माँ के हाथ का भोजन
नीलम भागी
आज 5 दिसम्बर को सुबह दस बजे मैं और अंजना भागी सरस्वती शिशु मंदिर(सी 41) सेक्टर 12 में आमन्त्रित थे। जिसमें कुछ माँएं चार बच्चों का खाना और खिलाने के बर्तन लेकर आयीं थीं। बच्चों ने तो कुछ करना ही है इसलिये उनकी उर्जा को किसी न किसी एक्टिविटी में लगाना ही पड़ता है। अतः वे कक्षाओं से गाते हुए लाइन में आ रहे थे, गाने के बोल थे,’’भारत माता सबकी माता, हम उनकी संतान है।’’ हॉल में गोल घेरे में बैठते जा रहे थे। माँएं कुर्सियों पर बैठी, बाल गोपालों को खिलाने का इंतजार कर रहीं थी। जैसे ही उन्हे परोसने को बुलाया, एक घेरे में दो माँए और आठ बच्चों के साथ आकर बैठ गई। उनसे कहा गया कि भोजन उतना परोसे कि बाद में डस्टबिन में न जाये। खाने से पहले प्रार्थना की फिर खाना शुरू। ये विशेष ध्यान रक्खा गया कि किसी भी घेरे में महिला का अपना बच्चा न हो। माँओं के चेहरे से ऐसा लग रहा था कि उनसे कोई बच्चा भूखा न रह जायें। इसलिये बड़ी मनुहार से खिला रहीं थी। इतने बड़े हॉल में बहुत ही प्यारा माहौल था। बच्चों को खिला कर कक्षाओं में भेजा और माँओं को जलपान के लिये आमन्त्रित किया। मैंने प्रधानाचार्य प्रकाशवीर जी कहा कि मुझे बहुत अच्छा लगा कि कोई खाने में चाउमीन, बर्गर आदि नहीं लाया। उनका जवाब था कि उन्होने पहले कह दिया था कि जो आप घर में भारतीय भोजन करते हो वही लाना, केवल दाल चावल भी ला सकते हो। दूसरी शिफ्ट में भी हम ढाई बजे आमन्त्रित थे। सब कुछ वैसा ही, दूसरे बच्चे अलग माँएं। कार्यक्रम का नाम था ’मातृ हस्तेन भोजनम् ’ मुझे हैरानी हुई दोनों शिफ्ट में खाने में किसी भी बच्चे ने परेशान नहीं किया।
नीलम भागी
आज 5 दिसम्बर को सुबह दस बजे मैं और अंजना भागी सरस्वती शिशु मंदिर(सी 41) सेक्टर 12 में आमन्त्रित थे। जिसमें कुछ माँएं चार बच्चों का खाना और खिलाने के बर्तन लेकर आयीं थीं। बच्चों ने तो कुछ करना ही है इसलिये उनकी उर्जा को किसी न किसी एक्टिविटी में लगाना ही पड़ता है। अतः वे कक्षाओं से गाते हुए लाइन में आ रहे थे, गाने के बोल थे,’’भारत माता सबकी माता, हम उनकी संतान है।’’ हॉल में गोल घेरे में बैठते जा रहे थे। माँएं कुर्सियों पर बैठी, बाल गोपालों को खिलाने का इंतजार कर रहीं थी। जैसे ही उन्हे परोसने को बुलाया, एक घेरे में दो माँए और आठ बच्चों के साथ आकर बैठ गई। उनसे कहा गया कि भोजन उतना परोसे कि बाद में डस्टबिन में न जाये। खाने से पहले प्रार्थना की फिर खाना शुरू। ये विशेष ध्यान रक्खा गया कि किसी भी घेरे में महिला का अपना बच्चा न हो। माँओं के चेहरे से ऐसा लग रहा था कि उनसे कोई बच्चा भूखा न रह जायें। इसलिये बड़ी मनुहार से खिला रहीं थी। इतने बड़े हॉल में बहुत ही प्यारा माहौल था। बच्चों को खिला कर कक्षाओं में भेजा और माँओं को जलपान के लिये आमन्त्रित किया। मैंने प्रधानाचार्य प्रकाशवीर जी कहा कि मुझे बहुत अच्छा लगा कि कोई खाने में चाउमीन, बर्गर आदि नहीं लाया। उनका जवाब था कि उन्होने पहले कह दिया था कि जो आप घर में भारतीय भोजन करते हो वही लाना, केवल दाल चावल भी ला सकते हो। दूसरी शिफ्ट में भी हम ढाई बजे आमन्त्रित थे। सब कुछ वैसा ही, दूसरे बच्चे अलग माँएं। कार्यक्रम का नाम था ’मातृ हस्तेन भोजनम् ’ मुझे हैरानी हुई दोनों शिफ्ट में खाने में किसी भी बच्चे ने परेशान नहीं किया।