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Monday, 22 August 2016

कूर्ग तो मन पर छा गया! प्राकृतिक सौन्दर्य ही मनोहारी है कूर्ग यात्रा Coorg Yatra भाग 5 नीलम भागी






                                                     
रात बहुत गहरी नींद सोई, शायद कूर्ग की हवा की ताज़गी के कारण, अभी भी सो रही थी कि मुझे लगा कि मेरे बराबर कोई एक्टिविटी चल रही है। करवट बदल कर देखा तो गीता बड़ी मेहनत से कपड़े खोलने में लगी हुई थी। अब दो साल की बच्ची भला, कैसे बटन खोल सकती है! मैंने जैसे ही उसकी ओर देखा वो खुशी से खिल गई और बोली,’’पापा स्वीमिंग।’’दरवाजा खुला था, शुक्र है भगवान का कि वो खुद जाकर नहीं पूल में कूदी। वह हमेशा पापा के साथ स्वीमिंग करती है, शायद इसलिये नहीं कूदी। इतने में उत्तकर्षिणी राजीव आ गये। हम लोग जाने के लिये तैयार हो गये, बग्गी के लिये फोन किया। बग्गी से बेहद खूबसूरत रास्ते से नाश्ते के लिये पहुँचे। ब्रेकफास्ट का तो मैं ज़िक्र न ही करुँ! क्योंकि जितने शब्दों में कुर्ग का वर्णन होगा, उतने ही शब्द ब्रेकफास्ट में परोसे गये व्यंजनों के नाम, उनके स्वाद और उनकी सर्विस की प्रशंसा में लगेगे। कुछ ही शब्दों में, मेरा तीन दिन के नाश्ते में, वैराइटी का स्वाद चखने से ही पेट भरा, फिर भी आधे व्यंजनों का स्वाद मैं नहीं ले पाई। वेजिटेरियन हूँ, और जूठा मैं छोड़ती नहीं। राजीव उत्तकर्षिणी का कहना है कि नान वेज की तो बात ही अलग है, जिसके लिये  कूर्ग में खाने को बहुत कुछ है।  पांधी(पोर्क), कोली(चिकन), और यार्ची(लैंब) को काली मिर्च, कोकुम, लाल मिर्च, बेंबला करी, कुडुमबुट्टु, नूलपुट्टु, बोटी, बैंबू शूट और काॅफी के साथ खाने का मजा ही कुछ और है। ब्रेकफाॅस्ट के बाद लाॅबी में खड़े होकर बाहर देखते रहे, कभी पहाड़ियाँ धुंधली हो जाती, धूप पड़ने पर वनस्पितियाँ हरे रंग के अलग अलग शेड में तब्दील हो जाती। हम पैदल ही अपने विला की ओर चल पड़े। विवंता बाइ ताज़ की व्यवस्ता इतनी उत्तम थी कि बच्चे के साथ भी चिंता की कोई बात ही नहीं थी। हर जगह नीले बड़े छाते रक्खे थे, फिर भी आप लेकर नहीं चले, तो आपके पास से गुजरती बग्गी का चालक, आपको बैठने को कहेगा या आप उस पर रक्खे छाते ले सकते हैं। गीता को तो एक तालाब दिख गया, उसमें बतख़ तैर रहीं थी। गीता तो उसमें मस्त हो गई। बग्गी में एक परिवार जा रहा था। उनके बच्चों की नज़र क्यारियों में लगी स्ट्राबेरी पर पड़ी। हरे हरे पौधों में लगी, लाल स्ट्राबेरीज़ ने उन्हें रुकने को मजबूर कर दिया। वे बच्चे भी नीचे उतर गये और क्यारियों में लगी स्ट्राबेरीज़ लगे तोड़ के खाने। मैं भी यहाँ के लजी़ज स्ट्राबेरीज़ शेक के स्वाद का राज जान गई, कि वह एसेंस की बजाय ताजी स्ट्राबरीज़ से बना था। संतरों के लिये मशहूर कूर्ग में जूस भी बहुत स्वादिष्ट था क्योंकि ताजे संतरों से बनता था। हल्की बूंदा बांदी हो रही थी। लेकिन पैदल चलना बहुत अच्छा लग रहा था। रात को तो ठीक से देखा नहीं था। विला में पहुँचते ही देखा कि हमारा विला प्रकृति की गोद में है। वैसे सभी विला दूर दूर पेड़ पौधों के झुरमुट में थे। अन्दर बैठे हम सब ओर जंगल देख सकते थे। हमारे और उनके बीच पारदर्शी काँच की दीवार थी। मेरा बैड लकड़ी की दीवार के साथ था। उसे स्लाइड किया तो वही पारदर्शी काँच। जब भी मैं लेटी, अब तो मेरा मुँह जंगल की ही ओर रहा। यानि नींद में आँखें बंद होने पर ही, कूर्ग नज़र से ओझल होता था पर ताजी हवा कूर्ग को महसूस करवा रही थी। वैसे तो वहाँ पानी की कमी नहीं थी पर पानी का रिसाइकिल अच्छा लगा। पूल का पानी पेड़ों में जा रहा था। ये मुझे अच्छा लगा। गीता के तंग करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। वह स्वीमिंग करके थक जाती थी और सो जाती थी। अब मुझे रेन फारेस्ट वाॅक के लिये निकलना था। क्रमशः