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Sunday, 29 September 2019

जीने के लिए, ऐसे सोचा ही नहीं विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 8 नीलम भागी


    सुबह विला में सन्नाटा छाया हुआ था। बिल्लियां भी चुपचाप घूम रहीं थीं। उत्कर्षिनी भी कह कर सोई थी कि उसे जगाना नहीं है। अकेली मैं ही बाहर फर्श से बेर सीख वाले झाड़ू से समेट कर डस्टबिन में डाल रही थी। मैं ये काम गाते गुनगुनाते कर रही थी। इण्डिया में होती तो बाई से करवाती। मेरी बाई अगर न आती तो दूसरी बाइयां खोजने में समय लगाती। खुद बहुत ही मजबूरी में झाडू लगाती। लेकिन रात की कात्या मूले ने तो मेरी सोच ही बदल दी। दस बजे के करीब कात्या मूले भी गाती हुई आई और अपनी बिल्लियों को खाना देने लगी। मुझे देखते ही बोली अभी आपको फुज़ैरा के लिए निकलना है। जाने के लिए बेटी तैयार होकर आ गई। मुझे भी बोला माँ जल्दी तैयार हो जाओ। बेटी और कात्या मूले बतियाने बैठ गई। मै साड़ी पहन कर आ गई। कात्या मूले ने मेरे इतनी जल्दी साड़ी में तैयार होकर आने पर ताली बजाई। बेटी बोली सूट पहन कर आओ। वहाँ हवा बहुत तेज चलती है। बीच पर आपकी साड़ी ऊँची ऊँची उड़ेगी। मैंने कहा बाहर के लिए तूने मुझे एक भी सलवार कमीज नहीं लाने दिया कि आप वहाँ मेरे साथ साड़ी में ही जाओगी। वो बोली मेरा र्कुता और चूड़ीदार पहन कर आओ, मैं पहन आई। गाड़ी र्स्टाट करते ही मैंने पूछा कि कात्या मूले हमारे साथ नहीं जायेगी। बेटी बोली,” माँ यहाँ कोई किसी की प्राइवेसी में खलल नहीं डालता।अंधेरा पड़ने पर हम लौटे। देखते ही कहीं जाने को तैयार, कात्या मूले ने मुझसे पूछा,” माई डियर तुमने आज दाल खाई? मैंने कहा,” डिनर में लूंगी।फिर उसने मुझसे वायदा लिया कि मैं एक घण्टा वॉक जरूर करूं। मैंने हामी भर दी। वो पार्टी के लिये चल दी। बेटी ड्राइविंग से थकी हुई थी, खाना लगा कर  उसे जगाया वो खाकर सो गई। मैं एक घण्टा सैर करके सोई। कात्या मूले रात में पता नहीं कब आई। सुबह कल जैसी ही थी। बेटी ने लंच के लिए बाहर ले जाना था और हमने पिक्चर देखनी थी। शाम को हम लौटे तो लॉन में कात्या मूले बैठी थी. उसका वीकएंड उतार पर था। मुझे देखते ही पूछा,” दाल खायी?” मैंने झूठ बोल दिया,” हाँ।मैंने बेटी से कहा था कि मेरी माँ, जाते  ही दाल का पूछेगी तूं दाल मंगा ले। बेटी बोली,” मैं यहाँ आपको दाल खिलाने नहीं लाई हूं। उसके खाने में नानवेज जरूर होता है। आप खाती नहीं हो। दाल में प्रोटीन होता है और खाने में प्रोटीन जरूरी होता है। आप से बहुत स्नेह करती है इसलिये आप का बहुत ध्यान रखती है। जब रैजीडेंशियल और कर्मशियल के चक्कर में एथॉरिटी ने आपका स्कूल बंद करवाया तो मैं बहुत खुश हुई थी। पच्चीस साल आपके झुग्गी झोंपड़ी के अनपढ माँ बाप के बच्चों को अक्षर ज्ञान कराते बीत गए। न कहीं आना हुआ न जाना, इतनी व्यस्त रही। मुझे अपने पैरों पर खड़ा कर दिया। मैं भगवान का शुक्र करती हूं कि स्कूल बंद हुआ। अब मैं आपके लिये कुछ कर तो सकूंगी। लेकिन आपने स्कूल का बंद होना दिल पर लगा लिया और ठीक से खाना सोना नहीं करतीं थी। घर से फोन आने पर मुझे पता चला। मैंने कात्या मूले को बताया। उसने कहा कि माँ को यहाँ बुला लो। उनका  काम भी बंद हो गया है, जिसकी उन्हें आदत हो गई थी और तुम भी तो नहीं हो पास में, वो खाली क्या करें? तुम्हे अच्छे से सैटल देख कर उन्हें अपनी मेहनत सफल लगेगी। मैंने कहा कि मैं खुद लेकर आउंगी माँ को। इण्डिया आते ही मैं आपको डॉक्टर के ले कर गई। उसने कहा कि एक घण्टा सैर करें और व्यस्त रहें। मैंने कात्या मूले  को फोन किया उसने कहा कि हम दोनो ध्यान रखेंगे और उन्हें ठीक कर देंगे बस तुम माँ को ले आओ। क्रमशः

Thursday, 26 September 2019

हिंदी हिन्दुस्तानी, विश्व हिंदी दिवस पर शुभकामनाएं नीलम भागी Hindi Hindustani Neelam Bhagi


 

 तीन साल की गीता अमेरिका से आई। उस दिन सावन की शिवरा़त्री थी| मैं उसकी मां उत्कर्षिनी से बोली,’’बेटी, आज इसे कांवड़िये, जलाभिषेक, सजे हुए मंदिर दिखा कर लाउंगी। यह सुनते ही गीता अमेरिकन एक्संट में जीभ टेढ़ी कर बोली,"’एंड व्हॉट एबाउट माइ फीलिंग।’’मैंने हंसते हुए बेटी से पूछा,’’ये हिंदी समझती है!’’जवाब में बेटी बोली,’’हाँ मां,  हम इससे हिंदी में ही बात करते हैं। ये हिंदी समझती है पर बोलती नहीं है। इस बार हिंदी पढ़ना सिखाने के लिए किताबें लेकर जाउंगी।" बेटी से यह सुन कर अच्छा लगा।सिंगापुर एयरर्पोट पर अर्पणा ने गले मिलते ही मुझसे कहा,’’मासी रेया से हिंदी में ही बात करना। हमने इसे स्कूल में मंदारिन की जगह हिंदी लेकर दी है। इंडोनेशियन मेट घर में अंग्रेजी बोलती है। अमन अपर्णा सुबह जाते हैं, रात को आते हैं। पाँच साल की रेया को हिंदी पढ़ाने चाईनीज़ ट्यूटर आती हैं। इस पढ़ाई को वह बेमन से करती है। कारण इस समय रेया को हिंदी ही बोलनी हैं। वो जैसे हम बातचीत करते हैं, वैसी हिंदी बोलती है जैसे दरवाजा, कपड़े , जेब आदि अध्यापिका सुधारेगी द्वार, वस्त्र, खीसा बोलो ये हिंदी हैं, वो उर्दू है। जेब के लिए खीसा शब्द भी मैंने ही पहली बार सुना था| ट्यूटर डिक्शनरी से देख कर अनुवाद निकालती है। छोटी सी पहली में पढ़ने वाली, रेया की हिंदी बहुत शुद्ध है जैसे गर्मी में कहेगी ’’तापमान अधिक है। भोर हो गई, भानु उदय हुआ।’’ उससे हिंदी में बात करना तो हमारे लिए मुश्किल हो जाता है। वो बात बात पर पूछती है कि ये उर्दू का शब्द है कि हिंदी! मैं विज्ञान की छात्रा रहीं हूँ। सुन कर सोच में पड़ जाती थी। पच्चीस साल मैंने अनपढ़ों के बच्चों को जल्दी हिंदी सिखाने का जो र्फामूला निकाल कर पढ़ाया, वो मैंने ट्यूटर को सिखाया। वो बोली,’’ये तो मेरे बहुत काम का है।’’ सुन कर मैं बहुत ख़ुश हो गई| शरद चंद्र और आशापूर्णा देवी की उसे पुस्तकें दी। जब तक मैं रही, वो आते ही मेरा हाथ चूम कर आँखों से लगाती थी। हाँगकाँग में सीढ़ियाँ और एलीवेटर देखकर हम लिफ्ट का साइन देख रहे ही रहे थे, इतने में हमारे दो भारतीय भाई आये, दोनो ने हमारा एक एक बैग उठाया, पहले ऊपर रख आये और गीता को प्रैम समेत ले गये। बाहर हल्की बारिश हो रही थी। उन्होंने अपना छाता गीता पर खोल दिया। हम टैक्सी करने लगे, उन्होंने इशारा किया, वो रहा होटल और हिन्दी में पूछा,’’इण्डिया में कहाँ से हो? हम तो आंध्र प्रदेश से हैं।’’ हमने भी उन्हें बताया कि हम नॉएडा से, वे हैदराबादी हिंदी में बतियाते, हमें होटल छोड़ कर चले गये। मकाऊ के रिहायशी कॉलौनी के सुपर स्टोर के बाहर मैं रात दस बजे, गीता को प्रैम में बिठा कर मैं शेड में खड़ी थी। दूर से एक लड़का बारिश में भीगता लगभग दौड़ता हुआ, हमारे पास आया और बोला,’’इण्डिया।’’। मैं बोली,’’हाँ।’’हाँ सुनते ही वह लगातार बोलता जा रहा था। आप यहाँ रहते हो या घूमने आये हो। मैंने जवाब दिया,’’घूमने।’’बोला मैं यहाँ जॉब करता हूँ। मैंने दूर से देखा, ये तो अपने लोग हैं। गीता भी जाग गई। दूर इशारा करके बताया कि वह उस सोसाइटी में मेनटेनेंस देखता है। इस एरिया में तो कोई घूमने नहीं आता क्योंकि यहाँ कोई दर्शनीय स्थल नहीं है। मेरा जी नहीं भरा हिन्दी बोल कर, डयूटी पर हूँ न, चलता हूँ, बाय। गीता जब तक वह दिखता रहा, हाथ हिलाकर बाय करती रही। वह भी खिले चेहरे से मुड़ मुड़ कर बाय करता रहा। 
      दुबई एयरर्पोट पर पाकिस्तानी रेहान मुझे लेने आया। मेरे गाड़ी में बैठते ही पंजाबी मेेंं बोला,’’पैरी पैना मासी जी(पांय लागूं मौसी जी)। विदेश में अपनी भाषा में पहला आत्मीय सम्बोधन मुझे बहुत अच्छा लगा। दुबई में एक हिंदी सिनेमा गीतों की गायन प्रतियोगिता थी। यूएई और पाकिस्तान के प्रतिभागी सब एक ही होटल में रहते हुए प्रतियोगिता की जम कर तैयारी कर रहे थे। उनके साथ मुझे लगता ही नहीं था कि ये विदेशी हैं कारण वे हमारी तरह ही बात करते थे। तब इंटरनेट बहुत मंहगा था। किसी को होली का फिल्मी गीत चाहिए था। मैंने लिख कर दे दिया। वो गीत सब हाथों में घूमता रहा, कारण वो हिंदी पढ़ना नहीं जानते थे। जब मैंने पढ़ा तो उन्होंने रोमन में लिख लिया। मैंने हैरानी से पूछा,’’आप हिंदी पढ़ना नहीं जानते!’’सब कोरस में बोले कि हमारे यहाँ हिंदुस्तानी बोली जाती है पर पढ़ी लिखी नहीं जाती। वहाँ के लोग बॉलीवुड सिनेमा के बहुत शौकीन हैं। एक ओमान का गायक सबकी बातें सुनता मुस्कुराता रहता था। उसका नाम मौहम्मद रफी था और वो केवल मौहम्मद रफी के ही गाने गाता था। मैने कारण पूछा तो उसने बताया कि उसके पिता मौहम्मद रफी के बहुत प्रशंसक हैं। वो रफी साहब का कंर्सट सुन कर आये थे और उसी समय उनका जन्म हुआ था इसलिए उनका नाम मौहम्मद रफी रखा। उसके कम बोलने का कारण भी समझ में आ गया। वह स्त्रीलिंग में बात करता था। मुझे मांजी कहता था। ग्रैण्ड फिनाले तक वह अच्छी हिंदुस्तानी बोलने लगा था। अगले साल अजमान में नये प्रतियोगी आये। वहाँ भी हिंदुस्तानी भाषा ने सबको एक बड़े परिवार की तरह कर दिया था। ओमान की असमा मौहम्मद रफी की बेटी, अरबी लड़की भी प्रतिभागी थी। उसे रोमन में लिखे हिंदी गाने को देख कर गाने की शो में छूट थी कारण वो जहाँ भूल जाती, वहाँ सुर से भटके बिना, अरबी में गाने लगती फिर हिंदी पर लौट आती। ग्रैण्ड फिनालें तक हिंदी हिंंदुस्तानी  भी उसकी अच्छी हो गई। वहाँ से जीत कर वह भारत आई। तो मीडिया उसके पीछे था। इसका कारण भी उसकी हिंदुस्तानी भाषा थी। विश्व की पहली बीस भाषाओं में छ भाषाएं भारत की हैं। इसमें हिंदी तीसरे स्थान पर बोली जाने वाली भाषा है। इसका श्रेय हिंदी सिनेमा को है। हमारे अभिनेता विश्व प्रसिद्ध हैं। बॉलीवुड के सितारों की पहचान तो हिन्दी सिनेमा के कारण है। अब मुझे बॉलीवुड के सितारों से मोह हो गया क्योंकि वे सिनेमा द्वारा हिन्दी के प्रचार में बिना किसी सरकारी अनुदान के वे लगे हुए हैं। हमारे कुछ हिंदी सेवकों की, हिंदी सेवा से पता नहीं हिंदी की कितनी सेवा हुई हैं। हाँ, हिंदी से मेवा वे प्राप्त करते रहते हैं। मंदारिन इंटरनेट की दसवीं सबसे बड़ी भाषा बन चुकी है और हिंदी 41वीं। विश्व में हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार प्रवासी भारतीय मसलन उत्कर्षिनी, अर्पणा अपनी बेटियों रेया और गीता को पढ़ा कर रहीं हैं जो गणपति के ऊपर भी अपना तिरंगा लगाती हैं 

या हिंदी सिनेमा द्वारा हो रहा है। सतत प्रयास से हिंदी का इंटरनेट पर भी आने वाले समय में प्रभुत्व होगा।

दैनिक जनता की खोज समाचार पत्र में प्रकाशित
बहुमत मध्य प्रदेश एवम छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में यह लेख प्रकाशित है


Monday, 23 September 2019

उसने मुझे, रिश्ते नये समझाए, विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 7 नीलम भागी


उसने मुझे सिगरेट ऑफर की| मैंने कहा,”धन्यवाद, मैं नहीं पीती|” वह फिर हैरान हुई| अब उसने मुझसे पूछा कि वह सिगरेट पी ले तो मुझे बुरा तो नहीं लगेगा। मैंने कहा,”नही|” तो उसने सिगरेट सुलगा ली। पहले उसने लंबे लंबे कश लिये फिर माँ की किसी बिमारी का नाम लिया कि उसने यहाँ किसी डॉक्टर को दिखा कर, इलाज़ करवा कर माँ को भेजा है। डॉक्टर ने उनकी सिगरेट बिल्कुल बंद कर दी है। वाइन की भी कम मात्रा कभी कभी ले सकती हैं। बहन कह रही है कि मैंने डॉक्टर से क्यों नहीं कहा कि फलां फलां व्यंजन जो माँ को पसन्द हैं वो तो वाइन के साथ ही खाये जाते है। मैंने पूछा कि माँ क्या बहन के साथ रहती है? वो बोली नहीं। उससे पता चला कि जर्मनी के एक ही शहर में दोनो अलग अलग रहती हैं। सुनकर मुझे बहुत हैरानी हुई। फिर मैंने एक गवार प्रश्न दागा कि बहन शादी शुदा है? वह बोली नहीं, अब मैं और ज्यादा हैरान हुई। उसने बताया कि बहन माँ का बहुत ध्यान रखती है। अगर कभी माँ बीमार हो तो उसे जैसे ही पता लगता है, वह हॉस्पिटल फोन कर देती है। गाड़ी माँ को ले जाती है। विजिटिंग आर्वस में वह गैट वैल सून का र्काड और बुके ले जाकर, माँ को मिल कर आती है। अब उसने मोबाइल पर फैमली फोटोग्राफ निकाल कर मुझे दिखाये। उसकी माँ से तो मैं मिल चुकी थी। पर उसने परिचय फिर से करवाया। ये मेरी मम्मी हैं, ये मेरे फादर हैं। ये मेरी माँ के ब्वॉय फ्रेंड हैं। वो बड़े गर्व से बोली कि मेरे फादर बहुत अच्छे इन्सान हैं। जब माँ की लाइफ में उनका ये ब्वॉय फ्रेंड आया तो मेरे पिता ने मेरी माँ की इच्छा का सम्मान करते हुए माँ को डिर्वोस दे दिया। लेकिन उनके ब्वॉय फ्रेंड  ने उनकी माँ के साथ अच्छा नहीं किया। अब वह अपनी माँ के लिए दुखी होकर बताने लगी कि उनके ब्वॉय फ्रेंड ने अपनी वाइफ को डिर्वोस नहीं दिया। एक हैण्डसम आदमी की तस्वीर  दिखा कर कहा कि ये मम्मी को पसंद करते थे| काफी इंतजार के बाद माँ ने फिर इनसे शादी कर ली, ये मेरे दूसरे पिता हैं। फिर मेरी बहन का जन्म हुआ। ये मेरी हाफ़ सिस्टर है| हमारी बहुत अच्छी खुश फैमली थी। फिर माँ के बॉय फ्रैण्ड का डिर्वोस हो गया। आखिर मम्मी को उनका प्यार मिल गया। अब हम अपने इस फादर के साथ रहने आ गये। फादर डे पर मैं तीनो पिताओं को र्काड  भेजती हूँ। यदि जर्मनी में होती हूं तो उन्हें खाने पर ले जाती हूं। मैं सोच ही रही थी कि आज तो मैं श्रोता हूँ। अब तो गुड नाइट होने वाली है और गुड नाइट हो गई। दोनों अपने अपने घर आ गई। बेटी आज भी कल की तरह ही मिली। आते ही उसने पूरा वार्तालाप सुनकर कहा कि अब ये जब आपको अगली बार मिलेगी तो इसी टॉपिक को आगे कन्टीन्यू रखेगी।
        अगले दिन वृहस्पतिवार था। यहाँ शुक्रवार और शनिवार की छुट्टी होती है| शाम को वो काम से लौटी, वह बड़ी फुर्ती में थी। मुझे आवाज़ लगाई,” नीलम अपना लॉण्ड्री बैग ले आओ।“ मैं दो लोगो का एक सप्ताह के ढेर मैले कपड़ों का लेकर पहुंच गई। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, चाहे मशीन से धुलाई थी। काम तो करना ही पड़ता है। मैंने उसे कहा कि मैं तुम्हारी हैल्प करूं। उसने खुशी से मेरा हाथ पकड़ कर चूम लिया। मेरे कपड़ों के ढेर में अपना ढेर मिला कर बोली इनको अलग कर दो। मैंने सफेद,  हल्के रंग के, गाड़े रंगो के तीन ढेर लगाये उसने मुझे एक जाली का बैग दिया उसमें मैंने अण्डर गारमेंट डाल कर बैग का मुंह बांध दिया। कात्या मुले भाग भाग के घर के काम निपटा रही थी। सफेद कपड़े उसने जल्दी से मशीन में डाल कर उसे चालू किया और मुझसे बोली अपने घर के फुटमैट भी ले आओ। मैं भी उतनी फुर्ती से जाकर ले आई। उसने कहाकि अब उसे मेरी मदद की जरूरत नहीं है। मैं आ गई। हर राउण्ड में अपने कपड़े फैला कर मेरे छोड़कर, दरवाजे पर नॉक करके भाग जाती क्योंकि वह एक सेकेण्ड भी नहीं गवाना चाहती थी। मैं जाकर वहाँ लगे स्टैण्ड पर अपने कपड़े फैला आती। मुझे पता था कि ऐसा मेरे साथ चार बार और होगा। बेटी ने आते ही मुझसे दिन भर की रिर्पोट ली। कपड़ों का किस्सा सुन कर वो हंसने लगी और उसने बताया कि उसके घर आने का कोई निश्चित समय नही है इसलिए  वृहस्पतिवार ऑफिस जाने से पहले वह लांड्री बैग उसके किचन के पिछले दरवाजे रख कर चली जाती है| धुले कपड़े वह तह लगा कर देती है। आपको वह बिजी रखने के लिये, वो आपको ठीक करने के लिये सहयोग कर रही है। आपसे अपना कोई काम नहीं करवायेगी। आज रात तक ये अपना पूरे हफ्ते का काम पूरा करके सोयगी| अगर इसे लगा कि ये नही कर पायेगी तो श्रीलंकन हैल्पर घण्टों के हिसाब से अपनी मदद के लिये बुला लेगी। लेकिन काम रात में ही करके सोयगी। दो दिन वीकएंड एंजाय करेगी फिर अगले पाँच दिन गधे की तरह काम करेगी। मैंने भी रात बारह बजे, जब वो अंत में फुटमैट देकर गई, मैं भी उसे फैला कर ही सोई। मैं दिन भर घर में रहती हूं इसलिये बाकि काम मुझे करना नहीं था। क्रमशः

Friday, 20 September 2019

’ नो मैन विल किस यू।’ विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 6 नीलम भागी



कमरा खुला देख मैं हैरान, देखा बेटी टेबुललैंप जलाये पढ़ रही थी। मुझे देखते ही ठहाके मार कर हंसने लगी। उसने बताया कि जब वह आई कात्या मूले दारूबाजी कर रही थी और आपके हाथ में भी गिलास था और आप भी धीरे धीरे सिप कर रहीं थीं। मैंने सोचा कि मम्मी को एंजाय करने दो और छिप कर आ गई लाइट भी नहीं जलाई। मैंने उसे लस्सी का गिलास दिखाया। उसने मुझसे दिनभर का वृतांत सुना और अपना सुनाया और बतियाते हुए हम सो गई । सुबह वो आँख बंद कर मेरे हाथ से दूध पी रही थी। कात्या मूले आई, वो बहुत गंभीर थी। आते ही वो बोली,’’नीलम मुझे तुम्हारे लिए डेंटिस से एपाएंनमेंट लेना है, बोलो कबका लूं?’’ मैंने जवाब दिया कि मेरे दाँत तो बिल्कुल ठीक हैं। मुझे कोई तकलीफ नहीं है। वो बड़ी गम्भीरता से बोली,’’ तुम्हारे सामने के दाँत पर एक निशान है। जो देखने में अच्छा नहीं लगता। इसलिये नो मैन विल किस यू।’’ यानि कोई पुरूष तुम्हारा चुम्बन नहीं लेगा। सुनते ही बेटी के मुंह का दूध नाक में चला गया, वो हंसती खांसती हुई बाथरूम की ओर दौड़ी। मैं जानती हूं, मैंने कैसे अपनी हंसी रोक कर अपना गंभीर चेहरा बना कर उसे धन्यवाद कर, समझाया कि मैंने इस निशान की ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। अब इण्डिया जाते ही इस निशान को दूर करूंगी। वो मुझसे प्रामिस कर चली गई। उसके जाते ही बेटी खूब हंसते हुए बोली कि मैं बचपन से देखती आ रहीं हूं, न घर में किसी ने र्चचा की न मैंने कभी सोचा। हैरान मैं इस बात पर की आपके लिये उसने ऐसा कहा, आपने उसकी तरह ही गंभीरता से जवाब दिया। मैंने कहा कि मैं अपने किसी भी व्यवहार से अपनी इतनी प्यारी हमर्दद दोस्त को खोना नहीं चाहती। बेटी के आफिस जाते ही, मैं नहाने चल दी क्योंकि कात्या मुले के कुत्ता घुमाने का समय होने वाला था। सुबह शाम वो सैर का मेरा एक घण्टा जरूर पूरा करवाती थी। बाकि मैं जो मरजी करूं। नीलम नीलम की आवाज सुनते ही मैं चल दी। आज उसका प्रश्न था कि मेरे दाँत पर यह निशान कैसे पड़ा और कब से है? मैंने बताया कि मेरठ में हमारे आंगन में नीम का पेड़ था। सुबह मेरी दादी एक टहनी तुड़वाती और सबको एक एक दातुन देती। दातुन समझाने में मुझे बड़ी मशक्त करनी पड़ी। दातुन पर टूथ पेस्ट लगा कर सब दांत साफ करते थे। दादी के मजबूत दांत देख, हम इसलिये कड़वी दातुन सब करते थे। मुझे टायफायड हो गया। मुंह का स्वाद गंदा, उपर से कड़वी दातुन मुझसे नहीं होती थी। मैं बाद में करूंगी कह कर, दातुन रख लेती और बाद में फैंक देती। बुखार तो चला गया। एक दांत पर निशान दे गया। कभी किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। पूरी वार्ता सुनकर उसे मेरी मां पर गुस्सा आया, जिसने अपनी ब्यूटीफुल बेटी की, ब्यूटी पर दाग लगाया। मैंने उसे समझाया कि हमारे यहाँ दादी की आज्ञा का पालन होता था। माँ को काम करने का अधिकार था, फैसला लेने का नहीं। अब हम घर लौटे। मैं अपने काम निपटाने में लग गई। कात्या मूले भी तैयार होकर निकल गई। पूरे विला में मैं अकेली और खुला हुआ मेन गेट। यहाँ अकेले डर नहीं लगता था। काम भी खत्म हो गया और बेटी की पसंद की दाल सब्जी और रायता भी बना लिया। अब मैं पढ़ने बैठी फिर सोई। उठी और चाय पी, तब तक धूप कम हो गई फिर मैं स्टोर की ओर चल दी, नया फल और सब्जी की तलाश में अब ये मेरा पसंदीदा काम हो गया था और तरह तरह के दहीं के फ्लेवर लाना। यहाँ के दूध से दहीं नहीं जमता था। इसलिये दहीं खरीदना पड़ता था। नई सब्जी को बनाने की विधि, वहां खरीदारी करने आई किसी भी महिला से पूछती तो वो बड़े प्यार से समझती| उंटनी का दूध,  दहीं भी लाई। बेटी ने नहीं इस्तेमाल किया। मुझे ही खत्म करना पड़ा। कात्या मूले भी अब तक नहीं लौटी थी। अंधेरा होने पर मैंने अपनी तरफ की बाहर की लाइट जला दीं। उसके लॉन वगैहरा का मुझे स्विच नहीं मालूम था। इसलिए वहाँ अंधेरा था। अकेले में मैं पढ़ती थी क्योंकि बेटी जब तक घर में रहती थी, टी.वी. नहीं बंद होता था। साढ़े आठ बजे के करीब कात्या मूले आई। लॉन जगमगा उठा। साढ़े नौ बजे के बाद, नीलम नीलम का स्वर गूंजा, मैं तुरंत उसके सामने। उसका पहला प्रश्न,  तुमने दाल खाई? मेरी हाँ सुनते ही वह खिल गई। अब हम कुत्ता घुमाने चल दीं। आज उसे एक फोन आया। जिसमें वह र्जमन में बात कर रही थी। बीच बीच में लड़ती हुई भी लग रही थी। घर लौटने तक उसका फोन बंद हुआ। हम लॉन में बैठ गये। फोन के  बाद वह काफी तनाव में दिखी। फिर र्नामल होकर मुझसे बोली कि बहन का फोन था। क्रमशः

Wednesday, 18 September 2019

वाइन न पीना क्या धार्मिक कारण है? विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 5 नीलम भागी


 
वो बहुत हैरान होकर बोली,’’तुम कैसी हो! न नानवेज खाती हो, न वाइन लेती हो।’’बदले में मैं मुस्कुरा दी। वो मेरे लिए फिक्रमंद हो गई कि मुझे क्या दे, ये देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। उसने पूछाकि मैं अब डिनर से पहले क्या लूंगी? मैं बोली कि अभी आती हूँ। मैंने अपने फ्रिज से लवान यानि मट्ठे का जार निकाला एक बड़ा गिलास भरा, उसमें काला नमक और भुना जीरा डाल कर लाई। सामने से पौदीने की ताजी कोंपलें तोड़ी, धोई डालीं और बर्फ के टुकड़े भी डाल दिए। कात्या मुले ने उसका एक घूंट पीकर, स्वाद अच्छा लगने से आंखे मटकाई और मुझे पकड़ा दिया। शायद उसका अपने प्रति स्नेह देख कर, मुझे उसका जूठा किया गया, छाछ पीने में जरा भी परहेज नहीं हुआ। वो मुझसे अंग्रेजी में बात बहुत आसान शब्द खोज कर, बहुत कम स्पीड से बोलती थी। मैं तो थी ही स्लो मोशन में। अब उसने मुझसे पूछा कि मेरा वाइन न पीना क्या धार्मिक कारण है? मैंने जवाब दिया," नहीं।" उसने फिर प्रश्न किया कि फिर क्या कारण है? वाइन न पीने का। मैंने कहाकि जहाँ तक मैं समझती हूँ इसका कारण पारिवारिक और भौगोलिक हो सकता है। मैं ब्राह्मण हूँ। कपूरथला के जिस घर में मेरा जन्म हुआ, वहाँ मंदिर है। जो बनता है वह ठाकुर जी को भोग लगता, वही सब परिवार खाता है। जो उनकी पसंद होती है। वो खाने पीने की हमारी आदत बन जाती है। गाय हम पालते है। एक मटका लस्सी का भरा रहता है। हम खाने के साथ मट्ठा पीते हैं। ये भी फरमेंटेशन और बैक्टिरिया प्रोडक्ट है। हमारे यहाँ बर्फ नहीं पड़ती इसलिये शायद हमें ये सूट करता है। हम जहाँ भी जाते हैं दूध, दहीं, लस्सी की आदत साथ लेकर जाते हैं। ऐसा क्यों? कभी प्रश्न ही नहीं मन में उठता। जो बचपन से देखते हैं शायद यही परंपरा बन जाती है। आप जो पीते हैं, ये शुगर का फरमंटेशन है, जो एल्कोहल में बदल जाता है। र्जमनी में माइनस में तापमान हो जाता है। वनस्पतियाँ भी इतनी ठण्ड में कम होती होंगी, हो सकता है इसलिये आपके खाने में वाइन और मांस अवश्य होता है। तुम्हें हैरानी होगी कि मैंने अपने जीवन में आज पहली बार अपने सामने किसी को शराब पीते देखा है। उसने एक सांस में पता नहीं कितनी बार सॉरी कहा। मैंने हंसते हुए उसे समझाया कि ये कहने का मेरा कोई मतलब नहीं था क्योंकि हमारे परिवारों में कोई पीता नहीं है। इसलिये वाइन घर में नहीं होती। तो देखती कहाँ से?  हमारे बुर्जुग रिश्ता करते समय बड़े गर्व से कहते हैं कि हमारे यहाँ पीने खाने(मांस मदिरा शब्द का भी प्रयोग नहीं करते) का रिवाज नहीं है। अपने बारे में मैं यह कह सकती हूँ कि बचपन से ये शब्द सुनते सुनते, मेरे लिये ये शायद संस्कार बन गया है। मेरे सामने चाहे कैसा नानवेज, कीमती वाइन रख दो, मैं चख भी नहीं सकती। डिनर का समय होते ही तुरंत चर्चा पर स्टॉप लग गया। हम दोनो किचन में गये। उसने मुझसे कहा कि आपने जितना लेना है ले लो। सैण्डविच और लस्सी पीने के बाद मेरी खाने की गुंजाइश नहीं थी पर उसने मेरी पंसद का बनवाया था, उसे बुरा लगेगा इसलिये सब्जी, दाल, रायता मैंने ले लियां। ये देख कर वह रूआसी होकर बोली,’’ नीलम मैंने तुम्हें डिनर करने को कहा है न कि चखने को।" मैंने झूठ बोला कि जितना डॉक्टर ने कहा है, मैंने उतना ही लिया है। उसने मुझसे चार गुना पोरशन लिया। रोटी चावल की जगह प्लेट में उबले हुए आलू रखे। वह इतना खा सकती है क्योंकि काम के साथ इतने बड़े विला को बिना किसी हैल्पर के मेनटेन जो किया हुआ था। साथ ही साफ सुथरे ग्यारह बिल्लयां और एक कुत्ता भी पाले थे उनका भी काम। उसे मेरी दाल सब्जी बहुत पसंद आई। मैंने चैन की सांस ली कि सांबर मसाला उसे सूट कर गया। उसका रायता गज़ब का स्वाद। जिसे अब मैं भारत में अपने घर में उगाई ताजी लहसुन की पत्तियों से बनाती हूँ। मेरे मंद गति के अनुवाद के कारण, हम कम बाते कर सकते थे। लेकिन करते लगातार थे। मैंने उसे कहा मैं तुम्हें रोटी या चावल बना देती न, अपनी बेटी के लिए भी तो बनातीं हूं। तुम्हेँ उबले आलू खाते देख कर मुझे अच्छा नहीं लग रहा. सुनकर उसने मेरा हाथ चूम लिया और बोली मैं चालीस प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट लेती हूँ। हमारे यहाँ आलू और तरह तरह की ब्रेड खाते हैं। उसने कहाकि बेटी का खाना ले जाओ न। मैंने कहाकि उसने जो कहा था, मैंने बना रखा था। बाय करके हम अपने अपने जूठे बरतन लेकर, अपने अपने घर चल दिये। क्रमशः

Monday, 16 September 2019

तुमसा नहीं देखा विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 4 नीलम भागी

  
मैं खिड़की से बाहर देख रही थी, इतने में कात्या मुले फॉर्मल में लंबे लंबे डग भरती आई पहले गेट खोला फिर अपनी गाड़ी में बैठ चल दी। गेट खुला! मैं डरने लगी कि कोई आवारा पशु इसका बगीचा न उजाड़ दे। फिर मुझे अपने आप पर हंसी आई कि यहाँ सड़को पर इंसान नहीं दिखते बल्कि गाड़ियाँ दिखती हैं। इंसान देखने हो तो मॉल में ही दिखते हैं। आवारा जानवरों का भला यहाँ क्या काम! मैंने ये सोच कर गेट नहीं बंद किया कि जब ये लौटेगी, अगर मैं सो रही होउंगी तो इसे परेशानी होगी और क्या पता ये रोज ऐसे ही जाती हो? ये सोच कर मैं खाना बनाने लग गई। खा कर लेटी तो मुझे पढ़ते हुए नींद आ गई। शाम को उठी चाय पी। बाहर स्टोर में जाने के लिए तैयार हुई। इतने में कात्या मुले आई और मुझे अपने साथ ले गई चौयत राम स्टोर, वहाँ पर उसने बताया कि उसके देश जर्मनी की खाद्य सामग्री भी यहाँ मिल जाती है। उसने मुझे कहा कि तुमने मेरे घर में रात को जो खाना है, उसके बनाने का सामान ले लो। मैंने आलू ,शिमला मिर्च और अरहर की दाल ले ली। उसने कई तरीके की र्हबस, फ्रोजन चिकन, एक रोस्टेड चिकन लिया और न जाने क्या क्या लिया और हम घर आ गये। वो बोली कि अब हम कुछ खाते हैं। मैं बोली कि मैं अभी आती हूँ, अपने रूम में गई और फटाफट एक कॉफी बनाई, दो सैण्डविच उठाये और  उत्कर्षिनी को  फोन पर बताया कि मैं कात्या मुले की किचन में आलू शिमला मिर्च और अरहर की दाल बना रहीं हूं। वो बोली,’’ मम्मी भूलकर भी मिर्च मत डाल देना, मिर्च खाते ही इसका मुंह, आँखे लाल हो जायेंगी और आँखों और नाक से पानी बहने लगेगा। इसको इण्डियन खाना पसंद है। आपको खिला कर जो बचेगा, उसे कई दिन तक थोड़ा थोडा खायेगी इसलिये खूब सारा बनवायेगी।’’ मैं अपनी ट्रे लेकर आई। उसने रोस्टेड चिकन निकाला मैंने उसे सैण्डविच ऑफर किया वो बोली कि उसके लिए चिकन ही काफी है। खाते खाते मुझसे बोली,’’ मेरा दादा बूचड़ था। अगर वो इस समय मेरे सामने आ जाये, मैं उसे दिखाऊं कि मेरे सामने ये जो महिला बैठी है, इसने कभी मांस नहीं खाया तो वो बहुत हैरान होगा।’’मैं हंसने लगी। ये सोच कर कि मेरे लिये जो आम बात है वो इसके लिये खास हो गई। मैं ब्राह्मण परिवार की हूं। मेरे यहाँ ये सब नहीं खाया जाता तो नहीं खाया जाता। बेटी को मैंने अपनी सहेली से कह कर उसके घर खाना सिखाया था। इण्डिया में वो कभी घर में लाकर नहीं खाती। मुझे सैण्डविच का स्वाद कुछ अलग सा लगा। कवर मैं फाड़ कर मैं डस्टबिन में डाल चुकी थी। कात्या मुले ने मुझसे पूछा कि मैं इसे वेस्वाद तरीके से क्यों खा रही हूं? मैंने कहा कि ये नान वेज तो नहीं है! वो एकदम गम्भीर हो गई। उसने हाथ का चिकन प्लेट में रखा, मेरा सैण्डविच लिया उसका पेट खोलकर, उसमें अंगुली डाल कर उसके भरावन को चाटा और खुश होकर बोली कि नहीं ये नान वेज नहीं है। ये ताहीना है। मेरे हाथ में पकड़ा कर बोली खाओ। अब मैंने चिकन वाले हाथ का चुपचाप खा लिया और मुझे वो स्वाद भी लगा क्योंकि उसमें विदेश में मेरा अकेलापन दूर करने वाली सखि का स्नेह जो जुड़ गया था। खाने के बाद हम किचन में आये। उसने किचन समझा दी और मदद के लिये खड़ी हो गई। मेरे लिये एक दाल सब्जी बनाना, कोई काम ही नहीं था। पर वह बुरा न मान जाये, मैंने उसे प्याज दो तरह से काटने को दिये एक पतले लंबे और दूसरे बारीक, दाल धोकर मैंने उबलने रख दी और आलू उबलने चढ़ा दिया। उसने तो बहुत सुन्दर जल्दी जल्दी काट दिये फिर सारी शिमला मिर्च भी काट दिये, टमाटरों को भी छोटे टुकड़ों में काट दिया। खड़ी होकर मेरा मुंह देखने लगी कि उसे और क्या काम बताऊं? मैंने कहाकि आलू ठ्रण्डे हो जायेंगे तो इन्हें छील देना। उसने गर्म आलू को फॉक में चुभाया, उसे छुए बिना चाकू से फटाफट छिलने लगी। मैं साथ साथ लहसून छील चुकी थी। मैंने बारीक प्याज से शिमला मिर्च छौंकी। अपना काम निपटाकर वो बाहर बैठ गई। मैं सोचने लगी कि उत्कर्षिनी बहुत बढ़िया कुक है। बेटी के हाथ का ये बहुत स्वाद खा चुकी हैं। अब कुछ नया करती हूं और मैं अपने मिशन में लग गई। शिमला मिर्च में लहसून और टमाटर नहीं डाला, बारीक अदरक डाला। दाल लहसुन प्याज टमाटर से छोंकी। दाल तैयार होने के बाद मैं घर का बना देसी घी ले गई उसमें सांभर पाउडर हल्का सा भून कर डाल दिया। मेरी दाल सब्जी तैयार होते ही, उसने लहसून के पत्तों की तरह दिखने वाली एक जर्मन र्हबस से रायता बनाया फिर हम कुत्ता घुमाने चल दिये। वो बातें करती चलती थी और छ फीट की थी। उसकी चाल में गज़ब का आत्मविश्वास था। मुझे उसके साथ तेज चलना पड़ता था, उसकी बातें सुनने के लिये क्योंकि जवाब जो देना होता था। घूमने के बाद हम दोनो र्गाडन में बैठ गये। मच्छर यहाँ होता नहीं। उसने कहा कि वह नौ बजे डिनर कर लेती है और ग्यारह बजे सोती है। इस वक्त साड़े आठ बजे थे। मुझे इंतजार करने को कह कर वह चली गई। लौटी तो उसके हाथ में एक ट्रे थी जिसमें दो खूबसूरत गिलास, सोडा, छोटा सा आइसबॉक्स और अलग अलग वैराइटी की दो वाइन की बोतल थी। इस सामान को उसने टेबल पर ऑरगनाइज़ किया। मुझसे मेरा ब्राण्ड पूछा।’’मैंने धन्यवाद करके कहा कि मैं शराब नहीं पीती। क्रमशः

Friday, 13 September 2019

जग ढूंढया, तेरे जैसा न कोई विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 3 नीलम भागी



मन में यही सवाल आये कि लड़की का तो दिमाग खराब हो गया है, रात को परदेस में महिलाएं घर से बाहर जायेंगी! साढ़े दस बजे उठते ही उत्कर्षिनी बोली,’’चलो।’’ सलवार कमीज में मैं थी। दिसम्बर की आदत के अनुसार मैंने शाल ले लिया। चुपचाप मैं गाड़ी में बैठ गई। रोड पर आते ही मैं हैरान, हम तो फिर भी माँ बेटी थीं। वहाँ तो अकेली महिलाएं गाड़ी चला रहीं थी। हम शारजाह ऑफिस पहुँचे। सब लड़के लड़कियाँ काम में मशगूल थे। मुझे बेटी सबसे मिलवाने गई। सबके आगे गाजर का हलुआ किया जाता, हर एक के मुंह से निकलता घर का न? और मेरे पैर छू कर गले  लगते. सबसे आखिर में हम एडिटिंग रूम में आये। एडिटर दानिश खान बड़ी लगन  से अपने काम में लगा हुआ था। उसके बराबर की कुर्सी पर बेटी बैठ गई। सोफे पर मैं बैठी। वो बोली,’’माँ आप सो जाओ। ए. सी. का तापमान बहुत कम था, मैं शॉल ओढ़ कर सोफे पर सो गई। जब वॉल्यूम बहुत तेज हो जाता तो मैं आँख खोल कर देख लेती फिर नींद में खो जाती। सुबह चार बजे हम घर लौटे, अब भी अकेली महिलाओं को मैंने ड्राइव करते देखा। ऑफिस में रात को लड़कियों को काम करते देखा। अब मैं बेटी की तरफ से निश्चिंत हो गई। पैट्रोल पम्प से उसने कई तरह के वेज और नानवेज सैंडविच लिये दोनो को अलग लिफाफे में रख, वेज लिफाफा मुझे ये कहते हुए पकड़ाया कि इन पर एक्सपाइयरी डेट है, नहीं खाओगी तो फैंकना होगा। खुद के लिए बनाओगी नहीं, किसी और ने खाना हो तो दस पकवान बना दोगी। खाना आप फैंकती नहीं इसलिये उम्मीद करतीं हूं ,खाओगी ही। घर आते ही मुझे दस बजे जगाने का बोल कर, वो सो गई। वही पुराने स्टाइल से दस बजे मैंने उसे दूघ का गिलास दिया। उठते ही उसने कहाकि आज कात्या मुले की माँ वापिस जर्मनी चली गई है। कल आपकी एक घण्टे की वॉक हो गई थी। मैं डॉक्टर के कहे अनुसार चली हूँ। कात्या मुले को आपके बारे में सब बता दिया है। उसे बता दिया कि आप इंगलिश समझती हो पर बोलती नहीं हो। अब मैं आपकी तरफ से बेफिक्र हो गई हूं। उससे पूछा,’’ क्या बनाउं ?’’ बोली,’’ खोया मटर की सब्जी।’’ मैं बनाने लगी, वो तैयार होने लगी। उसके जाते ही मैंने कॉफी बनाई, खबूस का टुकड़ा गर्म किया और नाश्ता किया। कुछ देर में कात्या मुले की आवाज आई “नीलम नीलम” बुलाने की। मैं बाहर आई। उसने कुत्ते की चैन पकड़ी थी। बोली चलो,’’इसे घुमाने जाना है।’’ मैं चल दी और मेरी इंगलिश स्पीकिंग क्लासिस शुरू। वह र्जमन, फैंच और इंगलिश जानती थी। हिन्दी बिल्कुल नहीं समझती थी। घूमते हुए वो मुझसे अ्रंगेजी में बहुत कम स्पीड से बातें करती जाती, जिसका जवाब मैं धीरे धीरे देती, सोच सोच कर वाक्य बना कर देती। जरा भी मैं रूकती वो रूक कर मेरी तरफ मुंह करके हाथों से प्रोत्साहित करती। उसे मेरे जवाब बहुत पसंद थे। चालीस मिनट बाद उसके कुत्ते ने पॉटी की। उसने पुराने अखबार से उठा कर पॉटी पॉलिथिन की थैली में डाली फिर रास्ते में जो कूड़ेदान दिखा, उसमें डाला और हम घर की ओर चल पड़े। गेट से हमारे घर तक उसने बोगनविलिया से छत बना रखी थी। जो दिन में बहुत सुन्दर लग रही थी। मैं अपना सफाई का इलाका समझ गई थी। बाकि में कात्या मुले करती थी। जाते समय वह मुझे समझा गई कि दाल जरूर खाना क्योंकि तुम वैजीटेरियन हो न इसलिए। मैंने हाँ बोल दी। बेटी का फोन आया कि माँ सब ठीक है न। मैंने जवाब दिया कि कात्या मुले में तो मेरी बेटी भी है और मेरी माँ भी, मुझसे कुल सात साल ही तो छोटी है। बेटी ने समझाया, मम्मी उसका कहना मानती रहना, वो बहुत अच्छी है। कुछ गलत लगे तो अपनी बात सही तर्क से समझाओगी तो बहुत खुश होती है। उसने दाल रोज खाने को बोला है। ये तो आपको अब रोज ही खानी होगी वर्ना प्रोटीन की कमी पर आपको पूरी थीसिस सुनने के लिए तैयार रहना है। उसके बाद प्रोटीन की कमी का टैस्ट करवाने और ले जायेगी। फोन बंद होते ही मुझे कात्या मुले पर बड़ा मोह आने लगा। क्रमशः

Saturday, 7 September 2019

कात्या मुले से परिचय विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 2 नीलम भागी


सुबह उठते ही  उत्कर्षिनी ने मेरे हाथ में चाय का कप पकड़ाया। मैंने पहला घूंट भरते ही उससे कहा,’’बेटी तू बदल गई है।’’ उसने पूछा,’’कैसे माँ।’’मैंने जवाब दिया,’’तूने तो कभी मुझे सुबह चाय नहीं पिलायी। आज कैसे?’’ वो बोली कि नया घर हैं। सब कुछ इण्डिया से अलग है। चाय पियो फिर समझाती हूँ। चाय के बाद मैंने कहा कि तेरे लिए दूध तैयार करती हूँ। वो बोली,’’ कल से, माँ भूल कैसे गई कि बैड छोड़ने के बाद मैं दूध नहीं पीती।’’ फिर आपके हाथ से दूध कल से।’’ बचपन से मैं सुबह गुनगुना दूध उसे अपने हाथ से पिलाती हूँ, वो गिलास भी नहीं पकड़ती। अपने हाथ से मुझे धीरे धीरे चुटकी काटती रहती है और आँखे बंद करके दूध पीती है। जब विदेश पढ़ने गई, जॉब लगा तब भी इण्डिया आने पर ऐसे ही दूध पीती है। मैंने पूछा कि नाश्ते में क्या लेगी? बोली, "अण्डा मटर की हरी मिर्च वाली भुजिया, जो मैं बताउंगी वही मेरे लिए बनाया करना। माँ जब मैं अकेली होती थी, आपके हाथ का खाना बहुत मिस करती थी।" वो ऑफिस के लिए तैयार होने लगी। उसके घर पर बेर का पेड़ छाया हुआ था। जिस पर मोटे मोटे बारीक गुठली वाले बेर लदे हुए थे। कात्या मुले ने हमारे दरवाजे के आगे भी दो बड़े गमले लगा रखे थे। सामने चार सफेद प्लास्टिक की कुर्सियाँ थी। जिस पर पके हुए बेर गिरते थे। कुर्सी के बेर मैं खाती थी। जमीन के बेर झाड़ू से सब डस्टबिन में डालती। यहाँ कोई खाने वाला ही नहीं था। उस अकेली लड़की ने लॉन मेनटेन किया हुआ था। करी पत्ता, धनिया ,पौदीना और न जाने कौन कौन सी र्हबस थी। र्गाडन फर्नीचर भी बहुत सुन्दर था। मैं यह सब  देख कर खुश हो गई कि हरियाली में बैठ कर पढ़ने में खूब मन लगेगा। बेटी बोली,’’माँ जल्दी तैयार होकर मेरे साथ चलो।’’ मैंने फटाफट साड़ी पहनी। इतने में उसने डस्टबिन पॉलिथिन में पलट कर गाड़ी में रख लिये, मैं आकर बैठी, उसने गाड़ी र्स्टाट की और मुझसे कहाकि आप रास्ता याद करो। रात वाले से ही चलेंगे। आपको स्टोर पर छोड़ कर मै ऑफिस निकल जाउंगी। वहाँ घूमना फिर अकेली वापिस आना। थोड़ी दूरी पर कूड़े दान पर उसने गाड़ी रोकी, गाड़ी से उतरी और कूड़ा, कूड़ेदान में डाला। वहाँ कोई भी गाड़ी का शीशा हटा कर कूड़ा नहीं फैकंता था। इसलिये वहाँ कूड़ेदान से बाहर कूड़ा नहीं था। मैं मोड़ याद कर रही थी। स्टोर के आगे उतार कर वह कहने लगी पूरे पचास मिनट घूमना फिर घर जाना दस मिनट का  पैदल का रास्ता है, हो गया न पूरा एक घण्टा, कह कर वह चली गई। नया खाना और बनाना मेरा शौक है। वहाँ चप्पन कद्दु की तरह एक नई सब्जी ली। बाकि जो चाहिए था वो लिया, टाइम पास किया और चल दी। बहुत सोच सोच कर मैं कदम बढ़ाती, अपने घर के पास पहुँची। बाहर कात्या मुले, ब्लू जिंस और सफेद र्शट में और उसकी माँ मिनी र्स्कट और स्लीवलैस टॉप में, मेरे लिए चिंतित खड़ी थी। मुझे देखते ही उसने मुझे गले लगा कर मेरे दोनो गालों पर चुम्बन जड़ा, ऐसा ही उसकी माँ ने मेरे साथ किया। इतने में एक गाड़ी आकर रूकी, उसमें से एक प्रभावशाली व्यक्तित्व का एक सांवला लड़का उतरा। उसने वही चुम्मन अभिवादन उन दोनो के साथ किया, उन्होंने भी बदले में उसके साथ वैसा ही किया। कात्या मुले ने बताया कि ये उसका मित्र ट्यूनेशिया से अनीस है। अनीस बड़ी अंतरंगता से मेरी ओर बढ़ा और  मैने दोनो हाथ जोड़ कर नमस्ते किया, वह वहीं रूक गया और जवाब में मेरी तरह हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। कात्या मुले ने फोन पर उत्कर्षिनी को मेरे लौटने की सूचना दे दी। मैं अपने घर आ गई। मैं यहाँ से खोया लेकर गई थी। गाजर का हलुआ बनाने लगी। चलते समय डॉ. शोभा ने भरवां करेले का डिब्बा दिया था। मैंने खबूस का छठा हिस्सा काटा, उसे और करेले को माइक्रोवेव में  गर्म किया। दहीं के साथ इन दोनो को खाया। और गाजर का हलवा बन रहा था इसलिए हॉटप्लेट को स्लो करके सो गई। उठी तो गजब का गाजर का हलुआ तैयार था। मैं पढ़ने बैठ गई। बेटी का फोन आया कि वह खाना लेकर आयेगी, बनाना नहीं है फिर हम शारजाह ऑफिस चलेंगे। एक दम सब कुछ नया था। मैं पढ़ते हुए बीच बीच में सोती रही। आठ बजे बेटी आई। गाजर का हलुआ देखते ही खुश हो गई। एक डब्बा शारजाह ऑफिस के लिये तैयार किया। हमने खाना खाया। वो लेट गई और  बोली,’’साढ़े दस बजे घर से निकलेंगे।’’कह कर सो गई, मुझे कहाँ नींद! क्रमशः