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Saturday 13 July 2019

निन्यानवे का फेर ,अपनी चादर में पैर फ़ैलाने होंगे!!!! भाग 3 नीलम भागी






 खैर जब वीज़ा आया तो शशि कपूर मेरे पास आकर बोला,’’दीदी आप इसे समझाओ। अभी हमारी उम्र ही क्या है? गलत मत समझना इसके पापा जी से ज्यादा मेरी हैसियत है। समय से और भी ज्यादा हम तरक्की करेंगे। किस्मत देखो वीजा़ भी लग गया। अब उसे तो यही कहा कि जरुर समझाऊँगी। पर मैं जानती थी पापा जी की लाडली की भावना गलत नहीं है। पर उसे तो मन की करने की आदत है। चौबीस साल की उम्र में राजरानी विदेश कमाने चल दी। मेड के सहारे घर और स्कूल के डे बोर्डिंगं में लाली और बंटी रहते थे। शाम छ बजे शशि कपूर फैक्टरी से लौटते हुए उन्हें ले आते। सात बजे तक डे बोर्डिंग था। सुबह बच्चों के स्कूल जाने के बाद राजो की रात होती दोनो कम्प्यूटर पर बैठ बतिया लेते। सीमा से पता चलता कि राजो से डॉक्टर दम्पत्ति बहुत खुश हैं। वे सिर्फ प्रैक्टिस पर ध्यान देते हैं। राजो ने उनका घर बहुत ऑरगनाइज़ कर दिया। जब वह इण्डिया आती तभी वे काम से ब्रेक लेकर घूमने निकल जाते। इधर कामवालियों को शशि कपूर से बहुत हमदर्दी थी। जो भी छुट्टी करती,  दूसरी का इन्तजाम करके जाती। उनकी नजरों में शशि कपूर दुनिया का सबसे अच्छा आदमी है। बीबी कमाने गई है तो कमा भी रहा है, घर भी सम्भाल रहा है और अकेला बच्चे भी पाल रहा है। एक उनके पति हैं वे कई घरों में काम करके थकी मरी घर जाती हैं। काम में हाथ बटाना तो दूर, घर में घुसते ही पूछेगा,’’इतनी देर कैसे हो गई? या आज बहुत देर करदी। फिर घर का भी करो और उसे बेमतलब सफाई भी दो।
      फैक्टरी और घर की किश्तें निपट गई। सबसे ज्यादा मुझे खुशी हुई कि राजो का सपना पूरा हुआ अब मजे से गृहस्थी सम्भालेगी। राजो आती तो बस गिफ्ट लेकर मिलने आती और जाते समय मिलती। मुझे अच्छा लगता कि एक एक पल अपने परिवार को दे रही है। मायके ससुराल वाले मिलने आते और एक दम जाने की तारीख आ जाती। इस बार जाने लगी तो मैं हैरान। मैं तो यही सोचकर एक बार भी उसके पास नहीं गई कि जब घर अपने हिसाब से सम्भाल लेगी तब मिलते रहेंगे। अब तो इसने यहीं रहना है। मैं वैसे ही मिली। उसके जाते ही शशि कपूर ने घर डबल स्टोरी करवाना शुरु कर दिया। यानि वो निव्यानवे के फेर में लग गया। मंजिल तैयार होते ही उसको खूब सजाया। राजो आई तो उसे हैरान किया। राजो बहुत खुश की उन दोंनो की मेहनत की कमाई का सदुपयोग हो रहा है। हम सिंगल स्टोरी में रह कर बच्चों को पढ़ा रहे थे। राजो के जाते ही वह फ्लोर भाड़े पर उठा दिया। एक दिन शशिकपूर मिठाई का डिब्बा लेकर आया और आते ही बोला,’’दीदी मिठाई से भी मीठी खबर है, उससे अपनी खुशी नहीं संभल रही थी। मैं कुछ पूछती उससे पहले ही वह बताने लगा कि फैक्टरी कोटा में उसका प्लॉट निकला है। एक ही प्लॉट एलॉट होना था तो उसने सबसे बड़ा पाँच सौ स्क्वायर मीटर का भरा क्योंकि उसे भरने वाले बहुत कम थे। इतने बड़े प्लॉट की किश्तें चुकाना और बनाना सबके बस की बात नहीं है न। उस समय औद्योगिक या फैक्टरी वालों को प्रशासन एक प्लाट देता था। खुश होकर उसे बधाई दी। उसके जाने के बाद] मैं पता नहीं क्यों काफी देर तक चुपचाप बैठी रही। कुछ समय बाद उन्होंने घर बेच दिया और प्लॉट के पास किराये का घर लेकर उसे बनाना शुरु कर दिया। लाली , बंटी और मैं उनके दूर जाने से बहुत दुखी थे। बच्चे मुझे मुझे मासी मासी करते थे। कोठी का गृहप्रवेश राजो के आने पर हुआ। मैं भी गई। मेहमानों के बीच में मेरी कोई उससे बात भी नही हो पाई। मैं जाने लगी तो वो बोली कि मैं तेरे गिफ्ट लेकर आती हूँ। मैंने कहा कि मैं नहीं लेकर जाऊँगी, इस बहाने तूं मेरे घर तो आयेगी। ऐसा बोल कर मैं अपने घर आ गई। वो जब भी इण्डिया आती तो सीमा मेरे लिये कुछ न कुछ भेजती और राजो तो लाती ही थी। मैं सीमा के लिये इण्डियन ड्रेस भेजती। खै़र शशि कपूर के साथ कुछ देर के लिये राजो घर आई। अब अमेरिका जाना उसकी मजबूरी थी क्योंकि इतनी बड़ी कोठी का लोन जो उतारना था। कोठी का लोन भी उतर गया। अब कभी कभी शशि कपूर लाली, बंटी को मेरे पास छोड़ कर चण्डीगढ़ जाता। अचानक पता चला कि वह चण्डीगढ़ शिफ्ट हो रहा है। कारण  यहाँ नई यूनिट पर कुछ समय टैक्स नही था। अब टैक्स लगना शुरु हो रहा था। चण्डीगढ़ के पास नया इण्डस्ट्रियल टाउन बना था। वहाँ उद्योग लगाने से कुछ समय तक टैक्स में छूट थी। इस लाभ के लिये और दिल्ली के साथ सटा होने से यहाँ प्रापर्टी का रेट बहुत ज्यादा है यानि फायदा ही फायदा। मैंने सोचा कि चलो बच्चे बड़े हो रहें हैं। शहर बदल कर घर ठिया खरीद कर भी पैसा बच जायेगा। राजो आकर अपनी घर गृहस्थी देखेगी। पर मैं हर बार गलत ही साबित हुई। एक प्रश्न मेरे दिमाग में हमेशा खटकता कि शशी कपूर का दिल कभी भी अमेरिका जाने को नहीं करता। कम से कम एक बार देख कर तो आये। पर वह कैसे जा सकता है! उसे तो निन्न्यानवे के फेर से फुर्सत मिले तभी तो जायेगा।               
    कुछ समय बाद लाली की शादी का र्काड आया। कार्ड देखकर  मैं बड़ी हैरान और खुश हुई। हैरानी मुझे इस बात पर कि लाली इतना बड़ा हो गया समय कैसे बीत गया। खुशी इस बात पर कि राजो से काफी समय बाद मिल रही थी। चण्डीगढ़ की विशाल कोठी, जिसमें चीकू, लीची और आम के पेड लगे थे़। सर्वेट क्वाटर भी, जिसमें पति पत्नी और उनका एक बेटा रहता था। पत्नी का नाम उषा जो इनका घर सम्भालती थी। उसका पति राम प्रसाद ड्राइवर से लेकर फैक्ट्री का र्गाड, चौकीदार सब कुछ था। उनका बेटा राधे, जिसकी पढ़ाई का खर्च भी इन्होंने उठा रक्खा था। शादी में राजो के बहन भाइयों सब से मिलना हो गया था। काम तो यहाँ मुझे कुछ था ही नहीं। पता चला कि लाली एक शादी में गया था। वहाँ सोनी उसे भा गई। दोनों में प्यार हो गया। लाली ने जिद पकड़ ली कि शादी सोनी से ही करेगा। जैसे ही सोनी को पता चला कि लाली उसका  दीवाना है। उसने लाली को बताया कि उसके लिये कई बड़े बड़े घरानों से रिश्ते आ रहें हैं। सोनी किसी और की न हो जाये इसलिये लाली ने घर में तूफ़ाने बदतमीज़ी मचा दी। ख़ैर इन्होंने सोनी के घरवालों से रिश्ता मांगा। उसके घर वालों ने कहा कि बेटी तो पराया धन होती है। इसकी किस्मत में आपका घर लिखा है तो जी हम कौन होते हैं मना करने वाले। शादी हो गई। राजो तो नई रिश्तेदारियों में, सभी सगे संबंधियों में बुरी तरह व्यस्त थी। मुझे तो कोई काम नहीं था। न जाने क्यों मेरा ध्यान उषा पर अटक रहा था। सारे घर की व्यवस्था उषा ने सम्भाल रक्खी थी। पता नहीं उषा मुझे गाड़ी की स्टपनी लग रही थी। शायद मेरा वहम हो। समारोह के बाद से मैं लौटने लगी तो सोनी ने मेरे पैर छू कर कहा,’’मासी जी, अब आप आया करना हमें भी अपनी सेवा करने का मौका देना। मैं उसे गले लगा कर चल दी। कुछ दिन बाद राजो का एयरर्पोट से फोन आया कि इस बार वह मिलने नहीं आ पाई। कल ही लाली सोनी हनीमून से लौटे हैं। अगली बार जरुर रुक के जाऊँगी। लाली के बेटा लवली का जन्म हुआ। लवली का जन्मदिन आया राजो नहीं आई, बस एयरर्पोट जाने से पहले मिलने आई। शादी के बाद से राजो मेरे पास नहीं आई। अब मुझे कुछ अलग सा लगने लगा। समय का फर्क होने से बात करना टलता रहा। एक दिन मैंने फोन किया तो उसने मुझे कहा कि इस बार वह सबको हैरान करेगी। आने पर बतायेगी क्योंकि वह सस्पैंस नहीं खत्म करना चाहती। और आज आई है। नींद में उसका चेहरा कई बार इतना रुआंसा हो जा रहा था, लगता था कि अभी उठ कर बिलख बिलख कर रोयेगी। मैं समझ गई कोई तो दुख है इसे। अंधेरा हो गया, मैंने लाइट भी नहीं जलाई। गहरी शाम होने पर यह उठी और मुझसे पूछा,’’सुबह हो गई!’’ मैं हंसते हुए बोली,’’नहीं शाम है तूं दोपहर को सोई थी, अब शाम को उठी है।’’उसने मुझसे पूछा,’’क्या जिन्दगी की शाम में भी मेरा काम करना जरुरी है?’’ उसने जिस लहज़े से पूछा,  सुनते ही मेरा रोम रोम दुखी हो गया। क्रमशः
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3 comments:

Unknown said...

यही है मृगतृष्णा । जिन्दगीं की राह पर चलते चलते कब सुबह से शाम हो गई और मुसाफिर थक हार कर बैठा रह गया ,निन्यानवे के फेर मे । बहुत सुन्दर कहानी । धन्यवाद एवं आभार

Seema Singh said...

बेहद सधी हुई शैली में लिखा गया है ।पाठक जैसे कथानक से बिंध गया है। बहुत खूबसूरत कथ्य बहुत शानदार निर्वहन.... अब आगे क्या की उत्कंठा अभी भी बाकी है बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ पहुंचे।

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद प्रिय सीमा