आज बिचारी को मैं
राशिफल भी नहीं सुना पाई थी।
अगले दिन स्कूल की छुट्टी पर बाहर निकली तो राजो
बाहर मेरे इंतजार में खड़ी थी। उसने मुझे कहा कि वह ऐसे ही मुझसे मिलती रहेगी। इतनी
सुन्दर लड़की को मेरे साथ देख कर लड़कियों ने उसके बारे में पूछा , मैंने बड़ी शान से बताया कि मेरी पक्की सहेली
है। मैं तो स्कूल यूनीर्फाम में, मेरे टपकते हुए तेल वाले लम्बे बालों की दो चोटियों का अम्मा झूला बना देती थी,
वैसी ही थी। वह पूरे फैशन में। राजो पापा जी की
बहुत लाडली थी कारण उसके पैदा होने पर उन्होंने ये काम शुरु किया था जो चल निकला
था और उसके बाद दो भाई पैदा हुए थे। भाइयों के बाद एक बहन थी. वह माँ के साथ घर के
कामों में हाथ बटाती थी। पहला प्रेमी उसका एक मुरारी पान वाला था। उसकी कॉर्नर की
दुकान थी। वह गली के मोड़ से उसे घूरना शुरु कर देता था। जब वह उसे एक बार देखती तो
वह उसे आँख मार देता था। ये मुंह नीचे करके मुस्कुरा देती थी। बेमतलब रोज तो वह भी
नहीं आ सकती न। मुरारी की शादी हो गई। जब उसकी शादी थी तब मेरे बड़े भाई और कजन
वगैहरा उसकी चर्चा ठहाके लगा कर कर रहे थे। मैं ध्यान से सुन रही थी, राजो को बताने के लिए ताकि वो दिल छोटा न करे,
बल्कि शुक्र भगवान का करे कि मुरारी जैसा
टुच्चा उसकी जिन्दगी से तो हटा। उनके अनुसार मुरारी ग़ज़ब का लुच्चा था। उसने कसरत
करके सेहत बहुत अच्छी बना रक्खी थी। बाइसैप्स दिखाने के लिये ऊँची बाँहों की कमीज़
पहनता था। रिवाज़ से अलग मूंछे रखता था। वह कहीं भी जागरण हो, वहाँ जाकर जहाँ दरी का किनारा होता था दरी के
नीचे चप्पल रख कर, रीढ़ की हड्डी
सीधी रख कर, चप्पलों पर बैठ जाता था। ऐसा वह इसलिये करता था ताकि उसकी
ऊँचाई और बढ़े। बैठता वह महिलाओं के पीछे कुछ दूरी बना कर ही था। जैसे ही माता रानी
का भजन खत्म होता, म्यूज़िक बंद होता,
अगले भजन के बीच की शांति में वह जोर से कड़क सी
आवाज़ निकाल कर जयकारा बोलता’ ’जयकारा ए
शेरांवाली दा, बोल साचे दरबार
की जय’ महिलायें ये देखने के लिए
कि कौन महिला मर्दानी आवाज़ में जयकारा लगा रही है, मुड़ कर देखतीं, वह अकेला सब महिलाओं को कवर कर आँख मार देता था। महिलायें मुंह नीचे कर खीं
खीं करती हुई हंसतीं तो उसे बहुत खुशी मिलती थी। बाकि पुरुष तो दरबार में भक्ति
में आते थे। वे महिलाओं की ओर नहीं देखते थे। उसकी शादी होने पर महिलाओं ने घोषणा
कर दी कि अब ये मुरारी सुधर जायेगा। मानो पत्नी न होकर कोई समाज सुधारिका उसकी
ज़िन्दगी में आ रही हो। राजो ने आना बंद कर दिया। मेरी दसवीं हो गई, इस लड़कियों के स्कूल में भी आगे साइंस नहीं थी।
अब मुझे दूसरे स्कूल में जाना था। मेरे घर में सलाह होती कि मुझे मैथ लेकर दिया
जाये या बायलॉजी। राजो के घर में सलाह होती कि उसकी शादी के लिये कैसा लड़का देखा
जाये। राजो ने अपने पापा जी से कह दिया कि उसके लिये हीरो शशिकपूर जैसा लड़का देखा
जाये। नये इंटर कॉलिज के रास्ते में उसका एक प्रेमी था राकेश। उसके डैडी की परचून
की दुकान थी। दोपहर दो से पाँच उसके डैडी जी घर पर आराम करने जाते तो दुकान पर
राकेश अकेला बैठता था। तभी राजो कुछ खरीदने जाती थी, जब भी राजो उसे मिलने जाती तो लौटते हुए, छुट्टी होने तक मेरा इंतजार करती फिर सारा
प्रेम प्रसंग सुनाती। मेरे घर में मेरे लिए कभी मुझसे सलाह नहीं ली जाती थी कि मैं
क्या बनना चाहती हूं? मैं डॉक्टर बनूं
इसलिये मेरा नाम मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिये कोचिंग सेंटर में लिखवा
दिया। स्कूल से मैं कोचिंग जाती। रात आठ बजे पिताजी या भाई मुझे लेने आते। अब कोई
रोकता नहीं था राजो से बात करने को, पर मेरे पास समय ही नहीं था। पर जब भी समय निकालती तो राजो के पास ही बैठती
थी। राजो के पापा जी को बिरादरी में शशिकपूर जैसा लड़का मिल ही गया। उसकी बहुत
धूमधाम से शादी हो गई। वह दिल्ली आ गई। राजो जब दिल्ली से आती तो शशिकपूर साथ आता
और अपने साथ ही ले जाता। मैं मिलने जाती तो कोई बात ही नहीं हो पाती। अब मेरी
सहेली सीमा थी। पर राजो जैसी बात नहीं थी। उसने डॉक्टर बनने की ठान ली थी। बी.एससी
के बाद वह मैडिकल में आ गई। मैं बी.एड करने लगी। मेरठ छूट चुका था। किसी के बारे
में कुछ पता नहीं, न ही जानने की
फुर्सत थी। सब अपने जीवन संर्घष में लगे हुए थे। नौएडा में रहने आई तो हमारे ही ब्लॉक में राजो रहती थी। उसके दो प्यारे
बेटे, ग्रैजुएट शशिकपूर उसका
बहुत ध्यान रखता था। उसने नई नई अपनी ही जगह में फैक्टरी लगाई थी और मकान खरीदा
था। दो जगह किश्तें चुकाता और आकर बच्चों को भी पढ़ाता। मैं टीचिंग करती, मौसम और रिवाज के अनुसार साढ़ियां पहनती थी। जब
कभी मैं और राजो बाजार जाते मैं उसे कभी पर्स नहीं खोलने देती, उसे यही कहती कि मैं कमाती हूं। वह चुप हो
जाती। मेरे स्कूल के दिनों में जब वह मुझे लेने आती, मुझे अच्छे से पार्टी करा कर लाती। बिल वह पे करती और कहती
तेरे घरवाले तुझ पर कितना खर्च कर रहें हैं न! जब डॉक्टर बनेगी तो फीस मत लेना।
सीमा की शादी साथ पढ़ने वाले डॉक्टर से हो गई। दोनो अमेरिका चले गये। पहली बार
इण्डिया आने पर वह मुझे मिलने आईं। उसी समय राजो मेरे लिये अमृतसरी छोले बना कर
लाई थी। तीनों बातों में लग गये। सीमा बोली कि उसके एक डॉक्टर दम्पति मित्र हैं।
उनकी बहुत बढ़िया प्रैक्टिस चली हुई है। नौकर भी है पर वो चाहते हैं कोई लेडी उनका
घर सम्भाल ले। बच्चे का भी वे प्लान नहीं कर पा रहें हैं। लाख से ज्यादा वेतन,
रहना खाना सब उनका। नौकर रखना, निकालना सब उसका
सिर दर्द। राजो बोली,’’ सीमा मुझे ले
चलो।’’मैं बोली,’’राजो तेरी जमीं जमाई गृहस्थी है।’’वह बोली,’’तो क्या हुआ!! जैसे पति विदेश कमाने जाते हैं। पत्नी सब
सम्भालती है। अब उल्टा होगा। पति जी सब सम्भालेंगे। मैं भी कमाने जाऊँगी। उनको मैं
समझा लूंगी।’’सीमा ने जाते हुए
कहा कि मैं जाकर तुम्हें फोन करुंगी। इतने दिन सोच लो। अगले दिन राजो ने आकर कहा
कि वह अमेरिका जायेगी। मुझसे कुछ छिपाती नहीं थी। मैंने पूछा,’’तुझे कोई परेशानी है जो तूं सब छोड़ के जा रही
है। शशी कपूर तुझ पर जान छिड़कता है। तेरी गृहस्थी में कोई कमी नहीं फिर क्यों?’’वो बोली,’’मैं न पढ़ी, न मेरे में कोई
कौशल , इनको मुझे खुश रखने का
शौक है। मैं खुश हूं। पर इन्हें लगता है कि वह मुझे मौज़ नहीं करा पा रहे हैं। दो
दो किश्ते देना और घर चलाना कितना मुश्किल है। मैं इन्हें समझाती हूं कि हमारे
बच्चे पहली दूसरी कक्षा में हैं और हमारा अपना ठिया और घर है। मैं पापा जी के साथ
घर में बैठे ही बिज़नेस देखती थी। ये फैक्टरी किराये पर उठा कर घर देखेंगे। मेरे
पैसों से दोनो जल्दी से स्टॉलमैंट पे कर देंगे। मकान और फैक्ट्री दो तीन मंजिल कर
लेंगे। फिर मज़े ही मज़े। मैंने सोचा कि उसके जीवन में धनवान होना ही मजे़ हैं। इसकी
मर्ज़ी। क्रमशः