Search This Blog

Friday, 1 May 2020

कृष्ण जन्मभूमि, थूकने पर जुर्माना होना चाहिए न! मथुरा जी यात्रा Mathura Yatra भाग 5 Krishan Janmbhoomi, Thookane per jurmana Neelam Bhagi नीलम भागी

सामान जमा करवा कर, सब सख्यिां आकर लाइन में लग गईं। मेरा जांच का नम्बर आया, सिक्योरिटी वाली ने एक दूसरे से प्रश्न कर, मेरीे गर्दन पर लटके, तीन जोड़ी मजीरे दिखा कर पूछने लगीं कि मजींरों के साथ मैं मंदिर में प्रवेश पा सकती हूं। और मुझे अलग खड़ा कर दिया। मेैं सोचने लगी अगर मना कर दिया तो फिर जमा करवाने की लाइन में लगो, फिर इस लाइन में। जमा तो मैं करवाउंगी नहीं, बाहर किसी को दे दूंगी। पर उनकी बॉस ने मुझे जाने दिया। चप्पल स्टैण्ड दूर था । हम छओं ने एक जगह चप्पल उतारी और दर्शन को चल दीं। एकदम साफ झकाझक फर्श। कान्हा की जन्मभूमि पर अलग सा भाव पैदा हो रहा था। कृष्ण जन्म परिसर में एक कारागार जैसी संरचना भी थी। हाथ हमारे जुड़े हुए थे। श्रद्धालु जयकारे लगाते, मैं जय बोलती। संकरी सी गली में होकर निकले भगवान का जन्मस्थान देखा। कृष्णा के जन्म की पढ़ी, सुनी कहानी दिमाग में चल रही थी और सामने जो देख रही थी, वे कहानी से मेल खा रहे थे। इतने साफ सफेद फर्श पर नीचे देखने की जरुरत नहीं थी। अचानक मेरे पैर के नीचे गीला चिकना लगा। किसी ने वहां बलगम थूकी थी, जिस पर मेरा पैर पड़ गया। टिशू, रुमाल होता तो पोछ लेती। दुख मुझे ये था कि कुछ कदमों तक गंदगी तो मेरे पैरों सेे फर्श पर चिपकेगी, जब तक ये सूखेगी नहीं। अब मुझे मंदिर प्रशासन पर गुस्सा आने लगा। सुरक्षा के पुख़्ता इंतजाम कर रक्खें हैं कि मंदिर प्रांगण में मैं चश्मा पहन कर दर्शन कर रही थी। बंदर जो बाहर उत्पात के लिये मशहूर हैं। यहां चश्मा नहीं छीन रहे थे। जगह जगह सीसीटी0वी. कैमरे लगे हुए हैं। पर थूकने पर जुर्माना नहीं था। थूकने पर तो जुर्माना होना चाहिए ताकि श्रद्धालुओं को मेरे जैसी स्थिति का सामना न करना पड़े। पैर का तलवा सूखने पर, मैंने सोच लिया जहां पीने के पानी की जगह होगी, वहां पैर धो लूंगी। मैंने दिसम्बर में सात कोस यानि 21 किमी की गोर्वधन परिक्रमा नंगे पांव की थी, वहां एक बार भी पांव में थूक नहीं लगा जबकि सर्दी में लोगों को खांसी जुकाम रहता है। यहां ऐसी भव्यता में इस बार, मेरे साथ पहली बार ऐसा हुआ था। खैर कुछ ही मिनटों में भक्तिभाव के कारण मैं ये सब भूल गई। श्रद्धा से हाथ मेरे जुड़े हुए थे। देश दुनिया से आये हुए श्रद्धालु कृष्णमय लग रहे थे। सबकी श्रद्धा से वहां अलग सा भाव था। फोटोग्राफी विडियोग्राफी न होने से दर्शनार्थी कान्हा की जन्मभूमि को आंखों से दिल में उतार रहे थे।  कोई जयकारा लगाता तो सब समवेत स्वर में साथ देते। यहां तो जितनी बार भी आओ ऐसा लगता है पहली बार आयें र्हैं। महामना मदन मोहन मालवीय और जुगल किशोर बिडला द्वारा 1951 में एक  ट्रस्ट बना कर मंदिर के जीर्णोद्धार का काम शुरु हुआ। लिया 1958 में कृष्णजन्मायटमी के दिन मंदिर का लोकार्पण हुआ गर्भ ग्रह और भागवत भवन का निर्माण किया। फरवरी 1982 को मन्दिर के पुर्नद्धार का काम पूरा हुआ और औषधालय भी बना। दर्शन के बाद हमारी सखी हिसाबी महिला शायद चप्पलों की टैंशन से, हमसे बहुत आगे आगे जा रही थी, हम आराम से चल रहे थे। क्रमशः

2 comments:

Neelam Bhagi said...

Bahut Badhai Ho Neelamji!!! Aapke likhne Ka andaaz itna Rochak hai, jaise Mai bhi Aapke Saath Janambhumi Mandir me tha aur mere samne hi kisike thook-bulgam par Aapka paer par Gaya.Thookene wala jaroor KansMama Ka rishtedar Hoga. Lanaat-Gaali ho uspe!!!

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad doctor Pande