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Wednesday, 30 October 2019

फोकट का चंदन घिस मेरे नंदन Fokatka Chandan Ghis Mere Nandan Neelam Bhagi नीलम भागी


फोकट का चंदन घिस मेरे नंदन
नीलम भागी
आज डी. टी. सी की बस में टिकट लेने लगी तो कण्डक्टर ने गुलाबी टिकट दी। मैंने पूछा,’’कितने की?’’ उसने कहा कि आज से महिलायें मुफ्त यात्रा करेंगी। अब मैं सीट के लिए देखने लगी तो कोई सीट खाली नहीं थी। लगभग सभी सीटो पर महिलायें और छोटे बच्चे थे और कुछ महिलायें बच्चों के साथ खड़ीं भीं थी। मुझे महिलायें चहकती हुई नज़र आ रहीं थीं। लेकिन बच्चे फुदक रहे थे। बस के अंदर अजीब सा शोर था। जोर जोर से वे बतिया रहीं थीं। बीच बीच में शोर के कारण वे बच्चों को चीख कर कहतीं,’’नीचे मत उतर जाना, बस के अंदर ही रहना’’ फिर बातों में मशगूल हो जातीं। किसी स्टैण्ड पर एक दो पुरुष सवारी उतरती, साथ ही तीन चार महिलायें चढ़ जातीं। कुछ शैतान लड़के आपस में बोलते,’’स्टाफ बहुत बढ़ गया है।’’ मुझे याद आया कि जब कोई सवारी टिकट नहीं लेती तो कनडक्टर उसे टिकट लेने को कहता तो वो एक शब्द में जवाब देता ’स्टाफ’ फिर कण्डक्टर कुछ नहीं कहता। सवारियां समझ जातीं कि फ्री का सवार स्टाफ है। मैं बीच में खड़ी महिलाओं की बातों का आनन्द ले रही थी। अब उनकी सारी प्लानिंग इधर से उधर और उधर से इधर जाने के बारे में थी। अचानक एक अधेड़ महिला अपनी सखियों से बोली,’’अगर सरकार कुम्भ के मेले में रेल की टिकट हमारे लिए मुफ्त कर देती तो हम भी कुम्भ नहा आतीं।’’ अब सब ऐसे दुखी हो गईं जैसे उनसे कुछ छीन लिया गया हो। मैं भी सोचने लगी कि अगर सरकार कुम्भ के मेले में महिलाओं के लिए यात्रा मुफ्त कर देती तो देश की लगभग सारी महिलायें तीर्थयात्री हो जातीं। अचानक देखा, मेरा स्टॉपेज़ कब का पीछे छूट गया था!! कोई परवाह नहीं। कौन सा मेरी जेब से पैसा लगा है? अगले स्टॉप पर उतर कर दूसरी बस से वापिस आ जाउंगी। फोकट का चंदन घिस मेरे नंदन।           


Tuesday, 29 October 2019

ये प्यार वो नशा है कि जिसका नहीं उतार, विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 13 नीलम भागी



   मेरी और कात्या मूले के बीच में चलने वाली एक एक बात को मेरी बेटी उत्कर्षिणी बढ़े ध्यान से सुनती थी। ऐसे ही हमारा समय बीत रहा था। वीकएंड पर मुझे घुमाने का प्लान किया जाता था। कात्या मूले जो भी वेज बनाती, मेरे लिये ले कर आती। र्मिच के बिना भी खाना इतना स्वाद हो सकता है, मैंने पहली बार जाना था। उस पर काली र्मिच पाउडर अपने स्वादानुसार डाल लो, होते ज्यादातर सूप ही थे। अपने जॉब के अलावा वह जहाँ भी जाती मुझे साथ लेकर जाती। मैं साड़ी में, वह वैर्स्टन पोशाक में जाती थी।| जिस मॉल में हम जातीं। सबसे पहले मैप में किसी कॉस्मैटिक ब्राण्ड के स्टोर को ढूंढती। वहाँ उनके स्टोर पर हम जाते। जो ट्राई का सामान होता, उसके पास खड़ी लड़की से वह कहती कि ये ब्राण्ड उसने कभी इस्तेमाल नहीं किया है। न ही उसे करना आता है। मुझे आगे करके कहती कि पहले उसे इनके चेहरे पर इस्तेमाल करना सिखाओ। वो मेरा मेकअप करती, ये बड़े ध्यान से देखती और मैं इस छ फीट की यूरोपियन अर्पूव सुन्दरी का चेहरा ध्यान से देखती। मेकअप होते ही वह मेरे र्पस से निकाल कर मेरे माथे पर बिंदी लगा देती क्योंकि बिंदी के लिए उसके पास अंग्रेजी में शब्द नहीं था। बिंदी सिर्फ काली होती इसलिए उसे शेड मिलाने में मशक्कत नही करनी पडती थी| अब वो मेरी बांह में बांह डाले, मॉल में घूमती। उस दिन की एक घण्टा की सैर ऐसे ही की जाती थी। यदि उसकी कोई मींटग मॉल के रैस्टोरैंट में फिक्स होती तो वो मुझे ले आती, मैं उसकी नजरों से दूर घूमती रहती ताकि मेरी वजह से उसे जरा भी डिर्स्टबेंस न हो। मीटिंग खत्म होते ही वह मुझे फोन करती, मैं पार्किगं में गाड़ी के पास पहुंच जाती। घर में हम अपने अपने कमरे में चले जाते। मेरे कान बाहर ही लगे रहते थे| मुझे उसके प्रश्नों का जवाब देना अच्छा लगता था। अगर वो नीलम की पुकार करती तो मैं तुरंत बाहर जाती थी। एक ही लड़की में इतने गुण देख कर मैं सोचती ये बयालीस साल की हो गई है। इसने अब तक शादी क्यों नही की? ये प्रश्न मेरे दिमाग में हर समय खड़ा रहता, उसे बुरा न लग जाये इसलिये नहीं पूछती थी। घर उसने होटल की तरह मेनटेन किया हुआ था। ऑफिस समय में फॅारमल,  टाइम ओवर  एकदम कैजुअल में। उसका सब काम समय से चलता था। एक सण्डे शाम हम बाहर से खाकर लौटे। सामने हमारा इंतजार करती कात्या मूले खड़ी थी, बेटी उसके पास रूक गई। मै चेंज करने चली गई। लौटी तो बेटी चली गई। मेरे मुंह से निकल ही गया था मैं बोली,” मुझे तुमने हैरान कर रखा है बिना किसी परिवारिक मदद के काम कर रही हो। इतने अच्छे से रह रही हो? वो कौन किस्मतवाला होगा, जिसकी तुम पत्नी बनोगीं? पहले उसने धन्यवाद किया फिर वो अपने बारे में बताने लगी कि उसे उच्च शिक्षा का शौक था। इसलिये उसने पहली जॉब, बियर बार में की। यहाँ आने वाले एक रेगुलर ग्राहक से उसकी दोस्ती हो गई। दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला। वह उसे दिलोजान से चाहने लगी। वो मुझसे मंहगे महंगे गिफ्ट की डिमाण्ड करता, मैं पूरा करती,  बार के उसके बिल पे करती, प्यार जो उसको करती थी न। पढ़ना-लिखना सब छूट गया था क्यूंकि ये प्यार का नशा था जिसका न था उतार| बाद में पता चला कि वो शादीशुदा है। मेरे गिफ्ट वो अपनी पत्नी को देता था। सच्चाई जानकर, उससे ब्रेकअप करने में काउंसलर ने मुझे बहुत सहयोग किया। मैंने उस धोखेबाज से फैंडशिप भी नहीं रखी क्योंकि मैं एक सिद्धान्तवादी लड़की हूं। जब मेरा किसी से अफेयर चल रहा हो, तो मैं कभी दूसरा अफेयर साथ में नहीं करती। ब्रेकअप के बाद ही अगला करती हूं।क्रमशः

Saturday, 26 October 2019

मुझसे किसी को प्यार नहीं! विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part12 नीलम भाग



बच्चे बस मुझे आते जाते मुस्कान देते हैं। जब मैं उनके पास बैठ कर उनसे बाते करने के लिए शुरुआत करता हूँ कि तुम्हारा दिन कैसा रहा या उनके दोस्तों के बारे में उनसे दोस्त की तरह बात करने की कोशिश करता हूं। वे कहते हैं कि उनका टैस्ट है। मैं चुप हो जाता हूँ। सकीना के पास भी अब काम बहुत कम है पर वह बहुत व्यस्त है। उसके पास समय का हमेशा अभाव है। पहले वह बच्चों को स्कूल से लाने, ले जाने का काम करती, घर के काम के साथ उन्हें होम वर्क करवाती तो मैं उसे झाड़ू खटका और बर्तन घिसने के लिए बाई लगाने को कहता था तो जवाब में वह कहती कि कामवालियां झूठी और चोर होती हैं इसलिए वह अपना काम खु़द से करना पसंद करती है। कौन बहस में पड़े! ये सोच कर मैं चुप लगा जाता था। अब सकीना सिर्फ कुकिंग करती है। सब्ज़ी कटवाने से लेकर, कपड़े घड़ी(तह) करवाना तक बाइयां करती हैं। एक के बाद एक तीन बाइयां घर में आतीं हैं और सकीना जिन जिन घरों में वे जाती हैं। उनकी रिर्पोट वह उनसे ले लेती है। इस काम में मेरे जाने पर भी वह कोताही नहीं बरतती है। बचे हुए समय में वह जिम जाती है और कभी कभी किट्टी जाती है। मैं अब्बू अम्मीे को फोन करके कहता हूं कि अकेली सकीना गृहस्थी संभाल रही है। आप कभी कभी उसके पास रहने चले जाया करो। वे कहते हैं,’’जरुर जरुर।’’ पर जाते कभी नहीं। एक बार मैंने अपनी भाभी को ग़िला किया कि आप लोग कभी सकीना बच्चों के पास क्यों नहीं रहने जाते? अब तो फ्लैट भी बड़ा है। उसने जवाब दिया कि भाईजान दुल्हिन के सिर में दर्द रहता है। जब भी हम गये हैं वो सिर पर कपड़ा बांध कर आँखें बंद करके, कमरे में अंधेरा करके, चुपचाप लेटी मिलती हैं। जैसे बुखार मापने का थर्मामीटर होता है। ऐसे ही दुबई में कोई दर्द नापने का यंत्र हो तो लेते आना और खी खी करके हंसने लगीं। ये हिस्सा तो दानिश ने मुस्कुराते हुए सुनाया। अब वह फिर उदास होकर बोला,’’ मुझसे किसी को प्यार नहीं। यहां सब कुछ है पर जिन्दगी में रस नहीं है। जो अपने देश में बात है, वो वैसा यहाँ मन नहीं रचता। जो साथी बच्चों को अपने साथ लाये थे, बच्चे यहाँ पले बढे़। अब बच्चे यहाँ से जाना नहीं चाहते। उनके कारण माँ बाप यहाँ रहने को मजबूर हैं। अब वह फिर गुमसुम सा बैठ गया। उसे चुप देख कर मैं बोली,’’दानिश मैं जहाँ रहती हूँ न, मेरे आस पास घरों में सिर्फ बुर्जुग, कुत्ता और नौकर(फुल टाइम या पार्ट टाइम) हैं। कुछ अपवाद को छोड़ कर नौकर उनकी अच्छे से देखभाल करते हैं क्योंकि उनकी नौकरी उनके जीवन के साथ है। उन्होंने अपनी संतानों को इतना लायक बना दिया कि वे उनके लायक नहीं रहीं। वे देश विदेश की बड़ी बड़ी कम्पनियों में उच्च पदों पर हैं। माँ बाप के बनाये घरोंदे में न रहना उनकी मजबूरी है। माँ बाप को भी संतोष है कि उनके बच्चों ने उनकी मेहनत सार्थक की। न बेटी ने पास रहना है न बेटे ने। हाँ इनकी पीढ़ियां बैठ कर खायें, उनके लिये खटते हुए अपनी जिंदगी नरक मत करना। कब तक कितना कमाना है, इस पर विचारो फिर उस पर संतोष करके लौट जाना। परिवार को तुम्हारे बिना रहने की आदत हो गई है। जब लौटोगे कुछ दिन बाद सब ठीक हो जाएगा।  अब वह काम में लग गया और मैं सो गई। बेटी उत्कर्षिनी अब दानिश की तारीफ़ करती थी कि दानिश हमेशा समय पर काम देता है। जब शो शुरु हुए, मैं ऑडियंस में बैठती थी। जब कभी दानिश शो में आता तो मुझे मिलने जरुर आता। अपने हाथ से मेरे लिए कॉफी बना कर लाता। पहले कॉफी पकड़ाता फिर मेरे पैर छूता। मैं भी अगर दो मिनट पहले भी कॉफी पी चुकी होती तो भी उसकी प्यार से लाई हुई कॉफी जरुर पीती। शो के दिनों में मैं और कात्या मूले रात को ही मिलते थे। क्रमशः       

         

Friday, 11 October 2019

बीच, टैण्डर कोकोनट आइसक्रीम, नेवरी और पेड़ से नारियल तोड़ना Goa Part 3 गोवा भाग 3 नीलम भागी



बच्चों की मनपसंद दो चीज़े होती हैं पानी और रेत जिसके सामने उसे किसी खिलौने की जरूरत नहीं होती। चुम्मू का जैसे ही पहला कदम रेत पर पड़ा, उसने झट से दोनों मुठ्ठियाँ रेत से भर ली।
 पानी को देख कर तो उसकी आँखें फैल गई। आती हुई लहरें उसे बाहर धकेल रहीं थीं और जाती हुई अंदर खींच रहीं थी और पैरों के नीचे से रेत खिसक रही थी। उसने कस के अंकुर का हाथ पकड़ लिया और लहरों की अठखेलियों को समझना शुरू कर दिया। शायद अब उसे समझ आ गया, उसने पापा का हाथ छोड़ दिया। पैकिट की क्ले(मिट्टी) से खेलने वाले चुम्मू के पास, दूर तक फैली गीली रेत थी। किनारे की गीली रेत पर बैठ कर वो रेत से खिलौने बनाने लगा। कभी कोई लहर आती उसके सारे खिलौने धराशायी कर जाती। ये देखकर वह खिलखिला कर हंसता और वह फिर उसी तरह बनाने में लग जाता। कड़ी मेहनत के बाद भी उसका एक भी खिलौना नहीं टिका, पर उसने हिम्मत नहीं हारी। अब वह पीछे खिसकता रहा, रेत से लड्डू बनाता रहा, लहरें खाती रहीं। उसने वहाँ तक बनाये जहाँ तक रेत गीली थी़, लहरें भी वहीं तक आईं। लेकिन वह दीनदुनिया से बेखबर लहरों से खेलता रहा। जब किनारे पर उसे तीखी धूप लगने लगी, शायद थक भी गया हो, तब वह सागर की ओर पैर करके पेट के बल लेट कर रेत से खेलने लगा।
 अब लहरें उसे भिगोती हुई जाती थीं। चुम्मू को देसी विदेशी सभी तरह के खिलौने मिले हैं लेकिन रेत पानी से खेलते हुए उसके चेहरे पर जो खुशी थी, ऐसी मैंने कभी नहीं देखी थी। हमने एक एक कर, चुम्मू पर नज़र रखी हुई थी। अचानक उठ कर वह पानी की ओर भागने लगा। श्वेता ने झट से उसे पकड़ा। अब उसने तो हाथ छुडा कर लहरों के बीच में जाने का खेल बना लिया। हम थके तो नहीं थे पर धूप बहुत तेज हो गई थी। पानी से बाहर आये और गीले कपड़ों से चल दिये। सूखी रेत गर्म हो चुकी थी, उपर से धूप। जल्दी जल्दी रेत से बाहर आये। वहाँ हमने टैण्डर कोकोनट आइसक्रीम खाई जो हमें बहुत पसंद आई। टहलते हुए सबसे पहले हैट खरीदे, जिससे धूप मेें चलना आसान हो गया। हवा तो वहाँ चलती ही अच्छी है। पता नहीं समुद्र में नहाने से हम बहुत थक गये थे। हम खाने की जगह ढूंढ रहे थे। जो वहाँ बहुतायत में थीं। पर उस समय सब में भीड़ थी, वेटिंग थी। हम गैस्ट हाउस की ओर चल दिये कि रास्ते में खा लेंगे। एक दुकान पर हमने नई मिठाई दिखी, हमने ली। उसका नाम नेवरी था, जो नारियल, इलायची, बादाम व चीनी से बनी थी। स्वाद में बहुत अच्छी थी। हमें एक रैस्टोरैंट दिखा, उसमें भीड़ कम थी। हम खाने बैठै। स्वाद में दाल सब्जी सब स्वादिष्ट। मट्ठा लिया उसका स्वाद बहुत लजी़ज था। उन्होंने छौंक लगा कर दिया था। भीड़ का समय था, अभी तो हमें काफी दिन रूकना था। बाद में स्वाद के राज़ का पता लगाउँगी। खाना खाकर हम चल दिये। वहाँ से हमारा गैस्टहाउस पास में ही था। आकर नहाये फिर सो गये। शाम को ढप ढप की आवाज से नींद खुल गई। मैंने बाहर आ कर देखा, नारियल तोड़े जा रहे थे। झट से चुम्मू को जगाया। वह नारियल  गिरते देख खुशी से तालियाँ बजाने लगा। जब तोड़ने वाला उतरा, तो मैं भी बड़ी हैरान हुई। उसने दोनों पैरों के टखनों को रस्सी से बाँध रखी थी । अब वह दूसरे पेड़ पर भी ऐसे ही चिपक चिपक कर केंचुए की तरह चढ़ने लगा।़ मैंने पेड़ों की मालकिन मार्था से कहा,’’हाय! कितना मुश्किल काम है, पेड़ से नारियल तोड़ना।’’उसका जवाब सुन कर मैं हैरान रह गई। वो बोली,’’ये जो तोड़ रहा है न, इसका परिवार पीढ़ियों से हमारे यहाँ नारियल तोड़ता है। मैं इसे सत्तर रूपये पेड़ के हिसाब से देती हूँ। जबकि बाजार में सौ रूपया पेड़ है। 
इसके बेटे बहुत पढ़ लिख गये हैं। बाहर अच्छी नौकरियों पर लगे हैं। वे तो चढ़ेंगे नहीं न। ये भी अपनी मर्जी से अपनी सहूलियत के हिसाब से आता है। आज ये आ गया तो मैंने सोचा सभी तुड़वा लेती हूँ, फिर पता नहीं कब ये आये।’’जमीन पर हरे नारियलों  का पहाड़ लग गया था। लेकिन मार्था का ट्रक भर नारियल बाजार भाव से गया था। नारियल पानी का रेट दिल्ली और गोवा में एक ही था। क्रमशः 
                                                                         

Monday, 7 October 2019

ले तो आये हो हमें सपनोंं के देश में, विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 11 नीलम भागी


दुबई घूमने का सुनकर सबने कोरस में  कहा,’’ठीक है।’’एक साल मैंने घर न जाकर इन्हें बुलाया। मेरे रुममेट अपने दोस्तों के पास एक महीने के लिये चले गये। गाड़ी मेरे परिवार के लिए छोड़ गये। यहाँ प्रवासी सब इसी प्रकार एक दूसरे का सहयोग करते हैं। सकीना और बच्चों की यह पहली विदेश और हवाई यात्रा थी। दुबई एयरर्पोट के बाहर, बच्चे मुझे देखते ही दौड़ कर मुझसे लिपट गये। मुझे अपनी हवाई यात्रा पार्किंग तक सुनाते गये। सामान रख कर गाड़ी में  बैठने तक उनका यात्रा वृत्तांत चालू था। मैंने जैसे ही गाड़ी र्स्टाट की। तीनों चुपचाप विस्मय विमुग्ध से दुबई को देखते रहे। तभी मैंने सोच लिया था कि इन्हें यहाँ का कोना कोना दिखाऊँगा। मैंने परिवार को घुमाया फिराया। सकीना तो यहाँ की कानून व्यवस्था से बहुत संतुष्ट थी। मैंने उन्हें उन परिवारों से मिलवाया, जिनके यहाँ बच्चे पढ़ रहे थे। मेरे ऑफिस जाने के बाद सकीना उनमें उठती बैठती, पूरा हिसाब किताब समझती। वह जान गई थी कि यहाँ परिवार रख कर बचत नहीं हो सकती है। उसने मुझे कहा कि जैसा चल रहा है, वैसा ही चलने दो। मुंबई में फ्लैट बुक कर लो और बचत उसमें लगाओ। यहाँ वह बड़ी समझदारी से सेल में टैग देख देख कर दरहम को रुपये में कैलकुलेट करके अपने और मेरे परिवार के लिए गिफ्ट खरीद रही थी। वीजा अवधि समाप्त होते ही, बच्चे नये नये इलैक्ट्रिानिक गजैट्स के साथ बड़ी खुशी से मुझे हाथ हिलाते हुए चल दिए। मैं एयरर्पोट पर उदास खड़ा, उन्हें जाते हुए देखता रहा। उन्होंने मुड़ कर भी नहीं देखा। सकीना के कहने पर देखा और हाथ हिलाया। जहाज के उड़ान भरने से पहले सकीना का हंसते हुए फोन आया कि तुम्हारे लाडले मुबंई पहुंचने के लिये बहुत उतावले हो रहें हैं। मेरे कुछ बोलने से पहले ही बोली,’’दरअसल ये सामान यहाँ तो सब बच्चों के पास है। हमारी सोसाइटी में रहने वाले बच्चों के पास नहीं है। ये जाकर उनको दिखाने के लिए उतावले हैं। परिवार को यहाँ बुलाने से दो महीने की बचत खर्च हो गई थी। डेढ़ साल तक मैं मुम्बई नहीं जा पाया था। इनके जाने के छ महीने बाद मैं घर गया। दुबई से ही मैं प्रापर्टी डीर्लस के कांटैक्ट में था। लैंड करते ही उनके फ्लैट दिखाने के लिए फोन आने लगे। मुझे दो बैडरुम का फ्लैट बुक करना था। उन छुट्टियों में परिवार को खुद के फ्लैट में शिफ्ट करवा कर आया था। उस बार का मुम्बई जाना तो घर खरीदने और घर बदलने की भाग दौड़ में ही गया। अब किराये की भी बचत हो गई थी।। लोन की किश्त मैं उतारता था। दुबई से जाने के बाद सकीना की बच्चे तंग करने वाली शिकायत तो खत्म हो ही गई थी। छ महीने बाद जब मैं घर गया। फ्लैट में घुसते ही साफ और सादगी से सजा घर देख कर मन खुश हो गया। परिवार के लिए प्रवासी रहना भी सार्थक लगा। रिश्तेदारों के फोन आते। सकीना ही पूछती कि कब उनसे मिलने आएं? वह बच्चों के स्कूल समय में ही ज्यादातर दोस्तों, रिश्तेदारों के घर मिलवाने ले जाती थी। घर खरीदने के बाद तो जहाँ भी जाते लगभग सब का एक ही प्रश्न होता कि उनके घर का कोई सदस्य दुबई कैसे कमाने जा सकता है? मैं उन्हें क्या समझाऊं? हमें क्या पता? यहाँ तो आप देख ही रहीं है, सब कितने व्यस्त हैं! कोई हमारी सोशल लाइफ नहीं है। समय भी बचा कर प्राइवेट काम और पकड़तें हैं। ताकि जल्दी से पैसा जोड़ कर जाकर परिवार में रहें इसलिए मैंने कहीं आना जाना भी कम कर दिया। बच्चे अब स्कूल के बाद कोचिंग लेते थे। सकीना उन्हें नहीं पढ़ा सकती थी। शायद दूर रहने से दूरी बढ़ रही थी। अब जब भी मैं घर जाता हूँ। बच्चे हग करने के बाद जब तक लगेज़  सकीना नहीं खोलती, तब तक वहीं बैठे रहते हैं। जो मैं पूछता हूँ उसका जवाब देते हैं। अपनी तरफ से कोई बात नहीं करते हैं। उस समय अगर बाई काम कर रही होती है तो वे बैठे रहते हैं। बाई के जाते ही सकीना लगेज़ खोलती है। तीनों की आँखें सामान पर होती हैं और उनकी शक्ल से खुशी और उत्सुकता टपक रही होती है। मैं उस समय उनके चेहरे के भाव देख कर खुश होता हूँ। बच्चे अपना सामान लेकर अपने कमरे में चले जाते हैं। बाकि सब सकीना अपने कब्जे़ में कर लेती है। अब बच्चे व्यस्त हो जाते हैं|क्रमशः
           

Sunday, 6 October 2019

ये दिल कहीं लगता नहीं पर... विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 10 नीलम भागी

माँ ग्यारह बजे जगा देना शारजाह ऑफिस जाना है। बेटी एक स्लिप लगा कर सोई हुई थी। 11 बजे उसे जगाया और हम चल दिए। रास्ते में बेटी बोली,’’माँ आप दानिश खान का ध्यान रखना, वो सिगरेट पीने जाता है और खो जाता है।’’ मैंने पूछा,’’कहाँ चला जाता है?’’ वो बोली,’’जाता कहीं नहीं बस सपनों में खो जाता है। काम में बहुत अच्छा है। बस आप बीच बीच में देखती रहना, मैं कुछ और काम पूरा कर लूंगी।’’ मैं बहुत खुश हो गई। चलो कुछ काम करने को तो मिला है। एडिटिंग रुम में जाते ही दानिश ने मेरे पैर छुए और अपने काम में मश़गूल हो गया। मैं पहले की तरह शॉल ओढ़ कर सोफे पर लेट गई क्योंकि एडिटिंग रूम में एसी बहुत कम टेंपरेचर पर चल रहा था। बेटी और काम निपटाने चली गई। मैं सो गई। जब भी आँख खुलती दानिश को काम में खोया देखती। अचानक आँख खुली दानिश गायब! डायनिंग रुम में उसे देखने गई। सामने उसके सुलेमानी(बिना दूध की चाय का दुबई में नाम) रक्खी रखी थी। अंगुलियों में सिगरेट सुलग रही थी और वह विचारों में खोया हुआ था। मैं अपने लिये कॉफी बनाने लगी तो उसका ध्यान टूटा, एकदम उठ कर आया और बोला,’’अम्मी आप बैठिये न। मैं बना कर लाता हूँ। मैं बैठ गई। जैसे ही वह कॉफी बनाकर लाया। मैं बोली,’’बेटा,रुम में चल कर पीते हैं।’’जैसी आपकी मर्ज़ी कह कर वह मेरे पीछे चल दिया। मैंने कॉफी का पहला घूंट भरा और बोली,’’आपने कॉफी तो बहुत अच्छी बनाई है।’’शुक्रिया कह कर उसने मुझसे पूछा,’’आपको दुबई कैसा लगा?’’मैंने उसे दुबई की विशेषताओं पर निबंध सुना कर कहा कि यहाँ मुझे कोई काम नहीं है सिवाय बेटी के साथ समय बिताने के और कात्या मूले के साथ बतियाने के। फिर मैंने पूछा कि तुम्हें दुबई कैसा लगा? उसने जवाब दिया,’’अच्छा लगता है पर परिवार मुंबई में है इसलिये मन वहीं अटका रहता है।’’ कुछ तो उसकी मज़बूरी रही होगी इसलिये मैंने नहीं कहा कि फैमली को यहाँ ले आओ। मैं उसके बच्चों की पढ़ाई आदि के बारें में बात करने लगी। अब वह बताने लगा कि उसके एक बेटा और बेटी है। पत्नी सकीना होम मेकर है। बेटा दसवीं में है और बेटी नवीं में। मैं खुश होकर बोली कि चलो बेटा बेटी दोनो बड़ी क्लास में हैैं। दुबई में कब से हो? वह बोला,’’बच्चे जब पहली दूसरी में थे तब से यहाँ आया हूँ। मैंने की कहा कि परिवार तो तुम्हें बहुत मिस करता होगा न! सुन कर उसके चेहरे पर गहरी वेदना आ गई। वह बोला,’’अम्मी, मैं इण्डिया से उस समय के चौगुने वेतन पर यहाँ आया था। वहाँ हम बहुत हिसाब से चलते थे। हमने किराये का एक कमरे का फ्लैट, दोनों पढ़ने वाले बच्चों के स्कूल के पास लिया था, सकीना ही उन्हें पैदल छोड़ने और लेने जाती, बिना बाई के घर सम्भालती, बच्चों का होमवर्क करवाती, बुरे वक्त के लिए बचत भी कर लेती। पाँच घण्टे का लोकल से आना जाना करके, हाथ में कुछ खाने को जैसे भेल, वड़ापाव वगैरहा लेकर ही मैं घर आता था। मुझे देखते ही, दोनों बच्चे पानी की बोतल लाने के लिए फ्रिज खोलने लगते। चेंज करते ही चाय भी आ जाती। किराये का स्टुडियो अर्पाटमेंट जन्नत सा लगता था। स्कूल बैग खोल कर, बच्चे स्टार दिखाते, उनको देख कर मेरी थकान उतर जाती थी। मेरा गृहस्थी चलाने में सिर्फ कमाने का योगदान था। बाकि सब सकीना का महकमा था। यहाँ आने पर भी मैं सकीना को अपनी भारत में मिलने वाली तनखाह देता था। मेरा तो कोई खर्च ही नहीं था। सकीना को अब चार की बजाय, तीन लोगों का घर खर्च चलाना था और हम यहाँ तो घर द्वार छोड़ कर कमाने और बचाने आये हैं। यहाँ भी वन रुम सैट में हम चार दो कुवांरे और दो शादीशुदा रहते हैं। एक गाड़ी रक्खी हुई है। रोटी पराठां बाजार यानि सुपर स्टोर से ले आते हैं। सालन खुद बना लेते हैं। वैक्यूमक्लिनर, डिशवाशर और वाशिंग मशीन की मदद से   मिलजुल कर काम कर लेते हैं। बाकि समय फ्लाइट या जरुरत के सामान की सेल देखते हैं, जब सेल होती है तो इण्डिया ले जाने के लिये और यहाँ के लिए खरीदारी करते हैं। जितने समय में मैं लोकल से रोज सफ़र करता था, इतने समय में तो मैं दुबई से मुंबई घर चला जाता हूँ। बचत के कारण साल में दो बार मैं घर जाता हूँ। शुरु शुरु में बच्चे मेरे जाने पर खेलने भी नहीं जाते थे। हर वक्त मुझे घेरे रहते थे। अपने और सकीना के परिवार में मिलने जाता वहाँ भी मुझसे चिपके रहते थे। कुछ समय बाद फोन पर सकीना की शिकायतें शुरु होने लगीं कि बच्चे उसे बहुत तंग करते हैं। वो अकेली क्या क्या करे? मैंने बच्चों से कहा कि तुम्हें दुबई घूमने आना है? वे यहाँ आने के नाम पर बहुत खुश हुए। मैंने कहा कि इस साल मैं नहीं आउंगा। छुट्यिां तुम लोग दुबई में ही बिताओगे। क्रमशः

Friday, 4 October 2019

बिना अफेयर के मैरिज!! विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 9 नीलम भागी


उत्कर्षिनी  कात्या मूले के बारे में बताये जा रही थी कि ये दुबई में इवेंट मैनेज करती है। हमारे कॉलिज से हम कुछ स्टूडैंंट इसके पास ट्रेनिंग के लिये भेजे गये थे। आपकी नसीहत है कि कभी काम में वक्त कटी नहीं करो,  दूसरे का काम, अपना काम समझ कर करो। मैंने वैसा ही किया। जाते समय इसने मुझे कहा कि पढ़ाई खत्म होने पर मैं उससे मिलूं। मेरा कैंपस सलैक्शन हो गया था। मुझे कमरे की तलाश थी। मैं इसके पास आई इसने कहाकि अपने बैग उठा लाओ। ये भी किराये के विला में रहती है। इसने मुझे यह रहने की जगह दे दी। दस परसेंट साल का बढ़ाती है। इसी में ही इसका ऑफिस है। टाइम से अपने ऑफिस में बैठेगी। लंच के समय निकलेगी या मीटिंग के लिये जाती है। यानि ऑफिस कम रेजिडेंस. कात्या मूले के बारे में जान कर मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं समझ गई कि ये व्यस्त महिला है। जब ये अपनी सुविधानुसार बुलायेगी, तभी जाना है। इतने में उसने नीलम नीलम के नारे लगाये| बेटी बोली,”जाओ बुलावा आ गया है| अब वो कुत्ता लेकर मुझसे बोली,’ चलो घूमने ।मैं चल दी। आज कुत्ता जल्दी फारिग हो गया। हम जल्दी लौट आये। उसने मुझे कहा कि मैं वहीं पर उसके बार बी क्यू के आस पास ही घूमती रहूं ,जब तक एक घण्टा नहीं हो जाता। वो सिगरेट सुलगा कर बैठ गई। मैं मन में इंतजार ही करती रही कि उस दिन की बात कन्टीन्यू हो। पर उसने मुझसे पूछा,” नीलम तुम्हारे कितने अफेयर हुए हैं?मैंने कहा,” कोई नहीं।उसने कहा कि तुम्हारी तो शादी हुई है न। मैंने कहा,”हाँ, तो!उसने हैरान होकर पूछा,”बिना अफेयर के मैरिज!!मैंने समझाया कि हमारे यहाँ लड़की ने क्या पढ़ना है? कहाँ पढ़ना है? किससे शादी करनी है, ये परिवार देखता है। वो बोली,” फिर प्यार! मैंने कहा,” जिससे शादी होती है उससे करते हैं न। कहते हैं उसके साथ सात जन्मों का बंधन होता है। फिर एक दूसरे को समझते समझते प्यार हो जाता है। वो बोली,” अगर पति अच्छा नही होता तो !तो क्या! अपनी किस्मत समझ कर इस उम्मीद में समय निकालते हैं कि सबकुछ ठीक हो जायेगा। ऐसे ही समय निकल जाता है। हाँ लड़की यदि आत्मनिर्भर है। तो वह कभी कभी विरोध कर लेती है। फिर उसे परिवार मिल कर समझाता है ताकि घर टूटे न। मैंने भी यही किया मेरी बेटी क्या पढेगी? ये निश्चित मैंने किया| बेटी की रूचि नहीं देखी। बारहवीं तक उसे मैथ और बायोलॉजी दोनों सब्जेक्ट लेकर दिए| ये सोच कर कि मेडिकल में आ गई तो डॉक्टर बन जायेगी| इंजीनियरिंग के एंट्रेंस में आ गई तो इंजिनियर बन जायेगी| मैं इन प्रतियोगिता परीक्षाओं के आसपास से गुजरीं होती तो मुझे पता होता कि दो जगह तैयारी करना कितना मुश्किल था| बेटी है न, आज्ञा दे दी|  वो मेहनत करने लगी| उसने मेरी इच्छा के अनुसार इंजीनियरिंग की, एमबीए किया। आज लगता है मैं गलत थी। मुझसे अलग होते ही यह मन का काम कर रही है। अब देखना ये इससे संबंधित पढ़ाई साथ साथ करेगी क्योंकि बचपन से मैंने इसे पढ़ने की आदत जो दी है। अब मैं र्सिफ दर्शक का काम करूंगी। मुझसे मदद या सलाह मांगेगी तो दूंगी। इस पर अपनी इच्छा नहीं थोपूंगी। ये सब सुनकर वह बहुत हैरान हुई। अब वो मायूस होकर बोली कि तुम्हारे तो अफेयर ही नहीं हुए तो ब्रेकअप कहाँ से होंगे? मैंने कहा कि संस्कारों से बंधे होने से हम इस जद्दोजहद से भी बचे रहते है। अब समय को सिनेमा बदल रहा है। जैसे ब्रेकअप के बाद सैलिब्रेशन होने लगा हैं। 
मेकअप कर लिया, सैंया जी के साथ मैंने ब्रेकअप कर लिया.....।  हमारी समय सीमा समाप्त हुई। हम अपने अपने घर चल दिये। क्रमशः