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Saturday 14 April 2018

इन्हें भी तो, हमारी तरह तकलीफ़ होती होगी!enhey bhi toh hamari terah takleef hoti hogi perdh hamari shan hein jeevan ke muskan hein

 
 
                                              
बचपन में मैंने एक अंगूठी पहनी थी। मैं बड़ी होती गई। अंगूठी अंगुली में कसती गई। कुछ दिनों बाद वह इतनी कस गई कि अंगूठी अंगुली में घूमती ही नहीं थी। अब मैं साबुन लगा कर उसे उतारना चाहती, तो भी अंगूठी उतरती नहीं थी। मैंने अपनी दादी जी से कहा कि अंगूठी बहुत टाइट है। वे बोली, “कोई बात नहीं अब ये गिरेगी नहीं।” कुछ दिन बाद अंगूठी के दोनो ओर अंगुली सूज गई। अंगूठी बीच में धंस गई। मुझे दर्द सहने की आदत हो गई थी। जब बुखार हुआ तो पिताजी डॉक्टर के पास ले गये। उसने मेरे घरवालों को डाँटा और अंगूठी काटी। अंगूठी कटते ही मैं ठीक होने लगी।
  आज जो हम हरा भरा नौएडा देखते हैं, ये हमारे उद्यान विभाग की मेहनत का फल है। 1982 में जब मैं यहाँ रहने आई थी, तो यहाँ पेड़ बहुत ही कम थे। ज्यादातर उद्यान विभाग द्वारा ट्री गार्ड में लगे छोटे-छोटे पेड़ थे। जब आँधी आती थी तो दरवाजे खिड़कियाँ ऐसे  हिलहिल कर शोर करते थे, मानों उन्हे कोई जोर-जोर से पीट रहा हो। कई बार आँधी में पुराने पेड़ गिर जाते थे। उद्यान विभाग के र्कमचारी आँधी खत्म होते ही आते और किसी तरह पेड़ बचाते थे। यदि पेड़ नष्ट हो जाता तो उसकी जगह नया पेड़ लगाते, जैसा वे आज भी कर रहें हैं। अब पेड़ों के कारण वैसी आँधी नहीं आती है। लेकिन..........तने में धंसा ट्री गॉर्ड
  मुझे बहुत दुख होता है जब मैं किसी पेड़ के तने को ट्री गार्ड में जकड़े देखती हूँ। मुझे अपना अंगूठी प्रकरण याद आ जाता है। जब तने में ट्री गार्ड को धंसे देखती हूँ। तो सोच में पड़ जाती हूँ कि पेड़ों में जीवन होता है। पेड़ों की हम पूजा करते हैं। पार्कों में जब मैं भीषण गर्मी, हाड़ कंपाने वाली सर्दी में मालियों को काम करते देखती हूँ, तो मुझे कहीं पढ़ी लाइने याद आ जाती हैं ’’गार्डन में काम करना, माँ प्रकृति की पूजा करना है।’’ इनकी पूजा का ही तो फल है कि हम ग्रीन नौएडा में रह रहें हैं। जैसे सड़क में सूखे पेड़ के बराबर ट्री गार्ड में पौधे, विभाग द्वारा लगाये जाते हैं। वैसे ही आगे भी उम्मीद करती हूँ कि ऐसे जकड़े हुए पेड़ों को ट्री गार्डो से मुक्ति मिलेगी।
पेड़ हमारी शान हैं, जीवन की मुस्कान हैं