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Thursday, 30 May 2024

कोणार्क से भुवनेश्वर! स्वर्णिम त्रिभुज! Golden Triangle! Konark to Bhuvneshwer उड़ीसा यात्रा भाग 24, Orissa Yatra Part 24 नीलम भागी Neelam Bhagi

  



मंदिर में जो फोटोग्राफर हैं, वे भी बखूबी गाइड का काम करते हैं मसलन विद्याधर खटाई। मंदिर से बाहर निकलते ही मुझे उत्तराखंड की रेखा खत्री अपने ग्रुप के साथ मिल गई।  वे सुबह भुवनेश्वर पहुंची थीं। समान रखते ही अपने ग्रुप के साथ घूमने निकल गई। मुझे भी कहा कि आप भी शाम तक पहुंच जाना क्योंकि सुबह 9:00 बजे तो सत्र शुरू है। मैंने कहा," ठीक है।" मंदिर से बाहर निकलते ही अस्थाई मार्केट है, जिसमें सभी तरह का सामान मिलता है। सबसे अधिक काजू और खसखस। काजू ₹300 से शुरू है लोग खरीदते  हैं बाकि खाने पीने के स्टॉल हैं। इसमें पैदल चलना बहुत अच्छा लगता है। बहुत अच्छा है यहां पर स्थाई निर्माण नहीं है, नहीं तो हमारे विश्व धरोहर सूर्य मंदिर को क्षति पहुंचेगी। चलते हुए बस स्टैंड  पहुंची। सामने मो बस खड़ी थी भुवनेश्वर जाने के लिए। मैं उसमें बैठने लगी पर पूछ लिया कि यह बरमूडा बस स्टैंड जाएगी। ड्राइवर ने कहा," नहीं, स्टेशन जाएगी।" तुरंत उतरी। यहां मदद को सभी तैयार रहते हैं। पुलिस वाले ने पूछा," आप भुवनेश्वर के लिए क्यों नहीं बैठी?" मैंने कहा," मुझे बरमूडा बस स्टैंड जाना है।" अस्थाई दुकान के अंदर से आवाज आई," वह लाल कुर्सी उठाइए, उस पर बैठ जाएं।"  अब आपको बस 3:30 बजे मिलेगी जो बरमूडा जाएगी। मैं बैठकर, आने जाने वाले देश दुनिया के पर्यटकों, तीर्थ यात्रियों को देखती रही। कुछ ही दूरी पर चंद्रभागा बीच है। लोग यहां से बीच पर जाते हैं या बीच से पैदल कोणार्क के लिए आते हैं। यह सब देखना भी अपने आप में बड़ा सुखद है क्योंकि एक ही स्थान पर हर प्रांत के देशवासी अपनी पोशाक में दिख जाते हैं। पर मैं बेचैन कोई बस आती,  मैं उठ कर पूछताछ करने चल देती । अब देवराज  राऊ, उठकर मेरे पास आए बोले," मैं सुपरवाइजर हूं, यहां बस सर्विस 

का ध्यान रखता हूं। आप परेशान न हों। आपको बस में बिठाऊंगा। हां कोई काजू वगैरह खरीदने हैं तो ₹10 की ई रिक्शा में बैठकर, याद नहीं आ रहा कौन सा गांव बताया था? वहां काजू भूने जाते हैं। बहुत सस्ते और अच्छे मिलते हैं। वहां आप शॉपिंग करके आ सकती हैं। आपके पास समय है। यह लंच टाइम है, थोड़ा बस सर्विस कम है। अब मैं तसल्ली से  बैठ गई और कोणार्क दर्शन के साथ आसपास का परिचय भी करने लगी और फिर नारियल पानी पिया। पता नहीं ताजा होने के कारण यहां बेहद स्वाद था जैसे ही बस आई,  देवराज राऊ जी ने कंडक्टर से कहकर मुझे विंडो सीट पर ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बिठाया और कहा," दीदी अकेली है, जहां पर यह कहेंगी, वहां ठीक से उतारना।" खूब भरी हुई बस में मुझे सीट मिली। मेरे सामने बस में बहुत सुंदर सा मंदिर बनाया हुआ था। यह बस का रास्ता 66 किमी. का है और आज मैंने गोल्डन ट्रायंगल पूरा करना है। भुवनेश्वर से पुरी,  पुरी से कोणार्क और कोणार्क से भुवनेश्वर। जितनी दूर बस होती जा रही है, रास्ते में खेती शुरू हो गई है। छोटे-छोटे पोखर हैं। लाल मिट्टी है जो बहुत उपजाऊ होती है और हरियाली। नारियल,  सुपारी और काजू के पेड़ हैं। रास्ते में नीमपाड़ा , गोप और पिपली आते हैं। पिपली हैंडीक्राफ्ट, हथ एलकरघा और कपड़े के काम के लिए, पत्थर और लकड़ी पर नक्काशी के लिए मशहूर है। दिल्ली से हमारे साथी भी शाम को पहुंच रहे थे। हमारे प्रवीण आर्य राष्ट्रीय  मंत्री का फोन आ गया था। उनकी आदत में शुमार है जो भी किसी भी सम्मेलन में जाता है, उसके कांटेक्ट में जरूर रहते हैं। उन्होंने मुझे  डॉ. संतोष महापात्र (महामंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद उड़ीसा) का नंबर भेजा कि इनसे कांटेक्ट करो। आपको सम्मेलन स्थल में पहुंचने में आसानी होगी। बस स्टैंड आने से पहले मैंने मी ताजी को फोन कर दिया था। श्री मोहंती ने मुझे पिकअप कर लिया। मीताजी को मैंने बताया था मैं डिनर नहीं करूंगी। पर उन्होंने फिर भी उड़िया के स्थानीय व्यंजन बनाए हुए थे। मैंने उन्हें चखा जो बेहद स्वादिष्ट थे। मैंने मिस्टर मोहंती की डॉक्टर संतोष महापात्र से बात करवा दी उन्होंने बता दिया मुझे कहां पहुंचना है। मीताजी और श्री मोहंती मुझे वहां पहुंच आए। यहां पूरे भारत से आए साहित्य परिषद के प्रतिनिधि एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश हो रहते थे। डिनर के बाद मुझे मेरे मैंगो होटल में पहुंचा दिया। अब मुझे कहीं जाना नहीं था। तीन दिन सभी सत्र अटेंड करना है।

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क्रमशः