खाना बनाने और खाने की शौकीन कात्या मूले, मुझे दुबई में चौयतराम स्टोर पर ले जाकर कहने लगी,’’यहां मुझे मेरे देश जर्मनी के खाने में प्रयोग होने वाले लगभग सभी इनग्रीडेन्ट मिल जाते हैं।’’सबसे पहले उसने लहसून के पत्तों जैसी एक गुच्छी उठाई। घर आते ही उसने उसे धोकर बहुत ही बारीक काट कर गाढ़े दहीं में नमक के साथ अच्छी तरह मिलाकर फ्रिज में रख दिया। डिनर में जब खाया तो बिना मिर्च मसाले के यह रायता बहुत स्वाद लगा। मुझे लहसून से मिलता हुआ फ्लेवर लगा। वो हिन्दी नहीं जानती थी और मैं जर्मन, मैंने उन पत्तियों का नाम पूछा वो पता नहीं क्या बता रही थी।
इण्डिया में आते ही मैंने 60%मिट्टी, 35%वर्मी कम्पोस्ट रेत मिलाया। एक गमले के डेªनेज़होल को ठिकरे से ढक कर उसमें इस मिट्टी को भर दिया। मोटी कलियों वाले लहसून लेकर कलियों को अलग कर लिया। एक एक कली को 3’’ की दूरी पर 1’’गहरा मिट्टी में चपटा सिरा नीचे की ओर और प्वाइंटिड सिरा ऊपर की ओर करके दबा दिया। अच्छे से पानी देकर गमलों को धूप में रख दिया। ज्यादा पानी नहीं डालती, उसमें हरे हरे पत्ते निकल आये। हरेक के 5-6 पत्ते होने पर मैंने किनारे के दो दो पत्ते कैंची से काट लिये। बीच के नहीं निकाले। इन ताजी पत्तियों को धोकर बहुत ही बारीक काटा, साथ ही गमले से तोड़ कर हरी मिर्च भी बारीक कतर कर दहीं में डाल दी। नमक और काला नमक मिला कर फ्रिज में रख दिया। बहुत ही लजीज़ दहीं हो गया। घर की उगाई हैं इसलिये जब मुझे पत्तियां मिलती हरा लहसून रायता बना लेती। इस रायते के स्वाद के कारण मैं पूरे साल लहसून उगाये रखती हूं। लहसून बाजार से खरीदती हूं। अक्टूबर से अप्रैल तक पत्ते बहुत अच्छे मिलते हैं बाकि समय काम चल जाता है। कभी कभी नीचे गांठ भी मिल जाती है। मुम्बई गई तो लोखण्डवाला के बाजू में मिल्लत नगर के शुरु में सुबह 11 बजे तक सब्ज़ी के ठेले लगते है। वहां तो प्याज की गुच्छी के साथ लहसून की गुच्छी भी बिक रही थी। महिलाओं को खरीदते देख मैंने पूछा,’’आप इससे क्या बनायेंगी? वो बोली,’’हरी चटनी, भाखरी के साथ बहुत अच्छी लगती। थेचा से भी ज्यादा अच्छी लगती। उसने मुझे दोनों का सामान खरीदवाया और बनाने की विधि समझाई।
हरी चटनी
एक गुच्छी हरा लहसून, आधी गुच्छी हरा धनिया, 8 हरी मिर्च इसे गुच्छी के साइज़ के अनुसार कम ज्यादा कर सकते हैं। नमक और काला नमक मिला कर पीस लिया। बोल में निकाल कर नींबू निचोड़ा और भूना जीरा डाला। इसी विधि से लाल मिर्च से भी बनाते हैं। पर सूखी लाल मिर्च को तेल में तल कर डालते हैं।
स्वाद हरी चटनियां खाने के बाद अब मैं पहले की तरह लहसून नहीं उगाती कि सब्जीवाले से लिया और बो दिया। मैं बीज की दुकान से बोने के लिये लेती हूं क्योंकि मेरे शहर की दुकान हमारे यहां की मिट्टी मौसम के अनुसार ही बीज रखेगी। सब्जी़वाले के लहसून पता नहीं कहां से चल कर उपचार लेकर आएं हैं ताकि वे खराब जल्दी न हों। ऐसा इसलिए करती हूं कि मेरे लहसून के पौधे ऐसे हों कि मैं गमलों में उगा कर रायता और चटनी दोनों बना सकूं। ़