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Sunday, 20 January 2019

कौन! पुरूष मन मोह लियो रे......कौन सजना तोहार!! भिठ्ठामोड़ से जनकपुर नेपाल यात्रा 1 Janakpur Nepal नीलम भागी

 कौन! पुरूष मन मोह लियो रे......कौन सजना तोहार!! भिठ्ठामोड़ से जनकपुर नेपाल यात्रा 1
                              नीलम भागी
   रास्ते में कुछ दुकानों के नाम भारत नेपाल साड़ी सेन्टर, भारत नेपाल मीट शॉप देख कर ही दोनो देशों की मैत्री का अंदाज हो जाता है। महिसौल, बथनाहा, सुतिहार और सुरसंड बाजार से होते हुए ,भिट्ठामोड़ नेपाल र्बाडर पर पहुँचे। र्बाडर पर कोई र्बाडर जैसी फीलिंग नहीं हुई। बी.एस.एफ वालों ने कुछ पूछा, हमारी गाड़ी के शीशे धूल के कारण बंद थे, बंद शीशों से ही उन्होंने अन्दर झांक लिया। थोड़ा सा आगे जाने पर नेपाल र्बाडर के सुरक्षा प्रहरी तैनात थे। अर्न्तराष्ट्रीय प्रवेश सीमा है पर कोई शानदार द्वार नहीं, सब सिंपल सादा। वहाँ राजा ने गाड़ी रोकी और उतर कर जाने लगा। मैंने पूछा,’’कहाँ जा रहे हो? उसने जवाब दिया,’’हम रूपिया देकर स्लिप बनवायेंगे। दिन भर उसे संभाला जायेगा। लौटने पर उस स्लिप को लौटाया जायेगा।’’ राजा अपने लिये हमेशा बहुवचन का प्रयोग करता था। वह अपने लिये मैं के स्थान पर हम बोलता था। मैंने देखा बिहार में अधिकतर लोग, अपने लिये हम का ही प्रयोग करते हैं। सामने विंडो पर बस, गाड़ियों वाले लाइन में लगे, स्लिप बनवा रहे थे। मुझे चाय ज्यादा पीने की आदत है। इसलिये आस पास मुआयना किया। एक छप्पर के नीचे चाय की दुकान थी। उसे चाय का आर्डर दिया। उसने बिना पूछे रेट बताया कि भारत के रूपये में छ रूपये की चाय है और नेपाल के रूपये में दस रूपये की। साथ ही उसने कहा कि आप लोग गाड़ी में बैठिये, हम वहीं पहुंचा देंगे। छ रूपये की चाय, कांच के फैले गिलासों मे ढेर सारी मिली। पहला घूंट पीते ही सबके मुंह से निकला ’वाह’। उसमें चीनी, दूध, पत्ती सब कुछ दिल खोल कर डाला गया था। अब तक रास्ते में जो भी चाय सड़क किनारे मिल रही थी, वो पोलियो ड्रॉप जितनी थी। इसलिये उसकी डवल डोज़ लेनी पड़ती थी। चाय पीते ही राजा भी स्लिप ले आया। पहला जो कस्बा था उसका नाम जलेश्रवर था। यहाँ से काठमांडू के लिये बसें जा रहीं थीं। जो इस जगह से 400 किमी दूर था। जनकपुर 22 किलोमीटर दूर था। 18 किमी. प्रति घंटा की गति से हम चल रहे थे। बिल्कुल बदहाल सड़क, जिसपर मोटी रोड़ी पड़ी थी। मुझे लगा कि शायद पक्की सड़क बननेवाली है। पूछने पर राजा ने बताया कि तीन साल से वह इस सड़क को ऐसे ही देख रहा है। कूद कूद कर हमारी गाड़ी चल रही थी। डायरी में कुछ लिखना चाहती तो ग्राफ बनता, जिसे पढ़ा नहीं जा सकता था। खैर लोकगीत सुनने को अच्छे मिल रहे थे। उनके अनुसार पहले इस इलाके में घनघोर जंगल था। ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ में राक्षस तंग करते थे। वे राम लक्षमण को राजा दशरथ से मांग कर लाये। दोनों भाइयों ने खर दूषण और ताड़का का वध कर दिया। सीरध्वज राजा जनक बहुत विद्वान और धार्मिक राजा थे। उनके पूजाग्रह में एक शिवजी का बहुत भारी धनुष रक्खा था। पूजाग्रह की सफाई जानकी जी करती थीं। एक दिन राजा ने देखा कि जानकी धनुष को उठाकर उसके नीचे साफ कर रही थी। राजा हैरान! उन्होंने स्वयंबर रचाया। देश विदेश के राजाओं को निमंत्रण भेजा कि जो शिव धनुष की प्रत्यंचा चढ़ायेगा, उसी से जानकी का विवाह होगा। किसी भी राजा से धनुष हिला तक नहीं। विश्वामित्र के साथ राम लक्ष्मण भी गये थे। जब जनक जी बहुत निराश हो गये । तब लक्ष्मण के कहने पर, गुरू की आज्ञा लेकर राम जी ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और धनुष तीन टुकडों में टूट गया। गीतों में स्वयंबर में तनाव का माहोल था, उससे पहले जानकी गौरी पूजन के लिये जाती है। वहाँ उन्हें श्रीराम की एक झलक मिल जाती है। उनकी सखियाँ उनसे दिल का हाल पूछती है। इस गीत का कोरस बहुत बहुत अच्छा लगा
छोटी सखियां जनकपुर की हो, पूछें सिया जी से हाल।
कौन पुरूष मन मोह लियो रे, कौन सजना तोहार।
सीता जी जवाब देती हैं
सांवला सलोना सजनवा हो, हाथ में जिसके धनुष और बाण।
वो ही पुरूष मन मोह लियो रे, वो ही सजना हमार ....     राम सिया राम सियारामा, बोलो जै सिया रामा।
धनुष टूट गया अब विवाह की चुहलबाजी शुरू और लोकगीत ने ही जयमाला का सीन दिखा दिया।
       लेकर खड़ी जयमाला हो ...देखो सिया सुकुमारी।
       सिया सुकुमारी देखो जनक दुलारी। ले कर....
राम बड़े और जानकी छोटी, पहुँचे न वो रघुवर की चोटी।
कैसे वो डाले जयमाला हो...... देखो सिया सुकुमारी........
जानकी की प्रिय सखी, अपने आप से ही श्री राम को जानकी की जयमाला डालने की मजबूरी बताती है।
     एक सखि बोली मधुर वचनवा, तनिक जरा झुक जाओ सजनवा।
      डाल दे जयमाल हो....देखो सिया सुकुमारी.....
अब श्रीराम तो उस समय दूल्हा हैं वो भला क्यों झुकेंगें?
          करके विनय जब सखियां हारी, तब सीता लक्ष्मन को निहारी।
          देवर समझ गये बात हो, देखो सियासुकुमारी। लेकर......
          तब लक्ष्मण हरि चरनन लागे, झुककर राम उठावन लागे।
          डाल दी जयमाल हो..... देखो सियासुकुमारी......
इधर विवाह सम्पन्न हुआ और हमारी गाड़ी जनकपुर की विशाल पार्किंग में रूकी।