनेे के बाद किसान अच्छी फसल के लिए सूर्य देव का धन्यवाद करते हैं। कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। पतंग उड़ाना, रंगोली बनाना, लोकगीत और लोकनृत्य इस उत्सव के प्रमुख आर्कषण हैं।

 रणथंभौर संगीत और वन्यजीव महोत्सव(27 से 29) राष्ट्रीय उद्यान के हरे भरे जंगल की पृष्ठभूमि में स्ंागीत समारोह का आयोजन होता है। 

शाकंबरी नवरात्रि(28 दिस. से 3 जन.) शाकंबरी नवरात्रि पौष शुक्ल अष्टमी से शुरु होकर पौष पूर्णिमा को समाप्त होती है। इसे बाणदा अष्टमी भी कहा जाता है। शाकम्बरी देवी को भगवती का अवतार माना जाता है। जो पृथ्वी पर अकाल अकाल और भयानक भोजन की कमी को दूर करने के लिए प्रकट हुईं थीं। शाकंबरी शब्द का अनुवाद सब्जियों को धारण करने वाला होता है।                

संगीत प्रेमियों के लिए, माउंट आबू विंटर फैस्टिवल (राजस्थान, 29 और 30 दिसम्बर) में लोकनृत्य, संगीत घूमर, गैर और धाप, डांडिया, शामें कव्वाली का आनंद लिया जाता है। नक्की झील के किनारे बिना किसी मंच के कोई भी अपने वाद्य यंत्र को बजाते हुए मस्ती में गाता मिल जायेगा। कोई भी संगीत प्रेमी पर्यटक, साथ देने लग जाते हैं। बिना किसी आयोजन के अच्छा खासा गीत संगीत शुरु हो जाता है।  

हिमाचल हिल्स फैस्टिवल(30 से 31 दिसम्बर) कड़ाके की ठंड में बोनफायर के चारों ओर मनाया जाने वाला संगीतमय उत्सव है। 

सांस्कृतिक उत्सवों का दिसम्बर, जाने पर और जनवरी महीने के आने की पूर्व संध्या पर कुछ लोग नववर्ष मनाते हैं। ये हमारा नया साल नहीं है। हमारा नया साल तो चैत्र प्रतिप्रदा को होता है। 

नीलम भागी(लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, टैªवलर)  

 प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से प्रकाशित प्रेरणा विचार पत्रिका के दिसंबर अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ.