सुबह आंख खुलते ही देखा साइड लोअर सीट खाली थी। मैंने तुरंत सुधा को कहा कि उस सीट पर शिफ्ट हो जाए, जब तक अगली सवारी नहीं आती। मन में सोचा शायद परकाला यहां पर लंबी सीट पर टिकी रहेगी और मैं मैसेज देखने लगी। हमारे प्रवीण आर्य जी (राष्ट्रीय मंत्री) ने डॉ. संतोष कुमार महापात्रा (महामंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद उड़ीसा) का कांटेक्ट नंबर भेजा था। मैंने प्रवीण जी को कॉल किया तो उन्होंने कहा कि कोई परेशानी हो तो इन्हें फोन कर लेना। वे सब लोग 17 को चलकर 18 की शाम को पहुंचेंगे। अब यहां गाड़ी ज्यादा स्टेशनो पर रुक रही थी। दोनों लड़के अपर सीट पर सो रहे थे। लोअर पर दो-दो सवारी थीं । अब हमारा बतियाना शुरू हो गया। परकाला लंबी खिड़की पर मस्त हो गई या ऊपर लेटे लड़कों ने उसे डरा दिया। वह ऊपर की तरफ देख ही नहीं रही थी। सुधा कहने लगी, "यह हमेशा फ्लाइट से आती है ना, दिसंबर सीजन होता है, कोस्टल एरिया है, टिकट बहुत महंगी हो गई थी।" हमारे साथी मनोज शर्मा 'मन' ने नवंबर में फ्लाइट बुक कराई थी। आयोजन की डेट शिफ्ट होने पर पुरी का चक्कर लगाकर गए। क्योंकि डोमेस्टिक में रिफंड बहुत कम मिलता है तो उन्होंने जगन्नाथ जी का दर्शन कर लिया। वे कल सबके साथ आ रहे हैं । अब सब मुझसे पूछने लगे मैं भुवनेश्वर क्यों जा रही हूं? मैंने उन्हें बताया कि #अखिल भारतीय साहित्य परिषद के द्वारा आयोजित , 'सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह' में जा रही हूं। अपर्णा मोहंती भी रिटायर्ड टीचर हैं और उनके परिवार में प्रभादेवी मशहूर लेखिका हैं जो शायद पांचवी तक ही पढ़ी हैं। वे भी हिंदी का उड़िया में अनुवाद करती हैं। हम बातों में मशगूल थे। एक वेंडर ट्रे में सजा के चॉकलेट लाया और सब के आगे बिना बोले, ट्रे ऐसे कर रहा था मानो ऑफर कर रहा हो। परकाला ने दोनों हाथों से चॉकलेटें उठाली बाकियों ने उसकी तरफ देखा ही नहीं। सुधा एकदम बोली," कल भी तुमने ऐसे ही ले ली थी और उसी समय सभी खा ली थीं।" अब वह चॉकलेट वाला बोला," हम तो बाबू के लिए लाए हैं।" सुधा ने उसके हाथ से लेकर चॉकलेट उसकी ट्रेन में रख दीं। अब बच्चों के पास तो एक ही अस्त्र होता है जो शस्त्र की तरह काम करता है, वह है 'रोना' परकाला ने भी इसका इस्तेमाल किया और चीख चीख कर रोने लगी। सुधा ने एक ले दी। यह कल भी हो ऐसे ही लेकर आया था। मैंने नहीं ली थी बाकि सबने तमीज से एक-एक उठा ली थी फिर वह पूरी गाड़ी का राउंड लगा कर आया और सबसे उसके पैसे ले ने आया। खाने वालों ने चुपचाप दे दिए। टिकट के साथ कैटरिंग के पैसे जमा करने के बाद मैं पढ़ लेती हूं कि मुझे क्या-क्या मिलेगा। उसमें चॉकलेट कहीं शामिल नहीं थी। मैंने नहीं ली। बाकियों ने सोचा की महंगी टिकट की गाड़ी है, शायद ऑफर होती हो। बेचने का तरीका मुझे लाजवाब लगा। हर वेंडर कई बार आवाज लगाते, निकल जाते हैं। सावरियां रेट पूछती और लेती थीं। प्लेटफार्म का वेंडर तो इसमें चढ़ ही नहीं सकता है। 24 घंटे के रास्ते में यह सिर्फ दोबारा आया। कल गाड़ी चलने के बाद वह भी बिना बताए, बोले ऑफर मैथड से चॉकलेट बेच गया। इस पर चर्चा चली तो मेरे बाजू में बैठे भुवन ने उसकी सेल्समैनशिप की प्रशंसा की। वह भुवनेश्वर में बच्चों के साइंस के मॉडल बनाने का काम करता है इसलिए दिल्ली आता जाता है। वहां #लाजपत राय मार्केट से इलेक्ट्रॉनिक का सामान लाता है। उसके साथ दो-चार लोग और भी थे अलग-अलग, यह मुझे भुवनेश्वर आने पर पता चला जब उन्होंने अपने बड़े-बड़े बैग उतारे। मुझे रेलवे की एक बात समझ नहीं आई। दिसंबर का महीना है डिनर में भी आइसक्रीम और लंच में भी आइसक्रीम। आधे से ज्यादा लोग तो ठंड में वापस कर देते हैं। क्या भारत में आईआरसीटीसी IRCTC को सिवाय आइसक्रीम के मीठे में और कुछ नहीं दिखाई देता? पश्चिम बंगाल के किसी स्टेशन से एक महिला चढ़ी जो सुधा के साथ लोअर सीट की एक सीट पर बैठकर गई। इतना लंबा सफर था और एक बार भी घड़ी देखने की जरूरत नहीं पड़ी। बहुत अच्छा रास्ता बीत रहा था। क्रमशः
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