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Friday, 31 July 2020

शौकीन बंदर नीलम भागी Shoukeen Bander Neelam Bhagi



    


मैं बाल फैलाए अपने  स्कूल वैन का इंतजार कर रही थी। कामवालियों ने देखते ही मुझे कहा,’’दीदी बाल बाँध लो।’’ यह सुनते ही मुझे गुस्सा आ गया। कितनी मेहनत से मैंने बाल सैट किए थे। मैं बाल खुले रखूं या बंधन में रखूं, कैसा मैं हेयरस्टाइल बनाउँ, यह मुझे मेड बतायेंगी!! मैं कुछ बोलती, उससे पहले वे बोलीं,’’ बंदर न, आपकी जुएँ बिनने आ जायेगा।’’ सुनकर मुझे घिन आई। भला जुएँ और मेरे बालों में!! न न न। इतने में उत्कर्षिनी ने एक मोटे से बंदर की ओर इशारा किया, जो उस समय धोबी की प्रेस की राख को चूरन की तरह चाट रहा था। वह बोली,’’एक दिन वह बाल धोकर, बैठी धूप में  सूखा रहीं थी। उन्हें बालों में कुछ अजीब सा लगा। इतने में शाम्भवी आई, वो मुझ को इशारा करे, डर से उसके मुहँ से आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि पीछे बैठा बंदर उसके सिर से जूएँ ढूँढ रहा था, जो उसे मिलनी नहीं थी। वे हिली डुली नहीं। उन्हें दहशत हो रही थी कि जूँ न मिलने पर वह उन्हें थप्पड़ न मार दे।’ शाम्भवी ने चौकीदार को बुलाया, उसने लाठी की मदद से बंदर को भगाया।’’ कई दिन बाद मैं अपने सैकेण्ड फ्लोर पर गई। वहाँ लगा बड़ा कूलर खिड़की से हटा हुआ था। बुरी आशंका से अंदर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। बड़ी हिम्मत करके अंदर गई। अंदर सबकुछ ठीक था। बस बंदर की जगह जगह पौटी पड़ी थी।
बंदरों का ग्रुप उत्पात मचाने आता है। हम देखते ही सावधान हो जाते हैं। मसलन दवाजे खिड़कियाँ बंद कर लेते हैं। ये इकलौता बंदर अपने ग्रुप से अलग है। सुबह नौ से पहले शाम को पाँच बजे के बाद आता है क्योंकि पहले लंगूर वाला नौ से पाँच आता था। पता नहीं इसे समय कैसे पता चलता है!! इसके शौक निराले हैं। जैसे फालतू कुत्ते इस पर भौंकते हैं। इस पर कोई असर नहीं होता। जब वे भौंकना बंद कर देते हैं तो पीछे से जाकर किसी कुत्ते की पूंछ खींच कर भाग जाता हैं।  लेकिन पालतू नस्ल दार बंधे कुत्तों को ये खूब चिढ़ाता है। सुबह स्कूली बच्चे, वैन और स्कूल बस के प्वाइंट पर खड़े होते हैं। देर होने पर नाश्ते का परांठा, सैंडविच उनके हाथ में होता है। बंदर उन्हें धमकाकर झपट लेता है। फिर बच्चों के सामने बैठ कर खाता है। स्कूल की छुट्टी के दिन वह गमलों से पौधे निकालकर जमीन पर रख देता हैं। 
कल इस शौकीन बंदर ने मेरे दस साल पुराने बौंसाई ट्रे से निकाल कर जमीन पर रख दिए। फिर पता नहीं क्या सोच कर, उनको जमीन से उठा कर ट्रे में ढूंस दिए। मैं उसे भगाने लगी तो भागने से पहले उन्हें लिटा दिया। अब तो आने वाला समय बतायेगा कि मेरे बौंसाई बचेंगे या मरेंगे।
एक कबाड़ पॉट में मैंने मनी प्लांट लगाकर दीवार पर रखा हुआ था। बंदर को पता नहीं क्या शरारत सूझी उसने पूरा जोर लगा कर उस पॉट को नीचे फेंक दिया। जब रखती हूं वह नीचे फेंक देता है। अब मैंने उसकी जगह नीचे ही कर दी। बस वह पॉट दीवार की चौड़ाई के  साइज का है और उसमें से मनी  की शाखाएं निकलती हुई ऐसे लगती जैसे हाथी की सूंड है। चलो बंदर की मर्जी।




Thursday, 30 July 2020

न भइया न भइया न न न.................. Na Bhaiya, Na Bhaiya Na Na Na ..............Neelam Bhagi नीलम भागी

   
मैं एक बहुत समझदार महिला हूँ। इसलिये मैं गहने छिपा कर नहीं रखती, उन्हें पहन कर रखती हूँ। हुआ यूँ कि मैं शोपिंग के लिये जा रही थी। दो चेन स्नैचिंग के लिए सैल्फ एमप्लाएड युवकं, जिसमें एक बाइक चला रहा था। दूसरा पीछे बैठा था, आए। पीछे बैठे युवा ने मेरी चेन पर पीछे से झप्पटा मारा। मैंने जितनी गर्दन पीछे की ओर मोड़ी जा सकती थी, मोड़ी और साथ ही मेरे मुहं से ये शब्द जोर जोर से निकले,’’न भइया न भइया न न न..............पाँच लड़के जो आपस में खड़े बतिया रहे थे। अचानक बहना की पुकार सुनकर, उन्होंने सड़क पार देखा, एक बहन भइया-भइया कर रही है और हैलमैट पहने भाई बहन को परेशान कर रहे हैं। वे उस ओर क्या बात है? कहते हुए दौड़े। उन्हें अपनी ओर आता देख, वे बाइक सवार झपटमार भइया, भाग गये। चौराहा है, एकदम भीड़ इक्ट्ठी हो गई। मैंने आगे से चेन पकड़ ली थी। दुप्पट्टे के कारण और उन पाँचों के वक्त पर पहुँचने के कारण, चैन टूट गई पर बच गई थी। गर्दन पर खरोंच और घबराहट लिये मैं खड़ीं थी और बार बार उन पाँचों का धन्यवाद कर रहीं थी।
    सामने के दुकानदार ने मुझे बैठने को कुर्सी दी। पानी पिला कर, मेरे घर फोन किया। क्या हुआ? कहती हुई, सड़क से गुजरने वाली और आसपास रहने बाली महिलाएँ आती जा रहीं थी और चेन खींचने से संबंधित अपने अनुभव सुनाती जा रही थीं। जो भी अपना अनुभव सुनाती, वो अन्त में यह जरुर कहती कि इसलिये वो चेन नहीं पहनती है। एक महिला बोली,’’चेन तो बनी ही खींचने के लिये है। आगे पीछे जहाँ से भी चेन दिखे, झपटमार आएँ, चार अँगुलियाँ चेन में डालें और खींच कर गाड़ी पर भाग जायें इसलिए मैं तो अँगुठी पहनती हूँ।’’अपनी अंगुठियों से सजी, अंगुलियाँ दिखाते हुए उसने कहा। तभी एक अंगुठीविहीन महिला ने अपने हाथ दिखाकर कहा कि अमुक नगर में तो, झपट मार अँगूठी वाली अँगुली काट कर ले जाते हैं। अँगुली फेंक देते हैं और अंगुठी रख लेते हैं। जिन महिलाओं ने अंगुलियाँ अंगुठियों से भर रखी थीं, सुनकर वे परेशान हो गई। एक चश्मेंवाली समझदार सी दिखने वाली महिला ने अपनी कलाई में पहनी चार खूबसूरत चूड़ियाँ दिखाकर कहा,’’इसलिये तो घूमने जाते समय, मैं तो आर्टीफिशियल ही पहनती हूँ।’’देखते ही सब महिलाएं कोरस में बोल उठी,’’हाय ये सोने की नहीं है पर सोने की लगतीं हैं।’’अब चशमावती सब पर छा गई। 
   तब एक महिला बोली,’’मेरी सहेली है न, नकली जेवर पहन कर जा रही थी। झपट मारों ने जेवर झपट लिये। अब देखो न, उन्हें तो बहुत नॉलेज़ होता है, असली और नकली का। कुछ दूर जाते ही उन्होंने जेवर चैक किये। जैसे ही उन्हें पता चला कि जेवर नकली हैं, उनके साथ तो धोखा हुआ हैं। उसी समय वे वापिस आये और उन्होंने मेरी सहेली के जोरदार  थप्पड़ मार कर कहा,’’आर्टीफिशियल पहन कर हमें धोखा देती है।’’महिलाओं के तीन घेरे थे। मुझे लगता है सभी में ऐसे ही अनुभव सुनाए जा रहें होंगे। मैं तो एक ही ग्रुप की बातें सुन सकती थी। जिसने मुझे घेर रक्खा था। 
  जिस सड़क से झपटमार भागे थे, उस सड़क के लोगों को बहुत दुख था कि अगर उन्हें पता होता कि वे झपटमार हैं तो वे उनकी बाइक पर पत्थर मारते, जिससे गाड़ी का बैलेंस बिगड़ता और वे उन्हें पकड़कर 
पुलिस के हवाले करते। इतने में उत्कर्षिनी आ गई। आते ही उसने कहा,’’आपको कितनी बार समझाया कि चेन मत पहना करो।’’ और डाँटते हुए मुझे घर ले गई।  

Wednesday, 29 July 2020

साइकिल चलाने के लिए वेट लिफ्टिर होना जरुरी है!! Cycle Chalane ke Liye Weight Lifter Hona Jaroori Neelam Bhagi नीलम भागी

विश्व साइकिल दिवस पर आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं।
 अच्छे स्वास्थ्य के लिए इको फ्रेंडली साइकिल चलाएं।







सिंगापुर में लोगों को साइकिल चलाता देख मैं उनसे बहुत प्रभावित हुई। इकोफ्रैंडली साइकिल चलाने से शरीर को क्या लाभ है। ये सारा ज्ञान मैंने इंटरनैट से लेकर निश्चित किया कि मैं रोज एक घंटा साइकिल लेकर सड़क पर निकलूंगी और अपने आस पास के काम साइकिल पर निपटाऊँगी। मेरा सौभाग्य मेरे सैक्टर में साइकिल टैªक भी है। अब मैंने साइकिल पथ को देखा तो मुझे उसके फायदे ही फायदे नज़र आये। मसलन साइकिल पथ ऊँचाई पर होने के कारण वहाँ सैल्फ एमप्लाएड झपटमार चैन स्नैचिंग नहीं कर सकते। क्योंकि  झपटमारी के लिए मोटरसाइकिल का होना बहुत जरुरी है और साइकिल पथ पर बाइक नहीं चला सकते। अगर पैदल कोई अपराध करने आयेगा तो साइकिल सवार, उससे तेज साइकिल पर भाग जायेगा। ऊँचाई पर होने से ये सारा किस्सा स्टेज़ शो लगेगा। जिसके दर्शक सड़क पर चलने वाली भीड़ होगी। अपराधी ऐसा रिस्क कभी नहीं लेगा। ये सब लाभ देख कर अपनी स्टेशनरी साइकिल का मोह छोड,़ मैंन नई स्टाइलिश साइकिल खरीद ली।
  कहते हैं साइकिल चलाना इनसान कभी नहीं भूलता। मैं मेरठ में स्कूल साइकिल से जाती थी।  साइकिल चलाने के लिए मैं ड्रैसप हुई ताकि मेरा लम्बा दुप्पट्टा या पटियाला सलवार पहिए में न फंस जाए। गद्दी पर बैठते ही पैडल मारा, मैं खुशी से साइकिल की सवारी करने लगी। मैं ऊँचाई पर सड़क चलते लोगों पर निगाह डालती और खुश होती क्योंकि वे भीड़ में सावधानी से गाड़ियाँ चला रहे थे। मुझे भीड़ से ऐसा कोई डर नहीं था। साफ सुथरा पथ उस पर कोई कील पिन नही, इसलिए टायर पंचर का भी डर नहीं था। इस्तेमाल न होने के कारण कहीं कहीं कबाडियों ने जगह का उपयोग कबाड़ रख कर किया था। अभी मेरी साइकिल ने स्पीड पकड़ी ही थी कि बस स्टैंड आ गया। सड़क पर आने के लिए ढलान थी, तो उतरते हुए साइकिल की स्पीड बढ़ गई। कोई बात नहीं क्योंकि बस स्टैण्ड के बाद फिर ऊँचाई पर साइकिल पथ था। पर ये क्या! उसके मुहं पर तीन छोटे खंबे लगे थे। खंबे लगवाने वाले जीनियस का मकसद है कि इसके बीच में से सिर्फ साइकिल गुजरे। पर मैं तो सरकस में काम नहीं करती कि स्पीड से आते हुए उसमें से निकल जाऊँ। थोड़ी थोड़ी देर बाद ये घटना रिपीट होती और मुझे बहुत गुस्सा आता पर मैं गुस्सा थूक देती, जब मैं मन में साइकिल चलाने के फायदे दोहराती क्योंकि मेरी कैलोरीज़ बर्न हो रहीं थीं, साइकिल चलाने से भविष्य में मुझे घुटनों की तकलीफ़ नहीं होनी थी। लेकिन बीच में लगी दुकानों का मैं क्या करुँ? साइकिल उठा कर, मैं सड़क पर कूद भी नहीं सकती और न ही भीड़ में साइकिल चला सकती हूँ, फिर साइकिल उठा कर ट्रैक पर भी चढ़ नहीं सकती। अब सोचती हूँ, पहले वेटलिफ्टंग सीखँू फिर साइकिल चलाने के फायदों का लाभ उठाऊँ।

Tuesday, 28 July 2020

जैंनट्स टॉयलेट में चेंजिंग स्टेशन क्यों नहीं है? Gents Toilet Mein Changing Station Kyun Nahi Neelam Bhagi नीलम भागी


    इतने बड़े मॉल में चुम्मू और गीता के सामान की खरीदारी के लिए हम घूम रहे थे। खूब भीड़ थी। इतने में चुम्मू ने पू कर दी। मैं उसकी नैपी बदलने के लिए चेंजिंग स्टेशन ढूँढ रहा था, जो कहीं नहीं मिल रहा था। लेडीज,़ जैंट्स टॉयलेट थे पर बच्चों के बारे में किसी ने सोचा ही नहीं। जब बच्चों का सामान बिकता है, तो उनकी  नैपी बदलने की जगह भी तो होनी चाहिए। पू की बदबू के कारण नैपी तो तुरंत बदलनी थी न। पी पी से नैपी गीली होती और र्दुगंध नहीं होती, इसलिए थोड़ा इंतजार भी कर लेता। पर अब तो मजबूरी थी। जिन पाठकों के बच्चे छोटे हैं, उनके सामने भी मेरी तरह, इस प्रकार की परेशानी आई होगी। मैं तो चुम्मू के बैग में उसका पैड भी लेकर गया था क्योंकि बच्चों का कोई भरोसा नहीं कब पू कर दें। तो मैं पैड पर लिटा कर उसकी नैपी ठीक तरह से बदल सकूँ। पर पैड कहाँ बिछा कर चुम्मू को लिटाऊँ और उसकी नैपी बदलूं? समस्या तो ये थी न! उसके लिए चेंजिंग स्टेशन तो होना ही चाहिए। अभी एक समस्या तो खत्म हुई नहीं, दूसरी शुरु, गीता को भूख लग गई। श्रीमती जी गीता को फीड कराने नर्सिंग रुम की खोज में चल दी।
     काफी खोजबीन के बाद पता चला कि लेडिज़ टॉयलेट में ही चेजिंग स्टेशन है। इस जानकारी के बाद मुझे बहुत गुस्सा आया कि जैंनट्स टॉयलेट में चेंजिंग स्टेशन क्यों नहीं है?  या जैसे लेडीज़ और जैंट्स टॉयलेट बनाये हैं, वैसे ही एक बच्चे के लिए चेंजिंग स्टेशन बनाना चाहिए। जिसमें मम्मी ,पापा कोई भी जाकर बच्चे की नैपी बदल दे। जब मैं घर में बच्चे की नैपी बदलता हूं तो बाहर क्यों नहीं बदल सकता? किसी ने बताया कि लेडिज़ टॉयलेट में चेंजिंग बोर्ड लगा हुआ है। श्रीमती जी को बुलाऊं तो गीता भूखी हलक फाड़ फाड़ कर रोयेगी। उसको फीड मां ही करवायेगी। मजबूरी में चुम्मू को गोद में लेकर मैं लेडिज़ टॉयलेट में जाने लगा तो महिलाएँ कोरस में दहाड़ी,’’ ये लेडिज़ टॉयलेट है। ये लेडिज टॉयलेट है।’’ मैंने उन्हें शान्ति से अपनी समस्या बताई। उन्होंने  मुझे चुम्मू की नैपी बदलने की परमीशन दे दी। मैंने र्बोड पर पैड बिछाया। उस पर चुम्मू को लिटाया और सधे हुए हाथों से उसे साफ  कर रहा था। तो मुझे एक बात समझ नहीं आई। जितनी देर मैं चुम्मू को साफ करता रहा और उसकी नैपी बदलने का काम करता रहा , उस समय जो भी महिला आ रही थी या जा रही थी। उसे मुझे देखकर  हंसी बहुत आ रही थी। बताइए भला, इसमें हंसने की क्या बात है!!

Monday, 27 July 2020

लॉक लगी इको फ्रैंडली साइकिल की भला कैसे चोरी!! नीलम भागी Lock lagi Ecofriendly Cycle ke chori Neelam Bhagi

विश्व साइकिल दिवस पर आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं।
 अच्छे स्वास्थ्य के लिए इको फ्रेंडली साइकिल चलाएं।
कैलोरी बर्न करने का सबसे आसान और अच्छा उपाय साइकिल चलाना है। मोनू ने जिम में स्टेशनरी साइकिल चलाने की बजाय, स्टाइलिश साइकिल खरीदी। जिस पर वह जिम जाता और एक घण्टा घूमता और आस पास के काम कर आता। साथ ही सबको नसीहत देता कि ’फैट बर्न करो न की फ्यूल’ एक दिन वह  सड़क के किनारे साइकिल खड़ी करके, पेड़ के तने पर लघुशंका(सूसू) करने लगा। फारिग होकर जैसे ही मुड़ा, साइकिल गायब थी। इस घटना से उसका मजाक और बना।
शर्मा जी ने नई साइकिल लाकर, खड़ी की। एक कबाड़ी आया । उसने साइकिल उठाई, ठेले पर डाली और चल दिया। शाम 4 बजे का समय था। बच्चे पार्क में खेल रहे थे, उन्होंने भी साइकिल लादते देखा। जिसने भी साइकिल ठेले पर डालते देखा या ठेले पर साइकिल लदे, अपने पास से गुजरते देखा। उसने यही समझा कि साइकिल का लॉक लग गया होगा, चाबी खो गई होगी, इसलिये ठेले पर लेकर मकैनिक के पास जा रहे होंगे। देखने वालों ने यह नहीं सोचा कि साथ में कोई नहीं है।
   गोलू कबाडी पढ़ता है और दुकानों से गत्ता खरीदता है। एक दिन वह गत्ता खरीद कर पलटा। एक लड़का उसकी साइकिल लेकर भाग रहा था। गोलू गत्ता छोड़, मेरी साइकिल-मेरी साइकिल चिल्लाता, उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। आगे-आगे चोरी की साइकिल पर, साइकिल चोर, पीछे भागता गोलू। एक युवा बाइक पर जा रहा था। उसने ये देखकर बाइक से मामूली सी टक्कर, साइकिल पर मारी। साइकिल चोर गिर गया और वह साइकिल छोड़ कर, भाग गया। गोलू खुशी-खुशी अपनी साइकिल ले आया क्योंकि उसका रोजगार साइकिल से चलता है।
  दिनेश मकैनिक किसी का काम देने कोठी में गया और सामान पकड़ा कर तुरंत बाहर आया। लॉक लगी, साइकिल गायब।
युवक युवतियाँ आजकल अपनी व्यस्त दिनचर्या से एक घण्टे का समय साइकिल चलाने के लिये निकाल लेते हैं। जिसमें व्यायाम और छोटे-छोटे आस पास के काम भी निपटा लेते हैं। उनके इस सराहनीय काम से पॉल्यूशन नहीं फैलता। पर जब  लॉक लगी साइकिल उठ जाती है, तो वे बहुत दुखी होते हैं।
   साइकिल उठने की घटनाएँ सुन-सुन कर, साइकिल चुराने की कुछ पद्धतियाँ सामने आयी हैं। जैसे लॉक लगी साइकिल के पास अखबार ध्यान से देखता, साइकिल चोर। कुछ समय बाद वह साइकल की गद्दी पर अखबार फैला कर पढ़ने लगता है। जब कोई उसे नहीं टोकता तो वह ताला खोलने लगता है। यदि ताला खुल गया तो ये जा, वो जा। 


   बच्चा जब चलना शुरु करता है, साथ ही, शुरुआत वह साइकिल चलाने से करता है। जैसे-जैसे बढ़ता जाता है। नई-नई साइकिल बदलता रहता है। अपनी पसन्द की साइकल उठने पर वह दुखी होता है। लापरवाही पर डाँट भी पड़ती है, पर उसने तो ताला लगाया होता है। फिर भी साइकल गायब!

 पर कुछ दिन बाद नसीहत के साथ नई साइकिल मिल जाती है। बच्चा भी साइकिल भगवान के सामने रख कर प्रार्थना करता है कि अब साइकिल न चोरी हो|
   साइकिल बचाने का सिर्फ एक ही उपाय है चैन और लॉक के साथ किसी चीज के साथ साइकिल को ताला लगाना। हमें भी चाहिये की जब साइकिल रिक्शा या तीन पहिये के ढेले पर लॉक लगी, साइकिल लदी देखें तो पूछताछ शुरु कर दे। शायद कुछ साइकिल उठने से बच जाये।


Sunday, 26 July 2020

ऐसे भी होता है!! सड़क का सम्मान Aise Bhi Hota Hei!! Sarak Ka Samman Neelam Bhagi नीलम भागी






कोरोना महामारी के कारण इस वर्ष प्ंाजाबी विकास मंच ने वैसाखी और निर्जला एकादशी का आयोजन नहीं किया। लेकिन फेसबुक की मैमोरी ने पिछले साल जो पंजाबी विकास मंच ने निर्जला एकादशी पर ठण्डे र्शबत की छबील लगाई थी, उसकी तस्वीरें दिखाईं तो मेरे दिमाग की मैमोरी में भी फोटो देख कर सीन याद आने लगे। उस दिन भीषण गर्मी थी। मेम्बर्स सेवा कार्य में जुट गए। सड़क से जो गुजरता उसके हाथ में शर्बत का गिलास दिया जाता। कोई प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं किया गया। गाड़ियों वालों को छोड़ कर बाकियों राहगीरा को सूती छोटे तौलिए भी दे रहे थे। बहुत विशाल आयोजन था। गर्मी की परवाह किए बिना कुछ सदस्य सड़क पर फुर्ती से शरबत पिला रहे थे। कुछ शरबत बना रहे थे, कुछ गिलास भर रहे थे। कुछ ध्यान रख रहे थे कि सड़क पर जाम न लग जाए। बड़े बड़े ड्रम रखे थे कि लोग पीने के बाद पेपर का गिलास ड्रम में डालें। जगह जगह लिख कर भी लगाया गया था कि शरबत पीने के बाद गिलास डस्टबिन में डालें। पर कुछ लोग पैदायशी ऐसे होते हैं कि उनके लिए सड़क ही डस्टबिन होती है इसलिए वे शरबत पी कर सड़क पर ही गिलास फैंक रहे थे। लेकिन सदस्य भी जैसे ही मौका मिलता, जल्दी से जूठे गिलास उठा कर ड्रम में डाल देते क्योंकि वे सड़क का सम्मान जो करते हैं। ये काम आसान नहीं था। बहुत चलती हुई सड़क थी, लाल बत्ती होने पर सावधानी से जूठे गिलास उठाए जाते। प्रचार से दूर रहने वाले जी.के.बंसल महासचिव मुझे सामने कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। अचानक मेरी साइड में नज़र पड़ी, वे बड़े ड्रमों में जूठे गिलास भर रहे थे। जब ड्रम भर जाता तो उन कागज़ के गिलासों को बीस लीटर की मिनरल वाटर की खाली बोतल से दबाते ताकि और जूठे गिलासों के लिए जगह बन जाए। जून के महीने की धूप की परवाह किए बिना, अपने काम में लगे हुए थे। और मुझे कहीं पढ़ा पाण्डवों का राजसू यज्ञ याद आ गया। श्री कृष्ण ने उस विशाल आयोजन में सबको काम बांट दिए। अपनेे लिए कोई काम ही नहीं रखा। पर उस समय सब हैरान हो गए, जब भगवान कृष्ण को सबने जूठी पत्तलें उठाते देखा। युधिष्ठर के मना करने पर कृष्ण का जवाब था कि जिसको जो काम सौंपा था वो अपना काम कर रहा है न। मैंने अपने लिए ये काम रखा था इसलिए मुझे भी मेरा काम करने दो। सदस्य पसीने से तर सेवा कर रहे थे। गुरिन्दर बसंल कचरा प्रबंधन कर, सड़क का सम्मान कर रहे थे। साधूवाद पंजाबी विकास मंच के लिए।     

Friday, 24 July 2020

कौन हुआ दीवाना!! मैं ऐसी क्यों हूं!!!!Kaun Hua Deewana Main Aisi Kyun Hoon Neelam Bhagi Part 2नीलम भागी भाग 2


  घर जाकर शायद वह रात भर सोचती रही, क्योंकि अगले दिन से ही उसमें परिवर्तन दिखाई देने लगा। उसमें लगातार चेंज आ रहा था। मसलन वह सलवार कमीज़ भी पहनने लगी। लप लप काजल लगाती, कुमकुम बिंदी, मांग भरना यानि सुहाग चिन्ह छोड़ कर, जितना बन पड़ता, उतना फैशन उसने करना शुरु कर दिया। अब दोपहर में घर जाती ,शाम को सिर्फ बरतन करने होते हैं इसलिये बहुत अच्छी तरह से तैयार होकर आती। इश्क़ मौहब्बत, प्यार व्यार के गीत गुनगुनाते हुए काम करती। ये बदलाव मेरी सलाह के बाद हुआ इसलिये मैं उसे देख कर खुश थी कि मेरी बात का इस पर असर हुआ है।
   ब्यूटी काम पर क्यों नहीं आ रही? दूसरी कामवालियों से पूछती पर किसी को कुछ नहीं पता था या वे जानबूझ कर मुझसे कुछ छिपा रहीं थीं। आज बाहर से आते ही उत्कर्शिणी ने मुझे बताया कि उसने अभी अभी सुन्दरता ( ब्यूटी को वह सुन्दरता कहती है) को देखा है। मैंने उसे कहा ,’’जल्दी जा, उसे बुला कर ला।’’ ब्यूटी को लेकर वह आ गई।
   उसके आते ही मैंने उस पर प्रश्न दागा,’’क्यों री तूं इतने दिन से काम पर क्यों नहीं आई? न ही कोई ख़बर भेजी।" वह बोली, ’’दीदी जी, मैं आपका काम नहीं करेगी।’’मैंने मन में सोचा कि पैसे बढ़वाने के लिए नाटक कर रही है। जो कहेगी मैं बढ़ा दूंगी। इतनी ईमानदार, अच्छी कामवाली भला कहीं मिलती है!! न न न । फिर भी मैंने पूछा,’’मेरे घर का काम क्यों नहीं करेगी? बता तो जरा।’’उसने जवाब दिया,’’मेरी बेटियों ने मना किया है। वे कहती हैं, आप मेरेको गलत बात सिखाती हो।’’मैंने पूछा,’’मैंने तुझे क्या गलत सिखाया?’’उसने जवाब दिया,’’ आप मुझे शादी बनाने को बोली न!! मैंने कहा,’’हां तो!!’’ उसने जवाब दिया,’’ मेरे सामने वाली खोली का आदमी, मुझे देख कर खुश होता, मैं उसे देख कर खश होती।’’अब मुझे उसके अन्दर आये चेंज़ का कारण समझ आ गया। मैंने उतावलेपन से पूछा,’’फिर,
 फिर क्या हुआ!’’
  वह बोली,’’ फिर क्या?’’उसके बीबी बच्चों ने मिल कर मुझे खूब पीटा। आज पूरे 15 दिन बाद काम पर आई हूँ।’’
  मैं गुस्से से बोली, ’’तूँ क्यों बीबी, बच्चे वाले से रिश्ता जोड़ने लगी।’’वह कहने लगी,’’खाता कमाता न देखती! वह रोज, दारु पीता है, मीट खाता है। कमाता है ,तभी तो खाता पीता है।’’मैंने जवाब दिया, तो खाता कमाता पति, उसकी बीबी तेरे लिए भला क्यों छोड़ेगी?’’ पर ब्यूटी मेरा काम छोड़ कर चली गई। मैं नई मेड ढूँढ रही हूँ। इस सिचूवूेशन में जैसे वेदपाठी के मुँह से संस्कृत का श्लोक निकलता है। वैसे ही मेरे मुँह से सड़क साहित्य निकला। ट्रक के पीछे लिखी एक इबारत याद आई, ’’नेकी कर और जूते खा, मैंने भी खायें हैं, तूँ भी खा।’’तब से सोचे जा रही हूं, मैं ऐसी क्यों हूं!!         

एक नया अफसाना, मैं ऐसी क्यों हूं!!!! Ek Naya Afsana!! Main Aisi Kyun Hoon Neelam Bhagi Part 1 नीलम भागी


        आज 15 दिन हो गये ब्यूटी को छुट्टी किये हुए। लैंड लाइन पर उसकी बेटी का फोन आया था कि माँ की तबियत ठीक नही है। मैं कुछ पूछती, उसने फोन काट दिया। ब्यूटी मेरी 12 साल पुरानी, बहुत भली मेड है। मुझे उसकी चिंता सताने लगी। पहले मैं उसकी झुग्गी का पता जानती थी। पर अब वहाँ कमर्शियल बिल्डिंग बन चुकी हैं। दिल्ली में झुग्गी के बदले ब्यूटी को 25 गज का प्लाट, पौटी के लिए सीट लगा कर मिला है। उसके वर्क प्लेस से दूर होने के कारण, ब्यूटी ने उसे बनाया नहीं है। कहीं और रहने लगी। उसके नये एड्रेस को मैं नहीं जानती क्योंकि वह छुट्टी बहुत ही कम करती है इसलिए कभी जरुरत ही नहीं पड़ी। उसके पति की मौत हो चुकी थी। दोनों बेटियों की अच्छी जगह शादी हो गई।
   ब्यूटी पाँच घरों में काम करती है। सबसे आखिर में मेरे यहाँ आती है। अब वह दोपहर में घर नहीं जाती, अधिकतर मेरे यहाँ ही बैठी रहती। शाम को सब घरों में बर्तन साफ करके ही जाती है। मैंने उसे एक दो बार कहा भी कि तूँ दोपहर में घर जा कर आराम कर आया कर, उसने जवाब दिया,’’ दीदी जी काहे का घर, घर तो घर वाले से होता है ना, और घरवाला तो भगवान को प्यारा हो गया, खाली खोली ही तो है। वहाँ भी जाकर पड़ना है, यहीं पड़ी रहती हूँ। एक दिन दोपहर को दो आदमी मोटर साइकिल पर उससे मिलने आये। प्रापर्टी डीलर की तरह वे ड्रेसअप थे। बाहर जाकर ब्यूटी उनसे बात करती रही। उनके जाते ही मैंने उससे पूछा,’’कौन थे वो? क्या कह रहे थे?’’ब्यूटी ने जवाब दिया कि वे प्रापर्टी डीलर थे। मैंने पूछा,’’यहां क्या करने आए थे?’’उसने जवाब दिया,’’दीदी जी झुग्गी के बदले मुझे जो पच्चीस गज का प्लाट मिला है न, उसके लिए इनके पास ग्राहक है। मुझसे बोले 30 लाख ले, अपना प्लाट दे। मैनें मना कर दी। दीदी जी मैं 8 से 10 हजार महीना कमाती। खर्चा मेरा बहुत कम, खाना कपड़ा ज्यादातर आप सब के घरों से हो जाता है। मैं लाखों रुपया क्या करती?’’ये सुनते ही मुझे बिना मांगे सलाह देने का दौरा पड़ गया। पहले मैं दो कप चाय बनाने गई। चाय बनाने और लाने में दौरे पर तो कंट्रोल हो गया।
    उसे गिलास में और मैं कप में चाय लेकर उससे बतियाने लगी। अब मेरे अन्दर नेकी करने का भूत सवार हो गया। मैंने पूछा तेरी उम्र कितनी है? ब्यूटी की उम्र काफी हिसाब किताब लगा कर,40 या 41 साल थी। मैंने उसे समझाया कि वह शादी कर ले। थोड़ा न नुकुर के बाद वह सहमत हो गई। क्रमशः

Thursday, 23 July 2020

ऐसे तो न देखो!! नीलम भागी Aise Toh Na Dekho Neelam Bhagi


शाम के समय मैं अकसर अपने गेट के सामने कुर्सी पर बैठ जाती हूं। मेरे घर के आगे से जो भी गुजरता है वो मुझे बड़ी हिकारत से देखता हुआ निकलता है। मैंने बड़ा इसका कारण खोजा। काफी माथा पच्ची करने के बाद भी न समझ सकी। अचानक सामने रहने वाली भाभी जी मुंह पर मास्क लगाये आई और दो मीटर की दूरी रख कर 91वें वर्ष में मेरी अम्मा को झाड़ू लगाते देख कर बोलीं,’’दीदी, हम तो अम्मा जी के कारण बहुत मोटीवेट होते हैं। जिस दिन लॉकडाउन शुरु हुआ था, हमें तो चिंता हो गई थी कि मेड के बिना कैसे काम चलेगा? अब काम तो करना ही था। अचानक मुझे याद आया जनता कर्फ्यू के दिन 22 मार्च को शाम 5 बजे आप सब बर्तन पीट रहे थे और अम्मा जी सबसे बेख़बर, आंगन में झाड़ू लगा कर पेड़ के पत्तों का ढेर लगा रहीं थीं। ढेर लगा कर वे अंदर चली गईं। आपने हमेशा की तरह कूड़ा डस्टबिन में डाल दिया। ये याद करके मैं भी अपने काम में लग गई।" हम दोनों घरों ने मिल कर तीन पार्ट टाइम मेड रक्खी हैं। जब भी कोई नहीं आती तो दोनों उसका काम कर देती हैं। हमें कभी मेड की परेशानी नहीं हुई। उनके जाते ही मुझे लोगों के देखने का नज़रिया समझ आ गया कि मैं कुर्सी पर बैठी होती हूं और मेरी बूढ़ी मां झाड़ू लगा रही होती है। अम्मा कभी खाली नहीं बैठती थीं। न किसी को काम कहतीं थीं। मंदिर उन्होंने सबसे ऊपर छत पर बना रखा था। वे भाभियों के स्कूल से आने के बाद खाना पानी और अमर उजाला अखबार और मेरी साहित्य एकेडमी से लाई किताब लेकर छत पर चलीं जातीं। वहीं वे पूजा पाठ करके शाम को उतरतीं। नीचे जो फालतू सामान होता, उसे तुरंत ऊपर रख आती। जब किसी को जरुरत होती तुरंत ले आती। चार साल पहले उन्हें चिकनगुनिया हो गया। बड़ी मुश्किल से बचीं। जरा सी हिम्मत आते ही सहारे से आंगन में आकर पेड के नीचे लेट गई। अब टी.वी. देखना, दूसरी किताबें पढ़ना बंद कर दिया है। बाल खुद से नहीं संभलते इसलिये एक मीटर लम्बी चोटी कटवा दी। सुबह दस बजे तक धार्मिक किताबें पढ़ कर बाहर पेड़ के नीचे लेटी, बैठी रहती हैं। जब से अमर उजाला अखबार शुरु हुआ तब से उसे ही पढ़ती हैं। कभी वैण्डर दूसरा अखबार दे जाये तो उनका मूड ख़राब हो जाता है। फिर मैं बाजार से उन्हें अमर उजाला लाकर देती हूं। धीरे धीरे नाश्ता करती हैं। ग्यारह बजे से अखबार उनकी हो जाती है। शाम तक वे उसकी एक भी लाइन पढ़े बिना नहीं छोड़ती। बांहे दुख जाती हैं। तो रैस्ट कर लेतीं हैं। लॉकडाउन में जब अमर उजाला नहीं आया तो दुखीं थीं। टी. वी. में खबरें सुन कर, देख कर कहती,’’ अखबार पढ़ने का स्वाद अलग होता।’’ लाल सिंह ने अमर उजाला अखबार पहुंचाई। पढ़कर बहुत खुश हुईं। ढेरों आर्शीवाद देकर बोलीं,’जो भी अखबार देने आता है। उसे मना कर दे। कोरोना पूछ कर नहीं आयेगा। मुझे अपने जीवन के अंतिम चरण में ऐसा महामारी काल देखना है तो बिना अखबार के भी रह लूंगी।’’हमने मना कर दिया। एक हाथ में डण्डी और दूसरे में झाड़ू लेकर शाम को आंगन जरुर बुहारती हैं। शुरु में मेड ने उनके हाथ से झाड़ू लेने की कोशिश की। उसे कहा,’’बेटी बैठे रहने से मेरे हाथ पैर बिल्कुल रह जायेंगे।’’डॉक्टर ने मुझे कहा कि ये इनकी बोनस उम्र है, जैसे करती हैं करने दो। अब वे धुले कपड़े जैसे जैसे सूखते जायेंगे, उन्हें उतार कर तह लगा देतीं हैं। कहीं से उधड़ा हो या बटन टूटा हो तो अपने आप सुई में धागा डाल कर रिपेयर कर देतीं हैं। वैण्डर अखबार रैगुलर लाने लगा है। उनकी दिनचर्या पहले जैसी हो गई है। जो घर के आगे से गुजरते हुए, अम्मा को शाम को झाड़ू लगाते और मुझे कुर्सी पर बैठे देखता है। उसका ऐसे देखना लाज़मी है।       




Wednesday, 22 July 2020

साल के दिन हों, 50,000 Sal K Din Hon 50,000 Neelam Bhagi नीलम भागी



अदम्य इस साल केजी कक्षा में आ गया। उसे अपने से पाँच साल बड़े भाई शाश्वत का जन्मदिन जुलाई में आता हैं। ये अब उसे समझ आ गया है। उस दिन अंकुर श्वेता माली की मदद से सोसाइटी में एक पेड़ शाश्वत से लगवाते हैं। माली को उसकी देखभाल का पैसा देते हैं, अपने जन्मदिन पर अपने हाथ से पेड़ लगाने से उस पेड़ से बच्चे को मोह रहता है। मैंने देखा शाश्वत स्कूल बस से उतरते ही पहले अपने पौधे में  वाटर बोतल  का बचा हुआ पानी डालता है फिर घर जाता है। अदम्य जब स्कूल जाने लगा तो वह भी अपनी बोतल का बचा पानी भाई के लगाए पौधे में डालता। उसका जन्मदिन जून में आता है। नर्सरी में उसने भी अपना जन्मदिन पेड़ लगा कर मनाने की जिद पकड़ ली। उन दिनों नौएडा में भयंकर लू चलती हैं। नया पेड़ बचाना मुश्किल होता है। माली अंकल ने आकर समझाया। तो वह माना लेकिन जुलाई में शाश्वत के जन्मदिन से पहले बरसात में अदम्य से पेड़ लगवाया। वे किराये पर रहते हैं। जिस भी सोसाइटी में रहने जाते हैं, वहां पेड़ों की सौगात छोड़ कर आते हैं।
इस बार अदम्य ने शाश्वत के जन्मदिन से एक दिन पहले  ही पापा से पूछा,’’कल मेरा और भइया का पेड़ लगाना है। हमारा पेड़ कहां है?’’ कोरोना महामारी के कारण, मानसून में भी पौधे बेचने वाले नहीं आ रहें हैं। जैसे हमेशा इन दिनों में आते रहते थे। अंकुर ने समझाया, कोई माली ही नहीं आया। जब पौधे बेचने वाले आयेंगे, हम तब लगवा देंगे। अदम्य का जवाब,’’भइया के कितने पेड़ हो गए हैं। मेरा एक ही पेड़ है।’’श्वेता ने प्यार से खिलौनों की तस्वीरें दिखा कर कहा,’’आप इसमें से कोई खिलौना पसंद कर लो, हम मंगवा देते हैं।’’ अदम्य का जवाब, ’’नहीं मुझे पेड़ ही चाहिए।’’बच्चे के पास तो एक ही अस्त्र होता है वह है रोना और उसका रोना चालू हो गया। अंकुर का मुझे फोन आया,’’ कोई नर्सरी का पता दो और अदम्य की जिद बताई।’’मैंने हॉटीकल्चर डिर्पाटमैंट के अमित कुमार से नर्सरी के बारे में पूछा, उन्होंने सेक्टर आठ और सेक्टर तैतींस नर्सरी का पता बता दिया। सुन कर अंकुर तुरंत सोसाइटी के माली के पास गया और उससे अगले दिन छ पेड़ लगाने की जगह बनाने को कहा। अदम्य ने अब तक एक पेड़ पिछले साल शाश्वत के साथ लगाया था। अब अंकुर नर्सरी से पेड लेकर आया। अदम्य को गिन कर पेड़ दिए और एक शाश्वत को दिया क्योंकि वह तो हर साल पेड़ लगाता है। हमेशा की तरह बच्चे रात को, अपने पौधे को अपने पास रख कर सोए। इस समय ऑनलाइन पढ़ने वाले, घर में रहने वाले शाश्वत और अदम्य कोरोना बचाव के नियम पालन करते हुए हमेशा की तरह अपने जन्मदिन पर पौधे लगा कर आए। मुझे तस्वीरें भेजीं। जिन्हें देख कर मैं बोली,’’ तुम जियो हजारो साल और वायु प्रदूषण कम करने में अपना इसी तरह योगदान दो।’’ 







Monday, 20 July 2020

उसे वो भी दो, जो आपको मिला था!! Usey Wo Bhi Doo, Jo Aap Ko Mila Tha Neelam Bhagi नीलम भागी


  आजकल एक डॉयलाग सुनने को बहुत मिलता है, वो यह ’हम अपने बच्चे को वो सब देंगे, जो हमें नहीं मिला’। मेरा अपनी सोच है कि आप जो मर्जी दो अपने बच्चे को, आपका बच्चा है। पर उसे वह भी तो दो जो आपको मिला है। मतलब प्रकृति का साथ। यानि रेत, मिट्टी और पेड़ पौधों का साथ। कभी बच्चे को उसमें छोड़ का देखिए, इससे बच्चा कभी नहीं नहीं ऊबता जबकि मंहगे से महंगा खिलौना, बच्चा दो दिन बाद देखता भी नहीं है।
 गीता छोटी थी तो मैं कुछ समय मुम्बई में रही। गीता के लिए सकीना सुबह नौ बजे से रात आठ बजे तक रहती थी। घर जाने से पहले वह गीता को तैयार करके, उसका बैग लगाती। जिसमें बॉक्स में कुछ खाने को, पानी की बोतल और एक खिलौना रहता। पानी को छोड़ कर रोज वो खिलौना और खाना बदलती। मेरे और गीता के साथ वह उसकी ट्राइसाइकिल लेकर आती। हम लिफ्ट से उतरते। लिफ्ट से बाहर आते ही गीता भागने लगती, मैं उसके पीछे, सब बच्चे गीता के गले मिलते। तब तक सकीना उसका सामान लेकर पहुंच जाती और बाय करके अपने घर चली जाती। ये उन बच्चों में सबसे छोटी थी। बच्चों की माएं एक तरफ कुर्सियों पर बैठ कर बतियातीं रहतीें थी। उनके छोटे छोटे बच्चे मिल कर खेलते थे। लोखण्डवाला की सोसाइटी में जिम था पर बच्चों के खेलने के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी थी। छोटे छोटे बच्चे भी बड़े समझदार थे। एग्जिट गेट के पास थोड़ी सी जगह में खेलते थे क्योंकि रात में गाड़ियां बहुत कम निकलतीं थीं। गीता सभी बच्चों की बहुत चहेती थी। उसका इंतजार रहता था। कारण ये बच्चों को नये नये खेल सिखाती थी। मसलन जमीन पर लोटना, पल्टियां खाना वो सब खेल जिसमें कपड़े हाथ पैर सब गंदें हो जाएं। साढ़े नौ बजते ही सब अपने अपने घर चल देतीं। बच्चे फूट फूट कर रोते हुए घर जाते। गीता तो लिफ्ट के अंदर लेट ही जाती। अपना फ्लैट आने पर मैं उत्कर्षिनी को फोन करती, दोनो मिल कर उसे बाहर निकालते। उत्कर्षिनी उसे नहलाने की तैयारी करके रखती। मानसून में भी छाता, रेनकोट पहन कर बच्चे आते, तब ये लॉबी में खेलते। शुक्रवार को हम रात ग्यारह बजे मड जाते। वहां से संडे को रात ग्यारह के बाद लोखण्डवाला  आते। क्योंकि रात में ट्रैफिक कम मिलता है। मड में बेसमैंट में पार्किंग है। घास पर बैंच हैं उस पर हम महिलाएं बतियाती रहतीं, बच्चे घास में खिलौने फैला कर, इंगलिश बोलते हुए आपस में खेलते रहते। बतियाने के चक्कर में, मैं कभी आगे पीछे गई ही नहीं। एक दिन थोड़ा घूमी, देखा मड में बच्चों के झूले पार्क में नीचे रेत बिछी हुई हैं। मुझे बचपन में रेत मिट्टी में खेलना बहुत पसंद था। मैंने गीता को रेत में छोड़ दिया। मैं स्लाइड के प्लेटर्फाम पर बैठ गीता के खेल देखने लगी। उस समय हमारे पास कोई खिलौना नहीं था। वह रेत में किलकारियां मार मार कर खेल रही थी, उसमें जी भर के लोट रही थी। पास से गुजरते हुए छोटे बच्चे, उसे देख कर मचलने लगते कि उन्हें भी रेत में खेलना है। पर उनके मां बाप बच्चों को दूसरी ओर ले गए। मुझसे बच्चों का रोना नहीं देखा जा रहा था। अब मैं गीता को रेत में सुबह नौ बजे के बाद लाती, धूप से बचने के लिए, प्लेट र्फाम की शेड में वह रेत में खेलती। अपनी बार्बी डॉल्स को भी रेत स्नान कराती। एक सहेली और साथ में आ गई, रेत में खेलने। बुरी तरह थकने पर मैं उसे घर लाती। उसे मैंने खिलौनोें में प्लास्टिक का बेलचा, फावड़ा, तसला ले दिया। जो गाड़ी की डिक्की में रखा रहता था। कभी गीता शाम को भी झूले पार्क की रेत में खेलने की जिद करती तो बाकि बच्चे न रोंय इसलिए मैं सयैद भाई से कहती पास के बीच पर ले चलो। वहां वह खुशी से अपने औजारों से समुद्र किनारे की गीली रेत खोदती भरती रहती।
       समुद की रेत से घर आने में बहुत तंग करती|

गीता अमेरिका चली गई। मैं भी नौएडा आ गई। मैं सोचती थी कि गीता रेत में लोट लगाना मिस करेगी। उत्कर्षिनी का फोन आया कि मां हमने जहां घर लिया है, वहां जिम के साथ बच्चो का प्ले स्टेशन है। उसमें रेत में खेलने की जगह है। पर मैंने किसी को रेत में खेलते नहीं देखा। शायद बच्चे बीकएंड पर आएं। आज हम यहां सैटल हो गए हैं। इसे खेलने लेकर जाउंगी। मैंने मन में सोचा, बच्चे खेलते होंगे तभी तो एक हिस्से में रेत भरी है। उत्कर्षिनी उसे पार्क में लेकर गई। तरह तरह के झूले, सब छोड़ कर, उसकी आंखों में रेत देख कर चमक आ गई। 
वह रेत में मस्त हो गई। 

वीकएंड था और भी बच्चे आने शुरु हो गए।