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Wednesday, 3 January 2024

सौ सौ जूते खाए, तमाशा घुस के देख!! नीलम भागी Neelam Bhagi Part 6

 


ऑटो घर की ओर चल रहा था और मेरे दिमाग में  विचार चल रहे थे। जब मैं यहां आ रही थी तो बहुत डरी  हुई सी थी। कारण था मुझे बहुत चक्कर आते थे, लेटे हुए भी कई बार छत घूमती लगती थी। मैं सोचती  थी कि मेरा काम तो चल रहा है। हाथ ठीक हो जाए और सिर इस तरह हो जाए की ढंग से कंघी कर सकूं फिर  चक्करों का इलाज करूंगी। अब चक्कर बंद! पता नहीं 'नदी साहित्य संगोष्ठी' में लगातार आरंभ से अंत तक प्रत्येक सत्र में बैठ कर सुनने का असर था या वहां भोजन में जो सब्जी को खट्टा बोलते थे, उसे खाने का असर था। खट्टा दोपहर में खाने के साथ सर्व होता था। रात के भोजन में बचा हुआ, एक तरफ रखा रहता था। जिसका मन हो जाकर ले ले लेकिन रात को वह परोसा नहीं जाता था। मुझे  अच्छा लगता था। मैं दोनों समय उसे खाती थी। अब मैं सोच रही थी कि वह चक्कर कैसे थे!! जिसमें कई बार तो मैं सहारा लेती थी। अब बिल्कुल याद भी नहीं हैं इसलिए मैं बेहद खुशी-खुशी घर लौट रही थी।  इतने में गाजीपुर के शमशान घाट के गेट के आगे, ऑटो रुक गया, जबरदस्त जाम था। लगता नहीं था कि जाम जल्दी खुलेगा। ऑटो वाला पता नहीं कहां गायब हो गया! शमशान घाट होने के कारण मेरे बाजू में थोड़ी सी जगह छोड़ी हुई थी बाकी आगे पीछे सब बिल्कुल पैक्ड गाड़ियां, मेरे बाजू में भी बस, बाएं हाथ पर अंतिम निवास! 





अब मैं एकदम दुखी हो गई। कारण 25 दिसंबर को मेरे बहनोई का शव लेकर अंतिम संस्कार के लिए हम यहां आए थे। 6 महीने बाद ही मेरी बहन माया शर्मा भी अपने स्वर्गीय पति के पास चली गई। दो महीने ही तो बीते हैं तब मैं उसकी शव यात्रा में यहां आई थी। और सोचने लगी कि कोई शव यात्रा यहां  आएगी तो कैसे निकलेगी! अचानक गाल सहलाता हुआ और वाहियात गालियां बड़बड़ाता हुआ, ऑटो वाला आकर सीट पर बैठ गया। मैंने पूछा, "भैया क्या हुआ?" उसने जवाब दिया," बहुत भीड़ थी, धक्के खाकर भीड़ में किसी तरह अंदर घुसा, यह देखने के लिए की क्या हुआ है? पुलिस आ गई आओ ना देखा ताव  मेरे भी एक झापड़ पड़ गया।" और मुझे गांव गवई में सुनी एक लोकोक्ति याद आ गई 'सौ सौ जूते खाए, तमाशा  घुस कर देख'  शायद धीरे-धीरे उसका दर्द कम होने के साथ साथ उसकी गालियां भी कम होने लगीं और जाम भी खुलने लगा। 30 मिनट का रास्ता 2 घंटे में पूरा कर, मैं अपने घर लौटी और देर से ही सही आज इस यात्रा को मधुर स्मृतियों के साथ  लिखना संपन्न किया।