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Thursday, 7 May 2020

मथुरा से गोकुल की ओर भाग मथुरा यात्रा भाग10 Gokul Mathura Yatra Part 10 Mathura Se Gokul Neelam Bhagi नीलम भागी




मथुरा से गोकुल की ओर  मथुरा यात्रा भाग10
नीलम भागी
गोकुल यहां से 15 किमी दक्षिण पूर्व की अच्छी सड़क मार्ग से यमुना जी के किनारे कस्बा है। हम अच्छी बनी सड़क पर जा रहें हैं। दिमाग में श्री कृष्ण जन्मभूमि छाई हुई थी। कन्हैया का जन्म होते ही बेड़ियां खुल गईं। पहरेदारों को नींद आ गई। वासुदेव सूप में त्रिलोकीनाथ को सिर पर रख कर यमुना जी पार कर रहे थे। यमुनाजी कान्हा के चरण छूना चाहती थीं। वासुदेव उस वक्त कह रहे थे ’कोलू कोलू कहूं पुकार, मेरे लाला को करो पार’ चरण छूने के बाद यमुना जी का पानी नीचे उतरने लगा। कोलू गांव है, उन्हें महावन जिसे पुरानी गोकुल कहते हैं। वहां नंद के घर लाये थे। यशोदा जी को बेटी पैदा हुई थी जिसे नंद ने वासुदेव को दे दिया। और अगले दिन नंद के आनन्द भयो, जै कन्हैया लाल की। नंद को पुत्र जन्म की बधाई मिलने लगीं। छोटा सा गऊओं को पालने के कारण, गो, गोप, गोपी के समुह का गांव गोकुल कृष्ण, बलराम की लीलाओं का साक्षी है। हमारे यहां चार धाम हैं। लेकिन गोकुल को गोकुलधाम कहते हैं। श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को तीर लगने के कारण यात्रा पूरी नहीं करा सका था। इसलिए ऐसा कहा गया है कि गोकुल धाम की यात्रा का पुण्य माता पिता को मिलता है। ’चलेंगे गोकुल धाम, करेंगें माता पिता का नाम’। यहां जन्माष्टमी और अन्नकूट का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यहां तो पग पग पर कान्हां से जुड़ी कथाएं हैं। विलक्षण बालक को कंस के डर से गोपनीय ढंग से पालना बहुत सूझ बूझ का काम था। पूतना, शटकासुर, तृणार्वत आदि असुरों का वध करने वाला बालक साधारण तो हो नहीं सकता। नंद ने भी उनकी पहचान गुप्त रखने के लिए, उनको साधारण गोपालकों की तरह पाला और उनका बहुत प्यारा नाम गोपाल हो गया। लंच का समय था। रोड साइड पर एक ढाबे पर गाड़ियां रोक दीं। मेरी आदत है, मैं जहां भी जाती हूं। वहां का स्थानीय खाना ही खाती हूं। यहां तो गाय आस पास खूब दिख रहीं थी। सीनियर सीटीजन ने ढाबे वाले को अपना मैन्यू बताया कि या तो खिचड़ी बना दो या लौकी की सब्जी के साथ रोटी ओर दहीं खायेंगे। ढाबे वाला लौकी बनाने लगा। फिर लौकी खाने के फायदों पर सैमीनार शुरु हो गया। सामने एक झोंपड़ी में चाय कुल्हड़ में बिक रही थी। हम तो पीने पहुंच गई। प्योर दूध, खूब दबा के चीनी और कुल्हड़ की महक वाली, लाजवाब चाय पीकर आत्मा प्रसन्न हो गई। लंच के लिये मैंने मना कर दिया था क्योंकि मैं यहां खिचड़ी या लौकी(दूधी) की सब्जी खाने नहीं आई थी। हरे हरे खेतों में स्वस्थ गउएं चर रहीं थीं। पास ही एक हलवाई की बिना सजावट के साफ सुथरी दुकान थी। मैंने उससे लस्सी बनवाई, जिसमें चीनी की जगह पेड़े डलवाए। अपने घर मेें पेड़े वाली लस्सी बनाएंगे तो वो स्वाद आ ही नहीं सकता क्योंकि वहां दूध में प्रिर्जवेटिव नहीं डलता। बाकियों का भी लंच हो चुका था। अब हम गोकुल धाम के दर्शनों को चल दिए। गोकुल की पतली पतली गलियों में घूमते हुए मैंने देखा कि सब्जी वालों के पास प्याज नज़र नहीं आ रहा था। पूछा तो पता चला यहां बिना प्याज का खाना बनता है।  क्रमशः 





5 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

Nice

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad

vijay said...

Badhiya

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad

Surjeet said...

यह आर्टिकल मुझे बहुत प्रभावित किया है। आपने विचारशीलता और समाधान की एक अद्वितीय दृष्टि प्रस्तुत की है। मेरा यह लेख भी पढ़ें मथुरा में घूमने की जगह