सिद्धपीठ कालका जी मंदिर से बस के चलने से पहले रानी सिंह ने श्रद्धालुओं से पूछा,’’सबके पड़ोसी आ गए।’’ पता चला दो महिलाएं नहीं पहुंची। ये सुनते ही आधी सवारियों ने कोरस में कहा,’’वे आरती में फंस गई होंगी।’’ये कह कर सब अपनी अपनी बातों में मशगूल हो गए।
सब नौ देवी दर्शन जाने के लिए इतने उल्लासित थे कि उनकी खुशी के कारण बस में एक अलग सा भाव था, जिसे लिखने की मुझमें सामर्थ नहीं है। मेरी इस तरह की पहली यात्रा थी। जिसे मैं अब तक बिना किसी से बातचीत किए बहुत एंजॉय कर रही थी। लगभग एक घण्टे के बाद वे महिलाएं आईं। किसी ने नहीं कहा कि इतनी देर क्यों कर दी? बल्कि पूछा,’’खुले दर्शन हो गए न।’’अब मेरे बराबर जसोला की उषा बैंठीं। हमारी गेट के पास पहली सीट थी। उषा जी ने मुझसे पूछा,’’आपके साथ कौन है?’’मैंने जवाब दिया,’’मैं अकेली आई हूं।’’ धर्मेन्द्र भडाना बस में चढ़ रहे थे, ये सुनते ही बोले,’’यहां कोई अकेला नहीं है, पूरी बस एक परिवार है।’’ और जाकर अपनी सीट पर बैठ गए। अब उषा जी ने मुझसे पूछा,’’आप कितनी बार इस यात्रा में आई हो?’’ मैंने बताया,’’पहली बार जा रही हूं।’’ सुनते ही वह बोलीं,’’दीदी, आठ दिन बाद जब घर पर जायेंगे तो ऐसे लगेगा, जैसे दिल में कुछ टूट गया है।’’हम बतिया रहे थे और बस भव्य जग जननी दरबार, बी-45, न्यू रामप्रस्थ विहार, (बेहटा हाजीपुर), लोनी बार्डर, निकट पाईप लाइन, गाजियाबाद की ओर जा रही थी। मैं इस ओर पहली बार आई थी तो अपनी आदत के अनुसार मेरी आंखें बाहर की ओर लग गईं। वहां पहुंचते ही हम सब बस से उतरे और भव्य जग जननी दरबार की ओर चल पड़े। दरबार में माथा टेक कर, जैसे ही बाहर आते, सेवादार सामने भवन की ओर इशारा कर कहते,’’यहां जाकर फर्स्ट फ्लोर पर प्रशाद ले लो।’’वहां जाकर देखा साफ सुथरा हॉल, जिसमें सब नीचे बैठे प्रशाद ले रहे थे। जैसे ही कोई बैठता तुरंत उसके आगे भोज थाल रख दिया जाता और पूरी, आलू, मटर पनीर और हलुआ परोस दिया जाता। मुझे डॉक्टर ने नीचे बैठने और पालथी मार कर बैठने को मना किया है। एक कुर्सी देख कर मैं वहां जाकर बैठ गई। तुरंत मेरे लिए वहीं प्रशाद आ गया। प्रशाद लेने के बाद हमें कहा गया कि सत्संग भवन के बेसमेंट में सत्संग चल रहा है। सब वहीं बैठिए। 6 बसों के श्रद्धालु वहां बैठे थे। वहां मैं खड़ी सोच ही रही थी कि कारपेट पर बैठूं या न बैंठू। इतने में एक सेवादार ने आकर पूछा,’’आपको कुर्सी ला दूं!’’मैंने उसे मना कर दिया और नीचे बैठ गई पर पालथी नहीं लगाई। लग भी नहीं रही थी। इतने में पं0 जय कुमार शर्मा(जलवाले गुरुजी) आ गए। उन्होंने यात्रियों को शुभकामनाएं दीं। यात्रा की जानकारी दी। इस बार यात्रा में थोड़ा परिवर्तन किया गया। जिसमें शिवखोड़ी और बगलामुखी माता के दर्शन पर जाने के लिए सबसे पूछा,’’सबने बहुत खुश होकर समर्थन किया।’’ ऐसा लग रहा था जैसे किसी बहुत बड़े परिवार में कोई सलाह मशवरा चल रहा हो और सब उसमें अपनी राय दे रहें हों। कुछ महिलाएं पीछे थकान के कारण बैठी बैठी सोने लगीं फिर वहीं लेट गईं। उन्हें देख कर मैं सोचने लगी कि ये दिन भर तैयारी में लगी होंगी। आठ दिन के लिए घर को व्यवस्थित करके आई होंगी। दोनों समय ताजा खाना तो मिलेगा ही, यात्रा में खराब न होने वाले तले भूने व्यंजन भी बनाए होंगे। दिन भर की थकीं हैं। इन्हें कोई जगाए न। उन्हें किसी ने नहीं जगाया। जब यात्रा इंचार्ज ने सबको अपनी अपनी बसों में बैठने का अनुरोध किया तब सब जाकर बैठे। मुझे उषा जी ने सहारा देकर उठाया। मैं ठीक थी इसलिए बहुत खुश थी। हम सब बस में बैठे। गुरु जी के निर्देश पर सभी बसें चलीं। बस के अंदर जयकारे लगे। भजन कीर्तन आरती की गई।
अशोक भाटी ने सबको जल और मेवे का प्रशाद दिया और हम हरिद्वार की ओर चल पड़े। क्रमशः
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2 comments:
Gud👌👌👍💞
हार्दिक आभार
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