शिल्पारामम में प्रदर्शनी देखकर, वहां बनी हुई झील के किनारे बेंच पर बैठ गई। लोकमंथन में आते जाते दर्शकों को और स्कूली बच्चों ,कॉलेज से आए छात्र-छात्राओं को देखने में बहुत आनंद आ रहा था क्योंकि वह बहुत प्रफुल्लित थे और कुछ ना कुछ बोलते ही जा रहे थे। इतने में ममता जी अपने दिल्ली से आए साथियों को ढूंढते हुए मेरे पास आई। मैंने मोबाइल नंबर पोर्ट करवाया था। मुझे पुरानी सिम निकालनी थी। मैंने नहीं निकाली इसलिए मुझे मोबाइल तंग कर रहा था। कभी कॉल लग जाती थी। लेकिन सबकी आ रही थी। मैं किसी से कांटेक्ट नहीं कर पा रही थी। ममता जी को देखकर मैं बहुत खुश हो गई। मैंने उनसे कहा कि कल से सत्र शुरू हो जाएंगे। आज हैदराबाद से परिचय कर लेते हैं। वे तैयार हो गईं। बाहर आते ही हमने ₹400 में गोलकुंडा तक का ऑटो लिया और शहर की सुंदरता, विकास, सफाई, हरियाली देखते हुए पहुंच गए। ₹25 का टिकट था। यह किला एक छोटी सी पहाड़ी पर बनाया गया है जो किसी जमाने में वारंगल के काकतीय राजाओं के कब्जे में था। प्रवेश करते ही गाइड ने बताया कि यहां ताली बजाने से प्रतिध्वनि सुनाई देती है। हमने बजाई। गोलकोंडा किला की 5 मील संरक्षक दीवार है। दीवारों के बाहर खाई है। नौ दरवाजे, 43 खिड़कियां, 58 भूमिगत रास्ते हैं और किले में कुल मिलाकर 87 बुर्ज है। उस जमाने में भी गजब का ड्रेनेज सिस्टम था। जल संरक्षण की व्यवस्था बहुत बढ़िया थी। कीलकुश तोप, शमशीर कोठा, शाही खजाना, हाथी रथ, कटोरा हौज, तेल भंडार, धानकोठा, कुतुब शाही हमाम आदि। जगह-जगह शिलालेख पढ़ना अच्छा लग रहा था और आज बहुत अच्छा लगा कि कहीं भी गंदगी का नामोनिशान नहीं था। डस्टबिन का उपयोग करने वाले दर्शक थे।