दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन तथा समापन सहित 11 सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें देश के 18 राज्यों से आए हुए लगभग 55 विद्वानों ने शोध पत्रों का वचन किया तथा नदी संस्कृति की साहित्यिक विरासत का परिदर्शन कराया। संगोष्ठी में काव्यधारा का भी प्रवाह गतिमान एवं आनंददायक रहा। साथ ही प्रसिद्ध साहित्यकार समालोचक परंपरा के जनक द्विवेदी युगीन पंडित पद्म सिंह शर्मा जी के द्वारा लिखी लगभग 100 वर्ष पुरानी पांडुलिपि, शर्मा जी के द्वारा उपयोग की गई लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी लाठी, मुद्रा, तिलक लगाने हेतु चंदन की लकड़ी का टुकड़ा आदि वस्तुओं की प्रदर्शनी ने जिज्ञासु विद्वानों को आश्चर्यचकित कर दिया।
समापन सत्र के अध्यक्ष श्रीयुत श्रीधर पराड़कर जी ने कहा भौगोलिक संस्कृति के अनुसार शक्तियां परिवर्तन हो जाती हैं। संस्कृति और सभ्यता के अर्थों को भिन्न-भिन्न अर्थो में समझकर शोध करने की आवश्यकता है।
माननीय विधायक श्री मदन कौशिक ने कहा कि जिस कार्य का प्रारंभ देव भूमि हरिद्वार कुंभ नगरी में हो वह निश्चित ही सफलता को प्राप्त होता है
साध्वी प्राची ने कहा कि मैं राष्ट्रीय संगोष्ठी हेतु अखिल भारतीय साहित्य परिषद न्यास को धन्यवाद ज्ञापन करते हुए नदियों को संस्कृति का पोषक बताया तथा देव भाषा संस्कृत में देशभक्ति से युक्त मधुर गीत से श्रोताओं को आह्लादित कर दिया।
डॉ पवन पुत्र बादल जी ने समस्त संगोष्ठी की विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया को स्पष्ट किया।
डॉक्टर सुनील पाठक ने आगंतुकों एवं मुख्य अतिथियों का संगोष्ठी के सफल संपादन में सबका धन्यवाद ज्ञापन किया।
संगोष्ठी में आयोजक मंडल के रूप में पूर्ण रूप से समर्पित सहयोग करने वाले कार्यकर्ताओं को मुख्य अतिथि साध्वी प्राची के माध्यम से सम्मानित किया गया।
संचालक श्री नीरज नैथानी ने नए समापन सत्र का कुशल संचालन करते हुए नदी संस्कृति पर आधारित काव्या तथा अनेक उदाहरणों से समापन सत्र को रोचक बनाने का सफल प्रयास किया।