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Sunday, 28 April 2024

Jagannath Puri Orissa Yatra Part 20 नीलम भागी Neelam Bhagi

 


अभी तक मैं बस से शहर का परिचय कर रही थी जैसे ही पुरी आया, मेरे बाजू में लड़कियां बैठी थीं, मैंने उनसे पूछा, "क्या मैं आज कोणार्क भी जा सकती हूं?" उसने समय देखा, एक ने जवाब दिया," हम लोग भी जगन्नाथ जी के दर्शन करने जा रहे हैं, देखिए कितना समय लगता है! उसके बाद आप जा सकती हैं और वहां से भुवनेश्वर निकल जाना।" उस समय 10:05 बजे थे।   सड़कों को चौड़ा किया जा रहा था इसलिए  तोड़ा गया था, जिससे पीछे के भवन ऑन रोड हो रहे थे। सेंट्रल वर्जिज  पौधों, फूलों से लदी हुई थी। सबसे ज्यादा मुझे प्रभावित किया उसकी बांस की फेंसिंग ने! विकास चारों ओर नजर आ रहा था।  जैसे ही हमें बस ने उतारा, मैं लड़कियों के पीछे लग गई। एक बस पर हम सब चढ़ गई ₹10 किराया था। बस अड्डे पर जहां उतारा, वहां से मंदिर एक किलोमीटर दूर है। यहां से सीनियर सिटीजन के लिए बैटरी वाली गाड़ी थी, उसका कोई किराया नहीं था और वहां से मंदिर शायद एक किलोमीटर है। इस जगह पर कोई सवारी नहीं है, पैदल ही जा सकते हैं। इस पथ पर कोई परिवर्तन नहीं यह बहुत चौड़ा है, पहले देखा भी था। श्रद्धालु मंदिर की दिशा में चलते जा रहे हैं। यहां पर भी बस वाले कोणार्क, कोणार्क चिल्ला रहे थे। मैंने उससे पूछा," कितनी देर में दूसरी बस मिलेगी?" उसने कहा," 1 घंटे का प्राइवेट बसेज है । मो बस का टाइम टेबल आप काउंटर से पूछ लो। यहां से कोणार्क 40; से 45 मिनट में पहुंच जाते हैं। मैंने बैटरी गाड़ी का इंतजार नहीं किया।  लड़कियों के साथ चल दी, यह सोच करके कि रास्ते में कोई बैटरी गाड़ी पकड़ लूंगी। जो भी बैटरी गाड़ी पास से गुजरी, वह  श्रद्धालुओं से भरी हुई थी।  लड़कियों के साथ साथ बतियाती हुई, मैं मंदिर के पास पहुंच गई। जहां दर्शनार्थियों की लाइन लगी हुई थी, लड़कियां लाइन में लग गई वे  परीक्षा से पहले भगवान के दर्शन करने आई थीं। बीच-बीच में लाइन रोक देते थे। बहुत उत्तम व्यवस्था थी। लाइन में ऊपर वॉटरप्रूफ टेंट था नीचे पाइप लगे हुए थे, उनमें लाइन से चलना था। पीने के पानी की व्यवस्था थी। यहां श्रद्धा में किसी को भी अपनी चप्पल  की परवाह न थी जहां से लाइन शुरू होती थी। चप्पलों के ढेर लगे हुए थे। पता नहीं लौटने पर कैसे पहचानेंगे। अभी लाइन रुकी हुई थी फिर एकदम चल पड़ी। लोग लाइन में लगने से पहले अपने मोबाइल जमा करा  कर आए थे। मैं बाहर लिखे नियम कायदे पढ़ रही थी।  लोगों से पूछ रही थी उन्होंने अंदाज से बताया की 4 से 6 घंटे तो लगेंगे। मैं भी दौड़ कर  चलती हुई लाइन में लगी। पर यहां तो दूर तक सिर ही सिर नजर आ रहे थे। एक  पंडा मेरे पास आया बोला," दर्शन करवा देता हूं जल्दी से।" मैंने कहा," क्या देना होगा?" उसने कहा,"₹2000 में पुरी के दर्शनीय स्थल।"मैं हमेशा साधारण लाइन में लगकर दर्शन करती हूं पर आज कोणार्क  जाने के कारण, उससे बात करने लगी। पहली बार आई होती तो कोणार्क के लालच में  दे देती पर यहां सिर्फ़ जगन्नाथ जी के दर्शन करना था, महाप्रसाद खाना था और  सब मेरा घुमा हुआ था। मैंने उसे कहा तो ₹500 में वह मान गया। उसने पूछा," आपने मोबाइल जमा कर दिया?" इस पर मैंने ध्यान ही नहीं दिया था कि कई जगह अलग-अलग लाइन लगी हुई थी मोबाइल आदि जमा करने की। मैंने उसे जवाब दिया," नहीं।" उसने एक दुकान पर  मेरा मोबाइल, चप्पल आदि रखवा दी।


अब मैं उसके साथ चल पड़ी अचानक मुझे ध्यान आया मेरी तो टिकट वगैरा सब मोबाइल में ही है पर मुझे टेंशन नहीं हुई क्योंकि बहुत साल पहले जब मैं आई थी तब से मुझे यहां की ईमानदारी पर बहुत यकीन है। वह पंडा तेज़ चल रहा था और मुड़ के कहता," मां, चलो।" मैंने उसके गमछे का एक सिरा पकड़ लिया कि इतनी भीड़ में मैं खो ना जाऊं और यह तेज न चले।  मैं यहां कोई प्रश्न नहीं कर रही थी क्योंकि मैं बिल्कुल श्रद्धा में अभिभूत थी। वह मुझे लगातार मंदिर के बारे में बताता जा रहा था। बस उसका गमछा, मेरी मुट्ठी में था, जिसे मुझे छोड़ना नहीं था।

https://www.instagram.com/reel/C7KHLH9PC7V/?igsh=MXQzbWN1OXUyaGFodg==

क्रमशः










Thursday, 25 April 2024

सखी गोपाल, साक्षी गोपाल!! Way to Puri Odisha उड़ीसा यात्रा भाग 19 नीलम भागी Part 19 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


भुवनेश्वर पुरी हाईवे पर  50 किलोमीटर की दूरी पर साक्षी गोपाल या सखी गोपाल या सत्यवादी गोपीनाथ मंदिर है। पुरी से यह 20 किमी दूर है। ऐसा मानना है कि पुरी की यात्रा संपूर्ण नहीं मानी जाती, जब तक साक्षी गोपाल का दर्शन न किया जाए। 11वीं  शताब्दी में  निर्मित मध्ययुगीन मंदिर, कलिंग वास्तु शैली का खूबसूरत राधा कृष्ण का मंदिर है।  अविनाशी पत्थर जिसे बज कहा जाता है, उससे गोपाल की मूर्ति बनी है और पक्ष में कांस्य से बनी मूर्ति राधा की है। यह मनमोहक मूर्ति खड़ी मुद्रा में है। यहां पर दर्शन से पहले बाजू में चंदन सरोवर है, उसमें श्रद्धालु स्नान करते हैं फिर दर्शन। विष्णु भगवान के मंदिरों में यह ऐसा मंदिर है, जहां गेहूं का बना प्रसाद भोग लगता है। आंवला अष्टमी और कार्तिक पूर्णिमा में यहां बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। हमारे मंदिरों के  पीछे एक बहुत ही रोचक कथा प्रचलित होती है। इस मंदिर के बारे में भी है जैसा कि नाम में ही साक्षी गोपाल है यानि भक्त के लिए गोपाल गवाह बनने आए थे और यही स्थापित हो गए। कहते हैं एक धनी ब्राह्मण अपने जीवन के अंतिम चरण में एक समूह के साथ काशी यात्रा को निकला। उस ग्रुप में एक गरीब ब्राह्मण भी था। रास्ते में धनवान बीमार पड़ गया और उस जमाने में पैदल यात्रा होती थी। उसके साथी उसे छोड़ कर चले गए। लेकिन गरीब ब्राह्मण उसके लिए रुक गया। उसकी खूब सेवा और देखभाल से वह ठीक हो गया। अब उसका मथुरा वृंदावन की यात्रा करने   का भी मन बन गया। युवक उसे ले गया। वहां गोपाल मंदिर में पूजा कर, धनवान गरीब की सेवा से बहुत प्रसन्न था। उसके मन की इच्छा पूरी हो गई थी। उसने मंदिर में भगवान के सामने गरीब ब्राह्मण से कहा कि वह अपनी बेटी का विवाह उससे कर देगा और  दोनों सकुशल लौट आए। घर पहुंचने पर धनवान ने परिवार को बताया कि वह अपनी बेटी का विवाह गरीब ब्राह्मण से करेगा। परिवार ने उस पर दबाव डाला।  धनवान ब्राह्मण अपने वादे से मुकर गया। यह सुनकर गरीब ब्राह्मण ने पंचायत बुलाई। पंचायत ने भी पूरे गांव के सामने उसका मजाक उड़ाया। गरीब दुखी होकर बोला," इस बात का साक्षी गोपाल है।" पंचायत ने जवाब दिया," तो जाओ गोपाल को लेकर आओ, गोपाल गवाही देते हैं तो हम विवाह कर देंगे।" युवक दुखी होकर गोपाल मंदिर पहुंच गया। उसने गोपाल को अपना दुख बताया कि किस तरह उसके साथ वादा खिलाफी की गई है, इसके लिए आपको उसके साथ चलकर गवाही देनी होगी। अपने भक्त के लिए तो भगवान सदा ही तैयार रहते हैं। गोपाल ने कहा," तुम आगे आगे चलो मैं तुम्हारे पीछे-पीछे चलता हूं लेकिन  तुम्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना होगा, जैसे ही तुम पीछे देखोगे, मैं  वहीं स्थिर हो जाऊंगा।" खुशी खुशी  युवक आगे आगे चल रहा था। गोपाल के पैरों की रुनझुन की आवाज, उसे लगातार सुनाई दे रही थी।  पुलालसा गांव के पास से रेतीली ज़मीन शुरू हो गई। उसे रुनझुन की आवाज सुनाई देनी बंद हो गई। युवक के मन में आया गोपाल लौट तो नहीं गए! उसने मुड़कर देखा तो  गोपाल वहीं स्थिर हो गए। यह देखकर युवक रोने लगा और गोपाल से बोला," इतनी मेरी हंसी उड़ाई  गई है। मैं यहां तक आ गया पर मैं उनको जाकर सबूत कैसे दूं?" गोपाल ने जवाब दिया," उनसे जाकर बोलो कि गोपाल यहां पर हैं, वह वहां से गवाही देंगे।" युवक ने ऐसे ही जाकर वहां बोल दिया। सुनकर  लोगों को बहुत हैरानी हुई! अब एक दो किमी. जाने में क्या हर्ज है?  फिर सब जल्दी जल्दी चल दिए। गोपाल को देखकर सब हैरान हो गए! और धनवान को अपनी गलती का एहसास हुआ। तुरंत उसे दामाद के रूप में स्वीकार किया। इस मंदिर की बहुत आस्था है क्यों ना हो! अपने भक्त के लिए भगवान गवाह जो बनकर आए थे। बस अड्डे से खूब सवारियां मिलती हैं। 🙏

क्रमशः









Friday, 5 April 2024

पुरी कैसे जाना है!! Bhuvneshwar Odisha उड़ीसा यात्रा भाग 18 नीलम भागी Part 18 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह


घर पहुंचते ही मीताजी चाय बनाने चल दी और  नरेंद्र ने किमी. के हिसाब से  बिल बनाया कुल ₹2100 पार्किंग  के अलग। फिर भी दिल्ली नोएडा से कम है। मीताजी ने चाय बनाते हुए मोहंती जी को काम दे दिया, मेरी कल की पुरी और कोणार्क यात्रा का प्लान बनाने का।  मोहंती जी ने मुट्ठी भर दवा की गोलियां मीताजी को दी, उन्होंने फांक ली। यह देखकर, कल की यात्रा में मैंने मन ही मन उनको ले जाना स्थगित कर दिया। हालांकि आज वह दिन भर बहुत खुश थी। मोहंती जी  बहुत मेहनत से काम में लग गए। मैंने उन्हें भी मो बस के बारे में बताया। सबसे आखिर में बस के टाइम टेबल पर वे आए। चाय पीकर मैं रेस्ट करने लगी। मोहती जी  काम में लगे हुए पर बीच-बीच में मीताजी उन्हें टोकती कि अभी तक आपसे यात्रा का प्लान नहीं बना! वह और लगन से मोबाइल पर लग जाते हैं। उन्हें इस तरह व्यस्त देखकर  मुझे बहुत हंसी आती । काफी मेहनत मशक्कत के बाद उन्होंने कागज पर प्लान बनाया। उससे पहले मीताजी बोलीं,"पहले डिनर कर लेते हैं।" मैं और मीताजी खाने लगे।  मुझे बहुत अच्छा लगा कि मोहंती जी हमारी प्लेट पर ध्यान रख रहे थे कि क्या कम है और उसको लेकर आते। यानि मीताजी का सहयोग करते हैं।



डिनर के बाद, हम फिर कल की यात्रा की चर्चा पर बैठे। मेरा ट्रेन में बना प्लान था कि सोमवार सुबह बस से पहले कोणार्क जाऊंगी, वहां से पूरी, पुरी से भुवनेश्वर इससे मेरी दोनों जगह की यात्रा हो जाएगी। मीताजी चिंता में डूबी जा रही थी कि मैं अकेली कैसे कर पाऊंगी! मोहंती जी ने बस का टाइम टेबल निकाल लिया। पूरे समय की कैलकुलेशन करके 9 बजे की  बस से घर से जाना और वहां से तीन या चार बजे की बस से लौटना। 6 बजे तक मैं घर आ जाऊंगी। यह निष्कर्ष निकाला कि मैं कोणार्क जाना छोड़ दूं और सिर्फ पुरी यात्रा कर लूं क्योंकि पुरी में मुझे महाप्रसाद भी खाना था। मैंने आज्ञाकारी बच्चे की तरह हां में सिर हिला दिया। मीताजी ने मेरे लिए एक बैग लगाया, जिसमें खाने पीने का सामान  था। पानी की बोतल उन्होंने सुबह रखनी थी। मोहंती जी न्यूज़ सुनने लग गए। मैं रूम में आ गई। मीताजी को मेरी कल की चिंता थी और कहा  कि मैं उनको फोन से सब अपडेट बताती रहूंगी। कुछ देर बाद वह कच्चेे केले केे कटलेट्स बना लाई। जिसकी उन्होंने पहले से तैयारी कर रखी थी।  जो बेहद लज़ीज़  थे।

यहां सुबह शाम सर्दी थी, दिन में स्वेटर वगैरह की जरूरत नहीं थी बिल्कुल गर्मी लगती थी। मीताजी सलवार कुर्ते में थी।  फोन आया कि उनका देवर चार दिन पहले उनके यहां शादी हुई थी, शादी की मिठाई देने आ रहे हैं।

वे बोली," मैं साड़ी पहन कर आती हूं।" मैंने हैरानी से पूछा," आप तो अपने घर में हैं, अपने घर में तो कोई कैसे भी रहे!  उन्होंने उत्तर दिया,"हां ,अपने घर में कोई कैसे भी रहे पर परिवार के लोग  आते ही कितने समय के लिए हैं, उस समय जो परिवार का रिवाज है, वैसा करने में क्या हर्ज है!" ठंड में चेंज करना थोड़ा मुश्किल है उन्होंने सूट के ऊपर ही कॉटन की बड़ी प्यारी ओरिया साड़ी पहन ली और शॉल ले ली। मुझे ट्रेन की सरिता याद आई जो बिना दुपट्टे के मेरे पास चूड़ीदार पजामा ,कुर्ते में बैठी थी। अपना छोटा सा स्टेशन आने से कुछ समय पहले वह वहां से उठ कर चली गई। जब मैंने प्लेटफार्म पर देखा तो वह साड़ी पहने हुए थे और दो लोग परिवार के उन्हें गांव से रिसीव करने आए थे। तो मेरे मन में आया था कि गांव  की है शायद इसलिए। उसने पता नहीं किस समय साड़ी, गाड़ी के अंदर पहनी। यहां मीता जी अपने समय  में कॉन्वेंट एजुकेटेड शहर में पली बड़ी , अध्यापिका रहीं, अब राजधानी में रह रही है और ग्रैंडमदर है लेकिन फैमिली वैल्यूज,  परंपरा में  सरिता की तरह ही हैं। मेहमानों के जाने के बाद मेरे पास आकर हंसते हुए बोली," कितना टाइम लगा साड़ी पहनने में! इतने में ही सब खुश हैं, मैं भी खुश।" सब सोने चल दिए। मुझे 9:00 की बस से पुरी जाना था। मैं 8:30 बजे ब्रेकफास्ट करके बिल्कुल तैयार थी। बरमूडा बस स्टैंड से बस पकड़ने थी। मोहंती जी ने मुझे कागज जिसमें बस का टाइम टेबल, बस स्टैंड का नाम लिखा था, दिया और कहा," लौटने से पहले फोन कर देना, बस स्टैंड से हम ले जाएंगे।" सुबह 8:30 हम घर से निकले, 8 मिनट में हम बस स्टैंड पर पहुंच गए। वहां पुरी की बसों की लाइन लगी हुई थी। कंडक्टर चिल्ला चिल्ला कर  पुरी पुरी कर रहे थे। मोहंती जी वहां मो बस के बारे में पता करने जाने लगे। एक प्राइवेट खाली बस में मैं चढ़ने लगी और मोहंती जी को कहा कि जो पहले मिली है, मैं निकल जाती हूं ताकि टाइम से लौट आऊं। वे मान गए अब मैं अच्छी सी ड्राइवर के पीछे वाली विंडो सीट पर बैठ गई। और इन्हें जाने को बोला। ड्राइवर और कंडक्टर बस को भरने की मुहिम में लगे हुए थे और साथ ही साथ पुरी पुरी दहाड़ रहे थे। वहां सावरियां लेने में होड़ मची हुई थी। समय पर बस चल दी। पुरी तक का किराया कुल ₹100 है।

 क्रमशः 









Thursday, 4 April 2024

एकामरा हाट Ekamara Haat Bhuvneshwar Odisha उड़ीसा यात्रा भाग 17 नीलम भागी Part 17 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


सुबह हम जैसे ही घर से निकले थे। अंकुर का फोन आया था कि आप यहां की संबलपुरी साड़ियों का नाम जपती हो, एक अपने लिए और एक श्वेता के लिए ले लेना, मैं पेटीएम कर दूंगा। मैंने मीताजी को बता दिया था और खुद के दिमाग से उतर गया था, भुवनेश्वर भ्रमण के चक्कर में। मीताजी को आदत नहीं है इतने एक्जरशन की, वह बहुत थकी लग रही थीं। मैंने नरेंद्र से कहा कि आप लोगों की गाड़ियां जाती हैं पुरी कोर्णाक उनमें अगर एक सवारी की जगह हो तो मुझे एडजस्ट कर देना। वैसे मैंने वेबसाइट का पर्यटन विभाग की गाड़ी का लिंक ले लिया है, उसे भी देखती हूं। इतने में नरेंद्र बोला, "यह देखिए यह उनका ऑफिस है। यहां से बुकिंग सीधे  कर सकते हैं।" मीताजी बोली," हमारे उड़िया लोग जगन्नाथ जी की तरह हैं, वह भी दोपहर का भात खाकर सोते हैं और उनके भक्त भी इस वक्त आराम करते हैं, यहां कोई नहीं मिलेगा। शाम को ही बैठेंगे रात तक  खूब काम करेंगे।" अब हमारी गाड़ी एकामरा हाट पर रुकी। मीताजी बोली," यहां साड़ी देख लीजिए।" गेट के अंदर प्रवेश करते ही इस जगह ने बहुत प्रभावित किया। 5 एकड़ में फैला, पूरे भारत से प्राप्त स्वदेशी उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए यह बाजार बना है। जिसमें घूमने के साथ  हस्तशिल्प, हथकरघा, घरेलू उत्पाद आदि के झोपड़ीनुमा स्टॉल देख सकते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए एंफीथिएटर कई राज्यों और शहर के कार्यक्रम और प्रतियोगिताओं के लिए यह स्थान मेजबानी करता है। जातीय व्यंजन, स्थानीय व्यंजन, अधिकतर मांसाहारी व्यंजन का भी आनंद उठा सकते हैं। हरियाली, कई जगह ग्रामीण प्रवेश और साफ  सफाई ने इस स्थान को इतना प्यारा कर दिया है कि हमने यहां काफी समय बिताया। यह स्थान उड़ीसा की कला और संस्कृति से परिचय कराता है। एक ही स्थान पर घरेलू साज सज्जा, अद्भुत उत्पादों को देखना खरीदना, यहां तक की उनको  लाइव बनते देखना, अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है। मेटल, टेराकोटा का सामान, ताड़ के पत्ते पर काम, विश्व प्रसिद्ध कपड़ा, एप्लिक पत्ताचित्र, बेंत और बांस से बना सामान खरीद कर, हम अपने घरेलू और स्वदेशी उत्पादन को प्रमोट कर सकते हैं। यहां की संबलपुरी, नुआपट  की बंधा साड़ियां देखकर आपका मन करेगा कि सभी खरीद लें। बेहद खूबसूरत!! बीएससी में पढ़ती थी तब आई थी साक्षी गोपाल, संबलपुर, यहां का हथकरघा दिमाग के किसी कोने में बस गया था। जब आत्मनिर्भर हुई तो अपनी  सामर्थ के अनुसार बाबा खड़क सिंह मार्ग दिल्ली में एंपोरियम बिल्डिंग में सबसे पहले उत्कलिका में ही जाती। दुपट्टे, साड़ी खरीदती थी। अब यात्राएं करती हूं तो ऐसा सामान रखती हूं जो खुद उठा सकूं।  एक्सीडेंट के बाद एक हाथ ढंग से काम नहीं करता तो कपड़ों को वजन के हिसाब से कैरी करती हूं। यहां भी उत्कालिका  में  ऐसे पहुंची जैसे परिचित होती हूं। उसके अलावा कहीं नहीं गए, समय खूब लगा क्योंकि यहां साड़ी पसंद करना बहुत मुश्किल है। सभी खूबसूरत साड़ियां है। श्वेता को वीडियो कॉल लगाई कि देख ले कौन सी पसंद है? उसका भी वही जवाब जो आप पसंद करोगी, वही मुझे पसंद होगी। फिर मेरा काम बढ़ गया, इतनी खूबसूरत साड़ियों में से सेलेक्ट करना! पर किया। यहां इतना समय लग गया कि अब हम सीधा घर ही आ गए। 

यहां जरूर जाना चाहिए।

मधुसूदन मार्ग, यूनिट 3 एकामरा विहार, यूनिट 9, भुवनेश्वर उड़ीसा

 क्रमशः 











Wednesday, 3 April 2024

मुक्तेश्वर मंदिर Mukteshwar Mandir Bhuvneshwar Odisha उड़ीसा यात्रा भाग 16 नीलम भागी Part 16 अखिल भारतीय सर्वभाषा साहित्यकार सम्मान समारोह

 


ओडिशा वास्तुकला का रत्न मुक्तेश्वर मंदिर दो मंदिरों परमेश्वर तथा मुक्तेश्वर का समूह है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह छोटी सी पहाड़ी पर 100 सीढ़ियां चढ़ने पर है। यह मंदिर, हिंदू मंदिर के विकास की ओर प्रगति के अध्ययन और प्रयोग की अवधि का आधार है। यह  शैलीगत विकास दसवीं शताब्दी के वास्तु कला, शिल्प कला के प्रयोग और निर्माण के रूप में जाना जाता है। और बाद के मंदिर उसकी परिणिति हैं। 950 और 975 ईसा पूर्व इसका निर्माण कार्य है। ब्रह्मा, विष्णु, पार्वती ,लंगूर हनुमान और नंदी के लाल बालू पत्थर पर उकेरी  मूर्तियां है। पंचतंत्र के पात्रों 970 में ई पू कहानी की चित्रकारी है। जिसमें कृशकाय  साधुओं को दौड़ते बंदरों के पीछे  दिखाया गया है। मंदिर के दाएं ओर मारीच कुंड है। गर्भ ग्रह में शिवलिंग है। मंदिर में नागर शैली और कालिंग शैली का अद्भुत मेल है। मंदिर के दरवाजे नक्काशी और  अलंकृत आर्क की नक्काशी बेहद बेहतरीन है। यहां पहली बार तोरण की शुरुआत की गई। देखा जाए तो यह कलिंग वास्तु कला के रूप में भी जाना जाता है। मुक्तेश्वर नाम से ही समझा जाता है कि जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त करने वाले। यहां  मंदिर में तोरण उस काल के कुशल शिल्प कौशल का प्रमाण है।  इसका सोमवंशी काल के  ययाति प्रथम ने निर्माण किया है।  पीठा देउला शैली   जिसमें आकार चौड़ा, छत  पिरामिड की तरह है का भी प्रयोग किया गया है। अशोकाष्टमी कार सेवा के अवसर पर यहां उड़ीसा पर्यटन विभाग तीन दिवसीय नृत्य महोत्सव का आयोजन करता है। जिसमें ओडिसी शास्त्रीय नृत्य, संगीत और लोकप्रिय ओडिसी नर्तक  मरदाला जैसे संगीत वाद्य यंत्रों के साथ प्रदर्शन करते हैं। अशोकष्टमी से एक दिन पहले कहते हैं कि मारीच कुंड में जो निसंतान महिला स्नान करती है, उसे संतान की प्राप्ति होती है। मंदिर में प्रवेश निशुल्क है।

सुबह 6:30 से शाम 7:30 तक दर्शन कर सकते हैं। एयरपोर्ट से 4.5 किमी और रेलवे स्टेशन से 4.8 किमी दूर है। टैक्सी ऑटो रिक्शा कैब खूब मिलते हैं। मुझे ट्रेन में भुवनेश्वर के मेरे सहयात्रियों ने मो बस के बारे में बताया था कि उसकी सर्विस बहुत अच्छी है और रेट भी कम है पर मेरा अभी तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफ़र नहीं हुआ पर इसका यहां का अनुभव तो मैं जरूर लूंगी। मुक्तेश्वर मंदिर, लिंगराज मंदिर के पास ही है। पास में ही राजा रानी मंदिर भी है। यहां का पता है

 केदार गौरी लेन, ओल्ड टाउन भुवनेश्वर 

 क्रमशः 









Monday, 1 April 2024

नवरात्र का वैज्ञानिक और अध्यात्मिक आयाम Neelam Bhagi

 


ऋतु संधि का पर्व नवरात्र साल में चार हैं। दो गुप्त नवरात्र, दो प्रकट नवरात्र हैं शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र। इन दोनों नवरात्र में छ महीने का अन्तर होता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू नवसंवत्सर से चैत्र नवरात्र शुरु होते हैं और इस वर्ष 9 अप्रैल से 18 अप्रैल को मनाया जायेगा। देश भर में अलग अलग नाम से इन दिनों को उत्सव की तरह मनाने में प्रकृति का भी सहयोग होता है। पेड़ पौधे नई नई कोंपले और फूलों से लदे होते हैं। इसलिए इन्हें वासंती नवरात्र भी कहा जाता है। तापमान रोगाणुओं के पनपने और संक्रमण का है। अघ्यात्म से जुड़ने के कारण इन्हें मनाने के तरीके, नौ दिन में हमें स्वच्छ तन मन और खान पान के द्वारा आने वाले मौसम बदलाव के लिए तैयार करते हैं। मसलन रबि की फसल की बुआई सितम्बर से नवंबर में की जाती है। जिसके लिए नम और कम तापमान की जरूरत होती है। जो शारदीय नवरात्र के आस पास की जाती है। मेहनत का फल आलू, गेहूँ, जौ, मसूर, चना, अलसी, मटर व सरसों खलियान में आ गई होती है या कटाई के लिए तैयार होती है। अब पकने के लिए खुश्क और गर्म वातावरण चाहिए और कटाई फरवरी के अंतिम सप्ताह से मार्च के अंतिम सप्ताह पर शुरू होती है। जो कड़ी मेहनत का काम है। जिसके लिए स्वस्थ रहना भी जरूरी है। नवरात्र के नौ दिन शाकाहार, अल्पहार, उपवास, नियम, अनुशासन से आने वाले मौसम परिवर्तन के लिए शरीर को तैयार करते हैं।

   विविधताओं के हमारे देश में उत्तर भारत में चैत्र नवरात्र में देवी के नौ रूपों की पूजा होती है। सर्दियाँ विदा हो रही होती हैं। खान पान तो जलवायु के अनुसार होता है। सर्दी से बचाव के लिए शरीर को गरिष्ठ भोजन की आदत हो जाती है। देवी उपासना के माध्यम से खान पान, रहन सहन, देवी पूजन में अपनाए गए संयम, तन और मन को शक्ति और उर्जा देते हैं। 9 दिन आत्म अनुशासन की पद्धति से मानसिक स्थिति बहुत मजबूत हो जाती है। इन दिनों आहार ऐसा होता है जिसका संबंध हमारे स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। घट स्थापना के साथ, जौं की खेती बोई जाती है। जिसे नवमीं को व्रत पारण के साथ प्रशाद के साथ लेते हैं। वही नवरात्र की खेती का ही रूप माइक्रोग्रीन यानि दाल सब्ज़ियों का छोटा रूप व्यवसाय बन गया है। सितारा होटल में सलाद पर माइक्रोग्रीन से गार्निश किया जाता है। शारदीय नवरात्र में तो सार्वजनिक कार्यक्रम होत हैं। चैत्र नवरात्र में देवी पूजन देशभर में घरों में किया जाता है। इनके बीच में विशेष दिनों का भी वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आयाम है।        

  गुड़ी पड़वा उत्सव महाराष्ट्रीयन और कोंकणी मनाते हैं। पूरनपोली, श्रीखंड, घी शक्कर खाने खिलाने का रिवाज़ है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका। महिषासुर, धूम्रलोचन, चंड मुंड, रक्तबीज असुरों का वध कर देवी ने असुरों पर विजय प्राप्त की। जिसके प्रतीक स्वरुप एक बांस पर बर्तन को उल्टा रखकर, उस पर नया कपड़ा लपेट कर पताका की तरह ऊंचाई रखा जाता है। जो दूर से देखने में ध्वज की तरह लगता है। मुख्यद्वार पर अल्पना और आम के पत्तों का तोरण तो सभी हिन्दू घरों में दिखता है। आम के पत्ते घट स्थापना में होते हैं। घर में सकारात्मक उर्जा आती है। दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादी का पर्व मनाते हैं। मंदिर जाते हैं और एक विशेष भोजन पचड़ी बनाया जाता है। पचड़ी को नीम की कोंपले फूल, आम, हरी मिर्च, नमक, इमली और गुड़ से बनाते हैं। जो सभी स्वादों को जोड़ती है। यानि मीठा, खट्टा, नमकीन, कडवा, कसैला और तीखा। तेलगु और कन्नड़ हिन्दु परंपराओं में पचड़ी प्रतीकात्मक है कि आने वाले वर्ष में हमें सभी अनुभवों की अपेक्षा करनी चाहिए और उनका लाभ उठाना चाहिए। इसके बाद से दक्षिण भारत में आम खाना शुरु हो जाता है। पूर्वोत्तर भारत में चैत्र महीने की षष्ठी को ’’चैती छठ’’ मनाया जाता है। इसमें परिवार नदी में स्नान करके वहाँ वेदी बना कर पूजा का कलश स्थापित करता है और सूर्य को अर्घ्य देता है। चैत्र नवरात्रों में नदी में अष्टमी स्नान किया जाता है। वहाँ मेला लगा होता है जहाँ खा पीकर खरीदारी करके लौटते हैं।

पूर्वोतर भारत में इस समय बसन्त के कारण प्राकृतिक सौन्दर्य चारों ओर होता है। इसे रोंगाली बिहु या बोहाग बिहू भी कहते हैं। बिहु की विशेषता है, इसे सब मनाते हैं कोई जाति, वर्ग, धनी निर्धन का भेद भाव नहीं होता। यूनेस्को द्वारा 2016 में मानवता की सांस्कृतिक विरासत के रुप में दर्ज, पाहेला वैशाख बंगाल, त्रिपुरा, बांगलादेश में उत्सव मंगल शोभा जात्रा का आयोजन होता है। झारखण्ड के आदिवासी, समुदाय के साथ सरहुल मनाते हैं और सरना देवी की पूजा करते हैं। उसके बाद से नया धान, फल, फूल खाते हैं और बीज बोया जाता है। यह माँ प्रकृति की पूजा और वसंत उत्सव है जो प्रजनन का भी संकेत देता है और शादी विवाह की शुरूवात होती है। जुरशीतल भारत और नेपाल क्षेत्र में मैथिलों द्वारा मनाया जाता है। मैथिल नववर्ष को जुरशीतल के उत्सव 14 अप्रैल को मिथिला दिवस का अवकाश रहता है। मैथिल इस दिन भात और बारी(बेसन की सरसों के तेल में छनी) और गुड़ वाली पूरी बनाते हैं। पाना संक्राति, महा बिशुबा संक्राति, उड़िया नुआ बरसा, उड़िया नया साल का सामाजिक, सांस्कृतिक धार्मिक उत्सव है। इस समारोह का मुख्य आर्कषण मेरु जात्रा, झामु जात्रा और चाडक पर्व है। ये भी 13 या 14 अप्रैल को नवरात्र में है। कहीं कहीं पर छाऊ नृत्य, लोक शास्त्रीय नृत्य समारोह होता है। अंगारों पर भी चलते हैं। तमिल नववर्ष को पुथांडु उत्सव कहते हैं। तमिल महीने चितराई के पहले दिन पुथांडु, तमिल नाडु, पांडीचेरी, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, मारीशियस में और विश्व में जहां भी तमिलियन हैं मनाया जाता है। यह आमतौर पर 14 अप्रैल को पड़ता है। इस दिन को तमिल नववर्ष या पुथुवरुशम के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार परिवार के सभी लोग एक साथ मिलकर मनाते हैं। घर की सफाई, फूलों और लाइटों से सजावट करके, र्हबल स्नान कर, नये कपड़े पहन कर मंदिर जाते हैं। घरों में शाकाहारी भोजन वडा, पायसम, खासतौर पर ’मैंगो पचड़ी’ बनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस दिन देवी मीनाक्षी ने भगवान सुन्दरेश्वर से विवाह किया था। 

     केरल का नववर्ष मलियाली महीने मेदान के पहले दिन विशु मनाया जाता है। आसपास के राज्यों के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है। 14 या 15 अप्रैल को परिवार के साथ मनाते हैं। पिछली फसल के लिए भगवान का धन्यवाद किया जाता है और धान की बुआई की जाती है। परिवार के बुजुर्ग विशुकानी(विष्णु की झांकी) सजाते हैं। सुबह बच्चों की आंखो को ढक कर परिवार का बड़ा, बच्चे को विशुकानी के सामने लाकर आंखों सेे हाथ हटा लेता है। अर्थात सुबह सबसे पहले भगवान के दर्शन करते हैं। बुजुर्ग बच्चों को विषुक्कणी(भेंट या रूपए) देते हैं। मंदिर जाते हैं। विशु भोजन करते हैं जिसमें 26 प्रकार का शाकाहारी भोजन होता है। यानि प्रकृति ने जो भी उस क्षेत्र में हमें दिया है उसका अधिक से अधिक वैराइटी का उपयोग विशु भोजन में होता है। इतने प्यारे फसलों के त्यौहार जिसमें सुस्वादु भोजन बनते हैं, ये पकवान नौकरी के कारण परिवार से दूूर गए सदस्यों को भी अति व्यस्त होने पर भी, कुटुंब में आने को मजबूर करते हैं। प्रतिप्रदा में सब अतीत को भूल कर आने वाले समय में खुशी और सकारात्मकता की कामना करते हैं। 

       आरती के अंत में हम गाते हैं ’जो कोई नर गावे’ और दुर्गा अष्टमी और नवमी को नवरात्र के व्रत में व्रतियों द्वारा कन्या पूजन से व्रत का पारण करते हैं। क्योंकि महिला आधी आबादी नहीं है, वह तो समस्त आबादी की जननी है।  जैविक सृष्टि का जन्म मादा से होता है। इसलिए कन्या पूजन करने वाले कन्या भ्रूण हत्या कैसे कर सकते हैं! 51 शक्तिपीठों में शक्ति स्वरूपा जगदम्बा के दर्शनों के लिए मौसम भी अनुकूल होता है। श्रद्धालू भक्ति भाव से देवी दर्शन को बड़ी संख्या में जाते हैं। जिसमें अध्यात्मिक आनन्द के साथ, इस धार्मिक तीर्थयात्रा में मानसिक सुख के साथ पर्यटन भी हो जाता है।  

 यानि हमारी एक ही संस्कृति हमें जोड़ती है। ये देखकर ही तो कहते हैं कि भारत सभ्यताओं का नहीं, संस्कृति का राष्ट्र है। सभ्यताओं में संघर्ष हो सकता है पर संस्कृति हमें जोड़ती है। 

नीलम भागी(लेखिका,जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, ट्रैवलर)

 प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा द्वारा प्रकाशित प्रेरणा विचार पत्रिका के अप्रैल अंक में यह लेख प्रकाशित है।