मेरा दिमाग तो न मिलने वाली दवा पर ही जाता था। वो भी मिल जाये तो बिल्कुल ठीक हो जाउं। मास्क लगाकर जितनी देर भी बैठा जाता पेड़ की छांव में बैठती और धूप के चक्कते मेरे उपर पड़ते। क्या ब्लड रिर्पोट आई है? किस चीज़ की वो दवा है? मैं जानकर क्या करुंगी। मेरे डॉक्टर ने मुझे ठीक किया है। जो दवा उसने लिखी है, उसे खाउंगी तो ठीक हो जाउंगी। अनिल के लिए भी परेशान थी। फोन किया तो उसका बुखार आज तीसरे दिन उतर गया था। सुन कर बहुत अच्छा लगा और सरकारी अस्पताल की हम दोेनों ने सराहना की। अगले दिन मैंने अनिल को फोन किया ये जानने के लिए कि फिर बुखार तो नहीं आया है। उसने बताया कि नहीं आया है और मैं ठीक हूं, कमजोरी बहुत है। आज शांभवी को बुखार हो गया, लगता है सबको होगा इसलिए मैंने तीनों को सरकारी अस्पताल भेज दिया ये सोच कर कि अब तो सबको होगा पहले ही बाकि दोनो भी दवाई ले आओ। मैं भी तो वहीं से ठीक हुआ हूं। मुझे इनकी फिक्र हो गई कि कैसे मैनेज़ करेंगे? अब अपनी गोली का न मिलना तो मैं भूल ही गई। कुछ समय बाद फिर अनिल से पूछा उसने बताया कि शांभवी को 5 दिन की दवा दे दी। बाकि दोनों को कह दिया बुखार होने पर ही दवाई मिलती है। पांच दिन में शांभवी का बुखार नहीं उतरा और 103 तक पहुंच जाता। दवा खत्म होते ही वह फिर शांभवी को लेकर अस्पताल गया। उसने डॉक्टर को बताया की इसको स्मैल नहीं आ रही, स्वाद चला गया। अब उसका कोरोना का टैस्ट हो गया। रिर्पोट बाद में मिलेगी। उसने डॉक्टर से कहा कि इसे एडमिट कर लो। उन्होंने कहा कि यहां 18 साल तक के मरीज भर्ती किए जाते हैं। आप 39 सेक्टर में जाओ क्योंकि ये 19वें साल में है। अब अनिल उसे लेकर 39 अस्पताल पहुंचा। वहां गेट पर ही दो लोग डैड बॉडी लेकर जा रहे थे। सामने रिसैप्शन पर दो नर्स बैठीं थीं। बदहवास सा अनिल उनके पास जाने लगा तो गार्ड ने कह दिया कि रिर्पोट लेकर ही अंदर जा सकते हैं और यहां कोई बैड खाली नहीं है। उसने गार्ड से पूछा,’’ अब हम क्या करें?’’। गार्ड ने एक टोल फ्री नम्बर की ओर इशारा करके कहा कि इस पर बात करो। शांभवी का ध्यान नम्बर मिलाने में था। अनिल ने देखा कि एक शव की जिपिंग हो रही थी। उसने झट से शांभवी से कहा,’’बेटी चल, घर जाकर मिला लेंगे। घर आ गए। जो दवा लाए थे देते रहे, रात तक कोई सुधार नहीं। सोने से पहले मैंने फोन किया। अनिल ने बताया कि अब जिससे मेरा ऑनलाइन इलाज़ हुआ था उसकी फीस जमा कर रहा हूं। उससे ही शांभवी का शुरु किया। अनिल अब रात में दवाइयां ढूंढने निकल गया। एक दवा छोड़ कर रात 12 बजे तक ले आया। एक दवा नहीं थी जहां से मिलनी थी वो स्टोर बंद हो गया था। सुबह 9 से पहले ही अनिल पहुंच गया। स्टोर खुलते ही दवा ले आया। मुझे पूरा विश्वास था कि ये भी कोरोना से डरेगी नहीं, लड़ेगी। बार बार मैं मोबाइल में एक ही फोटो देखती शांभवी को स्कूल में प्राइज़ मिला। भारती ने मेरी, अनिल और शांभवी की फोटो खींची।
मैं, अनिल कोराना से जीत गए। शंाभवी की जंग चल रही थी। 12 वीं के बाद हमने शांभवी से पूछा,’’बेटी तूं क्या करना चाहती है? वह बोली,’’तुलानी पूना से मरीन इंजीनियरिंग।’’लौट कर अपना इंटरव्यू बताने लगी,’’बुआ, मुझे कहा कि इस फील्ड में कॉमप्लीकेशन बहुत हैं। फैमली से दूर रहना पडता है। कई बार पाईरेट सी अटैक होते हैं। शिप में लड़की अकेली भी हो सकती है। बॉयलर मशीन में 45प्लस टैम्परेचर में काम करना होता है।’’ बुआ सुनकर मैं बोली,’’मैंने भी सुना है कि लोग जले भी हैं। कॉमप्लीकेशन तो हर फील्ड में हैं। ऐसे डरी तो आगे कैसे बढ़ूंगी।’’दस दिन बाद बुखार उतरा। घर के बाजू में पेड़ है जिसकी एक शाखा इनकी छत पर है। इसके कमरे की खिड़की भी पेड़ की तरफ है। वो खुली रखी। शाम 4 बजे बोली,’’ मुझे छत पर जाना है।’’ कमजोर हालत में सहारे से ले जाकर, पेड़ की छाव में कुर्सी पर बिठा दिया। जब अंधेरा होने लगा तो 2 घण्टे बाद, अपने आप नीचे उतर कर आई और भारती से बोली,’’मम्मी कुछ खाने को दो।’’हमारी शांभवी कोरोना से जंग जीत गई। क्रमशः नीलम भागी
3 comments:
कोरोना से संघर्ष की कहानी, वो भी विस्तार से। सचमुच जीवंत होने की पहचान है।
ईश्वर आपकी सहायता करें।
कोरोना से संघर्ष की कहानी, वो भी विस्तार से। सचमुच जीवंत होने की पहचान है।
ईश्वर आपकी सहायता करें।
हार्दिक आभार सर
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