सड़क से यात्रा मुझे हमेशा से प्रिय है कारण इससे शहरों से परिचय हो जाता है। दूसरा ड्राइवर जो भी गाने लगाते हैं, उसका म्यूजिक लाजवाब होता है। हमारी यह अध्यात्मिक यात्रा थी। इसलिए इसमें धार्मिक गीत बज रहे थे। इस पांच नम्बर बस के ड्राइवर बलराज जिसे सब बल्ली कहते थे। बल्ली ने एक से बढ़ कर मधुर धुनों के भजन लगाए। जो लोक धुनों पर थे न कि फिल्मी तर्ज पर। नोएडा में जगह जगह से सभी श्रद्धालुओं को लेने के बाद बस में मां के जयकारे गूंजने लगे।
जयकारे लगाते रास्ते का पता ही नहीं चला कि कब कालका जी मंदिर आ गया। बस रुकते ही सुमित्रा रावत ने नियम कायदे समझाए
और कहा कि जूते चप्पल सब बस में उतार दें। ओमपाल सिंह ने कहा कि यहां जेब कतरे बहुत होते हैं इसलिए सावधान रहना। सभी एक घण्टे में बस में आ जाएं। बारिश बस के रुकते ही रुक गई थी। ग्रुप के साथ मैं भी नंगे पांव चली पर अपनी धीमी गति के कारण मैं अकेली ही रह गई। बरसात के कारण फिसलन बहुत थी। मैं बहुत संभल संभल कर चल रही थी और मेरे दिमाग में इस मंदिर के बारे में जो अब तक पढ़ा सुना था, वह भी चल रहा था। कालका जी मंदिर को ’जयंती पीठ’ या मनोकामना सिद्ध पीठ भी कहा जाता है। भक्तों की मनोकामना यानि इच्छा, सिद्ध का अर्थ है प्रमाणिकता के साथ और पीठ का अर्थ है तीर्थ। यानि मनोकामना पूरी करने वाली काली रुप मां। लोक कथाओं के अनुसार पाण्डवों ने यहां पर पूजा की थी। यह भी माना जाता है कि देवी कालका जी, भगवान ब्रह्मा की सलाह पर देवताओं द्वारा की गई प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों से खुश होकर, इस पर्वत पर दिखाई दीं और उन्हें आर्शीवाद दिया। तब से देवी श्रद्धालुओं की इच्छा पूरी करने के लिए यहां विराज रही है। दुनिया भर के मंदिर ग्रहण के वक्त बंद होते हैं। जबकि कालका जी मंदिर खुला होता है।
आम धारणा है कि यहां देवी कालका की छवि स्वयंभू है। मंदिर के रास्ते में दोनों ओर प्रशाद और पूजा सामग्री की दुकाने है।
श्राद्धों में भी श्रद्धालुओं की संख्या में कमी नहीं थी। नवरात्रों में तो भक्तों की संख्या असंख्य होती है। कोई दंडौती करता दर्शनों को आ रहा था।
मेरे दर्शन करते ही आरती का समय हो गया और मंदिर के कपाट बंद हो गए। जब मैं लौटने लगी तो जंगला बंद। सब बाहर आने वाले थे पर मेरी 5 नम्बर बस का कोई साथी नहीं था। सभी बाहर के लोग थे, जिनकी बसों के जाने का समय हो गया था। ताला नहीं था पर कपड़े पर पता नहीं कैसी गांठे लगाई थीं कि एक महिला ने बड़ी मुश्किल से गेट खोला।
हम बाहर आए। जो भी दर्शन करके लौट रहा था, वह कुछ न कुछ खरीद कर ही लौट रहा था। जाते समय मैंने ध्यान नहीं दिया। अब देखा बाहर निकलते ही कचरे, गंदगी पड़ी थी।
ये लिखते समय मुझे सलारपुर की हमारी सहयात्री संगीता याद आ रही है। जब वह मुझे बता रही थी कि दीदी हम लोग तो कालका जी मंदिर सलार पुर नौएडा से पैदल आ जाते हैं किसी विशेष अवसर पर। मैं हैरान होकर उसके चेहरे से टपकती हुई श्रद्धा देख कर पूछने लगी,’’ कितना समय लगता है?’’ उसने जवाब दिया,’’एक बजे चलते हैं आरती तक पहुंच जाते हैं।’’ इस नौ देवी यात्रा में निक्की ने सबके भजनों के साथ ढोलक बजाई। उसने बताया कि वह मंदिर में सेवा करता है। नवरात्रों में यहां मेला लगता है और ऐसी मान्यता है कि अष्टमी और नवमीं को कालका मैया मेला में घूमती है। इसलिए अष्टमी के दिन सुबह की आरती के बाद कपाट खोल दिया जाता है। दो दिन आरती नहीं होती। दसवीं को आरती होती है। धीमी गति वाली मैं, आकर बस में बैठ गई। पर कुछ लोग आरती के बाद ही लौटे। क्रमशः
कृपया मेरे लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए दाहिनी ओर follow ऊपर क्लिक करें और नीचे दिए बॉक्स में जाकर comment करें। हार्दिक धन्यवाद
3 comments:
हार्दिक धन्यवाद कुलकर्णी जी
Very nice👌👍
हार्दिक आभार
Post a Comment