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Wednesday 24 August 2016

मुरली वाले का हैप्पी बर्थ डे Lord Krishana Happy Birthday Neelam Bhagi नीलम भागी





                                   
                                    
’’भारत से आप बाँसुरी लेती आना, मेरी जर्मन लैंड लेडी कात्या मुले के लिए ,वो प्रोफैशनल बाँसुरी वादक है।’’ उत्कर्षिनी का फोन सुनते ही मैं बेहतरीन बाँसुरी की खोज में जुट गई। विदेशी महिला को गिफ्ट देना था, वो याद करे मेरे भारत महान की बाँसुरी को, इसके लिए मैंने एक बाँसुरी वादक को ढूँढा। उसे साथ लेकर, दिल्ली की मशहूर म्यूजिकल इन्स्ट्रूमेंट की दुकान पर गई। मैंने दुकानदार से पूछा,’’आपके पास बहुत बढ़िया बाँसुरी है।’’दुकानदार ने मुझे ऐसे घूरा, जैसे किसी गंवार को घूरते हैं। फिर घूरना स्थगित कर बोला,’’बाँसुरी नहीं मुरली’’। साथ ही सेल्समैन ने मेरे हाथ में एक मुरली पकड़ा दी। मैंने अब तक जो बाँसुरी बचपन से देखी थीं, उसमें मुँह से फूँक मारते ही हवा आवाज में बदल जाती थी। लेकिन इस मुरली में मेरी फूँक योंहि बिना आवाज के निकल गई। मेरा साथी बाँसुरी वादक यह देखकर मुस्कराया और उसने मेरे हाथ से मुरली लेकर, उसका अच्छी तरह से मुआयना किया और मधुर धुने निकालने लगा। वह तो बजाता ही जा रहा था। मैंने उसके हाथ से मुरली छीनकर, दुकानदार से रेट पूछा। दुकानदार ने बताया,’’तीन हजार।’’ दाम सुनते ही, बाँसुरी वादक को जोर का झटका लगा। साथ ही दुकानदार उस बाँस की तारीफ करने लगा, जो केवल उस मुरली  के निर्माण के लिए ही उगाया गया था, उस झाड़ में विशेष खाद पानी दिया गया था, जिससे वह बाँस उगा तो यह मुरली तैयार हुई। बड़ी दुकान होने के कारण, बाँसुरी वादक, मेरे कान के पास धीरे-धीरे कहने लगा कि ये दुकानदार तो डाकू है। आप मेरठ की हैं। हम मेरठ से यही मुरली बहुत सस्ती ले आयेंगे। पर मैं कहाँ मानने वाली!! बात विदेशी महिला और देश की थी। इसलिए रेट और दुकान का नाम ही मेरा आत्मविश्वास था।  छः हजार में मैंने दो मुरलियाँ ली और उनकी खूबसूरत पैकिंग करवाई।
   मुरलियों को कोई नुकसान न पहुँचे, इसलिये मैं उन्हें हाथों में पकड़, एअरपोर्ट में दाखिल हुई। सामान जाँच की लाइन में मुरली कंधे से लगा, सैनिक की तरह खड़ी थी। यदि बच्चे की तरह बाहों में लेती, तो बराबर वाले को छूती। जैसे ही मैं काउण्टर पर पहुँची, तो पर्स से डाक्यूमेंट निकालने के लिए मैंने मुरलियों को बगल में दबाया, और पर्स खोलने लगी, मेरे पीछे, खड़ी मोहर्तमा, -’उई माँचिल्लायी, क्योंकि उससे मुरलियाँ टकरा गई थी। मैंने पीछे मुड़ के उसे साॅरी कहा। अब वह पीछे खिसक गई। पूरी लाइन में बैक गियर लग गया।
 सबसे पहले चैक इन में उसकी पैकिंग फाड़ कर डस्टबिन में डाली गई। कई मशीनों पर गुजारने के बाद ,उस पर स्टीकर चिपका दिया और मुझे बोर्डिंग पास दिया गया।  सुरक्षा जांच मेंं भी वह फिर मशीन से गुजरने के बाद मुझे मिली।
  प्लेन में प्रवेश करते समय मैं इकलौती सबसे कम इनहैण्ड बैगेज़ की यात्री थी, जिसका सामान कुछ ग्राम की मुरलियां थीं। एअरहोस्टेज़ ने हाथ में लेकर स्टिकर पढ़ा और मुरलियां अपने पास हिफाजत से रख ली। लैंड करते ही उसने मुझे पकड़ा दी| दुबई में घर पहुँचते ही उत्कर्षनी बोली,’’माँ, आप ही दे आओ न, उससे मिलना भी हो जायेगा।’’
सिल्क की साड़ी पहने, हाथ में मुरलियां लेकर, मैंने कात्या मुले की काॅलबैल बजाई। कात्या ने मुझे गले लगा कर, मेरे गाल पर चुम्बन जड़ दिया। वैभवशाली ड्रांइगरुम में मुरलीधर विराजमान थे। मैंने कान्हा के चरणों में मुरलियाँ अर्पित कर दी और कात्या मुले से कहा,’’आज इनका हैप्पी बर्थ डे है।’’कृष्ण जन्माष्टमी वह नहीं समझती थी। उसने चहक कर पूछा,’’कैसे सैलिब्रेट करते हैं?’’मैंने कहा,’’ नहा कर, इनके आगे घी का दीपक जलाते हैं।’’ मेरे आगे बोलने से पहले, उसने तपाक से पूछा,’’घी क्या होता है?’’ मैंने जीनियस की अदा से उसे समझाया कि दूध उबाल कर, उसे जमाकर दहीं बनाते हैंदही बिलोकर, मक्खन निकाल कर, उसे पिघला कर, घी बनाते हैं। उसने इस सारे प्रौसेस को बहुत ध्यान से सुना। वह सोच में डूब गई और मैं घर आ गई।
थोड़ी देर में उसका कृष्णा के बर्थ डे सैलिब्रेशन का बुलावा आया। मैं पहुँची। मूर्ति के आगे, कटोरी में दीपक, बगीचे के ताजे फूल सजे थे। मैंने कहा,’’दीपक जलाओ।’’हाॅट प्लेट, अवन, माइक्रोवेव पर खाना बनाने वाली माचिस नहीं जानती थी। उसने अपने सिग्रेट लाइटर से दीपक जलाया। मैंने गणेश वन्दना कर, उसके हाथ में मुरली दी। सोफे पर बैठ कर, उसने धुन छेड़ी। सामने मैं बैठ गई। वो आँखें बंद कर बजाने में तल्लीन थी। मधुर धुन सुनकर, उसकी 11 बिल्लियाँ, एक कुत्ता भी चुपचाप आकर बैठ गये। दीपक की लौ भी मुझे, उसकी बासुँँरी वादन की मधुर धुन के साथ झूमती लग रही थी। बजाने में खोई हुई वह और भी खूबसूरत लग रही थी।

मैं राग-रागनियाँ नहीं जानती, लेकिन सुनना बहुत अच्छा लगता है। देश के विख्यात संगीतकारों के कार्यक्रम सुनती हूँ। वैसी ही अनुभूति मुझे यहाँ हो रही थी। जैसे ही उसने बजाना बंद किया। मेरी तंद्रा टूटी। 
मैंने कहा,’’तुम तो बहुत अच्छा बजाती हो।’’उसने गोपाल की मूर्ति की ओर इशारा कर, बताया,"उनकी पूजा के कारण, आज जैसा बजाने मेंं आनंद मुझे आया वैसा पहले  कभी नहीं आया।’’फिर कहने लगी ,’’दीपक में एनिमल फैट मैंने बहुत कीमती, अपनी पसंद की गूस (पक्षी)लीवर फैटडाली है। मैंने फिर हैरान होकर पूछा, ’’क्या’’? उसने समझाया’’इट इज़ आलसो काॅल्ड गूस पेट ,बड़ी श्रद्धा से बोली , मैंने उससे दीपक जलाया है।" उसके चेहरे से टपकती हुई आस्था और श्रद्धा देखकर, मैं उसे नहीं समझा पाई कि हमारे यहाँ दीपक में जलने वाली फैट में एनिमल भी जिन्दा रहता है और फैट भी मिलती है। 

अमर उजाला रूपायन में भी प्रकाशित

बहुमत मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में यह लेख प्रकाशित