इस यात्रा में आगे जाने से पहले जब सभी श्रद्धालु बस पर आ जाते थे। तब सेवादार गुरुजी को बताते, इसमें जरा भी लापरवाही नहीं की जाती। तब जलवाले गुरु जी के कहने पर बसें आगे चलतीं। यात्रा में सब बहुत खुश थे। खुशी का आलम ये था कि नैना देवी से चिंतपूर्णी मंदिर की दूरी लगभग 115 किमी. दूर है। वहां पहुंचने में करीब 4 घण्टे लग गए। कारण किसी ने बल्ली से जाकर कहा,’’भइया जरा बस रोक दो, इमरजेंसी है।’’ बल्ली ने अच्छी जगह देखकर बस साइड में लगा दी। फ़ारिग होने वाले झाड़ों के पीछे चले गए। बस के अंदर जो भजनों पर नाच रहे थे। वे बस से नीचे आकर सड़क पर नाचने लगे। भजन खत्म आगे जो भी बजे सब म्यूजिक का आनन्द ले रहे थे और माता के दरबार में नाचते गाते जा रहे थे। अब नाचना खुली जगह में चालू हो जाता।
हल्की बूंदा बांदी भी शुरु हो गई थी। सड़क के किनारे पर कुछ कुछ दूरियों पर बैंच लगीं हुईं थीं। चिंतपूर्णी माता तो चिंता हरती है और ये रास्ता तो मन को बहुत ही सकून दे रहा था। हमारे परिवार में मुंडन चिंतपूर्णी माता के यहां होते हैं इसलिए पहले भी आईं हूं। पर इस यात्रा में अलग अलग जगह से आए श्रद्धालुओं के उल्लास से बड़ा खुशनुमा माहौल रहता था।
चिंतपूर्णी देवी का मन्दिर हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित है।यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन अम्ब 20 किमी., होशियारपुर 42 किमी., ऊना 50 किमी. है। गग्गल हवाई अड्डा धर्मशाला, कांगड़ा 60 किमी., अमृतसर हवाई अड्डा 160 किमी. और चंडीगढ़ 150 किमी दूर है। जहां से निजी वाहन, बस या टैक्सी की सहायता से मंदिर तक पहुंच सकते हैं। मंदिर के बारे में ये कथा सुनाई जाती है।
एक बार दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें भगवान शिव व सती को नहीं बुलाया क्योंकि वे शिव को अपने बराबर नहीं समझते थे।। सती बिना निमंत्रण के वहां गई। जहां वे अपनेे पति का अपमान नहीं सह पाईं और यज्ञ कुंड में कूद गईं। शिवजी को जैसे ही पता चला उन्होंने यज्ञ कुंड से सती को निकाल कर तांडव करने लगे। ब्रह्माडं में हाहाकार मच गया। विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सति के शरीर को 51 भागों में अलग किया। जो भाग जहां गिरा वह शक्तिपीठ बन गया। 51 शक्तिपीठ है। सब की कथा यही है। यहां मां के चरण गिरे थे। मंदिर में साल भर श्रद्धालु देश विदेश से आते है। नवरात्रों के दौरान मेले लगते हैं। गर्मी में मंदिर खुलने का समय है सुबह 4 बजे से रात 11 बजे और सर्दी में सुबह 5 से रात 10 बजे। दोपहर 12 से 12.30 भोग लगता है और सायं 7.30 से 8.30 आरती होती है।
बस अड्डे पर बस रुकने पर कहा गया कि यहां से कुछ भी नहीं लेना है। जो प्रशाद खरीदो गे उसे भी खा लेना है। क्योंकि ये देवियों की छोटी बहन है। छोटी बहन के यहां का माल बड़ी के नहीं जाता है। एक बार कोई ले गया था तो बस नहीं चली थी। हमें आगे देवियों के जाना है। इस बात का सबने ध्यान रखा। वहां से मंदिर डेढ़ किमी. दूर है। शेयरिंग ऑटो 10रु सवारी है। दर्शन की पर्ची ली और मैं पैदल सड़क के दोनों ओर बाजार, रैस्टोरैट, होटल, धर्मशालाएं देखती चली गई। जब सीढ़ियां शुरु हुई तो दोनों ओर पूजा और प्रशाद की दुकाने थी। अपनी धीमी गति के कारण मैं अपने सहयात्रियों से अलग हो गई। एक दुकान से प्रशाद लिया। दुकानदार ने कहा चप्पल यहीं रख दो मैंने रख दी। और भवन में पहुंची वहां बहुत भीड़ थी पर मुझे खुले दर्शन हुए।https://youtu.be/o2vP8IeySbg
यहां से मैं साथियों के साथ लौटने लगी। सब दुकाने लगभग एक सी, मुझे समझ ही न आए कि किस दुकान में चप्पल रखी है। बाले और उषा मुझसे आगे जाकर दुकानों से पूछती हुईं। चप्पल वाली दुकान खोज कर वहां खड़ी हो गईं। जैसे ही मैं चप्पल पहन कर चली। मेरे जो भी साथी पीछे से आते कुछ कदम मेरे साथ चलते फिर ये जा वो जा। मैं अपनी स्लो मोशन से अकेली बस पर पहुंच गई। मेरे पहुंचते ही कुछ देर मुझ पर चर्चा हुई कि मैं पता नहीं क्या देखती हूं!! कहीं भी फोटो लेने लगती हूं। कुछ साथी आरती के लिए रुके थे। अब उनका इंतजार हो रहा था। क्रमशः
4 comments:
super
हार्दिक धन्यवाद कुलकर्णी जी
Very nice wow dans👌👌😃👍
हार्दिक आभार धन्यवाद
Post a Comment