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Wednesday, 31 August 2022

शिव जी का रावण को वरदान यात्रा भाग 6 झारखण्ड नीलम भागी Baba Baidyanath Dham Deoghar Part 6 Neelam Bhagi 6

     


 जाते समय तो ध्यान नहीं दिया क्योंकि तब बाबाधाम में इतनी भीड़ में दर्शन के लिए पहुंचने की चिंता में थी। लौटते समय मार्ग में थूकने वालों पर बहुत गुस्सा आ रहा है। देवघर में भी तो कई घण्टे थूक रोके, खूब घुमावदार लाइनों में दर्शनों के लिए बिना थूके खड़े रहें हैं।






पर बाहर आते ही रास्ता थूक कर गंदा करना! बहुत बुरा लग रहा है। होटल पहुंच कर पहले पैर धोये फिर चप्पल पहनी। सबके आते ही गलियों से बाहर आए। वहां लाइन से ई रिक्शा खड़ीं हैं और पानी की बोतलों के कार्टून रखे हैं। इस टूर में भी पानी की जितनी मर्जी बोतल लो। ई रिक्शा का यह फ़ायदा है कि विंडो सीट का क्लेश नहीं होता। सबको सब कुछ दिखता है। पतली पतली गलियां वाले घने बाजारों में से आराम से यह रिक्शा निकल सकती है और हम शहर से परिचित हो सकते हैं। देश भर से तीर्थयात्री आएं हैं, उनकी जरुरत का सामान, प्रशादी, उपहार आदि ले जाने के लिए भी दुकानों में खूब सामान है और खरीदारी भी खूब हो रही है। 

   अब शहर से बाहर घनी हरियाली में हम हरिला जोड़ी की ओर जा रहें हैं। जो देवघर से 8 किमी. की दूरी पर है। और मेरे ज़हन में बैद्यनाथ धाम की कहानी चल रही है।

       परम शिव भक्त लंकेश्वर रावण ने शंकर जी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की। पर लंकेश शिव को प्रसन्न नहीं कर सके क्योंकि भगवान भी अपने भक्त की परीक्षा ले रहे थे। अति कठिन तपस्या के बाद भी जब शंकर जी प्रसन्न नहीं हुए तब उसने गर्मी में पंचाग्नि के बीच बैठकर, वर्षा में भूमि पर बैठ कर, सर्दी में पानी के अन्दर रह कर शिवभक्त रावण ने अति कठिन तपस्या की। इतनी कठिन तपस्या के बाद भी जब भगवान प्रसन्न नहीं हुए तब लंकेश ने अपने आपको धिक्कारा कि उसकी तपस्या में ही कोई कसर रह गई है जो उसके ईस्ट देव उससे प्रसन्न नहीं हुए हैं। दशानन ने विधिपूर्वक शिव पूजन के बाद एक एक सिर काट कर शिव को अर्पित किए ज्योंहि दसवां सिर काटने लगे उसी समय भक्त वत्सल भगवान शिव प्रकट हुए। उन्होंने कुशल वैद्य की तरह अपने हाथों से उसके नौ सिरों को फिर से जोड़ दिया। फिर रुद्र ने उससे वर मांगने को कहा। रावण को मनोवांछित फल और उत्तम बल भगवान शिव ने प्रदान किया। मनचाहा वर पाने के बाद रावण ने भगवान से विनती की कि वे उसके साथ चल कर लंका में निवास करें। ये प्रस्ताव सुन कर भगवान शंकर भारी दुविधा में फंस गए पर अपने परम भक्त रावण की बात को भी नहीं ठुकरा सकते थे। उन्होंने रावण को कहा कि वह उनके लिंग स्वरुप को ले जाए लेकिन इसे धरती पर नहीं रखना क्योंकि ऐसा करने पर वह वहीं स्थापित हो जायेगा फिर कोई शक्ति उसे वहां से उठा नहीं पायेगीं। ये जानकर देवताओं में हाहाकार मच गया। देवता और ़ऋषिगण मिलकर भगवान विष्णु जी के पास जाकर उनकी स्तुति करने लगे। विष्णुजी ने उनके आने का कारण पूछा तो वे सब विनती करने लगे,’हे प्रभु! यदि शिवजी लंका में स्थापित हो गए तो देवता और ़ऋपि विरोधी रावण सर्वशक्तिमान हो जायेगा और तीनों लोकों में अर्नथ हो जायेगा।’ अब योजना बनी जिसमें भक्त और भगवान दोनों की बात रह जाये। महाज्ञानी रावण ने पूरे विधिविधान से शिवलिंग उठाने हेतू संकल्प लेने के लिए आचमन किया। तभी वरुण रावण के मुंह से आचपन द्वारा उदर में प्रविष्ट कर गए। रावण वैद्यनाथ शिवलिंग को लिए पुष्पक विमान में सवार होकर लंका की ओर प्रस्थान कर गया। रास्ते में उसे बहुत जोर से लघुशंका लगी। और इधर हमारे ई रिक्शा चालक कांग्रेस यादव ने पूछा,’’आप वो तालाब देखेंगी, जो रावण के सू सू करने से बना है।’’मैं तो यहां का चप्पा चप्पा देखने ही आई हूँ। मेरे हां करते ही वह आगे की दो ई रिक्शा को रुकने का कहता रहा पर वो तो ये जा वो जा। हमारी रिक्शा दाईं ओर मुड़ी, उसके पीछे बाकि रिक्शा भी मुड़ी। क्रमशः   


    

Monday, 29 August 2022

श्री श्री 1008 रावणेश्वर, बैजनाथ, हृदयपीठ, बाबाधाम यात्रा भाग 5 झारखण्ड नीलम भागी Baba Baidyanath Dham Deoghar Part 5 Neelam Bhagi

  


वैद्यनाथ ऐसा पवित्र स्थल है जहाँ द्वादश ज्योर्तिलिंग और शक्तिपीठ भी स्थापित है। जिसके कारण इस पवित्र शिव धाम की महत्ता देश भर में बहुत ज्यादा है। बाबा वैद्यनाथ की पावन भूमि में ही सति का हृदय भगवान विष्णु के सुर्दशन चक्र से खण्डित होकर गिरा था, जिसके कारण इसे हृदयपीठ के नाम से जाना जाता है। एक समय सती के पिता दक्ष ने कनखल में बहुत बड़ा यज्ञ किया। इस यज्ञ में दक्ष ने सभी देवताओं, ऋषियों को आमन्त्रित किया। जानबूझ कर जिसमें भगवान शिव व सती को नहीं बुलाया क्योंकि वे शिव को अपने बराबर नहीं समझते थे। सती बिना निमंत्रण के शिव जी से हठ करके पिता के घर  गई। जहां वे अपनेे पति का अपमान नहीं सह पाईं और यज्ञ कुंड में कूद गईं। शिवजी को जैसे ही पता चला, उन्होंने यज्ञ कुंड से मृत सती को निकाला और वे सति की देह को लेकर प्रलयंकारी तांडव करने लगे। ब्रह्माडं में हाहाकार मच गया। विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सति के शरीर को 51 भागों में अलग किया। जो भाग जहां गिरा वह शक्तिपीठ बन गया। सती का मृत अंग टुकड़े टुकड़े होकर कई स्थानों पर गिरा। वैद्यनाथ धाम में सति का हृदय गिरने के कारण इस स्थान का विशेष महत्व है एवं सिद्धि आदि कार्यों के लिए इस शक्तिपीठ का विशेष महत्व है। इस शक्तिपीठ को जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है तथा यह हृदयपीठ के नाम से प्रचलित है।
 https://youtu.be/9tqxoTVEBnY

   जब भगवान विष्णु द्वारा भगवान वैद्यनाथ की स्थापना हो गई तब भगवान विष्णु ने सोचा कि इस अघोर जंगल में शिव जी को जल कैसे चढ़ाएं और उनकी पूजा अर्चना आदि कौन करने आयेगा? उस समय देवघर में बैजू नामक ग्वाला रहता था। उसे विष्णु जी ने कहा कि जो शिवलिंग तुम देख रहे हो उस पर जल चढ़ाओगे तो तुम्हारी गाय खूब दूध देंगी। बैजू यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ और वह नित्य बाबा की पूजा करने लगा। एक दिन बाबा की पूजा किए बिना उसने नाश्ता कर लिया याद आने पर दौड़ा हुआ गया और बाबा को जल चढ़ाया। बैजू की भक्ति से बाबा बहुत प्रसन्न हुए एवं बैजू से बोले,’’बालक! मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं जो भी वर मांगना हो मांगो।’’बैजू बोला,’’बाबा हमारी गाय खूब दूध देने लगें।’’ यह सुन कर बाबा बोले,’’ठीक है ऐसा ही होगा, कुछ और भी वर मांगो।’’ सुन कर बैजू परेशान हो गया वह ग्वाला तो दूध ही जानता था। वह कहने लगा,’’मां से पूछ कर आऊँ?’’बाबा बोले,’’ठीक है।’’बैजू जब अपनी माँ से पूछने गया तो उसने कहा,’’बेटा तूं महान है। जा बाबा से कहना कि तेरा नाम उनके नाम के साथ जोड़ा जाये।’’बैजू ने यही वर मांग लिया तब से इनका नाम बैजनाथ पड़ गया। मुझे लगता है तभी यहां की प्रसादी पेड़ा है और चाय वाला भी कुल्हड़ में पहले दूध फिर उसमें चाय का काढ़ा डालता है। दहीं का स्वाद तो यहाँ का है ही लाजवाब। पंडों के पास भी अपने यजमानों को दर्शन के साथ सुनाने की के लिए बहुत कथाएं हैं और उनकी हिम्मत के अनुसार पूजा की विधियां भी हैं।  

VIP दर्शन 





https://youtu.be/9tqxoTVEBnY

  यहाँ बाह्य अघ्घर््ा देने वालों की भी बहुत भीड़ थी। पूर्वी द्वार से बाहर आने के लिए सेवादारों से रास्ता पूछते पूछते हमने पूरा मंदिर परिसर घूम लिया कहीं दुर्गापूजा की तरह ढोल बज रहे हैं। यहां महिला कांवड़ियों की संख्या भी बहुत है। हम पूर्वी द्वार से बाहर आ गए। क्रमशः



Sunday, 28 August 2022

वैद्यनाथ धाम के दर्शन बाबाधाम यात्रा भाग 4 झारखण्ड नीलम भागी Baba Baidyanath Dham Deoghar Yatra Part 4 Neelam Bhagi

    इस यात्रा के इंतजाम के लिए गुप्ता जी पहले यहां आ चुके थे। कुछ लोगों ने नाश्ता नहीं किया। उनका कहना था कि वे बाबा दर्शन के बाद नाश्ता करेंगे। गुप्ता जी ने कहा कि जिसने वी आइ पी दर्शन करने हैं वो पण्डा जी को 500रु दे दो। सबने दे दिए। मैंने और डॉ. शोभा ने नहीं दिए।  सबने चप्पल होटल में उतारी, नंगे पांव हम बाबा वैद्यनाथ के दर्शनों को चल दिए। गुप्ता जी ने सबको याद करवा दिया कि पूर्वी द्वार से ही जाना है और वहीं से आना है क्योंकि ये द्वार हमारे होटल के बिल्कुल पास है। मैं और डॉ. शोभा जरनल दर्शनों के लिए चल दिए। इतनी भीड़ है कि कंधे छील रहे हैं। https://youtu.be/oOmOGdUDQIw

 श्रद्धालुओं के भगवा रंग के कपड़ों में पद, जाति, गोरा, काला, अमीर गरीब किसी में भेद नहीं है। हाथ में गंगा जल है, हर कोई गीला है।



मुझे नहीं लगता कि भारत में बारह ज्योर्तिलिंगों में इतना गंगा जल सावन के महीने में कहीं और चढ़ता होगा!! लाइन के लिए शेड वाले फुटओवर ब्रिज की तरह गैलरी बना रखी है। उसमें इतनी भीड़ पर व्यवस्थित, दर्शनों की प्रतीक्षा में धीरे धीरे चल रही है।



गर्भग्रह में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। यहां फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी मना है। मंदिर प्रांगण में भी बहुत अधिक भीड़ है। लगातार सफाई चल रही है। असंख्य श्रद्धालुओं के कारण फर्श गीला है। सफाई करने वालों की अंगुलियों के बीच की जगह लाल हो रही है। उन्हें सफाई करने से र्फुसत हो तो पैरों पर ध्यान दें।

  चिकित्सा, उपचार, प्रकृति और स्वास्थ्य के देवता, ज्योतिर्लिंग स्वरुप जिसे रावण ने स्थापित किया था। रावणेश्वर, वैद्येश्वर, बैजुनाथ, बैजनाथ और बाबा बैद्यनाथ के नाम से पुकारे जाने वाले बाबा के मंदिर और माता पार्वती के मंदिर को लाल कपड़े से बांधा गया है। शिवरात्रि को नया गठबंधन किया जाता है। पहले गठबंधन को उतारा जाता है। उस लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा होता है। मगर यहाँ वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशील लगे हैं। 

   बैद्यनाथ धाम मंदिर कमल के आकार का है और 72 फीट लम्बा हैं यहां बैद्यनाथ का मुख पूर्व की ओर है। 

देवघर का शाब्दिक अर्थ है देवी देवताओं का निवास स्थान यहाँ भोलेनाथ का अत्यन्त पवित्र और भव्य मंदिर है। विभिन्न देवी देवताओं के इसी परिसर में 22 मंदिर हैं। मां पार्वती मंदिर, मां जगत जननी मंदिर, गणेश मंदिर, ब्रह्मा मंदिर, संध्या मंदिर, कल मनाशा मंदिर, हनुमान मंदिर, मां मनशा मंदिर, सरस्वती मंदिर, सूर्य नारायण मंदिर, मां बागला मंदिर, राम मंदिर, आनंद भैरव मंदिर, मां गंगा मंदिर, गौरी शंकर मंदिर, मां तारा मंदिर, मां काली मंदिर, नारदेश्वर मंदिर, मां अन्नपूर्णा मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, नीलकंठ मंदिर। बाहर बड़ी स्क्रीन लगी है जिस पर अंदर का दृश्य दिखता है। बडी डण्डी वाली कलछी की तरह धूप बत्ती लगी मिलती है, जो नहीं जा सकते, वे बाबा मंदिर के द्वार के आगे उससे आरती कर लेते हैं। इतनी भीड़ में गर्भगृह में धूप बत्ती करना संभव ही नहीं है। सुल्तानगंज से 105 किमी. की पैदल कांवड़ यात्रा करके कांवड़िया बंधु अद्भुत भक्ति एवं निष्ठा के साथ ’बोलबम’ के पवित्र उच्चारण के साथ जल चढ़ाने की प्रतीक्षा में खड़े हैं।   


  तीर्थस्थल बैद्यनाथ धाम द्वादश ज्योर्तिलिगो में से नौंवा ज्योतिर्लिंग है। ये देश का एक ऐसा ज्योर्तिलिंग है, जो शक्तिपीठ भी है। मंदिर के तीन भाग हैं, मुख्य मंदिर, मुख्य मंदिर का मध्य भाग और मुख्य मंदिर का प्रवेश द्वार।  सावन के महीने में श्रावणी मेला लगता है। बैद्यनाथ मंदिर में लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ी हुई है। प्रतिदिन मंदिर दर्शन के लिए प्रातः 4ः00 बजे से 3.30 बजे तक तथा सायं 6ः00 से 9.00 तक खुला रहता है। क्रमशः 

 


Saturday, 27 August 2022

लोकमान्य तिलक द्वारा रोपा पौधा, आज देश का विशाल वट वृक्ष बन गया!! उत्सव मंथन नीलम भागी Special days in September Neelam Bhagi


जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधाष्टमी का त्योहार परंपरागत रूप से ब्रज, बरसाना, मथुरा वृंदावन के आसपास के क्षेत्र के साथ उत्तर भारत में मनाते हैं। भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की अष्टमी(4 सितम्बर) को राधाष्टमी मनाई जाती है। मंदिरों में कीर्तन का आयोजन किया जाता है। महान शास्त्रीय संगीतकार, संगीतज्ञों के आराध्य, ध्रु्रपद के जनक स्वामी हरिदास का जन्म भी इसी दिन हुआ था। बैजू बावरा, तानसेन जेैसे दिग्गज संगीतज्ञ उनके शिष्य थे। इनके जन्मोत्सव पर विश्वभर के शास्त्रीय संगीतज्ञ उन्हें भावांजलि देने स्वामी हरिदास संगीत एवं नृत्य महोत्सव में आते हैं।

   दक्षिण भारत में ओणम मुख्यतः केरल का सबसे प्राचीन पारंपरिक, धार्मिक, सांस्कृतिक उत्सव हैं, जिसे दुनियाभर में मलयाली समाज मनाता है। यह 30 अगस्त से शुरु हुआ है 8 सितम्बर को समापन होगा। केरल में चार दिन की छुट्टी होती हैं। हर दिन का अपना अलग महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन प्रत्येक वर्ष राजा महाबलि पाताल लोक से धरती पर अपनी प्रजा को आर्शीवाद देने आते हैं और नई फसल की खुशी में मनाया जाता है। ओणम उत्सव अपनी सांस्कृतिक प्रथाओं में नाव दौड़, नृत्य रुपों, फूलों, रंगीन कला, भोजन और पारंपरिक कपड़ों से लेकर ओनायद्या यानि भोज है, जिसमें केले के पत्ते पर 29 शाकाहारी व्यंजन परोसे जाते हैं। तिरुवोनम, दसवें दिन अपने घरों के प्रवेश द्वार पर आटे के घोल से अल्पना सजाते हैं। नये कपड़े पहनते हैं। ऐसा मानना है कि इस दिन राजा महाबली हर घर जाते हैं और परिवार को आर्शीवाद देते हैं और परिवार दावत के लिए इक्ट्ठा होता है। 

   तीन साल मुम्बई का मैंने गणेशोत्सव देखा। दस दिन महाराष्ट्र गणपतिमय रहता है। बप्पा के आवाहन से लेकर विर्सजन तक श्रद्धालु, आरती, पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में, लगभग सभी उपस्थित रहते हैं। बच्चों को तो इन दिनों घर में रहना पसंद ही नहीं है। मांए खींच खींच कर इन्हें घर में खिलाने पिलाने लातीं, खा पीकर बच्चे फिर पण्डाल में। रात को ये नन्हें दर्शक, जो सांस्कृतिक कार्यक्रम यहां देखते, दिन में गर्मी की परवाह किए बिना वे उसकी नकल स्टेज पर करते हैं। इसमें मेरी गीता भी शामिल होती। सभी बच्चे इस समय कलाकार होते हैं। दर्शकों की उन्हें जरुरत ही नहीं थी। मुझे बच्चों के इस कार्यक्रम में बहुत आनंद आता। इन दिनों मुझे यहां कुछ न कुछ प्रभावित जरुर करता रहता। घरों में भी गणपति 1,3,5,7,9 दिन बिठाते हैं। गौरी पूजन, दो दिन लक्ष्मी पूजन, छप्पन भोग, त्यौहार के बीच में बेटियां भी गणपति से मिलने मायके आती हैं और बहुएं भी मायके जाती हैं। मसलन हमारे सामने के फ्लैट में रहने वाले परिवार ने गणपति बिठाए तो उनके तीनों भाइयों के परिवार दूसरे शहरों से वहीं आ गए। पूजा तो हर समय नहीं होती, बच्चे आपस में घुल मिल रहें हैं। महिलाओं पुरुषों की अपनी गोष्ठियां चल रहीं थी। एक दिन अष्टमी मनाई गई। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गौंरा अपने गणपति से मिलने आती हैं। उपवास रखकर, कुल्हड़ के आकार या गुड़ियों के रुप में गौरी को पूजते हैं और सबको भोजन कराते हैं। दक्षिणा उपहार देते हैं पर उस दिन नियम है कुछ भी, जूठन(सभ्य लोग हैं जूठा नहीं छोड़ते) तक नहीं फेंकते। यहां तक कि पान खिलाया तो उसका कागज भी दहलीज से बाहर नहीं डालते। अगले दिन दक्षिणा उपहार ले जा सकते हैं। शाम को आरती के बाद कीर्तन होता है। मंगलकारी बप्पा साल में एक बार तो आते हैं इसलिए उनके सत्कार में कोई कमी न रह जाए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार मोदक, लड्डू के साथ तरह तरह के व्यंजनों का भोग लगाते हैं। जो सब मिल जुल कर, प्रशाद में खाते हैं। थोड़ी सी जगह में संबंधियों, मित्रों के साथ आनंद पूर्वक नाच भी लेते हैं। गणेशोत्सव में, मैं प्रतिदिन कहीं न कहीं गई हूं। वहां हर जगह नियंत्रित भीड़ और जिस भी सोसाइटी के गणपति उत्सव में मैं गई, देखा सब थोड़ी जगह में एडजस्ट हो जाते हैं। 

     मेड और मैम दोनो एक दूसरे का सहयोग करते हैं। आपके घर मेड काम कर रही है। सोसाइटी के गणपति की आरती शुरु हो गई। वह हाथ धो कर बोलेगी,’’दीदी, मैं जाकऱ आती।’’ और आरती में जाकर शामिल हो जाती। समापन पर आकर वैसे ही जल्दी जल्दी काम में लग जाती। विर्सजन का दिन तो मुझे घर से बाहर ही रहने को मजबूर करता। गणेश चतुर्थी के बाद मैं पहली बार लोखण्डवाला से इन्फीनीटी मॉल के लिए निकली। ढोल नगाड़ों की आवाजें, एक लड़की ने बड़ी श्रद्धा से गणपति गोद में ले रखे हैं। दूसरी लड़की साथ चल रही है। ढोल की ताल पर दोनों के पैर चल रहें हैं। उनके चेहरे से टपकती श्रद्धा को तो मैं लिखने में असमर्थ हूं। मनचला तो मुंबई में होता ही नहीं है। कुछ सुनाई नहीं दे रहा था क्योंकि ढोल वाला भी जोर जोर से ढोल बजा रहा था। उनके पीछे, सामने से भी बड़ा विर्सजन  जूलूस आ रहा था। यहां ढोल से ज्यादा ऊंची आवाज़ में श्रद्धालु जयकारे लगा रहे थे,’’गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तूं जल्दी आ।’’मैंने सैयद से पूछा,’’ये दोनों लड़कियां क्यों विर्सजन के लिए अकेली जा रहीं थीं?’’सैयद बोले,’’बाहर की होंगी। बप्पा ने जल्दी सुन ली। नई नौकरी होगी, तभी तो एक दिन के गणपति  बिठाएं हैं।’’ 

    सैयद जहां से भी रास्ता बदलते वहीं विसर्जन का जलूस मिलता। मैं ये दावे से कह सकती हूं कि आस्था और भक्ति भाव से किए उन नृत्यों को जिन्हें मैंने गणपति विर्सजन जूलूस में देखा है, उसे दुनिया का कोई भी कोरियोग्राफर नहीं करवा सकता। गणपति के आकार में और जूलूसों में श्रद्धालुओं की संख्या में र्फक था पर चेहरे के भाव को दिखाने के माप का अगर यंत्र होता तो सबका भाव एक ही होता। किसी के गणपति चार या तीन पहिए के सजे हुए ठेले पर हैं, ऑटो रिक्शा में हैं तो किसी ने उन्हें सिर पर बिठा रखा है। कहीं बप्पा बहुत सजे हुए ट्रक में विराजमान हैं। पर सब गणपति से बिनती कर रहें हैं कि अगले बरस तूं जल्दी आ। अगले दिन उत्कर्षिनी बोली,’’संगीता दास के घर गणपति आये हैं। उसका घर दूर हैं पहले उसके गणपति से मिलने जायेंगे फिर विजेता के गणपति से मिलेंगे। संगीता के घर हम तीन बजे पहुंचे। वह यहां अकेली रहती है। भतीजी चंचल दास(टुन्नु) दूरी के कारण होस्टल में रह कर पढ़ती है। गणपति को अकेला तो छोड़ते नहीं हैं। घर में दादी के गणपति के पास तो पूरा परिवार है। इस बार दोनों घर नहीं जा पाईं। यहां बुआ ने गणपति बिठाए, टुन्नु आ गई। संगीता ने बड़ी प्लेटों में अलग अलग, बहुत वैराइटी का प्रशाद दिया। सब कुछ घर में बनाया हुआ और बहुत स्वाद। उत्कर्षिनी ने पूछा,’’अकेली ने इतना सब कैसे बनाया!! एक को तो गणपति के पास बैठना है।’’ संगीता बोली,’’तीन दिन के लिए तो बप्पा आएं हैं। बाजार का भोग लगाने को मन नहीं मानता, बप्पा के लिए, मैं बहुत शौक से बनाती हूं।’’’’ टुन्नु चाय बना कर लाई बोली,’’कोई आता है तो चाय, पानी, प्रशाद मैं लाती हूं, बुआ उनसे बात करतीं हैं।’’ विजेता का घर तो हमारे रास्ते में था। वहां हम आरती के समय पहुंचे। पण्डित जी नौ बजे के बाद आरती करवाने आए, वो बहुत बिजी थे। आरती सम्पन्न होने तक घर के सभी सदस्य भी पहुंच गए थे सबने प्रसाद डिनर किया। रात 11 बजे हम लौटे। आनंद चर्तुदशी के दिन सोसाइटी के गणपति का विर्सजन था। नाचते जयकारे लगाते सब गणपति के जूलूस में चल दिए। पर्यावरण का ध्यान रखते हुए, वर्सोवा में एक तालाब बनाया था, वहां विर्सजन था। ट्रक में गणपति बाकि पैदल नाचते हुए जा रहे थे। मैं बैक रोड से जल्दी जल्दी पेैदल वर्सोवा पहुंच गई। वहां बड़े मंच पर गणमान्य लोग बैठे थे। मैं किसी तरह तालाब के साथ मंच के पास खड़ी हो गई। इस जगह से मुझे तीनों सड़कों से आते विसर्जन के जुलूस दिख रहे थे। लोग अपने गणपति के साथ लाइन में प्रतीक्षा कर रहे थे। अपने नम्बर से पहले गणपति की आरती करते। माइक से जब सोसाइटी का नाम बोला जाता तो वो गणपति को सुनिश्चत जगह पर लाते, तालाब में खड़े तीन आदमियों में से दो बड़ी श्रद्धा से गणपति लेकर विसर्जित करते। सब जोर जोर से जयकारे लगाते और म्यूजिक बजता। 

   और मेरे दिमाग में अब तक की सुनी गणपति की कथाएं चल रहीं थीं। महर्षि वेदव्यास महाभारत की कथा लिखना चाह रहे थे पर उनके विचार प्रवाह की रफ्तार से, कलम साथ नहीं दे रही थी। उन्होंने गणपति से लिखने को कहा। उन्होंने लिखना स्वीकार किया पर पहले तय कर लिया कि वे लगातार लिखेंगे जैसे ही उनका सुनाना बंद होगा, वह आगे नहीं लिखेंगे। महर्षि ने भी गणपति से विनती कर, उन्हें कहा,’’ आप भी एडिटिंग साथ साथ करेंगे।’’ गणपति ने स्वीकार कर लिया। जहां गणपति करेक्शन के लिए सोच विचार करने लगते, तब तक महर्षि अगले प्रसंग की तैयारी कर लेते। वे लगातार कथा सुना रहे थे। दसवें दिन जब महर्षि ने आखें खोलीं तो पाया कि गणपति के शरीर का ताप बढ़ गया है। उन्होंने तुरंत पास के जलकुंड से जल ला कर उनके शरीर पर प्रवाहित किया। उस दिन भाद्रपद की चतुर्दशी थी। इसी कारण प्रतिमा का विर्सजन चतुर्दशी को किया जाता है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। 

   गणपति उत्सव की शरूवात, सांस्कृतिक राजधानी पुणे से हुई थी। शिवाजी के बचपन में उनकी मां जीजाबाई ने पुणे के ग्रामदेवता कस्बा में गणपति की स्थापना की थी। तिलक ने जब सार्वजनिक गणेश पूजन का आयोजन किया था तो उनका मकसद सभी जातियों धर्मों को एक साझा मंच देना था। पहला मौका था जब सबने देव दर्शन कर चरण छुए थे। उत्सव के बाद प्रतिमा को वापस मंदिर में हमेशा की तरह स्थापित किया जाने लगा तो एक वर्ग ने इसका विरोध किया कि ये मूर्ति सबके द्वारा छुई गई है। उसी समय निर्णय लिया गया कि इसे सागर में विसर्जित किया जाए। दोनों पक्षों की बात रह गई। तब से गणपति विर्सजन शुरु हो गया।

   हमारे गणपति का रात नौ बजे विर्सजन हुआ और मैं सबके साथ घर लौटी। गणपति विर्सजन में 4 से 9 बजे तक वहां खड़ी हर प्रांत के लोग देख रही थी क्योंकि दक्षिण भारत के कला शिरोमणि गणपति तो सबके हैं। आज तिलक की याद आ रही हैं उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सबको संगठित किया था। आज देश विदेश में भारतवासी इसे मिलजुल कर ही मनाते हैं। 

    लोकमान्य तिलक के लगाए पौधे की शाखाएं देशभर में फैल गईं हैं। उत्तर भारत में आनंद चतुर्दशी को गणपति विर्सजन होता है और जहां रामलीला होती है, उस स्थान का भूमि पूजन होता है।

       हमारे धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह आनंद चतुदर्शी के बाद पूर्णिमा से अमावस तक लगभग 16 दिन का होता है। यह 10 सितम्बर से 25 सितम्बर तक है। मान्यता है कि यमराज श्राद्ध पक्ष में पितरों को मुक्त कर देते हैं ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। इन दिनों पितरों को याद किया जाता है, उनके प्रति आदर भाव प्रकट किया जाता है। पितरों के निमित्त किए गए तर्पण से पितर तृप्त होकर वंशजों को आर्शीवाद देते हैं। जिससे जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त होती है। अमावस को पितृ विर्सजन करते हैं।  

 सृजन, निर्माण, वास्तुकला, औजार, शिल्पकला, मूर्तिकला एवं वाहनों के देवता विश्वकर्मा जयंती 17 सितम्बर को मनाई जायेगी। कारीगरों का यह उत्सव का दिन है। सब एक जगह इक्कट्ठा होकर पूजा करते हैं और फिर मूर्ति का विर्सजन करते हैं। 

    पहले शारदीय नवरात्र(26 सितम्बर) को महाराजा अग्रसेन का जन्मदिन मनाया जाता है। महाराजा अग्रसेन जयंती पर अग्रवाल समुदाय द्वारा धार्मिक भक्ति भाव के साथ शोभा यात्रा निकाल कर मनाई जाती है। दिन भर भण्डारे और समाज की भलाई के कार्य किए जाते हैं। इसी दिन शारदीय नवरात्र आरम्भ हैं। प्रति दिन देवी दुर्गा के नौ स्वरुपों में से एक की पूजा, व्रत कर हम अध्यात्मिक और मानसिक शक्ति प्राप्त करते हैं। महिलाएं भजनों की डायरियां लेकर कीर्तनों में व्यस्त रहती हैं और नए भजन भी नोट करती हैं। जगह जगह रामलीला का मंचन शुरु हो जाता हैं। दुर्गा पूजा, गरबा डांडिया की जोर शोर से तैयारी शुरु होती है।

प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद के सितंबर अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है





  


देवघर से परिचय बैद्यनाथ बाबाधाम यात्रा भाग 3 झारखण्ड नीलम भागी Baba Baidyanath Dham Deoghar Rail Yatra Part 3 Neelam Bhagi



         स्टेशन से बाहर आते ही ग्रुप फोटो लिया गया। बड़े बड़े पंडाल कावड़ियों के विश्राम के लिए हैं। इतना बड़ा तीर्थस्थल है पर स्टेशन के बाहर सफाई ठीक नहीं है। खूबसूरत टाइल्स ऐसी हैं कि जिस पर लगेज़ के पहिए ठीक से नहीं चलते। सीनियर सीटीजन के लिए बैग खींचना बहुत मुश्किल होता है। खूबसूरत टाइल्स के साथ एक पट्टी सीमेंट की ही डाल दें तो महिलाओं और बुर्जुगों को लगेज़ खींचने में परेशानी तो नहीं होगी। वैसे ऑटो स्टैण्ड तक सौर्न्दयीकरण किया गया है। झील के साथ में बैंच लगे हुए हैं। एक बैंच पर कॉलकता के पवन हाथों में कांवड़ यानि कई मिट्टी की मटकियों में गंगा जल लिए सुस्ता रहे हैं। सारा वजन उनकी अंगुलियों में है। बाबा को चढ़ाने का जल नीचे नहीं रखते हैं।


लोगों ने झील में कचरा भी फैंक रखा है। यहां से होटल 7 किमी. दूर है। ऑटो में बैठ कर होटल की ओर चल दिए। हमारे ऑटो ड्राइवर का नाम प्रवीण अग्रवाल है।

वह देवघर के बारे में भी बताता जा रहा है। मसलन बिहार से अलग होकर यहां बहुत विकास हुआ है। बिजली खूब आती है। सड़के दुरुस्त रहतीं हैं। मैंने पूछा,’’चोरी, झपटमारी वगैरह।’’ उसने जवाब दिया,’’अब ऐसा नहीं है।’’जब बताया कि स्टेशन पर गाड़ी से उतरते समय एक महिला की चैन झपट ली गई। वो तुरंत बोला,’’वो झपटमार बिहार का होगा, यहां के लोग ऐसे नहीं हैं।’’ सुबह का समय है सड़कों पर सफाई हो रही है। ताज़ी सब्ज़ियां और फल दुकानदार सजा रहे हैं। फुटपाथ पर तरह तरह की दातुन बिक रही है। साथ में कुछ पत्ते भी लोग खरीद रहे थे। मैंने पूछा,’’ये पत्ते क्यों खरीद रहें हैं?’’ उसने बताया कि ये किरोता के पत्ते हैं। इसको खाने से पखाना ठीक आता है।

ऑटो ने हमें उतार दिया। आगे गलियां हैं। वहां कोई भी सवारी ले जाना मना है। सावन का महीना है। यहां सावन भादों जल चढ़ता है। चारों ओर भगवा रंग ही दिख रहा है और ’बोल बम’ की आवाजें हीं आ रहीं हैं। हम सामान उठा कर होटल की ओर चल दिए। गलियों के दोनों ओर नाश्ते खाने, चाय और पेड़ों की दुकाने हैं। होटल में मुझे जयपुर से आई डॉ. शोभा के साथ रुम मिला। रुम में आते ही मैंने लगेज़ खोला सब कुछ गीला, सामान फैलाया। जो कम गीले हैं वो कपड़े पहने। तैयार होकर हम होटल से बाहर आए। सामने ही रैस्टोरैंट में नाश्ता करना है। खाने के रेट यहां नौएडा के मुकाबले बहुत कम हैं। कई वैराइटी का परांठा साथ में दहीं, सब्जी, सरसों की चटनी और आचार। परांठा भी खूब बड़ा और खूब मसाला भरके और कुरकुरा सेकते हैं यानि लाजवाब।

दहीं में पूछते हैं कि चीनी डालें। हमने मना किया पर वह दहीं मिठास वाला। हमने पूछा,’’भैया आपने दहीं में मीठा क्यों डाला?’’ वो बोला,’’आपके सामने मिट्टी के कुनडे में से दिया है। आपने चीनी डालने को मना किया तो नहीं डाली।’’ बहुत ही स्वाद दहीं। यहां दहीं सप्लाई करने वाले अलग हैं। ठेलों में मिट्टी के कुंडों में दहीं रैस्टोरैंट में आता है। नाश्ते के बाद दूसरी दुकान पर हमें चाय पीनी है। यहां सिर्फ चाय ही बिकती है। चाय बनाने का तरीका भी बिल्कुल अलग है। कुल्हड़ में कड़ा हुआ मीठा दूध भर कर उसमें उबला हुआ चाय का पानी और मसाला डाल कर देते हैं। मुझे खूबसूरत टी सैट में चाय अलग, दूध चीनी अलग वाली चाय कभी मजेदार नहीं लगी। पर इस चाय का गज़ब का स्वाद। अगर मैंने भारी परांठा न खाया होता तो मैं बार बार चाय पीती। वहीं उसके बैंच पर बैठ कर चाय पीते हुए मंदिर जाते हुए श्रद्धालुओं को देखना बहुत अच्छा लग रहा है।

हमने चाय पी कर कुल्हड़ डस्टबिन में डाला। उसने तुरंत हमारी कुल्हड़ पकड़ने से मिट्टी लगी अंगुलियों पर अपने यंत्र से पानी डाला। उसका हाथ धुलाने का यंत्र है, कोलड्रिंक की बोतल में पानी भर कर उसके ढक्कन में छेद किए हुए हैं। उससे फुव्वारे की तरह पानी गिरता है। क्रमशः          

   


Wednesday, 24 August 2022

रेल में मजेदार गोष्ठी बाबाधाम देवघर झारखण्ड की ओर रेल यात्रा भाग 2 नीलम भागी Baba Baidyanath Dham Deoghar Rail Yatra Part 2 Neelam Bhagi

 

      अचानक मेरे बालक इंटरव्यू में रुकावट आ गई। दो सीनियर सीटीजन महिलाएं बदहवास सी हमारी बैंच के पास आकर खड़ी हो गईं और साथ ही हमारी गाड़ी का न0 और बोगी न0 भी डिस्प्ले हो गया। बाबू परिवार चला गया। दोनो महिलाएं मेरे पास बैठ गईं। दो चार प्रश्न करते ही पता चला कि वह देवरानी जेठानी हमारी सहयात्री हैं। अब वह डिब्बा देखने के लिए मोबाइल में टिकट ढूंढने लगीं। काफी मशक्त के बाद वे टिकट निकाल पाई। जिसमें डिब्बा न0 बी 13 था। मैंने भी पूरा टिकट नहीं पढ़ा पर उन्हें कह दिया,’’ 3 ए.सी. में हमारी सिर्फ डिब्बा बी 2 और बी 3 में सीटें हैं। आप मेरे साथ डिब्बे में आना, मेरे सामने की सीट पर गुप्ता जी हैं। वो देख लेंगे।’’गाड़ी में बैठते ही गुप्ता जी आये। अपना छोटा सा बैग सीट पर रख कर मुझे ध्यान रखने को कह कर चले गए। हमारे डिब्बे में भी कहीं सीटों के कारण घड़मस सा मचा लग रहा है कि दो सीटें दो दो व्यक्तियों को कैसे रिर्जव हो सकती हैं? किसी लड़के ने ध्यान से देखा, जेठानी ही अपने मोबाइल में टिकट दिखाती, जो लौटने का है। ये पता लगते ही बेमतलब की समस्या हल हो गई। अब जेठानी मेरे सामने की साइड सीट पर थी। ये देखकर मुझे याद आता है कि अंकुर मुझे हमेशा टिकट का प्रिंट आउट निकाल कर देता है। इस बार भी वह कहता रहा, मैंने कहा कि गुप्ता जी हैं। वैसे भी मैं स्टेशन जल्दी ही पहुंचती हूं। 

   मेरे कपड़े तो सूखे नहीं थे। बहुत ठंड लग रही थी। खाना खाया। मैंने चादर लपेट ली और कंबल ओढ़ लिया। थोड़ी देर बाद दूसरी चादर बदल ली। कंबल ओढ़ कर उस पर ये सीली चादर फैला ली। धीरे धीरे ठंड भागती जा रही थी। हमारे आस पास की सीटों में एक लड़का बहुत ही अजीब हरकतें कर रहा था। मिडल सीट खोलने लगा तो मैंने कहा,’’हमारे ऊपर की 19 और 22 अपर सीट पर आप लेटो, सोओ।’’वो बोला,’’हम अपनी रिर्जव सीट पर ही लेटेंगे।’’मैं लंच कर चुकी थी। उसने मिडल सीट खोल ली। मैं भी ये सोच कर अपनी लोअर सीट पर लेट गई कि क्यों इसे नियम कायदे बताऊँ? क्या पता नाइट ड्यूटी से आ रहा हो। गुप्ता जी सब सहयात्रियों से मिल जुल कर 4 बजेे आए। उन्होंने अपना बैग हाथ में लिया, अब मैं निश्चिंत होकर सो गई। सोकर उठी तो मैंने और सामने साइड सीट पर बैठी जेठानी जी ने चाय पी। देवरानी भी आ गईं। अब हम चारों के बीच में ’आजकल बच्चों की शादी’ के विषय पर बहुत मजे़दार गोष्ठी शुरु हो गई। सबके प्रश्नों का जवाब गुप्ता जी दे रहे थे। चर्चा चलती ही जा रही थी। इतने में प्रवीण अपने बेटे को लेकर दादू के पास आ गया। मीटिंग डिस्पर्स हो गई। रात आठ बजे एक हमारी एक सहयात्री महिला,  गुप्ता जी से बोली कि उसकी मिडिल सीट है। वह लोअर सीट चाहती है। गुप्ता जी ने तुरंत उन्हें अपनी सीट दे दी और वे उसकी सीट पर सोने चले गए। ये महिला खिड़की की ओर पैर करके रास्ते की ओर सिर करके सो गई। सुबह 5.30 पर हम जिसीडीह स्टेशन पर उतरे। स्टेशन पर हमें अपने सभी साथी मिले। मेरी फेसबुक मित्र महिमा शर्मा सबसे पहले मिलीं और अपनी दोनों बहनों जया गौड़ और पद्मा शर्मा से परिचय करवाया। पद्मा जी का व्यक्तित्व बहुत गरिमामय है और सफेद बाल उन पर बहुत फ़बते हैं। क्रमशः     

बैजनाथ यात्रा भाग 1 https://neelambhagi.blogspot.com/2022/08/1-baba-baidyanath-dham-deoghar-yatra.html





       


Monday, 22 August 2022

बैद्यनाथ धाम देवघर झारखण्ड की यात्रा भाग 1 नीलम भागी Towards Baidyanath! Part 1 Neelam Bhagi

   


   दो महीने पहले जैसे ही बैजनाथ बाबाधाम यात्रा की सूचना मेरे पास आई, मैंने जाने के लिए बुकिंग करवा ली। मेरी व्हाट्सअप पर टिकट आ गई। गाड़ी का नाम भी बैजनाथ धाम है और नम्बर 22466 है और मेरी 3ए.सी के बी 2 में 20 नम्बर लोअर सीट है। पहले भी मैं जय प्रकाश गुप्ता द्वारा आयोजित नेपाल मुक्तिनाथ यात्रा पर जा चुकी थी। अब कुछ सोच विचार तो करना ही नहीं है। बुक करने से पहले फोन पर गुप्ता जी से एक ही प्रश्न किया था कि सावन की शिवरात्रि या सावन का सोमवार तो नहीं है। उन्होंने जवाब दिया,’’ नहीं है।’’ ऐसा मैंने इसलिए पूछा था क्योंकि यहाँ श्रद्धालुओं की हमेशा भीड़ रहती है। वैसे आप एक घण्टे में दर्शन कर सकते हैं पर सावन के सोमवार में 5 से 6 घण्टे लाइन में लगना मामूली बात है। ऐसा मैंने सुन रखा है। 3 अगस्त को हमें जाना है। जाने से 5 दिन पहले देखा, गलती से  मुझसे टिकट भी डिलीट हो गई। मेरी गुप्ता जी के साथ टिकट है, उनकी 17 नम्बर सीट है।  कोई चिंता नहीं। अब दो महीने बाद जाने से पहले ये भी याद नहीं आ रहा है। 5 दिन पहले सूचना आई 3 अगस्त को सब आनन्द विहार रेलवे स्टेशन पर प्लेटर्फाम नम्बर 2 पर 11.30 बजे पहुंच जाएं। अब रेल में बिस्तर तो मिलने लगा है। 3 को जाना और 6 को लौटना है। मामूली सामाना लेना है। मेरे घर से स्टेशन का 20 -25 मिनट का रास्ता है। घने बादल बरसने को तैयार हैं। अंकुर का मैसेज़ है कि 11.05 पर उसकी मीटिंग खत्म होगी, वह तुरंत कैब बुक कर देगा। 11 बजे गेट पर ही ऑटा मिल गया। बाबा बैद्यनाथ का घ्यान करके बैठ गई फिर उससे पूछा,’’ कितना पैसा लोगे?’’ वह बोला,’’150रु।’’ अब और भी हैरान! इतने खराब मौसम में स्टेशन के नाम पर कुछ भी मांग सकता था। जैसे ही ऑटो चला, झमाझम बारिश शुरु हो गई। उस दिन सीजन की सबसे ज्यादा बरसात थी। किसी तरीके से अंकुर को मैसेज़ किया कि मैं निकल चुकी हूं। ऑटोवाले ने बरसात के कारण ऑटो में इस तरह से इंतजाम किया है कि सवारी को बौछार न आए पर तेज हवा ने उसका सारा इंतजाम बेकार कर दिया है। ऐसे लग रहा है मैं मोटर बोट में जा रही हूं। पानी पानी दिख रहा है। स्टेशन पर 11.30 पहुुंच गई। सड़क से स्टेशन में जाने के लिए पानी में छपाक छपाक करके जाना पड़ा। जूते पानी भरने से भारी हो गए। मैं जाकर प्लेटफॉर्म न0 2 पर सीट पर बैठ गई। बाजू में बैठे मां बेटे ने मुझसे पानी टपकता देखकर दूरी बना ली।




उसी समय गुप्ता जी का फोन आया कि मैं लाउंज में आ जाऊँ। मैंने कहा,’’ मैं यहां ठीक हूँ। आप मुझे बोगी न0 बता दीजिए।’’ उन्होंने बताया कि हमारे सब लोग बी 2 और बी 3 में हैं और कुछ एस में हैं न0 याद नहीं आ रहा हैं। गाड़ी 12.45 पर जायेगी। यानि सवा घण्टा है। तब तक मेरे कपड़ों का पानी टपकना बंद हो जायेगा। ए.सी. में गीले कपड़ों में ठंड तो लगेगी ही। कुछ देर में गुप्ता जी अपने भतीजे प्रवीण के साथ मिलने आये। उन्होंने प्रवीण से मेरा परिचय करवाते हुए कहा,’’ये लेखिका नीलम भागी जी हैं।’’ मुझे बैच देकर और वे बाकि साथियों से मिलने चल दिए। बाजू वाले बच्चे के पापा ने अपने बेटे को समझाते हुए कहा,’’बाबू ये लेखिका हैं। इनसे सब समझिए कि कैसे लिखा जाता है? अपना नॉलिज बढ़ाइए।’’ कल सुबह हम पहुंचेंगे। लगेज़ भी भीग चुका था। मैं जूते कपड़े कब कैसे सूखाने है ये सोच रही थी और साथ ही कॉमिक्स पढ़ने की उम्र के बाबू के प्रश्नों के उत्तर भी दे रही थी। क्रमशः    


Tuesday, 9 August 2022

चिड़वा पीनट बटर नमकीन नीलम भागी Neelam Bhagi



 हमारा बड़ा संयुक्त परिवार है। 1 किलो का पीनट बटर का डिब्बा आता है। बच्चे स्वाद से खाते हैं। जब पूरा चम्मच भरकर नहीं निकलता तो उसको रख देते हैं और नया खोल लेते हैं। मुझे कुछ भी वेस्ट करना अच्छा नहीं लगता। दो डिब्बे रखे थे। उनमें काफी पीनट बटर लगा हुआ था। अब उसमें हाथ डाल कर तो निकाला नहीं जा सकता। मैंने चिड़ावा अच्छे से भूना। जब खाने से वह दातों में नहीं चिपका यानि  बिल्कुल कुरकुरा हो गया तो गरम गरम थोड़ा सा चिड़वा मैंने एक डिब्बे में यह सोच कर डाला कि पीनट बटर पिघल के इसमें मिक्स हो जाएगा। पर ऐसा नहीं हुआ। तेज गरम चिड़वे के कारण डिब्बे की शेप बिगड़ गई। अब मैंने दूसरे डिब्बे में थोड़ा सा हल्का गर्म चिड़वा डाला और डिब्बे को अच्छी तरह हिलाया, जिससे सारा पीनट बटर, चिड़वे में लग गया। डिब्बा भी साफ हो गया और बन गया लाज़वाब हल्की मिठास वाला नमकीन।

 "चिड़वा पीनट बटर" बन गया। मैंने उसी  डिब्बे में रखा। स्वाद चखते चखते ही 1 किलो के पीनट बटर के डिब्बे में जितना चिड़वा आता है, वह सारा खत्म हो गया। डिब्बा एकदम साफ हो गया और सब मुझसे रेसिपी पूछ रहे हैं, "कैसे बनाया।" मैंने कहा,"मेरे ब्लॉग में पढ़ लेना।"

   कोई माप नहीं, मैंने जितना चिड़वा भूना था, उतना ही मैंने पीनट बटर के डिब्बे में डाल दिया तो पूरे 1 किलो के डिब्बे में समा गया,  ना कोई मसाला, नमक, मिर्च कुछ नहीं। सिर्फ दो इंग्रेडेंट चिड़वा और डिब्बे में चिपका हुआ पीनट बटर। 

 अगर पीनट बटर कम होता तो शायद चाट मसाला वगैरह डाला जा सकता है। 








Tuesday, 2 August 2022

मांगे ननद रानी कंगना,मचली मोरे अंगना। विश्व स्तनपान सप्ताह नीलम भागी

   




विश्व स्तनपान सप्ताह 1 से 7 अगस्त तक मनाने का विश्व स्वास्थ संगठन का उद्देश्य कामकाजी महिलाओं में स्तनपान संबंधी जागरूकता पैदा करना है। 

 अमेरिका में प्रसव से पहले सरकार की तरफ से ब्रैस्ट पम्प आया। उत्कर्षिनी ने उसकी तस्वीर मुझे भेजी। आप भी देखिए। डिब्बे पर पिता बच्चे को बोतल से मां का दूध पिला रहा है। मां ने पम्प करके दूध फ्रिज में रख दिया। एकल परिवार है। पैटरनिटी लीव में मां प्रसव के बाद आराम कर सकती है। बच्चे के दूध के समय मां सो रही है या ऑफिस में है तो पिता स्टोर किया मां का दूध बच्चे को पिला देता है। 

   सिंगापुर में छोटी छोटी दूध की बोतलें और कुछ छोटे छोटे दूध के पाउच उन पर तारीख और समय लिख कर, उच्च पद और लम्बे समय तक काम में व्यस्त रहने वाली महिलाओं के फ्रिज में मैंने देखे। महिलाओं के मन में ज़रा भी गिल्ट नहीं रहता है कि उनके बच्चे माँ के दूध से वंचित हैं और फार्मूला मिल्क पर पल रहीं हैं। इलैक्ट्रिक ब्रैस्ट पम्प की बदौलत बच्चे भरपूर माँ का दूध पीते हैं। वहाँ मैटरनिटी लीव तीन महीने की है।

     फ्रिज़ में माँ का दूध तीन दिन तक और फ्रिज़र में तीन महीने तक खराब नहीं होता है। बस रखने में साफ सफाई का पूरा घ्यान रखना पड़ता है। पम्प को इस्तेमाल के बाद सैनेटाइज़ करना जरुरी है। प्रसव के बाद माँ का दूध बहुत होता है, छोटा बच्चा उतना नहीं पी सकता है इसलिए पम्प करके पाउच से हवा निकाल कर सील करके या बॉटल में फ्रिज़र में रखते जाते हैं। घर में बच्चे की जो देखभाल करता है, वह माँ के दूध को फ्रिज़ से निकाल कर, गर्म पानी के कटोरे में रख देता है। ठण्डा होने से फैट ऊपर जम जाती है। इससे दूध में फैट भी पिघल जाती है गुनगुना मां का दूध बच्चे को पिला देते हैंे।

       बेबी को दूध पिलाने से, पम्ंिपग करने से दूध का प्रोडक्शन बना रहता है। इसलिए वहां ऑफिस में एक पम्ंिपग रुम है। दूधमुँहें बच्चों की माँ, वहाँ पम्प करने जाती हैं। वह मोबाइल पर अपने बच्चे की हरकतों को देखते हुए पम्ंिपग करती है। मैंने पूछा,’’घर आने तक दूध खराब नहीं होता।’’उन्होंने एक बैग और रबर की पानी से भरी थैली दिखाई और बताया कि पानी की थैली को फ्रिजर में जमा देते हैं। दूध भी फ्रिज़र में रख देते हैं। लाइट यहां कभी जाती नहीं है। शाम को बैग में जमा दूध और बर्फ की थैली रख कर चैन बंद कर देते हैं। घर आते ही फिर फ्रिज में रख देते हैं। 

    हमारे देश में तो नवजात बच्चे को पहली बार मां का दूध पिलाने की रस्म, उत्सव की तरह होती है। जच्चा प्रसव के बाद कमजोर होती है, बच्चे की बुआ स्तनपान करवाने में मदद करती है। जिसका ननद नेग मांगती है। बाहर महिलाएं ढोलक की थाप पर बारगनिंग वाला सोहर(जन्म के समय गाये जाने वाले लोकगीत) गाती हैं।

 मांगे ननद रानी कंगना, मचली मोरे अंगना।

  ये कंगना मेरे मायके से आया, बाबा ने बनवाया, भइया ने जड़वाया।

  कमले सुनार का, पूरे हज़ार का, न दूंगी, न दूंगी कंगना.....

    गीतों के बाद, महिलाएं जलपान करतीं हुई बतियातीं हैं, जिसका विषय होता है कि उन्होंने अपने बच्चों को कब तक दूध पिलाया। पहला दूध तो डॉ. प्रसव के कुछ समय बाद से ही पिलाना शुरू करवा देतीं हैं। लेकिन घर आने पर यह रस्म की जाती है। इससे बेटी भी मायके आकर कुछ दिन जच्चा बच्चा को संभालने में मदद कर देती हैं।


ये देश हमारा प्यारा, हिन्दुस्तान जहां से न्यारा!! उत्सव मंथन अगस्त नीलम भागी

 


ये देश हमारा प्यारा, हिन्दुस्तान जहां से न्यारा!! उत्सव मंथन अगस्त  नीलम भागी  

 



कहते हैं कि पुरानी बातों को करने का नशा होता है और मित्र के बिना तो जीवन अधूरा सा लगता है। कितने भी व्यस्त हों पर सब मित्रों के लिए समय निकाल ही लेते हैं इसलिए अगस्त के पहले रविवार को अर्न्तराष्ट्रीय मित्र दिवस मनाया जाता है।

   नाग को हमारे यहां देवता की तरह पूजा जाता है। नागपंचमी(2 अगस्त) पर इनकी पूजा का विशेष दिन होता है। हमारे पूर्वजों ने इनकी पूजा करके हमें बताया है कि सभी सांप जहरीले नहीं होते हैं। इनको देखते ही मारना नहीं चाहिए। इनका मुख्य भोजन चूहे हैं और चूहे अनाज को नष्ट करते हैं।     

 गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सावन महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था। इस वर्ष 4 अगस्त को उनकी 525वीं जयंती है। इनके द्वारा रचित श्री रामचरितमानस और हनुमान चालीसा को घर में रखना शुभ मानते हैं। तुलसी जयंती को देश भर में संगोष्ठी और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। 

  प्रधानमंत्री मोदी जी ने 7 अगस्त 2015 को चेन्नई में कॉलेज ऑफ मद्रास के शताब्दी कोरीडोर पर एक कार्यक्रम में इस दिन को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस घोषित किया। 7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन ने घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने और स्वदेशी उद्योगों की भावनाओं को लोगों में जगाने का काम किया था। इस आंदोलन में बड़ी संख्या में हथकरघा बुनकरों ने अहम भूमिका निभाई थी। हैडलूम उद्योग भारत की सांस्कृतिक विरासत में से एक है। इस उद्योग में 70ः महिलाएं हैं। प्राचीनकाल से यह आजीविका का साधन है। असम में हथकरघे का काम तो प्रत्येक घर में होता है। लोग बहुत र्कमठ हैं। महिलाएं कुछ ज्यादा ही मेहनती हैं खेती के साथ, कपड़ा भी बुनती हैं। पुरुष गले में गमछा जरुर डालते हैं। कंगाली बिहू सादगी से मनाया जाता हैं तब भी भेंट में गमछा देते हैं। हमें भी राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर सूती हैंडलूम के कपड़े पहनने चाहिए। इस ह्यूमिडिटी वाले मौसम में पहनते ही अंतर पता चल जायेगा और फिर इस मौसम में तो आपकी पहली पसंद हैंडलूम वस्त्र बन जायेगा। 

 सावन के सोमवार को तो शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। 8 अगस्त को सावन का चौथा सोमवार है।

   भाई बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन सावन मास की पूर्णिमा को (इस वर्ष 11 अगस्त) को मनाया जाता है। भगवान कृष्ण ने जब शिशुपाल का वध किया था तो उनकी अंगुली से रक्त बहता देखकर द्रोपदी ने अपनी साड़ी चीर कर उसका टुकड़ा उनकी अंगुली पर बांधा था। तभी से रक्षा बंधन मनाने की परंपरा है। इतिहास में भी कई कहानियां हैं। रक्षा बंधन मनाने के पीछे हमारे पूर्वजों की बहुत प्यारी सोच है। गांव की बेटी दूसरे गांव में ब्याही जाती है। उसके सुख दुख की खबर भी रखनी है। माता पिता सदा तो रहते नहीं हैं। उनके बाद भाई बहन की सुध लेता रहे। इस त्यौहार पर भाई के घर बहन आती है या भाई, बहन के घर राखी बंधवाने जाता है। बहन भाई का यह उत्सव परिवारिक मिलन है।

 राष्ट्रीय त्यौहार 15 अगस्त भारतवासी कहीं भी हों धूमधाम से मनाते हैं। राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री देश को संबोधन करते हैं। भारतवासी अनूठे समर्पण और अपार देशभक्ति की भावना के साथ स्वतन्त्रता दिवस मनाता है।

  कान्हा के जन्म (18 अगस्त) की खुशी हम ऐसे मनाते हैं जैसे परिवार में बालक का जन्म हो। दुबई से उत्कर्षिनी ने फोन किया,’’आप भारत से आते समय मेरी जर्मन मकान मालकिन के लिए मुरली ले आना वह प्रोफैशनल बांसुरी वादक है।’ दो मुरली लेकर मैं कात्या मुले के घर गई। उसके वैभवशाली ड्रांइगरुम में मुरलीधर विराजमान थे। मैंने कान्हा के चरणों में मुरलियाँ अर्पित कर दी और कात्या मुले से कहा,’’आज इनका हैप्पी बर्थ डे है।’’उसने चहक कर पूछा,’’कैसे सैलिब्रेट करते हैं?’’मैंने कहा,’’ नहा कर, इनके आगे घी का दीपक जलाते हैं।’’ उसने तपाक से पूछा,’’घी क्या होता है?’’ मैंने जीनियस की अदा से उसे समझाया कि दूध उबाल कर, उसे जमाकर ,दही बिलोकर, मक्खन निकाल कर, उसे पिघला कर, घी बनाते हैं। उसने इस सारे प्रौसेस को बहुत ध्यान से सुना। मैं घर आ गई। उसका जन्माष्टमी का बुलावा आया। मैं पहुँची। मूर्ति के आगे, कटोरी में दीपक, ताजे फूल सजे थे। उससे दीपक जलवाया। मैंने गणेश वन्दना कर, उसके हाथ में बांसुरी दी। उसने धुन छेड़ी। सामने मैं बैठ गई। वो आँखें बंद कर बजाने में तल्लीन थी। 

दक्षिण में दहीं हांडी तोड़ने आये गोविंदा टीम कई दिन तक प्रैक्टिस करके आते हैं। अलग अलग स्थानों में लगभग आठ दिन तक चलता है। 

जीवन के खास पलों को तस्वीरों में कैद कर उन्हें हम उन्हें यादगार बनाते हैं और उन्हें सांझा करते हैं। 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी का थीम है ’’लैंस के माध्यम से महामारी लॉकडाउन’’।

कटरा से लगभग तीन किमी़ की दूरी पर सड़क पर ही चामुण्डा देवी मंदिर के अन्दर से थोड़ा सा चलने पर प्राचीन स्थान गोगा वीर जी का है। यह देख मैं हैरान! अलग से भी प्रवेश द्वार है पता चला कि इनकी पूजा हर मजहब में होती है। लोक देवता गोगा वीर जी, गुरु गोरखनाथ के परमशिष्य थे। इन्हें हिन्दु और मुसलमान मानते हैं। वे इन्हें जहरवीर गोगा पीर कहते हैं।

 कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन गुग्गा नवमीं पर गोगा वीर जी की विशेष  पूजा की जाती है। 

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि( 30 अगस्त) को सौभाग्यवती महिलाओं का त्यौहार हरितालिका तीज व्रत है। व्रती महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए शिव पार्वती की पूजा करतीं हैं।

30 अगस्त को लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए वार्षिक उत्सव मनाया जाता है जिसे राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस कहते हैं।

अरुणा ने चहकते हुए घर में कदम रक्खा और बताया,’’दीदी मेरे बेटे ने कहा कि इस गणपति पर वह मुझे सोने की चेन लेकर देगा।’’मैंने पूछा कि तेरे बेटे की बढ़िया नौकरी लग गई हेै क्या? वो बोली,’’नहीं दीदी, मेरा बेटा बहुत अच्छा ढोल बजाता है। बप्पा को ढोल, नगाड़े बजाते, नाचते हुए लाते हैं  और ऐसे ही विसर्जन के लिए ले जाते हैं। इन दिनों बेटे की सूरत भी बड़ी मुश्किल से देखने को मिलती है पर गणपति बप्पा उस पर बड़ी मेहरबानी करते हैं।’’

      और बिना मेरे कहे गाते हुए ’सजा दो घर को दुल्हन सा, गजानन  घर में आएंगे।’’ घर का कोना कोना चमकाने लगी। मेरे मन में बड़ा उत्साह था कि मैं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा रोपा पौधा सार्वजनिक गणेश उत्सव, जो आज देश का विशाल वट वृक्ष बन गया है उसे मुम्बई में मनाउंगी। तिलक ने हमारे अग्रपूज्य, दक्षिण भारत के कला शिरोमणि गणपति को, 1893 में पेशवाओं के पूज्यदेव गजानन को बाहर आंगन में विराजमान किया था। आम आदमी ने भी, छुआछूत का भेद न मानते हुए पूजा अर्चना की, सबने दर्शन किए। उस समय का उनका शुरु किया गणेशोत्सव, राष्टीªय एकता का प्रतीक बना, जिसने समाज को संगठित किया। आज यह पारिवारिक उत्सव, समुदायिक त्योहार बन गया है।

इन दिनों अस्थाई दुकानों में बरसात से बचाते हुए, हर साइज के गणपति मूर्तिकारों ने सजाए हुए हैं। 

   सोसाइटी में गणपति के लिए वाटर प्रूफ मंदिर बनाया, स्टेज़ बनाई गई और बैठने की व्यवस्था की गई। सभी फ्लैट्स में गणेश चतुर्थी से अनंत चतुदर्शी तक होने वाले बौद्धिक भाषण, कविता पाठ, शास़्त्रीय नृत्य, भक्ति गीत, संगीत समारोह, लोक नृत्य के कार्यक्रमों की समय सूची पहुंच गई। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मैं सूची पढ़ती जा रही और अपनी कल्पना में, मैं तिलक की आजादी की लड़ाई से इसे जोड़ती जा रही थी। इनके द्वारा ही समाज संगठित हो रहा था, आम आदमी का ज्ञान वर्धन हो रहा था और छुआछूत का विरोध हो रहा था। 

   गणेश चतुर्थी की पूर्व संध्या को सब तैयार होकर गणपति के स्वागत में सोसाइटी के गेट पर खड़े हो गए। ढोल नगाड़े बज रहे थे और सब नाच रहे थे। गणपति को पण्डाल में ले गए। अब सबने जम कर नाच नाच कर, उनके आने की खुशी मनाई। 31 अगस्त से 10 दिन तक चलने वाला गणेशोत्सव शुरु होता है।  

नीलम भागी(लेखिका, जर्नलिस्ट, टैªवलर, ब्लॉगर)