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Monday, 14 September 2020

ये मोह मोह की तोरई....... नीलम भागी Ye Moh Moh Ke Torai Neelam Bhagi






 अपने हाथ से उगाई सब्ज़ी से बहुत मोह हो जाता है। जैसे मेरे उगाये करले, मुझे कड़वे नहीं लगते। उन्हें मैं छिलती भी नहीं, बिना छीले बनाती हूं। बागवानी की शुरुवात तो मैंने गमले में हरी पत्तेदार सब्ज़ियां उगाने से की थी। मेरे पास एक 20’’ का गमला था। पहली बार तोरई उगा रही थी इसलिये इसमें मैंने कोई प्रयोग नहीं किया था। 70%  मिट्टी में 30% गोबर की खाद और थोड़ी सी नीम की खली मिला कर, गमले के छेद पर ठिकरा इस तरह रखा कि फालतू पानी निकल जाए। फिर गमले में ये बनाई हुई मिट्टी भर दी। उसमें एक इंच गहरा अंगुली से गड्ढा  करके हाइब्रिड तोरई के बीज हल्के हाथ से अलग अलग 5 जगह दबा दिए और पानी छिड़क दिया। गमले को ऐसी जगह रखा, जहां कम से कम पांच घण्टे धूप आए। सात दिन बाद बीजों का अंकूरण हो गया। एक महीने बाद उसमें से धागे निकलने लगे तो मैंने ग्रिल से डोरी लटका दी और बेल के साथ छोटी सी डण्डी गाड़ दी और उससे डोरी लपेट दी। बेल उससे लिपट कर दीवार पर चढ़ गई। सफेद दीवार पर हरी बेले बहुत सुन्दर लग रहीं थीं। 

एक दिन मेरी बेलों से पत्ते गायब थे। हमारे ब्लॉक में पशु आ ही नहीं सकता र्गाड जो है। पार्क में बाइयां बतिया रहीं थीं। मैंने उनसे तोरई के पत्तों के पत्तों के बारे में तफतीश की।


उन्होंने बताया कि अमुक देश की कामवालियां लौकी, तोरी, कद्दू सबके पत्तों की सब्जी बना लेतीं हैं। जिस देश का उन्हों ने नाम लिया मैंने गार्ड से पता लगाया कि वे कौन से घरों में उस देशवालियां काम करती  थीं, पता चला कि वे पांच घरों में काम करतीं थी। मैं उसे मिली और उन्हें कहा कि तुम इस ब्लॉक में नई आई हो और मेरी बेलों से पत्ते गायब हो गए हैं। उन्होंने कहा कि अब वे नहीं तोड़ेंगी। मैं पंद्रह दिन में उनकी गुड़ाई करती, खाद लगाती। जरा सा पत्तें में छेद देखते ही, नीम के तेल का स्प्रे करती। दो महीने दस दिन बाद उसमें पीले फूल आ गये। साथ ही तरह तरह के कीट, मधुमक्खियां आने लगी। मेल फीमेल दोनों तरह के फूल मैं देखती। तोरियां भी लगने लगी। पहली बार दो बेलों से बहुूत प्यारी सात तोरियां उतारीं। 

 इन तोरियों को धोकर जब मैं छील रही थी तो इनके मुलायम छिलके भी मुझे बहुत अच्छे लग रहे थे। मैंने छिलके रख लिए। सब्जी़ जैसे तोरी की बनाती हूं बनाई। प्रेशर कूकर में प्रेशर बनने पर आंच बिल्कुल धीमी कर दी। पांच मिनट के बाद गैस बंद कर दी। पै्रशर खत्म होने पर खोला। तोरई में तो पानी डालते ही नहीं हैं। ये मोह से उगाई तोरई की तो मैंने भाप भी कूकर की सीटी से नहीं निकलने दी। वो भी ग्रेवी में  बदल गई। अच्छी तरह कलछी चलाई। छिलकों में मैंने काट कर दो प्याज डाले, स्वादनुसार नमक, अजवाइन और सौंफ पाउडर डाल कर मिक्सी में बारीक पीस लिया और परात में निकाल लिया। इसमें आटा डालती जा रही थी और जैसा पूरी के लिए लगाते हैं वैसा सख्त लगाया। क्योंकि नमक के कारण ताजी मोह की तोरी और प्याज पानी छोड़ेंगे। इसलिए पानी बिल्कुल नहीं डाला। हरी हरी फूली फूली मोह से उगाईं ताजी तोरियों के छिलकों की पूरियों के साथ तोरी की सब्जी का साथ, बहुत ही लाजवाब था। बाजार से खरीदी तोरी के छिलके तो कम्पोस्ट में जाते हैं। उनसे मोह जो नहीं होता। अब किचन वेस्ट के ऊपर तैयार की गई मिट्टी डालकर उगाती हूं।


   





12 comments:

kulkarni said...

kya baat hai , ek dum mast

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद

Unknown said...

बहुत खूब बहुत खूब

Unknown said...

यम्मी तोरई की सब्जी और कुड़ियां

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद,

Good Indian Girl said...

Bahaut badhiya

Neelam Bhagi said...

Thanks 😊

Neelam Bhagi said...

मित्रों प्रणाम विदुषी नीलम भागी जी ने तोरई पर बहुत अच्छी प्रस्तुति दी है उन्हे साधुवाद, नमन & अभिनन्दन ।।वास्तव में वनस्पतियां हमारे स्वास्थ्य ,मन और हृदय को आलोकित और पवित्र करती हैं। अब हमने अपनी बगिया में उगी सब्जियों को खाना छोड़ दिया है। मकान इतने छोटे हो गए हैं कि उसमें बगिया लगाना ही संभव नहीं है और अगर कुछ लगा लिया तो हम लोग उसे आर्थिक रूप से तौलने लगते हैं जबकि घर की उगाई हुई सब्जी का कोई मूल्य नहीं होता & वह अमूल्य होती है ।
बुंदेलखंड में जब किसी लड़की की शादी तय हो जाती है तो उसका पिता अपने छप्पर के आसपास रामकोला कद्दू के बीज बो देता है और उसके छप्पर पर जब 10-12 कद्दू बड़े आकार के दिखाई देते हैं तो लोग समझ जाते हैं कि इस घर की बिटिया की शादी तय हो गई है ।वहां पर शादियों में कद्दू की सब्जी अवश्य बनाई जाती है। कद्दू को लोग अच्छा नहीं मानते लेकिन कद्दू में इतना विटामिन होता है कि जितना सेब में होता है। यह सबसे सस्ता भी है इसलिए घर में रोज कद्दू की सब्जी बनना चाहिए। हां बदल बदल के बनाइए कभी कद्दू की सूखी सब्जी कभी रसीली सब्जी जिसमें गुड़ और खट्टी अमिया डालिए ,कभी कद्दू के कोफ्ते बनायें है कभी कद्दू की खीर बनायें तो कभी कद्दू का रायता बनाइए ।अगर आप बदल बदल कर कद्दू के व्यंजन बनाएंगे तो आपको अच्छा भी लगेगा और कद्दू से वितृष्णा भी नहीं होगी तथा आर्थिक लाभ भी होगा। कद्दू की बात बहुत हो गई अब मैं सुमित्रानंदन पंत जी की एक रचना आपके समक्ष प्रेषित कर रहा हूं ।यह रचना सेम पर लिखी गई है । सेम आनंद देती है और यह रचना में विदुषी नीलम भागी जी के सम्मान में प्रस्तुत कर रहा हूं। K.K.Dixit

Serenity said...

Well expressed

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार यशपाल जी

Neelam Bhagi said...

बहुत खूबसूरत अंदाजे बया ...मेरे पास भी किचन गार्डन है....अपने हाथ से उगाई गई सब्जियों का मज़ा ही कुछ और है...आपकी मेहनत पर मैं अपनी दो लाईन पेश करता हु.....

"उगते सूरज की यही पहचान है
जब पसीने मैं नहाया कोई इंसान है.."

💐Regards🙏
Asad (Parwaz)
हार्दिक आभार असद जी