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Thursday, 14 May 2020

मैया तो कहती थी तुमको कन्हैया, घनश्याम कहते थे बलराम भैया, वृदावन मथुरा यात्रा Mathura yatra भाग 16 नीलम भागी



   

सुबह कद्दू की सब्जी और कचौड़ी का नाश्ता करके हम वृंदावन चल दिए। श्रीमदभागवत के अनुसार कंस से कन्हैया की पहचान छिपाने के लिए और उसके अत्याचारों से बचने के लिए, नंद अपने कुटुंबियों और सजातियों के साथ वृंदावन आ गए। विष्णुपुराण में भी कृष्ण लीलाओं का वर्णन है। अष्टछाप के महाकवि सूरदास ने तो यहां तक कहा हे कि ’हम न भई वृंदावन रेणु’। यह यमुना जी से तीन ओर घिरा है। पुरातन तथा नवीन मंदिर मठ हैं। महाराज केदार की पुत्री वृंदा ने कृष्ण को पाने के लिए यहां  तप किया था इसलिए इसका नाम वृंदावन पड़ा। यहां सैकड़ो आश्रम, गौशालाएं और मठ हैं। भक्तों की श्ऱद्धा का केन्द्र है। चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, श्री हितहरिवंश, महाप्रभु वल्लभचार्य आदि अनेक भक्तों ने इसके वैभव को सजाने सवारने में जीवन लगाया है। हमने रास्ते में ही प्रोग्राम बना लिया था कि मंंिदरों में दर्शनों का समय हैं वहां सुबह शाम को दर्शन करेंगे। दोपहर में निधिवन, घाट और खाना। प्रेम मंदिर, पागल बाबा का मंदिर, गरुण गोविंद जी का मंदिर, बांके बिहारी जी का मंदिर, श्री राधा रमण, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, कृष्ण बलराम 1975 में बना इस्कॉन मंदिर, देखे। दिन भर घूमते रहे। बांके बिहारी मंदिर के आसपास कुल्हड़ में मलाई लस्सी और मिठाई का आनंद उठाया। निधिवन गए। यहां के बंदर बहुत योग्य हैं। वे चश्मा झपटते नहीं है। चुपचाप आकर उतार कर ले जाते हैं। नीचे एक घास का तिनका तक नहीं है। कुछ लताओं की जड़े खोखली हैं। पर ऊपर से सब हरी हैं और नीचे की ओर नमन करती लगती हैं। कहा जाता है कि आज भी दिन की लताएं रात  को गोपियां बन जाती हैं। कृष्ण यहां रास रचाने आते हैं। बंदर दिन भर खेल करते रहते है। पक्षियों की चहचहाटे रहती हैं लेकिन निधिवन में ऐसा कुदरती अनुशासन है कि शयन आरती के बाद सब चले जाते हैं। निधिवन के आस पास जितने भवन हैं वो भी इस ओर की  खिड़कियां बंद कर देते हैं। यहां आनन्दप्रद युगल किशोर श्री कृष्ण ओर राधा की नित्य अदृभुत विहार लीला होती रहती है।, कोई भी अगर यह देखने के लिए यहां  रुका है तो वह अगले दिन बताने के काबिल ही नहीं रहा है। निधिवन हरिदास जी का निवास कुंज भी है। कुछ श्रद्धालुओं की टोलिया ंतो ंनिधि वन गाते बजाते हुए दर्शन करने आती हैं। मन करता है कि वे गाते रहें और हम सुनते रहें। सैंकड़ों मंदिर वाले वृंदावन में प्रेम भक्ति का साम्राजय है। यमुना तट पर अनेक घाट है। श्री वराहघाट, कालियादमन घाट, सूर्य घाट, युगलघाट, श्री बिहारघाट, श्री आंण्ेार घाट, इमलीतलाघाट, श्रृंगार घाट, श्री गोविंदघाट आदि अनेक घाट हैं पर सबसेे सुंदर केशी घाट है। नौका विहार करके पेड़े खरीद कर हम घर की ओर चल दिए। कहते हैं कि आपने चारों धाम की यात्रा कर ली, यदि ब्रजधाम की यात्रा नहीं की तो यात्रा अधूरी है। मैंने ब्रजधाम की यात्रा करली। अब चारों धाम की यात्रा पुरी करने की कोशिश करुंगी। घर आ गई हूं पर आज भी वहां सुना भजन कानों में गूंज रहा है
कोई कहे गोविंदा, कोई कहे गोपाला।
मैं तो कहूं सावंरिया, बांसुरीवालां । समाप्त 










4 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

उद्दव जी की पंक्तियाँ याद आ गयीं
छावते कुटीर कहूँ रम्य यमुना के तीर गोन रेती सौं कबहू नहीं करते धरती ही निराली है

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Surjeet said...

बहुत ही सुंदर और समय-समय पर्याप्त लेख। यह अद्वितीय और शिक्षाप्रद है। मेरा यह लेख भी पढ़ें मथुरा में घूमने की जगह