पीस पार्क से हम, स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने, अद्भुत कारीगरी के विशाल दिव्य दिलवाड़ा जैन मंदिर की ओर अच्छी और साफ़ सुथरी सड़क पर जा रहे थे। अचानक हमारी गाड़ी रोक कर ड्राइवर ने कहा," मैं आपको यहां मिल जाऊंगा।" मैंने पूछा," दिलवाड़ा का मंदिर किधर है?" उसने बिल्कुल एक साधारण से भवन की ओर इशारा कर दिया। पर्यटकों की भीड़ के पीछे हम भी उस ओर चल पड़े। प्रवीण भाई ने हमसे मोबाइल ले लिए। चप्पल उतार कर हम लाइन में लग गए। सबसे ज्यादा हमारी चेकिंग मोबाइल के लिए हो रही थी। जिसका कारण मंदिर में प्रवेश करते ही लग गया। अंदर जाते ही जालीदार नक्काशी से बने तोरण देखते ही मैं तो विस्मय विमुग्ध हो गई शिल्प का बेजोड़ खजाना!
दिलवाड़ा मंदिर, पाँच मंदिरों का एक समूह है। प्रत्येक मंदिर एक प्रांगण के अंदर घिरा है। विमल शाह, वस्तुपाल और तेजपाल ने ऋषभ नाथ, नेमिनाथ, पारसनाथ और 24वें तीर्थंकर महावीर 1582 में निर्माण काल है। ये राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित हैं। इन मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि इतनी बारीक नक्काशी का कारण, कारीगरों को मेहताने में पत्थर तराशने में जो धूल निकलती थी, उसके वजन के बराबर मिलता था। इन विश्व प्रसिद्ध मंदिरों को जरूर देखने जाना चाहिए। एक मंदिर से दूसरे मंदिर में नंगे पांव जाने में मई के महीने में मेरे पांव झुलस रहे थे। अगर जुराबें पहनने की परमिशन हो तो गर्मी में पहन कर जाए। ख़ुद भी तस्वीरें न ले। कोई लेता दिखे तो उसे मना करें। यह आबू रोड स्टेशन से 30 किमी दूर है। मंदिर से बाहर की दुकानो में राजस्थानी पोशाकें, पगड़ियां, जूतियां, ज्वैलरी आदि बिक रही थी। क्रमशः