राजरानी हर महीने मुझे कहती कि मैं सरोजा को समझाऊं कि वह अपना प्लॉट उसे बेच दे। एक दिन आराधना के घर सरोजा से मैंने प्लॉट न बेचने का कारण पूछा, तो बदले में उसने मुझे इस प्रकार कहानी सुनाई कि आराधना और उनके सामने के अर्पाटमैंट में जो हिसाब के मास्टर जी(मैथ लेक्चरर मि. कुमार) रहते हैं न, दोनों के घर की एक चाबी मेरे पास रहती है। मैं इनके कॉलिज से लौटने से पहले दोनो घरों के काम निपटा देती हूँ। एक दिन मुझे बुखार आ गया। मास्टर साहब घर पता करने आये कि मैं बिना बताये घर क्यों बैठ गई? मुझे बुखार में देख कर पहले डॉक्टर से दवा दिलवा कर आये। फिर फल, दूध और अण्डा लाकर पड़ोसन संतोषी को जैसे डॉक्टर ने कहा वैसे मेरा ध्यान रखने को समझाया। जब मैं ठीक होकर काम पर गई तो उस दिन छुट्टी थी। साहब ने कहा,’’सरोजा मेरी बात ध्यान से सुन। तेरा घर बहुत मौके का है। कितनी भी मुसीबत आये इसे बेचियो और बदलियो मत। ये सांस लेता सोना है। राजरानी का होलसेल का काम बहुत फैल रहा है। जितना उसके बाहर के प्लाट का रेट होगा उतना ही तेरे प्लॅाट का, तेरा उसके साथ जो मिला हुआ है। और अगर ऊपर बनायेगी तो भी पैसा ज्यादा नहीं लगेगा। नींव खोदनी नहीं, भरनी नहीं। बराबर में तीनों ओर बीम, पिलर वाले मजबूत स्टोर हैं। तीन ओर की इनकी दिवारों से चिपका कर एक ईंट की दीवार बना सामने की नौ इंच की। ज्यादा कीमत वाली तेरी ग्राहक राजरानी है। जब भी तूं बेचेगी। वो तो अपने बिजनैस के हिसाब से तोड़ेगी ही। तूं इतनी देर किराया खा लियो। तूं समझदार है, समझ गई न। दीदी उनका हिसाब मुझे समझ आ गया। दीदी समझदार तो मैं कुछ हूं ही न। अब देखो न परशोतम के बाबू बंसी दारु तो पहले भी पीते थे। पर कभी कभी थोड़ा बहुत काम कर लेते थे, अपनी दारु और चखने लायक, थोड़ा बहुत घर में भी मदद कर देते थे। जब पता चला परशोतम देख नहीं सकता है तो दिन भर घर पर रहना , पीना और मुझे पीटना। मैंने अपनी समझदारी दिखाईं। काम से लौटते समय उसके लिए एक थैली ले आती थी। उसे पीकर पड़ा रहता था। सुबह मैं काम पर निकल जाती, बंसी परशोतम को संभालता और थैली के लिए मेरा इंतजार करता। पहले तो पैसे छीन कर भाग जाता था। जी भर के पीता था। जब नहीं मिलती तो मुझे पीटता था। आराधना गुस्से में बोली,’’अपना कमाती थी, अपना खाती थी। तूने उसे घर से निकाला क्यों नहीं?’’ सरोजा हैरान होकर बोली,’’दीदी, कैसी बांतां करती! उसके कारण माथे पर कुमकुम लगाती, गले में मंगलसूत्र पहनती न! एक थैली लाकर पिटाई से बचती। सुबह मैं काम पर आ जाती। दोपहर बाद घर जाती वो थैली देखते ही खुश हो जाता। है न मेरी समझदारी।’’आराधना बोली,’’ कुमकुम न लगाने से और मंगलसूत्र न पहनने से तूं क्या मर जाती?’’ सुन कर वो बड़े भोलेपन से बोली,’’दीदी, कुमकुम लगाने से और मंगलसूत्र पहनने से मैं दूसरे आदमियों की बुरी नज़रां से बची रहती।’’ मुझे डर था कि मुंहफट आराधना बोल न पड़े कि अब कुमकुम और मंगलसूत्र के बिना कैसे बुरी नज़रों से बची हुई है। शायद वो भी यही सोच कर चुप लगा गई होगी कि चालीस साल से कम उम्र में अपनी इस जीवन यात्रा में साठ साल की लग रही है। .’दीदी यहाँ आने से पहले बंसी मर गया। अब उसका भी खर्च बच गया है। पहली मंजिल बनानी मुश्किल पड़ी फिर तो किराये से दूसरी तीसरी चौथी बन गई। अब अपनी जिंदगी में तो मैं इसे बेचूंगी नहीं।’क्रमशः
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Saturday, 30 November 2019
सांस लेता सोना, हाय! मेरी इज्ज़त का रखवाला भाग 4 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 4 Neelam Bhagi नीलम भागी
राजरानी हर महीने मुझे कहती कि मैं सरोजा को समझाऊं कि वह अपना प्लॉट उसे बेच दे। एक दिन आराधना के घर सरोजा से मैंने प्लॉट न बेचने का कारण पूछा, तो बदले में उसने मुझे इस प्रकार कहानी सुनाई कि आराधना और उनके सामने के अर्पाटमैंट में जो हिसाब के मास्टर जी(मैथ लेक्चरर मि. कुमार) रहते हैं न, दोनों के घर की एक चाबी मेरे पास रहती है। मैं इनके कॉलिज से लौटने से पहले दोनो घरों के काम निपटा देती हूँ। एक दिन मुझे बुखार आ गया। मास्टर साहब घर पता करने आये कि मैं बिना बताये घर क्यों बैठ गई? मुझे बुखार में देख कर पहले डॉक्टर से दवा दिलवा कर आये। फिर फल, दूध और अण्डा लाकर पड़ोसन संतोषी को जैसे डॉक्टर ने कहा वैसे मेरा ध्यान रखने को समझाया। जब मैं ठीक होकर काम पर गई तो उस दिन छुट्टी थी। साहब ने कहा,’’सरोजा मेरी बात ध्यान से सुन। तेरा घर बहुत मौके का है। कितनी भी मुसीबत आये इसे बेचियो और बदलियो मत। ये सांस लेता सोना है। राजरानी का होलसेल का काम बहुत फैल रहा है। जितना उसके बाहर के प्लाट का रेट होगा उतना ही तेरे प्लॅाट का, तेरा उसके साथ जो मिला हुआ है। और अगर ऊपर बनायेगी तो भी पैसा ज्यादा नहीं लगेगा। नींव खोदनी नहीं, भरनी नहीं। बराबर में तीनों ओर बीम, पिलर वाले मजबूत स्टोर हैं। तीन ओर की इनकी दिवारों से चिपका कर एक ईंट की दीवार बना सामने की नौ इंच की। ज्यादा कीमत वाली तेरी ग्राहक राजरानी है। जब भी तूं बेचेगी। वो तो अपने बिजनैस के हिसाब से तोड़ेगी ही। तूं इतनी देर किराया खा लियो। तूं समझदार है, समझ गई न। दीदी उनका हिसाब मुझे समझ आ गया। दीदी समझदार तो मैं कुछ हूं ही न। अब देखो न परशोतम के बाबू बंसी दारु तो पहले भी पीते थे। पर कभी कभी थोड़ा बहुत काम कर लेते थे, अपनी दारु और चखने लायक, थोड़ा बहुत घर में भी मदद कर देते थे। जब पता चला परशोतम देख नहीं सकता है तो दिन भर घर पर रहना , पीना और मुझे पीटना। मैंने अपनी समझदारी दिखाईं। काम से लौटते समय उसके लिए एक थैली ले आती थी। उसे पीकर पड़ा रहता था। सुबह मैं काम पर निकल जाती, बंसी परशोतम को संभालता और थैली के लिए मेरा इंतजार करता। पहले तो पैसे छीन कर भाग जाता था। जी भर के पीता था। जब नहीं मिलती तो मुझे पीटता था। आराधना गुस्से में बोली,’’अपना कमाती थी, अपना खाती थी। तूने उसे घर से निकाला क्यों नहीं?’’ सरोजा हैरान होकर बोली,’’दीदी, कैसी बांतां करती! उसके कारण माथे पर कुमकुम लगाती, गले में मंगलसूत्र पहनती न! एक थैली लाकर पिटाई से बचती। सुबह मैं काम पर आ जाती। दोपहर बाद घर जाती वो थैली देखते ही खुश हो जाता। है न मेरी समझदारी।’’आराधना बोली,’’ कुमकुम न लगाने से और मंगलसूत्र न पहनने से तूं क्या मर जाती?’’ सुन कर वो बड़े भोलेपन से बोली,’’दीदी, कुमकुम लगाने से और मंगलसूत्र पहनने से मैं दूसरे आदमियों की बुरी नज़रां से बची रहती।’’ मुझे डर था कि मुंहफट आराधना बोल न पड़े कि अब कुमकुम और मंगलसूत्र के बिना कैसे बुरी नज़रों से बची हुई है। शायद वो भी यही सोच कर चुप लगा गई होगी कि चालीस साल से कम उम्र में अपनी इस जीवन यात्रा में साठ साल की लग रही है। .’दीदी यहाँ आने से पहले बंसी मर गया। अब उसका भी खर्च बच गया है। पहली मंजिल बनानी मुश्किल पड़ी फिर तो किराये से दूसरी तीसरी चौथी बन गई। अब अपनी जिंदगी में तो मैं इसे बेचूंगी नहीं।’क्रमशः
Tuesday, 26 November 2019
जिंदगी ख्वाब है...... हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 3 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 3 Neelam Bhagi नीलम भागी
इस बार जब मैं सामान खरीदने गई, तो राजरानी चहकती हुई मुझे ऊपर लेकर गई। मेरे आगे मिठाई का डिब्बा रखकर बोली,’’दीदी, पहले मुंह मीठा करो फिर आपको खुशखबरी सुनाउंगी।’’मैंने बर्फी का एक पीस मुंह में डाला तो वह बोली,’’दीदी हमने पीछे वाला सुखिया का प्लॉट खरीद लिया। अब हमारा अंग्रेजी के एल शेप का, पिचत्तर स्क्वायर मीटर का प्लॉट हो गया है। भगवान सरोजा को अकल दे, वो भी अपना प्लाट बेच दे तो हमारा 100 मीटर का रोड का प्लॉट हो जायेगा। फ्रंट रोड और बैक साइड फेसिंग पार्क। आप उसे समझाओ न फिर हम दोनो प्लॉट एक साथ बनवा लेंगे।’’मैंनेे जवाब दिया कि मैं कोशिश करुंगी। अब राजरानी का कारोबार होल सेल का होने लगा था। दोपहर तक आसपास के दुकानदार सामान लेने आते थे। दोपहर बाद ये रिटेल के ग्राहक अटैंड करते थे। महीने में एक बार यहाँ आने का मेरा शौक बन गया था। उसके दोनो बेटे अब दिल्ली के नामी पब्लिक स्कूल के आर्थिक रुप से पिछडे़ आरक्षित पच्चीस प्रतिशत सीटों में एडमीशन पा गये थे। उनका स्थायी निवास झुग्गी झोपड़ी पुनिर्वास कालौनी का जो था। अब मैं दोपहर बाद ही सामान खरीदने आती। राजरानी मुझ से खूब बतियाती। उसका विषय होता था ’ये हमारे पीछे वाले’ साथ ही वहाँ की बुराइयाँ शुरु कर देती और कहती,’’दीदी बच्चों को मैं इनके साथ खेलने नहीं देती। ये लोग गालियां बहुत बकते हैं।’’ इन घरों कें आदमी तो फैक्टिरियों में काम करने वाले, असंगठित क्षेत्र के कामगार, मेनरोड पर बनी दुकानों पर काम करते थे। महिलाएं ज्यादातर घरों में या फैक्ट्ररी में काम करतीं हैं। लेकिन यहाँ रहने वालों का मकसद बच्चों को आमदनी के अनुसार अच्छी शि़क्षा दिलाना, कोशिश अंग्रेज़ी स्कूल में दाखिला करान और घर को ऊँचे से ऊँचे बनाना है ताकि किराये की आमदनी हो सके। जो घरों में काम करती हैं, वे दोपहर को घर आकर जल्दी से अपने घर के काम निपटा कर, बच्चों को टयूशन भेज कर,पार्क में बैठ कर एक दूसरे की जुएं निकालती हुई बतियाती हैं। अपनी अपनी मैडम के घरों की बातें एक दूसरे से शेयर करती हैं। घरों में तो न धूप आती है न हवा। घर तो इन्हें आंधी पानी से बचाता है और सोने के काम आता है। मुझे तो पार्क इन सब का सांझा आंगन बन गया लगता है। प्रवासी हैं आपस में बहुत मेल मिलाप से रहते हैं। ज्यादातर ने अपनी मैडम का नाम उनके प्लैट नम्बर से रक्खा हुआ है। सभी को एक दूसरे की मैडम की पूरी जानकारी रहती है। अपनी मैडम से हमदर्दी भी रखती हैं। घर घर काम करती हुई कुछ तो मनोवैज्ञानिक हो जातीं हैं। अब जैसे आराधना का गुस्सा नाक पर रक्खा रहता है। कभी भी सरोजा को कह देगी, तू जा मुझे नहीं करवाना तुझसे काम। सरोजा के पास काम की कमी नहीं है पर अराधना जैसी मैडम भी नहीं है। सरोजा अगले दिन जाकर कहेगी,’’दीदी गुस्सा उतर गया तो काम करुं।’’और काम में लग जायेगी, ऐसे ही आठ साल हो गये हैं। सुखिया के पति ने राजरानी को प्लॉट बेचा बदले में यहाँ घर न लेकर पाँच लाख रुपये गाँव ले गया। इस बात से सब दुखी थीं। सबके अपने अपने ख्वाब हैं । सरोजा का एक ही ख्वाब था कि उसका परशोतम जल्दी से जवान हो जाये और वो उसकी शादी कर दे। कहीं से भी उसे खाने को अच्छी चीज मिलती है तो उसे लाकर बेटे को खिलाती है। सारा घर वोे संभालता है। घर एकदम साफ सुथरा रखता है। दिन भर रेडियो पर गाने सुनता है|रात को माँ के पेैर दबाता है। सरोजा उसके खाने का विशेष ध्यान रखती है। बिना सुनहरे फ्रेम का काला चश्मा लगाये उसे घर से बाहर नहीं निकलने देती । क्रमशः
Thursday, 21 November 2019
कभी ख़ुशी कभी गम, हाय! मेरी इज्ज़त का रखवाला भाग 2 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 2 Neelam Bhagi नीलम भागी
कुछ समय बाद राजरानी अपने पति के साथ आई। उसने मेरे आगे पचास हजार रुपये रख कर कहा,’’दीदी निकाल दो प्लॉट।’’ चौदहा के पचास इतनी जल्दी! मैंने खुशी खुशी लाकर उनको फाइल दे दी और नोट सम्भाल लिए। अगले दिन उनके नाम पावर ऑफ एटार्नी कर दी। एक दिन मैं आराधना से मिलने उसके घर गई। वहाँ सरोजा काम कर रही थी। मुझे देखते ही चहक कर बोली,’’दीदी इसी बिल्डिंग में मुझे इतना काम मिल गया है कि मैं अकेली कर नहीं सकती। जितना शरीर सह ले उतना ही करती हूँ। मुझे आपसे जरुरी बात करनी थी। बात ये है कि राजरानी रोज मेरे पास आकर कहती है कि मैं अपना प्लाट उसे बेच दूं। वो बदले में मुझे इसी लोकेशन का कहीं और प्लाट खरीदवा देगी, साथ में पैसा भी देगी। पर मैंने सोचा पहले आप से बात कर लूं। आप ले लोगी तो आपका जोड़ा बन जायेगा। हमने तो रहना ही है। यहाँ नहीं रहे तो कहीं और दस बीस घर छोड़ कर रह लेंगे। घर के बदले घर और कुछ पैसे भी मिल जायेंगे। मैंने कहा,’’वो प्लॉट तो राजरानी ने मुझसे खरीद लिया।’’ सरोजा ने पूछा,’’कितने का और कब?’’ मैने बताया,’’पिछले महीने ही तो, पचास हजार का।’’सुनते ही सरोजा को जोर का झटका लगा। वो बोली,’’लो कर लो बात, रोड का डेढ़ लाख का रेट है। और राजरानी का तो जोड़ा रोड का बन रहा था वो तो आपको बाजार भाव से भी फालतू देती।’’ अब तो मैं अपना घर नहीं बदलूंगी। वो तो खुशी खुशी अपने काम में लग गई। और मैं तो अपने को ठगा सा महसूस कर रही थी। आराधना मुझे डांटे जा रही थी कि यहाँ आकर रेट नहीं पता कर सकती थी। मैंने कहा,’’तूं भी तो मेरठ की है। तेरा अर्पाटमैंट भी तो प्रशासन के ड्रा में निकला है। तुझे पता था ये सब! हमने मेरठ में कभी ऐसा सुना ही नहीं था। हमारे वाद विवाद के बाद मैंने अपने मन को समझाया कि मुझे तो मुंह मांगी कीमत मिली है। राजरानी तो व्यापारी है। मुझे बेचने से पहले सोचना चाहिए था। और मैंने किसी तरह मन को समझा ही लिया। राजरानी के दोनो बेटे मेरे स्कूल में पढ़ते थे। पहले उसका परचून का काम था और ऊपर बना कर उसमें मो रहते थे मेरा प्लॉट खरीदने से अब उनका दोनो प्लॉट मिलाकर परचून और जनरल स्टोर की दुकान थी। मेरे महीने का घर का सामान उनकी दुकान से आता था। बेसमैंट से लेकर चार मंजिल उन्होंने बना लिया था। ऊपर रिहाइश थी। मैं सामान की लिस्ट लेकर जाती। राजरानी का पति उसे बुलाता, वह तुरंत आकर मुझे घर ले जाती। मेरा स्वागत सत्कार करती। सरोजा के बेटे परशोतम के लिए वह दुखी होती थी। वो बताती कि सरोजा तो सुबह काम पर चली जाती है। दोपहर बाद आती है। वो पड़ोसी होने के नाते उसके घर का, बेटे का ध्यान रखती है। मेरा सामान मेरे घर पहुंच जाता और बिल मेरे पास जिस पर टोटल पर काफी रियायत दी होती थी। मैं पेमैंट करती। हर बार मुझे एक बात राजरानी जरुर कहती कि सरोजा को आप समझाइये न। अपना प्लॉट हमें दे दे। इसकी पसंद का घर बनवा कर देंगे, साथ में कैश भी देंगे। हर महीने मुझे यहाँ आना अच्छा लगता था। सर्दी में राजरानी के साथ छत पर धूप में बैठती। पीछे के घरों में झुग्गी से आये प्रवासी लोग एक एक ईंट लगवा रहें हैं या लगा कर घर को ऊंचे से ऊंचा बना रहे होते थे। सैंपल के मकान जैसा किसी ने भी घर नहीं बनाया क्योंकि उस तरह बनाने में धूप हवा के लिए जगह छोड़नी पड़ती है। पर कोई भी अपनी एक इंच भी जगह छोड़ने को तैयार नहीं था। सबने सौ प्रतिशत एरिया कवर किया। सरोजा का घर फेसिंग पार्क है। अगर राजरानी उसे खरीद लेती है। तो रैजिडेंस में सौ प्रतिशत कवर होने पर भी उसके घर में क्रॉस वैंटिलेशन हो जाता और पार्क वो पार्किंग के लिए इस्तेमाल करती। क्रमशः
Monday, 18 November 2019
अपने घर का सपना, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला!! भाग 1 नीलम भागी Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part Neelam Bhagi
कुछ साल पहले मेरे एक छात्र के पापा महेश मेरे पास आये और बोले,’’दीदी हमारी फैक्टरी के पीछे दिल्ली शुरु होता है। वहाँ झोपड़ पटृी वालों को नामालूम कौन सी जगह से, उनकी झोपड़ियां हटा कर, उन्हें ढाई हजार रुपए में झुग्गी के बदले पच्चीस स्क्वायर मीटर का प्लॉट सरकार ने दिया है। मैंने भी साइड रोड पर उनसे दस हजार रु में एक प्लॉट खरीद लिया है। मेन रोड के प्लॉट तो सभी बिक चुके हैं। आपके यहाँ से तो पैदल का रास्ता है। आप भी ले लो न। और सुनने में तो ये भी आ रहा है कि प्लॉट ज्यादातर दिल्ली के होलसेल मार्किट के व्यापारियों ने खरीदे हैं। इसलिए यहाँ होलसेल मार्किट बनेगी। महेश की बात मेरे दिमाग में घुस गई। छुट्टी के बाद मैं वहाँ गई। रास्ते में महेश को भी बुला लिया। वहाँ जाकर देखती हूं कि दूर तक छोटे छोटे प्लॉट नज़र आ रहे थे। हर प्लॉट में टॉयलेट सीट लगी हुई थी। एक प्लॉट पर प्राधिकरण ने दो मंजिला सैंपल मकान बना कर दिया था। जिसमें हवा, धूप का पूरा ध्यान रक्खा गया था। जो भी मकान बनाना चाहे उसकी कॉपी कर ले। इस कॉलौनी के बराबर में सैल्फ फाइनैंस के तीन बॉलकोनी वाले मल्टी स्टोरी अर्पाटमैंट थे। दो आदमी मैले कपड़ों में, जिनकी आंखों में दोपहर को भी कीचड़ था, वहाँ घूम रहे थे। मुझे देख कर मेरे पास आकर बोले,’’ आपको प्लॉट खरीदना है?’’ मैने कहा,’’हां।’’ उसने जवाब दिया,’’मेरा ले लो, चौदह हजार में।’’ महेश मुझसे बोले,’’दीदी टोकन मनी दे दो। सोचना घर जाकर।’’पर्स मैं लेकर नहीं गई थी। मुटठी में बीस रुपए थे। मैंने उसके हाथ में ब्याना दिया, वो बोला,’’कुछ और दो न।’’ मैंने कहा,’’ देखो तुमने जो मांगा, हमने मोल भाव नहीं किया। जुबान दे दी बस। कल फाइल ले आना और लिखा पढ़ी करके पूरी पेमेंट ले लेना।’’वो बोला,’’ कुछ तो और दो न।’’ मैंने अपनी चोटी से दो बाल तोड़ कर दे दिए। अगले दिन प्लॉट हमारा हो गया। मैंने महेश से पूछा,’’इनसान का अपने घर का सपना होता है। दिल्ली में इनडिपैंडैंट घर बनाने का इनको मौका मिला है, और ये बेच रहें हैं।’’ रमेश ने जवाब दिया,’’कुछ लोग ऐसे भी हैं उन्होने रोड का एक प्लाट बेच कर, अंदर के दो प्लाट ले लिए हैं।’’ मैंने पूछा,’’जो बेच रहें हैं उन्हें नहीं घर चाहिए।’’ रमेश बोले,’’ ये वो लोग हैं। जो मिलजुल के कहीं और झुग्गी डाल लेंगे और इन पैसों की दारु पी लेंगे। किस्मत में होगा तो फिर इन्हें हटाया जायेगा और बसाया जायेगा। दीदी आप कोशिश करके अपने पीछे वाला भी खरीद लो, समझ लो आपका पचास मीटर रोड पर हो जायेगा।’’कुछ दिन बाद पता चला कि मेरे पीछे के प्लॉट पर घर बन रहा है। मॅैं ये सोच कर आई कि उनसे बेचने की बात करुंगी। आकर क्या देखतीं हूं! एक महिला और उसका चौदहा पंद्रहा साल का बेटा था। महिला सरोजा देखते ही बोली,’’दीदी घरों में काम हो तो बताना। घर के पास ही अर्पाटमेंट में काम मिल जाय तो मुझे परशोतम की चिंता नहीं रहेगी। मैंने देखा उसका बेटा नेत्रहीन था। मेरी सहेली अराधना दो दिन पहले ही वहाँ शिफ्ट हुई थी। मैंने दोनो को मिलवा दिया। अराधना तो बहुत ही खुश हुई। उसे अपना मकान बहुत लकी लगा क्योंकि उसे आते ही बाई मिल गई। और मेरा इरादा बदल गया।दो चार महीने बाद दो महिलायें एक बच्चे का एडमीशन करवाने मेरे पास आईं। उसने मेरे प्लॉट के बराबर का पता लिखवाया। मैंने कहा कि आपके बराबर का प्लॉट मेरा है। वो तुरंत बोली,’’बेचना है?’’ मैं मेरठ से शिफ्ट हुई थी। वहाँ प्रोपर्टी के रेट बहुत धीरे बढ़ते थे। मैंने बहुत सोच कर कहा कि जब पचास हजार का होगा तब निकाल दूंगी। वो महिला मुस्कुराकर चल दी। क्रमशः
Friday, 15 November 2019
भक्तिकालीन साहित्य का इतिहास (पूर्वोत्तर भारत का भक्ति साहित्य) नीलम भागी
अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा आठ राज्यों से मिलकर बना क्षेत्र भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र कहलाता है। आसाम राज्य में पहले मणिपुर को छोड़ कर बंगलादेेश के पूर्व में स्थित भारत का संपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित था। इसलिये इसकी सीमाओं से सटे राज्यों में भी यहाँ के भक्ति साहित्य का प्र्रभाव है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान को प्रागज्योतिच्ह के नाम से जाना जाता हे। महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने यहाँ की उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था। श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार उषा ने अपनी सखी चित्रलेखा द्वारा अनिरुद्ध का अपहरण करवाया था। यह बात यहाँ की दंतकथाओं में भी सुनने में आती है कि अनिरुद्ध पर मोहित होकर उषा ने ही उसका अपहरण कर लिया था। इस घटना को यहाँ कुमार हरण के नाम से जाना जाता है। असम सात बहनों तक जाने का प्रवेश द्वार है।
पूर्वोतर भक्ति साहित्य को जानने के लिये असम साहित्य को पाँच कालों में विभक्त किया जा सकता है।
1. वैष्णवर्पूव काल 1200-1449 ई. असमिया साहित्यिक अभिरुचियों का प्रर्दशन 13वीं शताब्दी में कंदलि के द्रोण पर्व (महाभारत) तथा कंदलि के रामायण से आरम्भ हुआ। उपलब्ध सामग्री के अनुसार हेम सरस्वती और हरिवर विप्र असमिया के प्रारंभिेक कवि माने जा सकते हैं। हेम सरस्वती का प्रह्लादचरित्र असमिया का प्रथम लिखित ग्रंथ माना जाता है। ये दोनो कवि कमतातुर पश्चिमी कामरुप के शासक दुर्लभनारायण के आश्रित थे। एक तीसरे कविरत्न सरस्वती भी थे। जिन्होंने ’जयद्रथवध’ लिखा। परंतु वैष्णवर्पूवकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि माधव कन्दली हुए, जिन्होंने महामाणिक्य के आश्रय में रहकर अपनी रचनाएं कीं। माधव कन्दली के रामायण के अनुवाद को विशेष ख्याति प्राप्त हुई। संस्कृत शब्द समूह को असमिया में रुपांतरित करना कवि की विशेष कला थी। लोकमानस में उस समय तंत्र मंत्र मनसापूजा आदि के विधान यहाँ की इन रचनाओं में अधिक चर्चित हुए।
2. वैष्णवकाल 1400-1650 ई विष्णु से संबद्ध कुछ देवताओं को इस काल की पूर्ववर्ती रचनाओं को महत्व दिया गया था। परंतु आगे चल कर विष्णु की पूजा की विशेष रुप से प्रतिष्ठा हुई। स्थिति के इस परिवतर््ान में असमिया के महान कवि और र्धमसुधारक शंकरदेव(1449-1568)ई. का योग सबसे अधिक था। शंकरदेव की अधिकांश रचनाएं भागवत पुराण पर आधारित हैं। उनके मत को भागवती र्धम कहा जाता है। शंकरदेव की रचनाओं ने असमिया जनजीवन और संस्कृति को विशिष्टता में ढालने का श्रेय प्राप्त किया है। उनके साहित्य के कारण कुछ समीक्षक उनके व्यक्तित्व को केवल कवि के रुप में ही सीमित नहीं करना चाहते। वे मूलतः उन्हें धार्मिक सुधारक के रुप में मानते हैं। श्ंाकरदेव की भक्ति के मुख्य आश्रय थे श्रीकृष्ण। उनकी लगभग तीस रचनाएं हैं। जिनमें से ’कीर्तनघोष’ उनकी सर्वोत्कृष्ट कृति है। असमिया साहित्य के प्रसिद्ध नाट्यरुप ’अंकिया नाटक’ के प्रारंभकर्ता भी शंकरदेव ही हैं। उनके नाटकों में गद्य और पद्य का बराबर मिश्रण मिलता है। इन नाटकों की भाषा पर मैथिली का प्रभाव है। ’अंकिया नाटक’ के पद्यांश को ’वरगीत’ कहा जाता है, जिसकी भाषा प्रमुखतः ब्रजबुलि है।
इस युग के दूसरे महत्वपूर्ण कवि माधवदेव हुए जो शंकरदेव के शिष्य हैं। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी था। वे कवि होने के साथ साथ संस्कृत के विद्वान, नाटकार, संगीतकार और धर्मप्रचारक भी थे। ’नामघोषा इनकी विशिष्ट कृति है। इस युग में अनंत कंदली, श्रीधर कंदली तथा भट्टदेव विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं।
3. गद्य बुरंजी काल 1650-1926 ई अहोम राजाओं के असम में स्थापित हो जाने पर उनके आश्रय में रचित साहित्य की प्रेरक प्रर्वती धार्मिक न होकर लौकिक हो गई। इस में कवियों ने आश्रयदाता राजाओं का यशवर्धन किया। बहुमुखी साहित्य सर्जन तो हुआ जैसे ज्योतिष, गणित, चिकित्सा, विज्ञान संबंधी ग्रंथों का सृजन हुआ। कला तथा नृत्य विषयक पुस्तके भी लिखी गई। राजाश्रय होने के कारण इसमें र्धमनिरपेक्षिता की प्रवृति स्पष्ट रुप से देखी जा सकती है। दो सूफी काव्यों कुतुबन की ’मृगावती’ तथा मंझन की ’मधुमालती’ के कथानको के आधार पर दो असमिया काव्य लिखे गये। यह युग गद्य के विकास का रहा। 17 बार यहाँ मुगलों ने आक्रमण किया। केवल दो वर्ष तक राज्य कर पाये। बाद में ब्रिटिश हकूमत का प्रभाव पड़ा। भक्ति साहित्य की रचना कम होती गई।
4. आधुनिक काल 1026-1947 ई इसे अंग्रेजी शासन के साथ जोड़ा जा सकता है। यहाँ 1826 ई. अंग्रेजी शासन के प्रारम्भ की तिथि है। 1838 ई. से ही विदेशी मिशनरियों ने सामाजिक विषमता को ध्यान में रखकर व्यवस्थित ढंग से अपना कार्य आरम्भ किया। जनता में र्धमप्रचार का माध्यम असमिया को ही बनाया। अंगेजी शासन के युग में अंग्रेजी और यूरोपीय साहित्य के अध्ययन मनन से असमिया के लेखक प्रभावित हुए। कुछ पाश्चात्य आर्दश बंगला के माध्यम से भी अपनाये गये।
5. स्वाधीनतोत्तर काल 1947 अंग्रेजी कवियों से मुख्यतः प्रेरित नये असमिया लेखकों को मुख्यतः प्रेरणा मिली।
धार्मिक अवसरों पर गाये जाने वाले अलिखित और अज्ञात लेखकों द्वारा प्रस्तुत वस्तुतः अनेकानेक लोकगीत मिलते हैं। जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक परांपरा से सुरक्षित है इसमें भक्ति, आचारों के बीच का मौखिक साहित्य या जो जनप्रिय लोकगीतों और लोककथाओं का है या नीतिवचनों तथा मंत्रों सम्बध है। बहुत प्राचीन काल से तंत्र मंत्र की परंपरा रही है। कामरुप से घनिष्ठ संबंध होने से प्रदेश की तांत्रिक परंपरा को देखते हुए काफी स्वाभाविक जान पड़ता है। ये साहित्य बहुत बाद में लीपिबद्ध हुआ है। जो असम से अलग हुए या जिनसे असम की सीमा लगी है। उनमें असम भक्ति साहित्य के प्रभाव की झलक मिलती है।
मेघालय अर्थात बादलों का घर 21 जनवरी 1972 को पूर्णराज्य बना। उत्तर पूर्वी सीमाएं असम से और दक्षिणी पश्चिमी सीमाएं बंगलादेश से मिलने के कारण भक्ति साहित्य असम और बंगाल जैसा है। वर्षा अधिक होने के कारण सूर्यदेवता के सम्मान में गारो आदिवासी अक्तूबर नवम्बर में ’वांगला’ नामक त्योहार मनाते हैं। यह त्यौहार लगभग एक हफ्ते तक मनाया जाता है। मौखिक पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा से सूर्य की आराधना की जाती है।
मणिपुर साहित्य में वैष्णव भक्ति तथा मणिपुर की कला और संस्कृति झलकती है। दंत कथा के अनुसार रुक्मणी को भगवान कृष्ण आम भाषा में कहते हैं, भगा कर ले गये थे। ज्यादातर इसी से सम्बंधित लोक गीत, लोककथा, लोकगाथा, लोकनाट्य, जनश्रुतियां पहेलियां आदि पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती रहती हैं। आततायियों के कई आक्रमण झेल कर भी मणिपुर अपनी अस्मिता, अपनी पहचान एवं सांस्कृतिक मूल्य सुरक्षित रख पाया है। राधा कृष्ण के मणिपुरी नृत्य विश्व प्रसिद्ध हैं। भावभंगिमाओं के साथ पोशाक बहुत आर्कषक होती है। बांग्ला लिपि में लिखी जाने वाली मणिपुरी को विष्णुप्रिया कहते हैं।
अरुणाचल प्रदेश का गठन 20 फरवरी 1987 को हुआ था। अरुणाचल का हिन्दी अर्थ उगते सूर्य का पर्वत है। प्रदेश की सीमाएं दक्षिण में असम, दक्षिण पूर्व में नागालैंड, पूर्व में म्यांमार, पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत से मिलती हैं। अलग अलग समुदायों के अलग अलग त्यौहार हैं। ज्यादाजर त्यौहारों में पशुओं की बलि चढ़ाने की पुरानी परंपरा है। मौखिक परंपरा के रुप में थोड़ा सा साहित्य है, वह भी बंगला, असमिया की सीमा लगने के कारण।
फरवरी 1987 को यह भारत का 23वां राज्य बना। ये असम का एक जिला था। इस समय यहाँ इसाई धर्म को ही मानते हैं।
नागालैंड का गठन 1 दिसम्बर 1963 को 16वें राज्य के रुप में हुआ था। नागालैंड की सीमा पश्चिम में असम से, उत्तर में अरुणाचल से, पूर्व में र्बमा से और दक्षिण में मणिपुर से मिलती है। 16 जनजातियां हैं । अंग्रेजी राज्य भाषा है। ईसाई धर्म है। बाकि हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन असम की तरह ही है।
16 मई 1975 में सिक्किम औपचारिक रुप से भारतीय गणराज्य का 22वां प्रदेश बना और सिक्किम में राजशाही का अंत हुआ। सिक्किम भारत के पूर्वोतर भाग में अंगूठे के आकार का पर्वतीय राज्य है। पश्चिम में नेपाल, उत्तर तथा पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तथा दक्षिण पूर्व में भूटान से लगा हुआ है। भारत का पश्चिम बंगाल राज्य इसके दक्षिण में है। हिन्दू तथा बज्रयान बौद्ध धर्म सिक्किम के प्रमुख धर्म हैं। इसके उत्तरी पश्चिम भाग में नेपाल की सीमा पर है।
त्रिपुरा की सीमाएं मिजोरम, असम, बांग्लादेश से लगी हुई हैं। उत्तर, दक्षिण तथा पश्चिम में यह बांग्लादेश से घिरा हुआ है। 15 अक्तूबर 1949 को इसे भारतीय संघ में विलय किया गया। त्रिपुरा की सभ्यता के साथ यहां मनासा मंगल या कीर्तन आदि प्रसिद्ध नृत्य तथा संगीत हैं। कई पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित हैं। लगभग सभी पूर्वोतर भारत में बीहू के साथ, भक्तिभाव से दुर्गापूजा मनाते हैं।
ब्यालीस साल की लड़की, विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 17 नीलम भागी
अगले दिन कात्या
मुले ने मुझसे पूछा कि मेरे परिवार में कितने लोग रहते है? मैंने बताया कि मेरी माँ, दो भाई उनकी पत्नियाँ, बच्चे, मैं मेरी बेटी।
बेटी तो अब बाहर आ गई है। इसकी शादी होगी। इतने लोग रहते हैं और खाना एक जगह बनता है।
मेरी बहनें भी पैदल दूरी पर ही रहती हैं| कोई भी किसी के
घर कभी भी आ जा सकता है| ये सुनकर वो बोली,” मैं तो बूढ़ी होने पर जर्मनी जाकर ओल्डेज होम
चली जाउंगी।“ फिर उसने मुझसे पूछा कि
अगर वह बूढ़ी होने पर हमारे घर में रहना चाहेगी तो मैं उसे रख लूंगी। मैंने कहाकि
तुम अभी चलो रहने, हमारे घर में सब
तुम्हें देख कर बहुत खुश होंगे। पर तुम हमारे घर में रह नहीं पाओगी। उसने पूछा,’’क्यों?’’ मैंने कहाकि मेरे घर में सब कुछ सब की सुविधा के अनुसार
चलता है| मेरी भाभियां अघ्यापिकाएं हैं और भाई व्यापार
करते हैं। भाभियां सुबह पढ़ाने जाती है, दोपहर में आती
हैं। दुकान भी पैदल की दूरी पर है| भाई सुबह ग्यारह बजे जाते हैं, रात को देर से आते हैं। दोनों बारी बारी
से घर पर आराम भी कर जाते हैं| सब की सुविधा के
अनुसार परिवार चलता है। कोई ब्रेकफास्ट, लंच डिनर टाइम फिक्स नहीं है। जिन दिनों ज्यादा काम होता है तो मैं भी मदद के
लिए दुकान चली जाती हूँ| खाना हम खुद
बनाते हैं| बाकि कामो के लिए दो बाईं आती हैं| वो बड़ी हैरान
होकर सब सुनती रही| काफी देर चुप रह कर
विचारने के बाद प्रश्न पूछने के अंदाज में एक शब्द बोली,”स्पेस |” मैंने भी पूछा,”तुम्हारे कहने का मतलब, स्पेस यानि मनमर्जी से है|” जवाब में बोली,”हाँ हाँ|” मैंने कहा कि कोई रोकटोक नहीं, पूरी मनमर्जी| अम्मा से सब
बतियाते हैं| जब तक घर में सब आ नहीं
जाते, अम्मा सोती नहीं हैं| अभी मेरे लौटने
में एक महीना था। उसे मेरा इण्डिया जाये, बिना वीजा बढ़वाने की चिंता सताने लगी और उस कोशिश में वो लग गई। अचानक मेरी
छोटी बहन को ऑपरेशन की डेट मिल गई । उसके तीन साल के बेटे ने जिद पकड़ ली, नीनो मासी के साथ रहेगा यानि मेरे साथ। मुझे
तुरंत लौटना था। कल की फ्लाइट थी। रात वो मुझे बाहर डिनर के लिए ले कर गई| मैं हरी साड़ी, जिसका काला बारीक
बॉर्डर था काले ब्लाउज के साथ मैं पहने
थी। उसने मेरी तस्वीर ली। जिसे मैं हमेशा अपनी प्रोफाइल में लगाती हूं। वो बहुत
उदास थी| मैंने उसे अपनी सबसे पसंद की साड़ी दी और जल्दी
लौटने का वादा किया। बेटी को मुझे अकेले भेजने की चिंता सता रही थी पर मेरे तो ज़हन
में भी नहीं था कि मुझे क्या तकलीफ थी? जब मैं यहां आ
रही थी उस समय मेरी हालत देख, बेटी इण्डिया से
लेने मुझे वो खुद आई थी। अब मैं ठीक महसूस कर रही थी। मैं कात्या मुले से जल्दी
लौटने का वादा करके दुबई एयरपोर्ट गई। दस बजे की फ्लाइट, दो बजे चली । न जाने कितने गेट नम्बर बदले| जिसके कारण मैंने पूरा दुबई एअरर्पोट नाप लिया।
बेटी को मैं फोन पर बताती जा रही थी। मेरे अच्छे स्वास्थ्य में कात्या मुले का
सहयोग, भगवान के बराबर था। उड़ान से पहले मैंने उसे फोन
किया| उसने जवाब में यही कहा कि जल्दी लौटना। मैंने उससे
लौटने का वादा किया। उसकी याद और अच्छा स्वास्थ्य लेकर मैं लौटी। समाप्त
Monday, 11 November 2019
अनोखा डिनर !विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 16 नीलम भागी
सुबह उसने कुत्ता घुमाते समय मुझे बताया कि डिनर आज हम उसके
घर पर करेंगे। दो डिश उसकी किचन में मुझे बनानी है। उसकी फ्रैंच सहेली एंजिलक्यू
पहले आयेगी, दो डिश वो
बनायेगी, दो कात्या मुले बनायेगी। उसका
पति बाद में ऑफिस से आयेगा| एंजिलक्यू के आने पर हम तीनों किचन में गये। मैंने दाल मक्खनी और पालक पनीर बनाया। इतने से काम में
दोनों ने मेरी मदद की| एंजिलक्यू तो छौंक की ही खूशबू को ही लंबी लंबी सांसो से
सूंघ सूंघ कर खुश होती रही। कात्या मुले ने मैश पोटैटो बनाए जो बहुत आसान थे| उसने
उबले आलू को कदृदूकस कर, खौलते दूध में
डाला उसमें हल्का नमक और नटमैग पाउडर डाला और आँच बंद कर दी। खाने के समय वह एकदम
सॉलिड हो गया और कद्दु का सूप बनाया। एंजिलक्यू की दोनो नॉनवेज डिश थीं। रोटी चावल
की जगह उबले आलू और जर्मन ब्रेड थी| मैं तैयार होने आ गई। बॉडर वाली सिल्क साड़ी
पहन कर जब मैं गई, दोनों बहुत खुश
हुईं, एंजिलक्यू इंगलिश नहीं जानतीं
थीं। उन्होंने मेरे लिए फ्रेंच में कहा कि ये डिनर क्वीन है| ये काम नहीं करेगी।
मैंने कात्या मुले से कहाकि यह हमारी गैस्ट है, तुम इससे ही बात करो। उसने मुझे दस बार धन्यवाद किया। इतने
में बेटी भी आ गई। कुछ ही देर में एंजिलक्यू के पति भी आ गये। कात्या मुले ने सबका
परिचय करवाया। डिनर क्वीन को छोड़ कर सबने लॉन में ही खाना लगाने में मदद की। इण्डियन, र्जमन और फैंच खाने की तस्वीरें ली गई। मेरे
परिचय में कात्या मुले ने कहा,” नीलम इण्डिया से है| ये सिग्रेट, शराब नहीं पीती है, न ही नॉनवेज खाती है। उन्होंने बड़े हैरान होकर मुझे देखा।
मेरी साड़ी की खूब तारीफ की। डिनर के बाद सबने मिलकर बर्तन धोये, किचन साफ की, बचे खाने को फ्रिज में पैक किया।
खाने की बर्बादी बिल्कुल भी नही| मैंने कात्या से इस बात की तारीफ़ की तो धन्यवाद
करके उसने बताया कि उसकी मां बताती हैं कि विश्वयुद्ध के समय एक आलू पर लोग गुजारा
करते थे| बचपन से ही फ़ूड वेस्ट करने की आदत नहीं है| और बाय करके सब अपने अपने घर चल दिये। बेटी थोड़ी
फैंच जानती है। उसने बताया कि दस मिनट तक आपकी साड़ी और सब्जी, दाल पर चर्चा चली। मुझे कात्या मुले के मैश
पोटैटो, कद्दू के गाड़े सूप के साथ
बहुत अच्छे लगे। बेटी ने बताया कि नॉनवेज भी बहुत स्वाद था। मैं इन दोनो महिलाओं से
बहुत प्रभावित थी। फिटनैस भी गज़ब, आत्मनिर्भर,
जो भी पकाती वो लजी़ज होता। फ्रेंच एंजिलक्यू
के पति से तो और भी ज्यादा क्यों कि वह ऑफिस से आया था पर आते ही सबके साथ काम पर
लग गया| अब मेरे परिवार में मैश पोटैटो
बेबी फूड बन गया है।क्रमश:
Saturday, 9 November 2019
शादी के लिये परफैक्ट मैन !!विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 15 नीलम भागी
उस दिन वो बहुत सुंदर लग रही थी| वह बोली,” चेंज करके आती
है।“ अब आते ही
उसने मुझसे ही प्रश्न किया,” क्या मुझे शादी के लिये परफैक्ट मैन मिल
जायेगा?” मैं उसके परफैक्ट मैंन की परिभाषा नहीं जानती थी। मैं बोली,’’हमारे यहाँ तो एक ही परफैक्ट मैन रहे हैं, वो हैं श्री कृष्ण। जिन लड़कियों को परिवार पति
नहीं उपलब्ध करा सकता, वे श्रीकृष्ण को अपना
प्रिय मान कर अपने को उसकी गोपियाँ समझती हैं, जो उन्हें प्रियतम समझती हैं वे अपने को राधा मान लेती हैं।
जो भक्ति में होती है वह मीरा बन जाती है। अध्यात्म में ही आनंद की अनुभूति शायद
उन्हें होती है। भक्ति में लीन होने के कारण
वे कोई तर्क नहीं करतीं| इसे अपनी नियति
मान लेती हैं। तुम जैसी लड़की जिसे घड़ने में किसी का योगदान नहीं है। जो कइयों को
रोजगार देती है। तुम्हें तो परिवार बढ़ाना ही चाहिए। ये सुनते ही वह मेरा हाथ पकड़
कर, अपनी लाइब्रेरी में ले गई| वहां इंग्लिश में गीता देख
कर, मेरे मुहं से निकला,”तुम भी गीता पढ़ती हो!!” उसने गीता को उठाया उसके कवर पर हाथ फेरते हुए
बोली,”जब भी इसे पढ़ा, इसमें कुछ नया ही पाया है" फिर मुझसे पूछा,” तुम्हारे प्रफक्ट मैन का मतलब, लार्ड कृष्णा से है न!" मैं
हंस पड़ी| अब वह सीढ़ियाँ चढ़ाती
मुझे ऊपर ले गई। और बोली,’’ यहाँ मैं आज तक
किसी को नहीं लाई। और पहला कमरा उसने अपनी कल्पना में होने वाले बच्चे के लिये
तैयार कर रखा था। नवजात बच्चा क्या क्या पहनेगा, उसकी पोशाके मुझे दिखाई। सूती टोपियाँ, दस्ताने सबके साथ क्या क्या और किसलिये
पहनायेगी| ये भी बताती भी जा रही थी। पालना, खिलोने बच्चे के उपयोग की ऐसी कौन सी
चीज थी जो उसने वहां नहीं रखीं थी| उसका वात्सल्य भाव चेहरे से टपक रहा था और मेरा
दिल उसे देख कर रो रहा था। मैने कहा कि तुम अब परफैक्ट मैन के थोड़े पोइंट कम कर दो,
बच्चे के लिये शादी करो| पहले उसे पालने का सुख उठाना। फिर उसे कुछ
बनाना। अच्छा इनसान बनेगा तो खुश होना। फिर मैं हंस कर बोली कि तुम्हारे मन का
नहीं बना तो तुम्हें कोसने का काम मिल जायेगा। तुम बहुत व्यस्त हो जाओगी वैसे व्यस्त तो आप अब भी हो। ऐसे ही
उम्र निकल जाती है। वहीं उसका बैडरूम था। वहां वह मुझे नहीं लेकर गई| हम नीचे आये शुभरात्री किया। आई तो बेटी को
इंतजार करते पाया। कात्या मुले के बच्चे की तैयारी को छोड़ कर, सब मैंने उसे सुनाया और बेटी से कहा कि मैं
तेरे लिए लड़का देखना शुरू कर रहीं हूं। अगर उसकी कोई पसंद है तो मुझे बताए। वो
बोली,’’अच्छा अब सो जाओ और मुझे
भी सोने दो।’’ ऐसा कह कर वो सो गई| आज मुझे लगा कि महिला चाहे घरेलू हो या करियर वूमन, उसके मन से माँ बनने की ललक को कोई नहीं निकाल सकता। और मुझे
अपना मध्यम वर्गीय परिवेश याद आने लगा, जहाँ कीमती
वस्तुएं माँ अपनी बेटी की शादी के लिए संजोकर रखती है। लाडली बड़ी होती जाती है और
परिवार की उसके हाथ पीले करने की चिंता बढ़ती जाती है। क्रमश:
Tuesday, 5 November 2019
मेरे दिल को तुम भा गए, विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 14 नीलम भागी
धीरे धीरे मैं संभली| नया काम पकड़ा और अपने को
काम में और पढ़ने में लगाया| एक इवेंट मैनेजमैंट कंपनी के साथ मैं यहाँ आई थी। इस
देश ने मुझे मोह लिया लौटी और अधूरी पढ़ाई पूरी की। फिर यहाँ आ गई। तीन साल मैंने
गधे की तरह काम किया। मेरी जिन्दगी में फिर डैरिक आया। वो बहुत हैण्डसम था| मेेेरे दिल को भा गया। हम लिव इन में रहने लगे। मैंने उसे कह दिया था कि यदि तुम मुझे सूट करोगे, तब मैं शादी करूंगी। चार साल बाद मुझे लगा कि
इसका आई. क्यू कम है। ये मेरी रफ्तार से नहीं चल पा रहा है। हम अलग हो गये क्यूंकि
मैं बेवकूफ के साथ जीवन नही बीता सकती| अब मेरा टारगेट इस विला में रहना था। इसका
रैंट बहुत ज्यादा है। अपनी मेहनत और लगन से चार साल बाद मैं इसमें रहने आई। इसके
बाद सायमन से मेरी दोस्ती हुई| वह मेरे साथ लिव इन में आया। हमारा एक सा काम था दोनों
मिल कर करते पर तीसरे साल वो मुझसे अलग हो गया। मैंने पूछा,’’क्यों ?’’कात्या मूले ने बड़ी डूबी हुई आवाज में जवाब दिया,’’जाते
हुए उसने बस यही कहा कि वह अपनी गर्लफैंड के साथ रहने आया था पर यहाँ लग
रहा था कि वह होस्टल की र्वाडन के सुपरविजन में हो।’’ वो बड़ी दुखी होकर बोली कि उसने सोचा था कि बत्तीस साल की
उम्र तक वह शादी कर लेगी या ज्यादा से ज्यादा पैंतीस साल बस पर... मैंने उठ कर
उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा कि जिसकी किस्मत अच्छी होगी, उसे तूं मिलेगी। वो मुस्कुरा दी। शुभरात्री कर हम चल दिये।
आते ही बेटी ने टी.वी. बंद कर सारा किस्सा सुना। सुनकर वह भी गम्भीर हो गई। और
कात्या मूले के लिए दुखी होकर बोली,”मां इसकी शादी कैसे होगी? गुण अवगुण तो सभी
में होते हैं| मैंने बेटी से कहाकि इन रिश्तों में न तो अधिकार है, न हक है, न ही सामाजिक भय, बंधन और न किसी प्रकार की वचन बद्धता| जब तक अच्छा लगा रहे, ऊब होने पर कमियां दिखनी शुरू फिर तूं अपने
रास्ते मैं अपने। फिर मानसिक भटकन बेहतर की तलाश में। सुनकर बेटी बोली कि इसका
मतलब तो अरेंज मैरिज करनी चाहिए। मैं बोली,’’एक उच्चशिक्षित, आत्मनिर्भर इनसान पर अपनी इच्छा थोपना, मैं उचित नहीं समझती। लेकिन लिव इन के
पक्ष में, मैं अपने देश की सामाजिक व्यवस्था के कारण बिल्कुल नहीं हूं। अच्छा लगा
जब बेटी ने मेरे सर्मथन में सिर हिलाया। अब मैं अगले दिन का बेसब्री से इंतजार करने
लगी। आज कुत्ता घूमाने गए, इधर उधर की बाते
हीं की। वो भी जल्दी फारिग़ हो गया। हम लौट आये। अब शाम का इंतजार। शाम को वो बाहर
से आई। मैं र्गाडन में लेटी पढ़ रही थी। उसे ले जाना, छोड़ना शायद क्लांइंट का था। इसलिये मुझे उसका आना जाना पता
नहीं चला। मैं उसे देखते ही खिल गई। उसने पूछा कि उसका पर्स कितने का होगा। हमेशा
की तरह मै हजारों रूपये बताती वो उतने हजारों दरहम का होता। मेरा अंदाज गलत होता,
वह बहुत खुश होती। मुझे उसे खुश देखना बहुत
अच्छा लगता था| क्रमशः
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