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Friday 31 December 2021

हरदोई से अल्लीपुर नीलम भागी हरदोई भाग 2

मैं उठने की कोशिश कर रही थी, पर उठा ही नहीं जा रहा था। आस पास कोई दिख नहीं रहा था। देखा कुछ दूरी पर खड़ा एक मुस्लिम परिवार मेरी ओर देख रहा था। उनमें से एक आदमी मेरी ओर दौड़ता आ रहा था। उसने मुझे उठाने में मदद की और बोला,’’थोड़ा चलिए, अगर न चला जाए तो जबरदस्ती नहीं चलना।’’सहनीय र्दद था, मैं चल ली। तेजी से जाते हुए वह बोल गया,’’शुक्र है हड्डी नहीं टूटी।’’भार उठाना न पड़े इसलिए मैंने ज्यादा ही गर्म कपड़े पहन रखे थे। शायद इसलिए हड्डी टूटने से बच गई। गाड़ी भी कुछ ज्यादा समय के लिए रूकी, अक्षय जी भी आ गए। हम प्लेटर्फाम की ओर चल दिए। तीनों वेटिंगरूम भरे हुए थे। बैंचों पर भी हमारे ही लोग थे। एक बैंच पर विनोद बब्बर जी और संजीव सिन्हा बैठे थे। हम भी बैठ गए। एक गाड़ी कुछ साहित्यकारों को लेकर गई हुई थी। बस अड्डा, एयरपोर्ट और रेलवेस्टेशन पर आयोजकों ने व्यवस्थापकों को खड़ा कर रखा था। यहां प्रवीण सर देख रहे थे। उन्होंने कहाकि इस समय ज्यादा प्रतिनिधि हैं। बस पहुंचने वाली है। जब तक सब रिसेप्शन पर पहुंचे बस आ गई।


पहले उन्होंने हमारा सामान रखा। फिर हम बैठे। बस के चलते ही अन्दर भजन शुरू हो गए। समवेत स्वर गाए भजनों को सुनना बहुत अच्छा लग रहा था और बाहर हरदोई धीरे धीरे जाग रहा था। जैसे ही उजाला होने लगा, हमारी बस पक्की सड़क पर चल रही थी। जिसके दोनों ओर पीले सरसों के फूलों से भरे खेत थे। हरा और पीला रंग ही नज़र आ रहा था। कभी आम के बाग आ जाते हैं। बस के दरवाजे़ खिड़कियां बंद होने पर भी अंदर ताज़गी थी। अल्लीपुर हरदोई से 16 कि.मी. दूर था। मेरी तो आंखें बाहर से नहीं हट रहीं थीं। परिसर से 4 कि.मी. पहले से ही स्वागत द्वार बनाया हुआ था। बस #डॉ. राम मनोहर लोहिया महाविद्यालय अल्लीपुर हरदोई  उत्तर प्रदेश पर रूकी। विशाल सुन्दर महाविद्यालय का भवन, जिसके चारों ओर हरियाली!! यानि ऑक्सीजन चैम्बर में महाविद्यालय। परिसर में प्रवेश करते ही मैं हैरान रह गई! प्रांगण जिसमें भारत का आदर्श गांव बनाया हुआ था। उसमें देश भर से भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों के आने से अब वह प्राचीन आदर्श गांव भारत की छवि लग रहा था। मैं अभी खड़ी सोच ही रही थी कि इसे तैयार करने में दो महीने तो लगे ही होंगे। किसी ने मेरे हाथ से लगेज़ लिया और कहा कि पहले आप चाय या कॉफी पीजिये। कुल्हड़ और डिस्पोज़ेबिल दोनों थे। कुल्हड़ से चाय का पहला घूंट भरते ही अपनी पाली हुई गाय गंगा यमुना के दूध की चाय का स्वाद आया। चाय पीने के बाद मैं अलाव के पास बैठ गई।

उससे दर्द को बहुत आराम मिल रहा था। 11 बजे से उदघाटन सत्र था। आठ बजे से नाश्ता लगना था। फीकी मीठी चाय, कॉफी और कुछ खाने को हर समय रहता था। पैकेट बंद नहीं था। सब कुछ वहीं ताज़ा तैयार होता था। भुना चना और गुड़ कभी नहीं हटा। 24 दिसम्बर को जो प्रतिनिधि आए थे। पर्ण कुटी सब उनसे भर गईं थीं। उसमें चारपाई के साथ लाल टेन भी थी। अब मैं बताए कमरे की ओर चल दी। वहां तक पहुंची भी नहीं कि एक हॉल में झांका। प्रो. नीलम राठी ने देखते ही कहा,’’आप उस बीच वाले बैड पर आ जाओ, आपको ठंड भी नहीं लगेगी। सफेद कवर की रजाई और फर्श पर कालीन बिछा था। 12वीं महिला उसमें मैं थी। अब यहां और जगह नहीं थी। सब तैयार भी हो रहीं थीं और बतिया भी रहीं थीं। मैं नाश्ते के लिए आई। तला, भुना, उबला, अंकुरित सब तरह का खाने को था और साथ में धूप का आनन्द। फीकी चाय के साथ मुझे गुड़ खाना बहुत अच्छा लग रहा था। क्रमशः         






Wednesday 29 December 2021

नई दिल्ली से हरदोई भाग 1 नीलम भागी


महामारी के बाद ये मेरी पहली रेलयात्रा है। इस बार अखिल भारतीय साहित्य परिषद का त्रैवार्षिक अधिवेशन, दिनांक 25-26 दिसंबर 2021 को अल्लीपुर, हरदोई, उत्तर प्रदेश में आयोजित किया गया। पंद्रहवां अधिवेशन जबलपुर में था। वहां जाना मेरे लिए अनूठा अनुभव था। ये सोलहवां अधिवेशन कोरोना के कारण एक साल विलंब से हो रहा था और सीमित संख्या में प्रतिनिधि आमंत्रित थे। मैं विज्ञान की छात्रा रही हूं पर यहां से मैं बहुत मोटीवेट होकर लौटती हूं। इन दिनों कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी, कोई परवाह नहीं! कोरोना से जंग जीत चुकी थी। वैक्सीनेशन हो चुका था। हमारे प्रवीण आर्य जी ने दिल्ली से जाने वालों का व्हाटअप ग्रुप बनाया था। जिसमें सबने अपना टिकट पेस्ट कर दिया था। आयोजन के व्यवस्थापकों ने हरदोई रेलवे स्टेशन से अल्लीपुर ले जाने की व्यवस्था कर रखी थी। किसी की गाड़ी रात्रि में 3 बजे भी पहुंचती तो प्रतिनिधि को चिंता करने की जरुरत नहीं थी। उसे अधिवेशन स्थल पर पहुंचाया जाता। मेरा आरक्षण नई दिल्ली से चलने वाली लखनऊ मेल में था। यह रात दस बजे चलती हैं और सुबह 4.45 पर हरदोई पहुंचती है। रेलवे से मैसेज आया था  जिसमें गाड़ी प्लेटर्फाम नम्बर एक से जायेगी। रास्ते में जाम नहीं मिला, मैं 9 बजे स्टेशन पर पहुंच कर साफ सुथरे प्लेटफार्म नम्बर एक की सीट पर बैठ कर, मोबाइल में लग गई। 9.45 पर मैंने देखा कि हमारा कोई भी साथी प्लेटर्फाम पर दिखाई नहीं दे रहा है। एनाउंसमैंट पर ध्यान दिया तो पता चला कि गाड़ी प्लेटफार्म नम्बर 16 से जायेगी। सामान हमेशा मेरे पास कम होता है। सबसे आखिर में यह प्लेटफार्म था। नौएडा से अक्षय कुमार अग्रवाल भी जा रहे थे। उन्हें भी फोन किया ताकि वे पहाड़गंज की ओर से न आएं। अब मैं प्लेटफार्म नंबर 16 की ओर सीढ़ियां चढ़ कर चल दी। गाड़ी  खड़ी थी। मेरी बी 2 डिब्बे में 20 नम्बर लोअर सीट थी। मेरे सामने का यात्री अकेला लग रहा था। दोनों मिडल सीट खाली थीं। अपर और साइड सीट वाले बड़ी तन्मयता से मोबाइल में लगे हुए थे। मैंने सामने वाले से पूछा,’’आपको कहां जाना है?’’उन्होंने जवाब दिया,’’लखनऊ और आपको? मैंने बताया,’’हरदोई।’’अचानक मुझे याद आया कि अक्षय जी का ग्रुप में मैंने पढ़ा था कि आरक्षण लखनऊ तक का हैं, फिर भी मोबाइल से दोबारा पढ़ा और उनसे पूछा कि हमारे एक साथी से आप सीट बदल लेंगे? उन्होंने जवाब दिया कि अगर लोअर सीट होगी तो जरुर, पर हरदोई में तो दूसरी सवारी मुझे उठा देगी। मैंने बताया कि उनका लखनऊ तक का रिर्जवेशन है। मैंने अक्षय जी को फोन कर दिया। वे जैसे ही आये, उसने अक्षय जी पर प्रश्न दागा,’’आपने जाना हरदोई है तो लखनऊ तक का टिकट क्यों कटवाया?’’उन्होंने बताया कि हरदोई तक का वेटिंग में था और लखनऊ तक का कनर्फम था इसलिए। टी.टी. को बताकर वह चला गया। हम भी मोबाइल में लग गए। कोरोना से पहले भी सबके पास मोबाइल होता था पर सोने से पहले आपस में बतियाते थे। लेकिन आज ऐसा लग रहा था कि जैसे सोशल मीडिया का स्वाध्याय चल रहा था।


गाजियाबाद आया। साथ ही एक परिवार आया पति पत्नी और उनकी गोद में बच्चा था। उन्होंने आते ही सामान लगाया और दोनों मिडल सीट खोली, उस पर लेटे और लाइट ऑफ कर दी। खिड़की पर कोरोना के कारण पर्दा नहीं था और ना ही बिस्तर मिलना था। डिब्बे का तापमान अच्छा था। टोपा लगा और मोटी शॉल ओढ़ कर मैं लेट गई।   

   मैं #प्रेरणा शोध संस्थान न्यास, नोएडा द्वारा आयोजित आजादी का अमृत महोत्सव भारतोदय दिनभर अटैंड करके आई थी। इसलिए जल्दी सो गई। 4.30 नींद खुली देखा, अक्षय जी मोबाइल की टार्च से समय सारणी पढ़ रहें हैं। मैंने पूछा,’’अब हरदोई आने वाला है न।’’ वे बोले,’’ पता नहीं कौन सा स्टेशन आ रहा हैं। मैंने उतरने की तैयारी कर ली। गाड़ी रुकते ही मैं सामान लेकर गेट पर और अक्षय जी बोले,’’पता लगाता हूं ,कौन सा स्टेशन है? बिना सामान के चल दिए। दरवाजा बंद था। अटैंण्डैंट को जगाया कि बताए कौन सा स्टेशन है? उसने पटरियों की तरफ का गेट खोला, दो मिनट गाड़ी रुकती है। मैं बोली इधर प्लेटर्फाम हैं। उसने बर्थ फोल्ड कर दरवाजा खोला, और जोर जोर से आवाज लगाने लगा कि कौन सा स्टेशन है। कोई नहीं दिख रहा था पर दूर से आवाज आई,’’हरदोई।’’ मैं लगेज़ पकड़ कर उतरी। बी 2 डिब्बा प्लेटर्फाम से दूर था और फर्श काफी नीचा था। एक हाथ से लगेज़, एक हाथ से पाइप पकड़े तीनों पायदान उतर गई पर अगला स्टैप में फर्श इतना नीचा था कि मैं धड़ाम से गिर पड़ी। क्रमशः  

Friday 10 December 2021

उत्सव मंथन नीलम भागी#Indian festivals - A reflection Neelam Bhagi

 


जन मानस से जुड़ी लीला तो घरो में दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा का उत्सव है, जिसे दुनिया के किसी भी देश में रहने वाला कृष्ण प्रेमी मनाता है। यह उत्सव पर्यावरण और समतावाद का संदेश भी देता है। मेरी में सोच में, कन्हैया बड़े हो रहें हैं। अब वे बात बात पर प्रश्न और तर्क करते हैं। पूजा की तैयारी और पकवान बन रहे थे। बाल कृष्ण नंद से प्रश्न पूछने लगे,’’किसकी पूजा, क्यों पूजा?’’ नंद ने कहा,’’ये पूजा इंद्र को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। वह वर्षा करता है।’’ कन्हैया ने सुन कर जवाब दिया कि हरे भरे गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। उस पर गौए चरती हैं। जब बहुत वर्षा होती है। तो हम सब अपना गोधन लेकर, गोवर्धन की कंदराओं में शरण लेते हैं। इसकी पेड़ों की जड़े वर्षा का पानी सोख कर उसे हरा भरा रखती हैं। बादलों को रोकता है। अपनी कंदराओं में जल संचित कर, झरनों के रूप में देता  है। इस बार पूजा गोवर्धन की करनी चाहिए। सबको कन्हैया की बात ठीक लगी। प्रक्ति ने ग्रामीणों को जो दिया था, सब लाए। बाजरा की भी उन्हीं दिनों फसल आई थी, उसकी भी खिचड़ी बनी। दूध दहीं मक्खन मिश्री से बने पकवान, जिसके पास जो भी था, वह उसे लेकर गोवर्धन पूजा के सामूहिक भोज में अपना योगदान देने पहुंचा। गोधन, गिरिराज जी की पूजा की। प्रकृति की गोद में सबने मिलकर भोजन प्रशाद खाया और कन्हैया ने बंसी बजाई। हर्षोल्लास से इस तरह मिल जुल कर खाना, बजाना के साथ, अन्नकूट का उत्सव संपन्न हुआ।

यम द्वितीया भाई बहन का त्यौहार भइया दूज कहलाता है। भाई बहन के घर जाता है। बहन भाई का खूब आदर सत्कार करती है। भोजन कराती है। भाई बहन को उपहार देता है। ब्रजभूमि में बहन भाई यमुना जी में नहा कर मनाते हैं। देश विदेश में काम के सिलसिले में परिवार से दूर रहने वाले, घर के सदस्यों को अन्नकूट के 56 भोग और भैया दूज का उत्सव बुलाता है और परिवारों में समरसता पैदा करता है। 


उत्सव ऐसा आयोजन है जो आमतौर पर एक समुदाय द्वारा मनाया जाता है और उसके धर्म या संस्कृतियों के कुछ विशिष्ट पहलू पर केन्द्रित होता है।


 मैं छठ से पहले दस दिन बिहार यात्रा पर थी। जिस भी कैब में बैठती ड्राइवर छठ के गीत लगाता, उन गीतों को सुनते ही अलग सा भाव पैदा हो जाता था। चार दिवसीय छठ पर्व मनाया जाता है और यहां इसकी जगह जगह तैयारी दिख रही थी। ये देख कर मुझे पक्का यकीन हो गया कि बिहारी से बिहार दूर हो सकता है पर जहां भी रहता है, वहां छठ से दूर नहीं रह सकता। वे मिल जुल कर घाट बना लेते हैं। सादगी, पवित्रता, लोकजीवन की मिठास के पर्व ’छठ’ में वहां के लोग भी बड़ी श्रद्धा से शामिल होते हैं। मैं भी जो घाट मेरे घर के पास होता है, वहां डूबते सूरज और उगते सूरज की आराधना करने पहंुंच जाती हूं।



 उत्सव परिवारों को जोड़ता है। छठ और गोर्वधन पूजा सब परिवार एक साथ मनाता है।





मेरी दादी बेस्वाद आंवला खिलाते समय पंजाबी में कहती,’’स्याने दा केया, ते औले दा खादा बाद च पता चलदा’ मतलब विद्वान का कथन और आंवले का स्वाद या लाभ बाद में पता चलता है। हम आंवला चबा कर ऊपर से पानी पीते तो वह मीठा लगता और दादी ठीक लगती। बिमारियों से बचाने वाले आंवला लाभ के लिए खाने लगते। तभी तो आंवला नवमीं के दिन सपरिवार आंवला के पेड़ की पूजा की जाती है जिसमें पेड़ की 108 परिक्रमा की जाती हैं। महानगरों के फ्लैट्स में पेड़ न होने पर भी बाजार से आंवला लगी टहनी खरीद कर पूजा की जाती है। उत्सव यानि पर्व या त्यौहार का हमारी संस्कृति में विशेष स्थान है। साल भर कोई न कोई उत्सव चलता ही रहता है। हर ऋतु में हर महीने में कम से कम एक प्रमुख त्यौहार अवश्य मनाया जाता है। अक्टूबर से जनवरी वह समय होता है जब पूरे देश को उत्सवमय देखा जा सकता है। रेल विभाग को अतिरिक्त गाड़ियां चलानी पड़ती हैं। हवाई टिकट मंहगी होती है। कुछ उत्सव किसी अंचल में मनाए जाते हैं। कुछ देश भर में, भले ही नाम अलग अलग हों। जैसे दक्षिण भारत में भी कार्तिक मास के पावन अवसर पर काकड़ आरती का प्रारंभ परम्परानुसार शरदपूर्णिमा के दूसरे दिन से होता हैं। देवउठनी एकादशी के अवसर पर काकड़ आरती को भव्य स्वरूप दिया जाता है। तुलसी सालिगराम का विवाह उत्सव मनाया जाता है। वारकरी सम्प्रदाय के बुजुर्ग बताते हैं कि संत हिरामन वाताजी महाराज ने 365 वर्ष पहले काकड़ आरती की शुरुआत की थी। आरती में शामिल होने के लिए श्रद्धालु प्रातः 5 बजे विटठल मंदिर में आते हैं और भजन मंडलियां पकवाद, झांज, मंजीरों एवं झंडियों के साथ नगर भ्रमण करती है। जगह जगह चाय, कॉफी, दूध एव ंनाश्ते की व्यवस्था श्रद्धालुओं द्वारा रहती है। प्रत्येक मंदिर में सामुहिक काकड़ा जलाकर काकड़ आरती प्रातः 7 बजे तक प्रशाद वितरण के साथ सम्पन्न होती है। उत्तर भारत में प्रभात फेरी निकाली जाती है।  

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूणर््िामा भी कहते हैं। त्रिपुरास राक्षस पर शिव की विजय का उत्सव है। इसे देव दीपावली के रूप में मनाते हैं।


गुरू नानक जयंती और जैनों के धार्मिक दिवस है। तीर्थस्थान पर स्नान करते हैं। धर्म और लोककथाओं के बाद उत्सव की एक महत्वपूर्ण उत्पत्ति कृषि है। धार्मिक स्मरणोत्सव और अच्छी फसल के लिए धन्यवाद दिया जाता है। रवि की फसल की बुआई सितम्बर से नवम्बर तक हो जाती है। बड़ी श्रद्धा और उत्साह से उत्सव मनाते हैं। इन सभी उत्सवों में प्रकृति वनस्पति और जल है।

विद्वानों का मानना है जो जनजातियां नाचती गाती नहीं-उनकी संस्कृति मर जाती है।

नृत्य, गायन उत्सवों की शुरूआत भारत के मंदिरों में हुई थी। लेकिन अब देश विदेश से इन उत्सवों को देखने पर्यटक आते हैं।  

दिसबंर में आयोजित उत्सव सनबर्न फेस्टिवल (गोवा) संगीत नृत्य

संगीत प्रेमियों के लिए, माउंट आबू विंटर फैस्टिवल (राजस्थान) लोकनृत्य, संगीत घूमर, गैर और धाप, डांडिया, शामें कव्वाली, 

रण उत्सव(गुजरात) रेगिस्तान में सांस्कृतिक कार्यक्रम गरबा लोक संस्कृति  आदि। 

श्री क्षेत्र उत्सव पुरी की परंपराओं को जीवित करती रेत की कला,

 ममल्लपुरम डांस फेस्टिवल(चेन्नई) खुले आकाश के नीचे, नृत्य संगीत, शास्त्रीय और लोक नृत्य,

 हॉर्नबिल उत्सव(नागालैंड) ये पक्षी के नाम पर है जिसके पंख सिर पर लगाते हैं। धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। बहादुर नायकों की प्रशंसा के गीत गाए जाते हैं।

दादी हमेशा किसी भी उत्सव की पूजा करते समय  परिवार को बिठा कर उसकी बड़ी रोचक कथा सुनाती थी। गणेश चतुर्थी जिसे वह सकट बोलती थी। उसमें गणेश जी की चार कथाएं एक साथ सुनाती और हर कथा के बाद एक तिल का लड्डू देती। कड़ाके की ठंड में हम चारों लड्डू खा जाते। अब अम्मा 92 साल की दादी की तरह कथा सुनातीं हैं। हमेशा हमें 31 दिसम्बर को कहतीं हैं कि हमारा नया साल तो चैत्र प्रतिप्रदा को होता हैं, तब सबको नए साल की बधाई देना। अब अम्मा की बात तो माननी है न। यही मौसम के अनुसार हमारे उत्सवों की मिठास और परम्परा है। 


केशव संवाद के दिसंबर अंक में प्रकाशित हुआ

Sunday 14 November 2021

लड्डू गोपाल संग 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 32 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 

सारस्वत ब्राह्मण धर्मशाला पहुंचते ही सबसे पहले हॉल में गई जहां जलवाले गुरु जी का सत्संग चल रहा था। मेरे पहुंचते ही समापन पर था। उन्होंने सबको प्रशाद लेने के लिए कहा और सत्संग का समापन किया। हॉल से बाहर जाकर देखती हूं, वहां ऐसा लग रहा था मानों कोई साप्ताहिक बाजार लगा हो। स्वरोजगार करने वाले, अपनी बाइक पर सामान लगा कर बेच रहें हैं। अब घर ही तो जाना है, खूब जम कर खरीदारी हो रही थी। बेचने वालों के भी चेहरे खिले हुए और खरीदने वाले भी बहुत खुश थे। जिनके उपहार के लिए खरीदारी की जा रही थी, वे अपनों द्वारा गिफ्ट मिलने पर खुश होगें यानि घर में भी खुशी का माहौल होगा।


इस यात्रा से सभी को कुछ न कुछ मिला है। कुछ बता सकते है, कुछ महसूस कर सकते हैं। रानी हमेशा की तरह कहने आई,’’दीदी, प्रशाद खाने चलो।’’ प्रशाद में सीताफल और आलू की लजीज़ सब्जी़, खीर और गर्मागर्म पूरी थी। खाने के बाद मैं घूम रही थी। बारांडो में कहीं कहीं कुर्सियों के साथ चारपाइयां भी रखीं थीं। एक महिला लेटी थी, जगह देख कर मैं उसके पास बैठ गई। उसने खिसक कर मुझे भी लेटने की जगह दे दी। मैं भी लेट गई। कुर्सियों पर बैठी महिलाओं ने कुर्सियां मेरे पास कर लीं। एक महिला बड़े प्यार से बोली,’’दीदी, आपको वैष्णों देवी ने दर्शन पता है, क्यों नहीं दिए!!’’ मैंने कहा," नहीं।"  तो उसने खुद ही जवाब दिया,’’आपने सब देवियों के नंगे सिर दर्शन किए हैं इसलिए। हमने सोचा था कि आपको टोक दें फिर इसलिए नहीं टोका कि कहीं आप बुरा न मान जाओ।" मैंने उन्हें जबाब दिया कि आप टोक कर तो देखतीं। ये सुन कर उन्होंने मुझे सांत्वना देते हुए कहा कि कोई बात नहीं, मइया आपको फिर बुलाएगी। मेरे भवन पर न जा पाने से ये सब कितनी दुखी थीं!! मैं यात्रा में कम से कम सामान रखती हूं क्योंकि उठाना तो मुझे ही है इसलिए जिंस कुर्ते ले कर जाती हूं। उनसे बात करते करते मैं सो गई। बस चलने से पहले ओमपाल सिंह मुझे बुलाने आए। सब सवारियों के आने पर जलवाले गुरु जी ने चलने का आदेश दिया। बसें चल पड़ी। अब ढोलक नहीं बजी। वैसे ही अशोक भाटी ने सबको जल और मेवे का प्रशाद दिया। जितना मेवा बचा था, वह फिर से दिया। बस में नाचना गाना हंसी मज़ाक सब बंद।  ये देख, मुझे जसोला की उषा जी की बड़ी सरलता से कही बात याद आई, ’दीदी अब घर जायेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे दिल में कुछ टूट सा गया है।’ सब चुप हैं। चाय पानी के लिए एक जगह बस रुकी। हमेशा की तरह सेवादार ने सीटी बजाई। सीटी बजते ही हमेशा सब बस में चढ़ जाते थे। पर आज वही सीटी की आवाज सुन कर, कुछ महिलाएं बड़बड़ाती हुई चढ़ी’’जब भी हम नीचे उतरें, ये धूतारा बजा देवे’’। ’धूतारा’ शब्द मैंने पहली बार सुना था। उषा जी से मतलब पूछा तो उन्होंने बताया ’सीटी’। सब उदास थे, बस सामने विराजमान हमेशा की तरह लड्डू गोपाल, मुस्कुराते हुए सबको देख रहे थे। 
   जाते समय की मुझे यादें आ रही हैं। सलारपुर की श्वेता जब बस रुकती, कहीं भी जाते वह बोनट से लड्डू गोपाल लेकर उतरती, बस में आते ही वहीं उन्हें बिठाती। रात में लड्डू गोपाल से सोने को कहती और उनको डोली में लिटा देती। मैंने उषा जी से पूछा कि ये लड्डू गोपाल को साथ में क्यों लाई है? उन्होंने बताया कि लड्डू गोपाल को बालक की तरह रखते हैं। जैसे तुम घूमने आये हो तो बालक को घर में अकेला छोड कर आओगे!! नहीं न, ये भी तो बालक हैं, लड्डू गोपाल भी घूमने आए हैं। 




याद आया गौतम नाच रहे थे उसकी पत्नी कुसुम को भी बस में उसके साथ नाचने को उठा दिया। वह घूंघट निकाल कर नाचने लगी। अशोक भाटी विडियो बना रहे थे। मैंने उषा जी से कहा,’’विडियों में कुसुम की शकल तो नहीं दिखाई देगी।’’वे बोलीं,’’अशोक भाटी, गौतम के मामा हैं। इसके मामा ससुर लगे न, सबके बहुत कहने पर भजन पर नाच रही है।’’ देख भी रही हूं याद भी आ रहा है जाने और आने का फर्क। नौएडा आते ही जिसको जहां पास पड़ रहा है, वहां उतारा जा रहा है। मुझे नहीं याद कहां, बस रुकते ही संदीप शर्मा ने ऑटो का भाड़ा तय करके मेरा लगेज़ भी रख दिया। मैं अपने घर पहुुंच गई।    ़        

 मैं तो लिखते हुए फिर से यात्रा का आनन्द उठा रही थी। ये मेरी कोरोना महाकाल के बाद पहली यात्रा थी। अब जो यात्रा करुंगी आपके साथ शेयर करुंगी।  समाप्त


ब्रह्मसरोवर, सन्निहित तीर्थ, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर कुरूक्षेत्र 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 31 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

नारद पुराण के अनुसार सन्निहित सरोवर का निर्माण ब्रह्मा जी ने किया था। ग्रहण के समय यहां स्नान करने से सौ अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है और मनोकामना पूरी होती है। यहां पर श्री ध्रुव नारायण के मंदिर के मध्य में भगवान चतुर्भुज नारायण एवं ध्रुव की सुन्दर प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर के आगे टीन का विस्तृत छाया गृह बना हुआ है। जिसमें तीर्थ पर स्नान करने वाले यात्री विश्राम करते हैं। कुछ ऐसा हुआ कि मैं यहां जितनी देर रही वहां कोई न कोई अपने प्रिय स्वर्गवासी का कोई संस्कार करवा रहे थे। जिसमें फोल्डिंग पलंग पर इंसान की जरूरत का सब सामान था। महापंडित के निर्देश में वह सिर मुंडाय पलंग की परिक्रमा कर रहा था। उसके हटते ही दूसरा ही कोई दूसरा ऐसे ही सामान लिए आ गया। पूर्व भाग में तीर्थ की तरफ हनुमान जी की विशाल प्रतिमा और सिंहवाहिनी अष्टभुजी दुर्गा देवी जी की संगमरमर की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इस स्थान पर वामन द्वादशी को भारी मेला लगता है। सरोवर के आस पास बहुत ही तीर्थ हैं। मैं सड़क पार करती हूं।




श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर

यह मंदिर सन्निहित सरोवर के पश्चिम में है। इसमें भगवान लक्ष्मी नारायण की बहुत सुन्दर प्रतिमा है। कहते हैं कि बाबा शिवगिरि जी जो कि एक सिद्ध फकीर थे उन्होंने यह मंदिर बनवाया था। यहां यात्रियों के ठहरने और साधुओं के सदाव्रत का प्रबंध होता है।


ब्रह्मसरोवर 

मैं तो पहले यहां आई हुई थी इसलिए जैसे ही हमारा ऑटो ब्रह्मसरोवर के आगे से गुजरा मैंने उसेे रुकने को कहा। उसने जवाब दिया,’’यहां तो सुबह आपने स्नान किया होगा न।’’ सारी सवारियां कोरस में बोलीं,’’हां जी किया था तो अब क्या देखना चलो।’’वो चलने लगा तो मैं उतर गई। उसे 120 रु जो तय थे दिए। उसने मुझे 20रु वापिस किए। मैंने पूछा,’’ये किस लिए?’’उसने जवाब दिया,’’ये सारी सवारियां 100रु में बैठीं हैं आपसे ज्यादा क्यों लूं!! पास में ही सारस्वत धर्मशाला है।’’ और ये जा वो जा। सुबह हमारी बस के साथी सब ब्रह्मसरोवर में नहाने गए थे। मैं नहीं गई, मुझे घूमना जो था इसलिए मैं जरा भी समय नहीं गवा रही थी। सड़क से ब्रह्मसरोवर के प्रवेश द्वार तक बिल्कुल साफ रास्ता था और कहीं कहीं तो फर्श पर धान भी सूख रहा था। अब मैं अकेली ब्रह्मसरोवर के किनारे धूप में खड़ी थी।   

इस प्राचीन विशाल सरोवर का कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड ने अति आधुनिक ढंग से नवनिर्माण किया है। आकार में पहले से छोटा होने पर भी भारत के विशाल सरोवरों में इसकी गणना की जाती है। इस सरोवर की लम्बाई 3600फुट और चौड़ाई 1200 फुट है। इसमें 15 फुट पानी हमेशा रहता है। यात्रियों के विश्राम के लिए चारों ओर बरामदे बने हैं। पक्के घाट और यात्रियों की सुरक्षा के लिए रेलिंग हैं। महिलाओं के स्नान के लिए अलग घाट हैं। सरोवर के बीच में सर्वेश्वर महादेव का मंदिर है। यहां ऐसी व्यवस्था की गई है कि सूर्य ग्रहण के समय यहां देश विदेश से आए 5 लाख यात्री एक समय में स्नान कर सकें। इसमें जल भाखड़ा नहर से आता है। बाहर आकर मैं धर्मशाला की ओर चल दी। सुबह स्नान के समय भी सबने कहा कि ब्रह्मसरोवर वो रहा बिल्कुल पास ही है। अब ऑटोवाला भी कह कर गया कि धर्मशाला पास ही है। सड़क पर आकर कुछ कदम चलने पर दो आदमी आपस में बात कर रहे थे। मैं बात बात पर गूगल मैप देखने वाली इस यात्रा में कुछ याद ही नहीं था। उन दोनों से पूछ बैठी,’’सारस्वत धर्मशाला किधर है?इतना तो पता है कि वो ब्रह्मसरोवर के पास है।’’ दोनों सोचने लगे फिर बोले कि आप आगे आ गई हो पीछे कट से दाएं जाकर एक किमी पर है। अब मैं थोड़ी परेशान हो गई। इतने में एक आदमी आया बोला,’’वो जरा सा आगे जाओ बाजू में है। मैं अंदर से सुनकर बाहर आया अब यहां खड़ा हूं जाइए।’’ मैं चल पड़ी और उसकी आवाज़ सुनाई दी वह उन्हें समझा रहा था कि अंदाज से रास्ता मत बताया करो। मैं धर्मशाला में पहुंच गई थी। क्रमशः     








Saturday 13 November 2021

भद्रकाली मंदिर, बिरला मंदिर, गौड़िया मठ, बाण गंगा कुरूक्षेत्र 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 30 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi


स्थाणु मंदिर से थोड़ी दूरी पर झांसा रोड पर देश के 52 शक्तिपीठों में एक शक्ति पीठ भद्रकाली यहां है। यहां भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से कट कर सती के दाहिने पांव की एड़ी यहां गिरी थी। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध से पूर्व पाण्डवों ने विजय की कामना से मां काली का पूजन यहां किया था। नवरात्रों की जोर शोर से तैयारी चल रही थी।  दशहरे को यहां मेला लगता है। श्रद्धालू कूप पर यहां मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं। 




बिरला मंदिर पिहोवा रोड, कुरूक्षेत्र सरोवर के बिल्कुल नजदीक है। मंदिर में बहुत सुन्दर प्रतिमाएं हैं, सफेद संगमरमर का बना है। सफाई सराहनीय है। यह मंदिर जुगलकिशोर बिरला ने 1952 में बनवाया था और इसका नाम भगवद्गीता मंदिर रखा।




गौड़िया मठ चैतन्य महाप्रभु के समुदाय का है। राधा कृष्ण की प्रतिमाएं है। चैतन्य महाप्रभु फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सम्वत् 1542 को नवद्वीप बंगाल प्रांत में अवतीर्ण हुए और 1580 में ब्रह्मलीन हुए। उन्होंने संर्कीतन की गंगा बहाई। उनको लोग गोेराग महाप्रभु भी कहते हैं। इसलिए इस मठ का नाम गौड़िया मठ पड़ गया है । 


कुरूक्षेत्र में दो बाण गंगा नाम के स्थान हैं। एक दयालपुर गांव के पास व दूसरा नरकातारी गांव में है। कहते हैं कि नरकातारी में अर्जुन ने शरशैया पर पड़े हुए भीष्म की प्यास बुझाई थी और दयालपुर के पास बाण गंगा में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने घोड़ों को पानी पिलाया था। बैसाखी और गंगा दशहरे को यहां मेला लगता है।


ऑटोवाला जहां भी हमें ले जाता, उतारने से पहले बहुत ही संक्षिप्त में हमें उस जगह के बारे में बताता। जिससे उस जगह को देखना बहुत अच्छा लगता था। उसने यह भी बताया कि सिखों के दस गुरूओं में से नौ के चरण भी कुरूक्षेत्र में पड़े हैं। यहां उनके नाम सेे गुरूद्वारे हैं। जब मैं कुछ साल पहले यहां आई थी, तब मैंने श्रीकृष्ण संग्रहालय देखा था। यहां ऐसा लग रहा था जैसे हम महाभारत के युग में पहुंच गए हों। यहां श्रीकृष्ण को कलाकृतियों में महानायक, महान दार्शनिक, कुशल एवं कूट राजनीतिज्ञ एवं प्रेमी के रूप में चित्रित किया गया है। बाईं ओर स्थित साइंस पैनोरमा में महाभारत से संबंधित जानकारी तथा उस युद्ध का चित्रण सजीव लगता है। साथ ही यद्ध में जो आवाजें होती होंगी वेैसी ही आती हैं। मैं तो विस्मय विमुग्ध हो गई थी। क्रमशः