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Saturday, 29 May 2021

ग़लत कौन!! नीलम भागी World Food Safety Day Neelam Bhagi

विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

सुबह जल्दी ब्रेकफास्ट बनाने के लिए रात को तैयारी करने लगी तो देखा टमाटर नहीं थे। घर के पास ही स्टोर है जो सुबह 7.30 बजे से रात 9.30 नौ बजे तक खुला रहता है। अभी 9 ही बजे थे। मैं टमाटर लेने गई। बहुत बढ़िया टमाटर थे। मैंने उसमें से भी देख कर बहुत बढ़िया निकाले, काउण्टर पर बिल बनवाया 50रु किलो के हिसाब से पेमेंट किया। मेरा आाखिरी बिल था और स्टोर बंद होने लगा। मैं ये सोच कर खुशी से घर आ गई कि थोड़ा लेट हो जाती तो टमाटर नहीं मिलते। सुबह आठ बजे के बाद मैं स्टोर से दूध लेनेे गई तो हमेशा की तरह रात की बची फल सब्ज़ियां तोल तोल कर डम्प में डाली जा रहीें थीं। सुबह जो ताजी आईं उनको उस जगह सजा कर लगाया जा रहा था। दूध, दहीं पनीर आदि भी एक्सपायरी डेट के बाद डम्प में जा रहा था। और डम्प का ढेर लग जाता, जिसे कूड़ा उठाने वाले ले जाते। इसे देखने की हमें आदत सी हो गई थी। मैं भी सुबह ही दूध के साथ ही फल सब्जियां लेकर जाती हूं।

  पर आज डम्प में रात वाले टमाटरों को देख कर मेरे दिमाग में प्रश्न उठ खड़े हुए। ये वही टमाटर थे जिनमें से मैंने रात को 50रू किलो के हिसाब से स्टोर बंद होने से पहले खरीदे थे। और घर जाकर फ्रिज में रख दिए। उनमें से 4 टमाटर मैंने सुबह काटे, उनमें कोई कमी नहीं थी। और अभी दो या तीन दिन और इस्तेमाल होंगे, कोई भी खराब नहीं होगा। ऐसे ही बाकि सब्ज़ियां जो भी रात में लेकर गया होगा। उसकी भी बढ़िया होंगी। लेकिन यहां पर वही फल सब्ज़ियां रात को शटर गिरते ही और सुबह शटर उठते ही डम्प में चली जाती हैं। यानि कूड़े में तब्दील हो जातीं हैं। यहां ज्यादातर लोग आफिस से आकर रात को ही अगले दिन की खरीदारी के लिए निकलते हैं। उनके घर में जाकर तो ये फल सब्ज़ियां कूड़ा नहीं होती। मंहगे दाम चुका कर ले जाते हैं। अगले दिन ब्रेकफास्ट, लंच में इस्तेमाल होती हैं और डिनर के लिए कांट के फ्रिज में रखी जाती हैं ताकि आफिस से आने के बाद सिर्फ पकाने का काम रहे। आज लगा खाने पीने की चीजों की इतनी बर्बादी्! दूध की थैलियां, क्रीम के टैट्रा पैक तो कोई वर्कर डम्प से उठा कर फालतू कुत्तों को डाल देता है। दुख तब होता है जब कागज़ पाॅलिथिन बिनने वाले बच्चे कई बार कुत्तों को दूध पीते देखते हैं और खाली थैली झट से अपने बोरे में डाल लेते हैं।


न जाने देश के कितने स्टोर्स में ऐसे ही खाद्य पदार्थों की बर्बादी होती होगी। क्योंकि इनका मकसद है ग्राहकों को ताज़ा, फ्रेश देना। देश में कितने ही बच्चे सही पोषण के अभाव में जीने को मजबूर हैं। भूखे लोगों की बड़ी संख्या अकेले भारत में है।

लेकिन कम पढ़े लिखे फल सब्जी वाले भी मंडी से फ्रेश ही लाते हैं। सुबह अपने ठेले में ज्यादा से ज्यादा वैराइटी सजा कर सेक्टर्स में घूमते हैं। उस समय हाईरेट होता है। जितना मर्जी छांटो कोई रोक टोक नहीं करते। उनका मकसद अपनी लागत निकालना होता हैं। लागत निकलते ही अब जो भी बिकेगा वो उनका लाभ होता है। जैसे जैसे उनका माल छंटता जाता है और जगह बदलती जाती है तो रेट भी बदलता रहता है। ये प्राफिट जो है कम या ज्यादा चलता रहता है। पर कोई सब्जी़ फल बर्बाद नहीं होने देते। आखिर में औने पौने रेट में माल निपटा देते हैं। खाली करने में जो खाने लायक नहीं होती उसे आवारा पशु के आगे डाल आते हैं। और अगले दिन फिर ताजा माल लेने मंडी जाते हैं।   







Thursday, 27 May 2021

अभी कित्ता टाइम लगेगा!!...... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 13 Neelam Bhagi


 अंकुर का फोन आया कि वह एक थर्मामीटर और ऑक्सीमीटर लेने आ रहा है, एक मैं अपने पास रखूं। छूटते ही मैंने पूछा,’’क्यों सब ठीक है न!’’वह बोला,’’हां किसी को देना है।’’ मैंने दोनों को सैनेटाइज़र से पोंछ कर, थैली को भी सैनेटाइज़ कर, उसके आने से पहले गेट पर टांग दिया और बाहर कुर्सी पर बैठ गई ताकि वह मुझे देख ले कि मैं ठीक हो रहीं हूं। वह आया उसने एक कागज़ से थैली उठाकर गाड़ी की पिछली सीट पर रखी। मैं ध्यान से उसका चेहरा देख कर बोली,’’ कमज़ोर सा लग रहा है। उसने गाड़ी में बैठते हुए कहाकि शेव नहीं की न इसलिए आपको लग रहा है।’’और ये जा, वो जा। मैंने फिर सोचा मेरे लिए भी तो परेशान था न। अंकुर का कभी फोन आता कि विटामिन की दोनो गोलियां ले रही हो ना। मेरे हां कहते ही फोन कट। मैंने सोचा वर्क फ्रॉम होम चल रहा है। मुझे ठीक देख गया है इसलिए अब कम और छोटा फोन कर रहा है। रजिस्ट्रेशन के सात दिन बाद भाभी का घर में कोरोना का टैस्ट करने आया। उनकी रिर्पाट नेगेटिव आई। मेरी पॉजिटिव रिर्पोट के बाद वैसे ही उन्होंने रजिस्ट्रेशन करवाया था। आठ दिन बाद मेरी कोरियर से गोलियां आ गईं। मैं नियम से खाने लगी और स्वस्थ होने लगी। मैंने अंकुर को फोन किया कि तेरा वैक्सीनेशन कब होगा? उसने कहा,’’ अभी नहीं डॉक्टर से पूछना पड़ेगा क्योंकि मुझे और श्वेता को कोरोना हो गया था। दो दिन पहले हमारा क्वारेंनटाइन खल्म हुआ है। जिसने आप का इलाज़ किया, उसी से हमने करवाया। जिस दिन आप से ऑक्सीमीटर लेने आया था। उस समय बुखार शुरु हो गया था। श्वेता को मुझसे दो दिन पहले हो गया था।’’ मैंने पूछा,’’बच्चे!’’उसने बताया कि गुड़िया ने संभाले। कोरोना का डर इतना फैला हुआ है कि बच्चों को समझा दिया कि हमारे रुम में मत आना। दीदी का कहना मानना, नहीं तो दीदी अपने घर चली जायेगी। फिर हमें खाना कौन देगा? हम 15 दिन बाद तुम्हें हग करेंगे।’’ अदम्य ने छुटते ही प्रश्न दागा,’’दीदी अगर छुट्टी करेगी तो!’’दीदी ने ही जवाब दिया,’’न न न, बिल्कुल नहीं करुंगी।’’ सुनते ही शाश्वत और अदम्य के चेहरे पर बड़ा सकून आया। अदम्य तो 4 घण्टे के बाद ही पूछने लगा,’’अभी कित्ता टाइम लगेगा!’’सुनते ही हम परेशान हो गये कि ये तो श्वेता से लोरी सुने बिना सोता नहीं, पर शाश्वत उसी समय समझदार हो गया। उसे अपने साथ लगा लिया। जो वह कहता शाश्वत करता। यहां तक कि उसे सुलाने के लिए लोरी गाता। अब कोई रोकटोक तो थी नहीं खूब टी.वी. देखना पर अदम्य की पसंद का र्काटून चलता। शाश्वत की ऑनलाइन क्लास के बीच में अदम्य यूट्यूब पर अपनी पसंद का र्काटून लगवाता। ये रोये न वह इसका आर्डर मानता। बच्चे क्या कर रहें थे? हमने न सोचा न जाना। हमारा मकसद था, ठीक होना। हम डॉक्टर के कहे अनुसार चल रहे थे। दोनों बच्चों ने कोई शिकायत का मौका नहीं दिया, न ही हमारी तरफ आये। दोनों कितनी भी आपसी शैतानी में व्यस्त हों पर जैसे ही गुड़िया हमारे खाने नाश्ते के लिए दरवाजे पर नॉक करती तो दोनों सब कुछ छोड़ कर दूर खड़े होकर हमें देखते और दरवाजा बंद होने से पहले ऐसे हाथ हिला कर बाय करते जैसे हम कहीं जा रहें हो। अदम्य बोलता,’’जब आप बाहर आओगे तो आपको इतना प्यार करुंगा कि आपका कचूमर निकाल दूंगा।’’Spirometer जिससे हम ब्रिथिंग एक्सरसाइज़ करते वो तीनो बॉल इन्हें खिलौना लगतीं। वे दिन गिनते कि 15 दिन बाद ये खिलौना इनको मिल जायेगा।

आपको इसलिए नहीं बताया कि जान कर कुछ कर तो सकती नहीं थीं, सिवाय परेशान होने के।’’ दोनों ने एक दूसरे से कहा कि अपना ध्यान रखना। मैंने उसे कहा कि घर से बाहर नहीं जाना। थक गया होगा, मैंने फोन बंद किया। बच्चों पर मुझे बहुत हैरानी हुई! मैं बिमार हुई मुझे दोनों ऑडियो भेजते कि मैं जल्दी ठीक हो जाउं। जब ठीक थी तो अदम्य जब से फोन करना सीखा, दिन में कई बार मुझे अपने मम्मी, पापा, भइया की शिकायत का फोन करता। अब ये तक नहीं बताया कि श्वेता अंकुर को कोरोना हो गया! बिल्कुल ठीक होते ही कोरोना से जंग का अनुभव आप से शेयर किया। हेमू भी करोना की जंग जीतकर ड्राइव करते हुए भागलपुर अपने घर गया।आप भी स्वस्थ होने वालों की संख्या देखें, हौंसला बढ़ेगा। नीलम भागी  l          


Wednesday, 26 May 2021

हमने न उम्मीद हारी...... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 12 Neelam Bhagi

मेरा दिमाग तो न मिलने वाली दवा पर ही जाता था। वो भी मिल जाये तो बिल्कुल ठीक हो जाउं। मास्क लगाकर जितनी देर भी बैठा जाता पेड़ की छांव में बैठती और धूप के चक्कते मेरे उपर पड़ते। क्या ब्लड रिर्पोट आई है? किस चीज़ की वो दवा है? मैं जानकर क्या करुंगी। मेरे डॉक्टर ने मुझे ठीक किया है। जो दवा उसने लिखी है, उसे खाउंगी तो ठीक हो जाउंगी। अनिल के लिए भी परेशान थी। फोन किया तो उसका बुखार आज तीसरे दिन उतर गया था। सुन कर बहुत अच्छा लगा और सरकारी अस्पताल की हम दोेनों ने सराहना की। अगले दिन मैंने अनिल को फोन किया ये जानने के लिए कि फिर बुखार तो नहीं आया है। उसने बताया कि नहीं आया है और मैं ठीक हूं, कमजोरी बहुत है। आज शांभवी को बुखार हो गया, लगता है सबको होगा इसलिए मैंने तीनों को सरकारी अस्पताल भेज दिया ये सोच कर कि अब तो सबको होगा पहले ही बाकि दोनो भी दवाई ले आओ। मैं भी तो वहीं से ठीक हुआ हूं। मुझे इनकी फिक्र हो गई कि कैसे मैनेज़ करेंगे? अब अपनी गोली का न मिलना तो मैं भूल ही गई। कुछ समय बाद फिर अनिल से पूछा उसने बताया कि शांभवी को 5 दिन की दवा दे दी। बाकि दोनों को कह दिया बुखार होने पर ही दवाई मिलती है। पांच दिन में शांभवी का बुखार नहीं उतरा और 103 तक पहुंच जाता। दवा खत्म होते ही वह फिर शांभवी को लेकर अस्पताल गया। उसने डॉक्टर को बताया की इसको स्मैल नहीं आ रही, स्वाद चला गया। अब उसका कोरोना का टैस्ट हो गया। रिर्पोट बाद में मिलेगी। उसने डॉक्टर से कहा कि इसे एडमिट कर लो। उन्होंने कहा कि यहां 18 साल तक के मरीज भर्ती किए जाते हैं। आप 39 सेक्टर में जाओ क्योंकि ये 19वें साल में है। अब अनिल उसे लेकर 39 अस्पताल पहुंचा। वहां गेट पर ही दो लोग डैड बॉडी लेकर जा रहे थे। सामने रिसैप्शन पर दो नर्स बैठीं थीं। बदहवास सा अनिल उनके पास जाने लगा तो गार्ड ने कह दिया कि रिर्पोट लेकर ही अंदर जा सकते हैं और यहां कोई बैड खाली नहीं है। उसने गार्ड से पूछा,’’ अब हम क्या करें?’’। गार्ड ने एक टोल फ्री नम्बर की ओर इशारा करके कहा कि इस पर बात करो। शांभवी का ध्यान नम्बर मिलाने में था। अनिल ने देखा कि एक शव की जिपिंग हो रही थी। उसने झट से शांभवी से कहा,’’बेटी चल, घर जाकर मिला लेंगे। घर आ गए। जो दवा लाए थे देते रहे, रात तक कोई सुधार नहीं। सोने से पहले मैंने फोन किया। अनिल ने बताया कि अब जिससे मेरा ऑनलाइन इलाज़ हुआ था उसकी फीस जमा कर रहा हूं। उससे ही शांभवी का शुरु किया। अनिल अब रात में दवाइयां ढूंढने निकल गया। एक दवा छोड़ कर रात 12 बजे तक ले आया। एक दवा नहीं थी जहां से मिलनी थी वो स्टोर बंद हो गया था। सुबह 9 से पहले ही अनिल पहुंच गया। स्टोर खुलते ही दवा ले आया। मुझे पूरा विश्वास था कि ये भी कोरोना से डरेगी नहीं, लड़ेगी। बार बार मैं मोबाइल में एक ही फोटो देखती शांभवी को स्कूल में प्राइज़ मिला। भारती ने मेरी, अनिल और शांभवी की फोटो खींची।


मैं, अनिल कोराना से जीत गए। शंाभवी की जंग चल रही थी। 12 वीं के बाद हमने शांभवी से पूछा,’’बेटी तूं क्या करना चाहती है? वह बोली,’’तुलानी पूना से मरीन इंजीनियरिंग।’’लौट कर अपना इंटरव्यू बताने लगी,’’बुआ, मुझे कहा कि इस फील्ड में कॉमप्लीकेशन बहुत हैं। फैमली से दूर रहना पडता है। कई बार पाईरेट सी अटैक होते हैं। शिप में लड़की अकेली भी हो सकती है। बॉयलर मशीन में 45प्लस टैम्परेचर में काम करना होता है।’’ बुआ सुनकर मैं बोली,’’मैंने भी सुना है कि लोग जले भी हैं। कॉमप्लीकेशन तो हर फील्ड में हैं। ऐसे डरी तो आगे कैसे बढ़ूंगी।’’दस दिन बाद बुखार उतरा। घर के बाजू में पेड़ है जिसकी एक शाखा इनकी छत पर है। इसके कमरे की खिड़की भी पेड़ की तरफ है। वो खुली रखी। शाम 4 बजे बोली,’’ मुझे छत पर जाना है।’’ कमजोर हालत में सहारे से ले जाकर, पेड़ की छाव में कुर्सी पर बिठा दिया। जब अंधेरा होने लगा तो 2 घण्टे बाद, अपने आप नीचे उतर कर आई और भारती से बोली,’’मम्मी कुछ खाने को दो।’’हमारी शांभवी कोरोना से जंग जीत गई। क्रमशः नीलम भागी     


Monday, 24 May 2021

मरीज़ को भी सोचना ...... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 11 Neelam Bhagi


 अब वहम के कारण नारियल खरीदना बंद कर दिया। विटामिन की गोलियां बचीं थीं बाकि सब कोर्स खत्म हो गया था। सौ के आस पास बुखार रहता था। डॉक्टर ने रात की गोली पांच दिन और खाने को कहा और कुछ ब्लड टैस्ट लिखे। ब्लड सैंपल लेने वाला अगले दिन ही आ गया। रुम से बाहर आकर ही मैंने सैंपल दिया। उसके जाते ही मैंने लिक्विड हैंडवाश से हाथ धोए। मेरे हाथों से डिटोल की गंध आने लगी। ये देख फिर साबुन से हाथ धोए तो  हाथों से महक आने लगी। मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसी समय अंकुर का फोन आया, उसने पूछा,’’ब्लड सैंपल ले गए।’’मैंने कहा,’’हां, और मुझे गंध आने लगी है।’’सुन कर वह भी खुश हुआ कहने लगा अब आप जल्दी ठीक हो जाओगी। अपना ध्यान ऐसे ही रखना। गंध आने का जैसे ही घर में पता चला सब खुश। मुझे याद आया कि आज अनिल का फोन नहीं आया है। मैंने उसे फोन किया और बताया कि मुझे स्मैल आने लगी है। उसने पूछा,’’बुखार उतर गया!’’मैंने कहा कि जब खुशबू आने लगी है तो बुखार भी चला जायेगा। मैंने पूछा,’’ तेरी आवाज़ को क्या हुआ? तूं ठीक है न।’’ वह बोला,’’नहीं, मुझे बुखार हो गया। सुबह शॉप के लिए घर से निकला तो तबियत कुछ खराब सी लगी। मैं तुम्हारी तरह नहीं कि दो चार दिन ऐसे ही निकाल दो कि मुझे ऐसा लग रहा है या वैसा लग रहा। कोरोना के डॉक्टर का क्लीनिक मुझे कोई पता नहीं था। ऑनलाइन इलाज़ की मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैं तो सरकारी अस्पताल को चल दिया। मैने पर्ची बनवाई। मेरा दुसरा नम्बर था। काफी दूरी पर डॉक्टर बैठे थे। मैंने जो बताया उसे सुन कर 5 दिन की दवा देदी। खा रहा हूं।’’सुनकर मैंने यही कहाकि अपना घ्यान रखना और अपने को सबसे अलग रखना। अब आराम कर। छोटा भाई हमारे घर से दस किमी दूर रहता है। मैंने घर में बताया कि अनिल को भी बुखार हो गया, उसने दवा ले ली है। अम्मा को नहीं बताना कि छोटा बिमार है। परिवार फिर चिंतित हो गया। शाम को मेरा टैम्परेचर नार्मल हो गया। मैंने तुरंत अपनी भतीजी को फोन किया कि अनिल जब जागेगा, उसे कहना कि मेरा बुखार उतर गया है। मैंने मन में सोचा कि मेरा टैम्परेचर टूट गया सुन कर उसे हिम्मत मिलेगी कि ठीक भी होते हैं। जब मैं होम आइसोलेशन में गई तो मैंने सोचा कि मैं अपनी एक पोशाक धोउंगी और दूसरी पहनूंगी। पर ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं थी। कपड़े खूब हो गए। जिस दिन नहाई उस दिन दिन भर सोती रही। सोकर उठी तो अपने आप को ठीक लग रहा था। जरा सा कुछ करने पर मसलन चादर बदलने लगीं। डबल बैड पर आधी ही बदली। खांसी  उठने लगी। लेट गई, दो बार में अच्छे से बिछा ली। बड़ी गंदी बिमारी है अपनी तरफ से मैं पूरी कोशिश कर रही थी कि मुझसे ये वाइरस किसी और को न लगे। कपड़ों का ढेर देख कर मैंने घर में कहा कि मशीन में अपने कपड़े धो लो फिर मैं अपने डालने जाउंगी। मेरे कपड़े धुलने के बाद कोई 3 दिन तक वाशिंग मशीन नहीं इस्तेमाल करेगा। पिछले आंगन में मशीन है वहां धूप आती है। मैं मास्क लगाकर गई बिना कुछ छुए मशीन में कपड़े धोने लगा दिए। धुलने पर वहीं मैंने फैला दिए। तीन दिन मशीन और कपड़ों में खूब धूप लगी। ब्लड रिर्पोट भी आ गई। अब एक नई 30 गोलियां खानी थी, 15 दिन तक सुबह और शाम और साथ में विटामिन की। विटामिन की गोलिया तो होम डिलिवरी में आ गई पर वो 30 गोलियां नहीं आई। अंकुर का मैसेज़ आया कि वो दवा भी जल्दी आ जायेगी अरेंज कर रहा है। जरा उनकी शार्टेज है। नीलम भागी क्रमशः      


Sunday, 23 May 2021

स्वादहीन, गंधहीन...... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 11 Neelam Bhagi

मेरी अदृश्य शत्रु कोरोना से जंग चल रही थी। मैं और कोई बिमारीे न हो इसलिए बड़ी एतियात बरत रही थी। मसलन मच्छरों से बचाव के लिए, मच्छरदानी में रहती। खाना एक दम ताज़ा गर्म अपने बर्तनों में थोड़ा डलवाती। किसी तरह निगल कर तुरंत बर्तन साफ करके रखती। कपड़े रोज बदलती पर नहाने का रिस्क नहीं लिया। मैंने अपनी तरफ से पूरी तरह कोरोना को हराने के लिए फोकस किया हुआ था। जब टैम्परेचर कम होता तो पसंद का गाना, बहुत कम वोलयूम पर लगा लेती, बुखार में नींद लग जाती, कभी मोबाइल अपने आप ऑफ हो जाता। स्टिकर चिपकाने के बाद तो कोई घर के आगे से भी नहीं गुजरता था। सुबह दस बजे तक फल सब्जी के ठेले निकलते। अगर कुछ खरीदना हो तो वे रुकते। बाकि दिन भर सन्नाटा! बस नारियल वाले का मुझे इंतजा़र रहता क्योंकि वह बंधा हुआ था अगर हमारे यहां आने से पहले उसे 100रु वाले ज्यादा ग्राहक मिल गये तो वह बंधे वाले के लिए नहीं बचायेगा। इसलिये उसका ठेला देखते ही मैं खुश हो जाती। आज उसके ठेले पर एक ही नारियल था। इसलिए उसने नारियल देने के साथ हमें खूब भाग्यशाली भी बताया कि हमारी किस्मत अच्छी है जो एक नारियल बच गया। क्योंकि आज रामनवमीं के कारण कई लोगों ने पूजा में पानी वाला नारियल ही रख दिया। क्या करें जब दूसरा नहीं मिलेगा तो! कोई मुझे दिन, त्यौहार और तारीख नहीं पता न ही मोबाइल में गाना लगाते समय मैं देखती। बस दवा देखती की कितने दिन की रह गई है जब खत्म हो जायेगीं तो डोज़ पूरी हो जायेगी तब मैं ठीक हो जाउंगी।         

 आज भाभी ने आवाज़ दी,’’दीदी जरा सा दुर्गा नवमी का प्रशाद ले लो। उनके जाते ही मास्क लगा कर दरवाजा खोला, देखा स्टूल पर प्लेट में एक चम्मच हलवा छोल और कलावा , नाश्ते का दूध दलिया रक्खा है। साथ में मेरे अच्छे नसीब का फिटमारा सा नारियल और स्ट्रा रखा है। कलावा भगवान जी के आगे रखा। प्रशाद और दलिया खाया, कुछ देर बाद गोलियां खाकर सो गई। अनिल की आवाज़ सुनकर नींद खुल गई। छोटी भाभी ने भी नवमीं का प्रशाद भेजा था। उसने झोला गेट पर टांग दिया और बाहर खड़ा ऊंची आवाज़ में मुझसे पूछ रहा,’’बुखार उतर गया, गरारे किए, भाप ली।’’मैंने फोन पर जवाब दिया। अनिल चिंतित सा चला गया।़ अब मैंने उस बद्सूरत नारियल में चक्कू से छेद कर स्ट्रा लगा कर पिया वो मुझे आज अच्छा नहीं लगा। ये सोचकर कि अच्छा तो कुछ भी नहीं लगता था पर पी गई। अभी लेटी ही थी एकदम प्रैशर लगा तुरंत टॉयलेट की ओर पूरी ताकत से दौड़ी। अपने पर कोई कंट्रोल नही, कपड़े खराब, पेट में जैसे कुछ बचा ही नहीं। उस समय पता नहीं कहां से हिम्मत आ गई। सफाई की, कपडे़ धोए। बैड पर आई तो चक्कर से आने लगे। फटाफट ओआरएस गिलास भर कर पिया और लेट गई। तबियत संभलने लगी। अपने पर बड़ी दया और शर्मिंदगी आने लगी। दोनों बंद दरवाजों की ओर देखा और सोचने लगी अगर उस समय कोई अंदर आ जाता तो देख कर क्या सोचता? इतनी बड़ी होकर बच्चों जैसा काम किया है। फिर याद आया अरे मुझे तो कोरोना है अंदर आने के लिए मैंने सबको मना किया है। इसमें रोगी अकेला पड़ जाता है। अब मेरे विचार बनने लगे कि सोशल डिस्टैंंिसंग नहीं, शारीरिक दूरी बनाएं। अपनी आदत के अनुसार हर बात में अच्छाई ढूंढना। यहां भी ढंूढी कि अच्छा हुआ उल्टी तो नहीं आई। अचानक याद आया इतनी सफाई की, कोई दुर्गंध नहीं आई। अगर दुर्गंध भी होती तो सफाई करते समय शायद उल्टी भी लग जाती। कोरोना ऐसे दिमाग पर छाया है कि आज पता चला कि मुझे तो किसी चीज़ की गंध ही नहीं आती। मैंने कुछ नियम बनाए जब तक बुखार नहीं उतरता, तब तक आग में पका ही गर्म खाउंगी, पिउंगी। इसलिए फल नहीं, सब्ज़ियां खाउंगी। कोई खट्टा डकार नहीं, पेट में गड़गड़ नहीं। न ही दोबारा गई, जो कुछ हुआ, सब एक बार में हुआ। इसे लिखने से पहले मैंने पौटी घटना के बारे में अंकुर को फोन पर सुना कर पूछा कि इसे लिखना चाहिए? उसका जवाब था कि आज परिवार को पता चला की कभी ऐसा भी होता है। पर आप घबराई नहीं। अपने अनुभव को जैसे का तैसा लिखो। और मैंने लिख दिया। नीलम भागी क्रमशः     


Friday, 21 May 2021

क्वारनटाइन ..... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 8 Neelam Bhagi


 मेरा चेहरा तो पेड़ों को देखते हुए गेट की तरफ ही रहता था। 20 अप्रैल दोपहर को गेट से दो मीटर दूर एक महिला खड़ी पूछ रही थी कि यहां कोरोना संक्रमित है। सुनते ही अंजना गेट पर आई और मुझे बुलाने लगी। वह प्रशासन की ओर से आई महिला तुरंत बोली,’’संक्रमित को मत बुलाओ।’’पर घर के सभी लोग अपने आप बाहर आ गए। उनके पीछे अम्मा भी आ गई। भाभी ने महिला से पूछा कि कोरोना टैस्ट हो सकता है? नीलम दीदी की पॉजिटिव रिर्पोट आने के बाद रजिस्ट्रेशन करवाया है पर घर से टैस्ट का सैंपल लेने के लिए बड़ी लंबी डेट मिली है। सुनकर महिला ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने अपने साथी से कहा,’’संक्रमित के लिए दवा दो। उसने दस गोलियों का पत्ता पकड़ा दिया।’’अंजना ने पूछा,’’अम्मा 92 साल में हैं। इनके लिए बहुत चिंता हो रही है।’’ सुनते ही महिला ने गोलियां दीं और कहा,’’ अम्मा को दो गोलियां अभी खिला दो। जो सीनियर सीटीजन हैं वो ये वाली  2 खाना, फिर एक सप्ताह बाद खाना फिर एक महीने के बाद खाना और एक डिब्बा दिया कि इसका काढ़ा बना कर पीना। घर में बच्चों को हल्दी वाला दूध पिलाना।" दीवार पर स्टिकर चिपकाया फिर साथी से कहा कि इनकी फोटो लो। अंजना को महिला ने कहा,’’ दवाओं को हाथ में पकड़ लो।’’ अंजना ने जो भी उन्होंने दिया, उसे इस तरह डिसप्ले कर के पोज़ दिया, मानों उन दवाओं का विज्ञापन कर रही हो। महिला बहुत प्रसन्नता से गाड़ी में बैठ कर चल दी। मैंने  पूछा,’’स्टिकर क्यों चिपकाया है।’’वो बोली कि उस पर लिखा है कि एक मई तक क्वारनटाइन है। मैंने उनकी दवा काढ़ा कुछ भी नहीं लिया क्योंकि मेरी दवा तो चल रही थी। बाकि सब ने महिला की दी दवा खाई और बाहर बैठ कर बतियाने लगे। सब के चेहरे पर से कुछ घंटे पहले के भय और चिंता लगभग गायब थी। कुछ देर बाद सब काढ़ा पीते दिखे। अम्मा नहीं दिख रहीं थीं। शायद अंदर काढ़ा पी रहीं होंगी। थोड़ी देर बाद वे भी अखबार हाथ में उठाए बाहर आकर पढ़ने लगीं। मैं समझ गई कि काढ़े का प्रभाव है। 92 साल तक एलोपैथिक दवा खाई है पर काढ़े चटनियों पर इनका बहुत विश्वास है इन्हें वे संजीवनी बूटी समझती हैं। अंजना खिड़की के पास से बोली,’’अम्मा को तो सुबह उठते ही काढ़ा पिला दिया करेंगे। हम सब तो इतने डरे हुए थे कि इन्हें कुछ हो गया तो इस समय कैसे करेंगे? कह कर वह चली गई। इतने में अंकुर का फोन आया पूछा,’’ टैम्परेचर कितना है! प्रत्येक दवा की गोलियों की संख्या पूछी। शाबाशी दी कि मैंने कोई डोज़ मिस नहीं की। टैम्परेचर लो, ऑक्सीजन देखो फिर पूछता हूं। देखा थर्मामीटर का सैल खत्म हो गया। टैम्परेचर देखकर ऑफ करना भूल गई थी। ऑक्सीमीटर का भी सेल वीक था। मैंने  सोचा अब देखना नहीं पड़ेगा। अंकुर ने फोन किया मैंने बताया वह बोला,’’मैं दूसरा लेकर आ रहा हूं। एक घण्टे बाद वह ले आया। इस बार थर्मामीटर मरकरी वाला था और नया ऑक्सीमीटर था। वह गेट से बाहर फोन करे मुझे अभी टैम्परेचर और ऑक्सीजन बताओ र्कफ्यू लगने वाला है। देखा टैम्परेचर सौ से  .1 पॉइंट कम था और ऑक्सीजन 97 सुनकर वह चला गया। तीन दिन से स्थिर थी। पर उस समय कुछ ठीक लगा।   नीलम भागी क्रमशः                 


Thursday, 20 May 2021

कोरोना से डरना नहीं, लड़ना है! ..... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 8 Neelam Bhagi

 

मेरी कोरोना पॉजिटिव रिर्पोट के बाद मैं अपने कमरे से ही महसूस कर रही थी कि घर में सन्नाटा छाया हुआ है। और मुझे भी रिर्पोट आने के बाद घबराहट सी होने लगी वो इसलिए कि जरुरत पड़ने पर क्या मुझे बैड और ऑक्सीजन मिल जायेगी? क्योंकि उसकी कमी चल रही थी। पहली डोज़ खाने के बाद मेरे दिमाग में डिबेट चलने लगी कि मुझे जरुरत पड़ने पर नहीं मिला तो!! मैं तो मर जाउंगी। मैं मरना नहीं चाहती, एक ही तो जीवन मिला है। मुझे नहीं जाना स्वर्ग क्योंकि कोई भी स्वर्ग जाकर, लौट कर बताने नहीं आया है कि स्वर्ग कैसा होता है? और स्वर्ग जाने के लिए तो मरना जरुरी होता है। आज मैं मरने की बातें क्यों सोच रहीं हूं! आज तो मेरा रिर्पोट के बाद कोरोना का इलाज़ शुरु हुआ है। अभी तक तो शायद मौसमी बुखार खांसी का इलाज़ हो रहा था। 14 अप्रैल से मुझे बुखार था। 16 अप्रैल को सैंपल गया है। तब मुझे कोरोना था तभी तो रिर्पोट पॉजिटिव आई है। पिछले चार दिनों से मुझे कोरोना है, पर मुझे पता नहीं था तो मैं सरवाइव कर रही थी, रिर्पोट से पता चल गया तो मुझे घबराहट होने लगी। ऐसा मन में आते ही घबराहट तो चली गई पर बुखार नहीं गया। कैसा होता है कोरोना! चार दिन से यह अज्ञात शत्रु मेरे साथ है। 24 मार्च 2020 से सुन रही हूं ’कोरोना से डरना नहीं, लड़ना है!’ चार दिन से तो मैं भी लड़ रही हूं। अब तो मेरे पास दवा भी आ गई है। इस दिमागी डिबेट से मैं बुरी तरह थक गई। एक गिलास ओआरएस बना कर पिया। बुखार में सो गई। उठी तो दवाइयां कम वाली देेखीं, गिनी तो उनमें एक 3 गोली थीं। अब एक ही रह गई थी। एक दिन में एक खानी थीं। कल खाई थी और आज की खा चुकी थी। दिमाग में आया कि ये तीन ही दी हैं, कल तीसरी गोली खाने के बाद मैं ठीक होने लगूंगी। ये सोच कर मन शांत हो गया। रात का कैप्सूल और बुखार की गोली खाकर गहरी नींद आ जाती थी। खांसी आने पर खुलती पर फिर नींद लग जाती। सुबह ही नींद खुलती। उठते ही ब्लड प्रैशर की गोली खाकर कुछ समय बाद से कोरोना जंग शुरु। खाना अच्छा नहीं लगता पर थोड़ा थोड़ा खाती डॉक्टर के कहे अनुसार समय पर दवा लेती। भाप लेती, गरारे करती, ऑक्सीजन नापती। इस एकांतवास में, समस्याओं से भरे मन में प्रश्न बहुत उठते थे। मसलन बैड और ऑक्सीजन की कमी है अगर मेरी तबियत बिगड़ी, मुझे न मिला तो! फिर अपने आप मन को समझाती कि बैड पर लेटी हूं और घर के चारों ओर मैंने पेड़ पौधे लगा रखें हैं जो सूरज की रोशनी में फोटोसिंथेसिस करके ये ऑक्सीजन देते हैं। और तब से मेरा मुंह खिड़की की तरफ ही रहता। गहरी सांसे लेती, ज्यादा गहरी नहीं क्योंकि खांसी लग जाती। नींद में ही करवट बदली जाती। मच्छरदानी इस तरह फिट की थी कि कोई मच्छर नहीं घुस सकता था। जब तीसरे दिन तीन गोलियां खत्म हो गईं। शाम तक बुखार नहीं टूटा तो दुखी हो गई फिर मन को समझाया कि ये जो 5 दिन सुबह शाम खाने की 10 गोलियां हैं न, ये खत्म होते ही मैं ठीक हो जाउंगी। 6 मैं खा चुकी हूं अब दो कल और दो परसों फिर मैं ठीक हो जाउंगी। नीलम भागी क्रमशः


    


Wednesday, 19 May 2021

कोरोना पॉजिटिव रिर्पोट ..... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 7 Neelam Bhag

   

अब मेरी सोच की दिशा बदल गई कि रिर्पोट कब आयेगी? बुखार कम होते ही मैं अपने जीवन में जितने बुखार हुए हैं उनसे इस बुखार की तुलना करने लगी। हमेशा बुखार में दादी, अम्मा, पिताजी कोई भी अपना उल्टा करके हाथ की चार अंगुलियां माथे या गर्दन पर लगा कर बाकियों को बुखार है बताते, फिर थर्मामीटर से टैम्परेचर लिया जाता। ज्यादा होने पर बर्फ की पट्टियां माथे पर रखी जातीं। अब अपने टैम्परेचर का ध्यान खुद ही रखना। ज्यादा होने पर गोली खानी है। समय और टैम्परेचर लिखना है क्योंकि अनिल और अंकुर का फोन आता कब लिया? कितना था? बताना जो पड़ता नही ंतो सब परेशान! पहले के दूसरे बुखारों में कोई तबियत पूछने आता तो मैं मरीज़ा चुप लेटी रहती, दूसरा मेरी तकलीफ़ का वर्णन करता। बड़े दुलार से थोड़ा थोड़ा करके उनकी मर्जी का खिलाया, पिलाया जाता और साथ में एक डॉयलॉग चलता रहता ’खाले, बुखार में यह खाना अच्छा होता है। न खाने से बहुत कमजोरी आ जायेगी। फिर ठीक कैसे होगी?’ पर ये दुखदायी बिमारी समारोह तो जबरदस्ती देश दुनिया को मनाना पड़ रहा है। मुझसे पूछा जाता कि मैं क्या खाउंगी? मेरी तो खाने की कोई इच्छा ही नहीं होती थी। दिमाग में कोरोना जो बैठा हुआ था। मैं कहती,’’जो बनेगा खा लूंगी।’’कभी कहती तो वही बनता और तुरंत गर्मागर्म दिया जाता। मुंह का स्वाद इतना गंदा कि कुछ भी अच्छा नहीं लगता पर कोई नखरे देखने वाला नहीं, न ही कहेगा ’खाले’। पीठ में भयानक दर्द रहता, ऐसे लगता था कि कभी सीधे नहीं बैठ पाउंगी। थोड़ा सा खाकर लेट जाती, दिमाग में आता न खाने से कमजोरी बढ़ जायेगी फिर ठीक कैसे होउंगी! फिर बैठ कर खाती। डॉक्टर ने नारियल पानी पीने को कहा। गेट के आगे से साइकिल रिक्शा पर नारियल बेचने वाला तेजी से निकला।


मैंने पूरी ताकत से अंदर से आवाज लगा कर उसे रोका, नही ंतो वह चला जाता। मेरी आवाज से घर के लोग भी क्या हुआ? करते हुए बाहर आ गए। मैंने कहा,’’नारियल पानी लेना है। पहले तो सबने नारियल वाले को टोका कि भइया तुम बेचने आते हो या ब्लॉक में राउण्ड लगाने! उसने कहा,’’जी जब से करीना की बिमारी आई है, माल की बहुत र्शाटेज हो गई है। मैं ठेला रोके बिना आवाज़ लगाता जाता हूं। जिसे लेना है वो मुझे आवाज़ लगाता है। तब रुकता हूं। जिनके घर में करीना है उन्होंने रोज का नारियल बंधवा लिया है। उनको 80रु का एक, वैसे 100रु का एक, जहां ठेला खाली उसी समय घर चला जाता हूं। क्योंकि सरकार कह रही है घर में रहने से करीना की बिमारी नहीं होगी। हमने भी रोज का बंधवा लिया 80रु दे दिए। ये पीना अच्छा लगा क्योंकि इसका स्वाद हमेशा जैसा लगा, स्ट्रा से फटाफट पिया और लेट गई। हमेशा गर्म पानी पीने के कारण, नारियल पानी और ओ.आर.एस रुम टैम्परेचर पर पीने से अच्छा लग रहा था। काफी समय तक पेट भरा लगा। 18 अप्रैल को दोपहर को अंकुर ने बताया कि रिर्पोट पॉजिटिव हैं। डॉक्टर को दिखा दी है। वह दवाइयां लेकर आ रहा है। दवाइयों के साथ प्रिस्क्रिप्शन का भी प्रिंट आउट था। अब वह दवा के बाद गोलियों की गिनती भी पूछता ताकि मैं कोई गोली मिस न कर दूं। दूसरे दिन 12.30 बजे डॉक्टर से विडियो मीटिंग थी। अंकुर ने समझाया कि उसके दोस्त के मम्मी पापा की यही रिर्पोट थी अब वे दोनो ठीक हैं। जो भी तकलीफ़ है छिपाना नहीं। आज कोरोना दवा खाने का दूसरा दिन था, पर तबियत जैसी थी, वहीं रुक गई न कम हुई न बड़ी। टैम्परेचर लगातार था। डॉक्टर ने सुनकर कहा कि बुखार की गोली बुखार होने पर 7 घण्टे बाद ले सकती हो। नीलम भागी

 क्रमशः       

  


Tuesday, 18 May 2021

कोेरोना टैस्ट का इंतज़ार ..... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 6 Neelam Bhag

 


आइसोलेशन में आज दूसरा दिन था यानि 15 अप्रैल और टैस्ट होगा 19 अप्रैल को, इतने दिन! बार बार दिमाग में बुखार कम होने पर एक ही प्रश्न उठ खड़ा हो रहा था कि अगर कोरोना पॉजिटिव हुआ तो! टी.वी. का प्लग तो मैंने कल ही निकाल कर रिमोट भी कहीं रख दिया ताकि कोई कोरोना की न्यूज़ न देख लूं। मोबाइल में कोरोना शब्द देखते ही हटा देती थी। फेसबुक में कोई अपने की अस्पताल के बैड पर कोरोना से जंग करते हुए, या किसी की अर्थी की पोस्ट लगाता तो वहां मैं अपने को देखने लगती। मोबाइल ही साथी था उसे ही ऑफ करना पड़ता। फिर खिड़की की तरफ मुंह करके गहरे सांस लेते हुए बाहर देखती हुई बुखार में सो जाती। उस समय गगन सूरी की बात याद आती जब मैंने उसे कहा,’’ गगन 24 मार्च के बाद आज 9 फरवरी को मैं पहली बार किसी आयोजन में आईं हूं, कोरोना के डर से न कहीं जाती, न बाहर का खाती।’’यह सुनते ही वह हंसते हुए बोला,’’दीदी मुझे और ये जितनी बैठीं हैं न इन सबको कोरोना हो चुका है।’’ वे शायद 4 या 5 थीं। सुनकर मुझे बड़ा अच्छा लगा कि 5 लोग तो कोरोना से जीत कर मेरे सामने बैठे हैं।’’ मेरे अंदर हिम्मत आती थर्मामीटर लगाती। ऑक्सीजन देखती। उसी समय मैंने सोच लिया था कि ठीेक होने पर ही पोस्ट लगाउंगी। और टैस्ट के लिए उतावली हो जाती कि बस किसी तरह टैस्ट हो  जाए। अंकुर का फोन आया कि 16 को दोपहर 2 और 3 बजे बीच आपका टैस्ट होगा। बड़ी मन को तसल्ली हुई। घर के सदस्य चिन्तित से गेट से बाहर लगे पेड़ पौधों में पानी लगाते, फल सब्जी खरीदते, सभी दिख जाते। बस अम्मा नहीं दिख रही थी। उत्सव फोन पर हाल पूछता। उसके मामा भी हॉस्पिटल में एडमिट थे। इसलिये भाभी भी बहुत परेशान थीं। टी.वी. चलने तक की आवाज़ नहीं आती थी। अगले दिन 2 बजे से टैस्ट के लिए इंतजार किया। 3 बजे अंकुर ने फोन पर पूछा कि मेरा टैस्ट हो गया? न सुनते ही फोन बंद। फिर अंकुर का फोन आया, बोला,’’7 बजे हो जायेगा। चिंता नहीं करो आज जरुर हो जायेगा।’’ उसने मुझे उसका फोन नम्बर भी दे दिया। 7 बजे भी नहीं आया। 7.30 बजे मैंने फोन किया। उसने कहा कि आज आपका टैस्ट होगा, जितनी मर्जी देर हो जाये। भाप लेकर, बुखार की गोली खाकर टैस्ट के इंतजा़र में पड़ी रही। बिना प्यास के भी एक मग गर्म पानी का करके घूट घूट पीती रहती थी, अब भी पीती रही। रात दस बजे के बाद मैं सो गई। अंकुर का फोन आया, बोला बाहर सैंपल के लिए खड़े हैं। लाइट तो रुम की 24 घण्टे जलती रहती थी। मैंने परदा हटा कर उसे आने को कहा। मैंने सोच लिया था कि मैं उसे रुम में नहीं बुलाउंगी। जब मैं अपने घर वालों के नॉक करके जाने के बाद खाना उठाती हूं। कोई जाली लगी खिड़की के पास बात करने आता है तो मैं उसे कहती हूं, दूर खड़े हो। क्योंकि मेरा बैड खिड़की से सटा हुआ है। ये भी तो किसी का बेटा है। ऐसे कठिन समय में घर से सैंपल ले रहा है। उसने अभी गेट खोल कर अंदर कदम रखा ही था कि किसी का सैंपल लेने के लिए उसे फोन आया। उसने उसका सेक्टर पूछा फिर कहा कि यहां से पास हैं। आधे घण्टे में पहुंच जाएगा। वो फोन कर रहा था, इतनी देर में मैंने बाहर की लाइट जला कर कुर्सी खींच कर दरवाजे के बीच में रखी। हाथ में आधार कार्ड लेकर बैठ गई। वो तैयारी करने लगा। उसने तैयारी की और बोला,’’मेरी तरफ पीठ कर लो, दस्ताने वाले हाथों से मेरी गर्दन की पोजिशन बना कर कहा कि हिलना नहीं। सैंपल लिया और चला गया। नीलम भागी क्रमशः   


Sunday, 16 May 2021

बदसूरत सन्नाटा ! ..... मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 5 Neelam Bhagi

पिछले लॉकडाउन में हमारे ब्लॉक के स्क्वायर में सुबह शाम बुर्जुग मुंह पर मास्क लगा कर, आपस में एक मीटर से ज्यादा की दूरी रख कर सैर करते थे। तब उनको बतियाना भी ऊंची आवाज में पड़ता है ताकि उनकी आवाज लाइन में चौथे नम्बर पर पीछे चल रहे साथी को भी पहुंच जाये। बराबर चलेंगे तो किसी साथी, गाड़ी या पार्क की ग्रिल को टच कर सकते थे। हमेशा मेरी नींद उनकी बातों से खुल जाती थी क्योंकि मेरा कमरा गेट के पास है और खिड़की के साथ मेरा बैड है। अपने टाइम टेबल के अनुसार बच्चे साइकिल चलाते या सामने पार्क में खेलते। पार्क की हट में बैठ कर ब्लॉक के स्कूल कॉलिज जाने वाले, वहां बतियाते पर मास्क सबके लगा होता। पर इस कोरोना लहर में तो इस समय लॉकडाउन भी नहीं लगा था, वीकएंड पर कर्फ्यू लगता था पर अब हमेशा इतना सन्नाटा!! बद्सूरत सन्नाटा रहता है। खिड़की से जहां तक मेरी नज़र जाती थी, कोई दिखाई ही नहीं देता था। मौसम के बुखार तो कभी कभी होते ही रहते थे। ये कैसी बिमारी जिसमें रोगी का साथी मोबाइल और तन्हाई है। अब मैं कोरोना के बचाव के जो भी उपाय हैं बड़ी शिद्दत से करने लगी। जो काढ़ा दिया जाता उसे पीती ताकि मुझे कोरोना न हो। टैस्ट में मेरी रिर्पोट नैगिटिव आए और एकांतवास न करना पड़े। दिन में दो बार भाप ली और एक बार गरारे किए। गरारे करना बुखार में बहुत थकाऊ लग रहे थे इसलिए गर्मी में भी मैंने गरम पानी पीना शुरु कर दियां। कभी ओ. आर. एस. मिला सादा पानी लेती। रात ग्यारह बजे गेट खुला हेमू के डैन्टिस भइया आये। ऊपर जाकर मिल कर वे उसके पास में रहने वाले दोस्त संतोष के घर चले गए। मैंने चैन की सांस ली कि इसका कोई अपना आस पास तो है। मैंने अंजना को फोन पर उसके आने की सूचना दे दी। 92 साल की अम्मा दिन भर कमरों से बाहर घर में पेड़ों की छाया में बैठती लेटती हैं, आज वे बाहर नहीं दिखीं। वे कल तक इसी रुम में मेरे साथ थीं। मुझे उनकी बहुत फिक्र होने लगी। कर तो मैं कुछ सकती नहीं थी। मैं भी बुखार की गोली खाकर सो गई। आधी रात को एम्बूलैंस के हॉर्न से मेरी नींद टूटी, दिमाग में एकदम अम्मा आई, दिल की धड़कन बढ़ गई। एम्बूलैंस हमारे गेट के आगे से गुज़र कर, कुछ दूर जाकर किसी के गेट के आगे जाकर रुकी। और मैंने ट्वीट किया ’कर्फ्यू के कारण सड़के विरान हैं, ऐसे में क्या एम्बूलैंस का हॉर्न डर पैदा करने के लिए बजाया जा रहा है।’नींद तो चली गई और तरह तरह के विचार आने लगे। कोरोना कैसी बिमारी है? जिसमें मरीज़ जिनसे प्यार करता है उनसे स्वयं ही अलग होकर, अकेला बिमारी से लड़ता है। परिवार रोगी के लिए हर समय चिंतित रहता है। दिमाग में डिबेट चलने लगी। मेरा कोरोना टैस्ट कब होगा? जल्दी हो। फिर रिर्पोट पता नहीं कितने दिन में आयेगी? अगर कोरोना हुआ तो!! मैं तब क्या करुंगी? फिर अपने आप जवाब भी आने लगे कि क्या कर सकती हूं जो डॉक्टर कहेगा वो करुंगी। मैंने भी तो मैडिकल एंटरैंस टैस्ट की खूब तैयारी की थी। पर मैं मैरिट लिस्ट तो छोड़ो वेटिंग लिस्ट में भी नहीं थी। जिनका मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हुआ उन्होंने जी तोड़ मेहनत करके डिग्री ली। डॉक्टर के अनुसार चलना मेरा काम है वो मैं करुंगी। वैसे भी मैं बिमार होने पर डॉक्टर की लिखी दवा खाती हूं। कभी उस दवा के बारे में इंटरनेट में नहीं पढ़ती कि उसके क्या फायदे हैं और साइड इफैक्ट हैं।  नीलम भागी क्रमशः            


Saturday, 15 May 2021

होम आइसोलेशन में.... मैं कोरोना से ठीक हुई Part 4 Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Neelam Bhagi

इतने में घर सैनेटाइज़ करने वाले आ गए। मैं और अम्मा एक ही रुम में रहते हैं जैसे ही ये रुम सैनेटाइज़ हुआ। अम्मा को दूसरे रुम में शिफ्ट किया क्योंकि मुझे मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं लग रहा था न बुखार न खांसी था । पिछली रात को मुझे बार बार सू सू के लिए जाना पड़ रहा था। शरीर में बहुत दर्द था। अपनी जरुरत का सब सामान और माइक्रोवेव रख लिया। मैंने होम आइसोलेशन कर लिया था। अब अंकुर को फोन किया और बताया कि हेमू कोरोना पॉजिटिव है। मुझे न तो खांसी है, न ही बुखार है। इस तरह से मेरी तबियत आज तक खराब नहीं हुई। उसने कहा कि बाद में सुनुंगा, पहले कोरोना टैस्ट के लिए आपका रजिस्ट्रेशन करवा दूं। कुछ देर में उसका फोन आया कि घर से सैंपल लेने के लिए 19 अप्रैल को 2 और 3 बजे के बीच में आयेंगे। और उस दिन 14 अप्रैल था। फोन पर 900रु की रसीद आ गई और समय आ गया। अंकुर का फोन आया। वह बोला,’’ शाबाश इस बार आपने जरा जल्दी बता दिया कि आपकी तबियत ख़राब है।’’ मैंने उसे नहीं बताया कि आज तीसरा दिन है। उसने कहा कि वह कोशिश कर रहा है कि टैस्ट जल्दी हो जाए। डॉक्टर से ऑन लाइन बात करके आपकी दवाइयां लेकर आ रहा हूं। मैंने पूछा,’’डॉक्टर तेरी पहचान का है!’’ वो बोला,’’नहीं, हमारे ऑफिस में किसी को कोरोना हुआ था, उसके मम्मी पापा को भी उसी ने ठीक किया था। हमारे ऑफिस में कोई बिमार जब ठीक होता है तो सब उसका हाल चाल पूछते हैं अगर उसने डॉक्टर की तारीफ़ कर दी तो डॉक्टर का फोन नम्बर अपने पास सेव कर लेते हैं हम लोगों के पास छुट्टियां बहुत कम होती हैं, इसलिए।’’उसने फोन रख दिया। बाहर अम्मा घबरा रहीं उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने रुम से बाहर स्टूल रख दिया। उस पर मेरा खाना पीना रख दिया जाता, मैं मास्क लगा कर बाद में उठा लेती। खा, पी के बर्तन साफ करके अपने पास रख लिये। मेरी पूरी कोशिश थी कि घर के बाकि सदस्यों को मेरे रुम की हवा भी न लगे। ये रुम गेट के सामने है। उसके आगे पार्क हैं। क्रास वेंटिलेशन का पूरा ध्यान रखा। मुझे बुखार भी लगने लगा। अंकुर का फोन आया कि उसी डॉ. के प्रिसक्रिपशन की दवाइयां लेकर आ रहा है। मैंने कहा कि तूं घर में नहीं आना, गेट पर रख देना। वो दवाइयां, स्टीमर, थर्मामीटर, ऑक्सीमीटर और जरुरत की सब चीजें जो मैंने सोची भी नहीं थीं, ले आया। मोबाइल में डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन भी आ गया। यहां मैं दवा का नाम नहीं लिखूंगी क्योंकि कुछ लोग अपना इलाज़ स्वयं करने लग जाते हैं। अंकुर ने कहा,’’पहले टैम्परेचर लो, बुखार होने पर वो गोली लेना। मैंने थर्मामीटर लगाया सौ से ज्यादा बुखार था। दवा ले ली। सो गई। अंकुर दवा के समय के बाद पूछता कि मैंने फलां दवा ले ली। अनिल दिन में दो बार फोन करता कि मैंने गरारे किए, भाप ली। यशपाल रोज ताजा मुरंगा(सहजन) का सूप बना कर देता। मैं बर्तन स्टूल पर रख देती। उसमें जितना मैं फोन पर अंजना को बोलती, उतना खाना डाल दिया जाता, मैं बाद में मास्क लगा कर उठा लेती। स्वाद तो मुंह में था ही नहीं इसलिये बैंगन शिमला मिर्च सब एक से ही थे। खिड़की के पास लेटी हुई पेड़ो को देखती रहती और गहरी सांसंे लेती। ज्यादा गहरी नहीं क्योंकि खांसी आने लगती थी। कोराना का टैस्ट हो जाये इसका बेसब्री से इंतजार था। नीलम भागी क्रमशः          


Thursday, 13 May 2021

आस पास बताएं, छिपाएं नहीं, मैं कोरोना से ठीक हुई Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 3 Neelam Bhagi

  

9 अप्रैल को पता चला कि हेमू को बुखार है। कोरोना की दूसरी लहर का भय तो फैल ही रहा था। पर इसका तो वैक्सीनेशन हो चुका था। साधारण बुखार समझ कर हमने दवा आदि के लिए फोन किया। वह बोला कि उसका वैक्सीनेशन बहुत पहले हुआ था। उन्हीं डॉक्टर से इलाज चल रहा है। टैस्ट हुआ है अभी रिर्पोट नहीं आई। जो दवा मंगवाता ला देते। खाना वगैरहा नॉक करके दरवाजे से बाहर रख देते, वह उठा लेता। रिर्पोट न आने से कोरोना की आशंका से भयभीत थे। मुझे भी पता नहीं क्या हो रहा था? थकान बहुत लगने लगी थी, शरीर में दर्द रहता। अंजना के बेटे का 17 अप्रैल तक लॉ के पेपर थे। वह उसमें व्यस्त और दिन में चार बार बना कर हेमू के लिए खाने को लेकर दो माले ऊपर जाना। रात को उसका फोन अंजना को आया। वह बोला,’’आंटी आज तो घर में आग लगने से बच गई। मैंने गैस पर दूध रखा। दूध जल के पतीला काला हो गया। मुझे जरा भी गंध नहीं आई।’’ये सुनते ही अंजना ने कहा कि तुम दिन भर अंदर बंद रहते हो। अपने घर से किसी को बुला लो, तुम अपना दरवाजा खुला रखना, उसे सामने रुम दे देगें, वह तुम्हें दूर से देखता तो रहेगा।’’ उसने जवाब दिया,’’आंटी 6 दिन तो निकल गए और 14 दिन का होम क्वारेंटाइन होता है।’’ उसने पूछा,’’तुम्हारी रिर्पोट पॉज़िटिव है!!’’उसने जवाब दिया,’’रिर्पोट नहीं आया है। आजकल पॉजिटिव बहुत आ रहा है। हमने इसलिए बोला।’’खै़र जब रिर्पोट आई तो वह पॉजिटिव थी। अंजना ने सुनते ही उसके घर फोन किया कि आप यहां आइये। आप ये तो देखते रहेंगे कि इसकी हालत में सुधार है या बिगड़ रही है।’’उसका भाई बोला कि हेमू गुस्सा कर रहें हैं। वे कह रहें हैं कि वो मैनेज़ कर लेंगे। हम परेशान न होंए।’’अंजना ने हेमू के दोस्त संतोष से फोन पर कहा,’’इसके घर से किसी को बुलाओ। कोई इसके पास होना चाहिए। मेरे बेटे के इग्जाम हैं। घर में सीनियर, सुपर सीनियर सिटीजन हैं। पूरा घर टैंशन में है कि इसे कोई देखने वाला नहीं है। बिमारी ही ऐसी है। मेड को घर में कोराना का बताया, वह भी 3 मई तक छुट्टी पर है। काम और बढ़ गया।’’ कुछ देर में संतोष डिस्पोजेबल प्लेट कटोरों का बंडल दे गया। 

 मेरी 92वें साल में चल रही अम्मा आजकल पूजा पाठ से पहले, सुबह पूरी अखबार चाट जाती हैं। घर में  कोरोना आने के कारण उसकी खबरें और बांचने लगी। मसलन ’होम आइसोलेशन में अचानक तबियत बिगड़ी, दो दिन बाद शव मिला’ ऑक्सीजन और बैड की कमी आदि। ये सुनते ही अंजना ने  फिर उसके भाई को फोन किया कि कब पहुंच रहे हो? वो बोला,’’देखते हैं।’’परेशान तो वो भी होंगे, हमारी भी मजबूरी थी। हमने सोचा कि रात को पटना से राजधानी पकड़ कर सुबह कोई आ जायेगा। पर कोई नहीं आया। परेशान सी अंजना मुझसे बोली,’’मैं दलिया हेमू के रुम के आगे रख आई हूं। दरवाजा खटखटाया उसने नहीं खोला। मैंने हेमू को फोन किया, उसने कॉल नहीं ली। मैंने मैसेज किया ,ब्लू टिक नहीं। संतोष को फोन किया। उसने कहा,’’ मैं भी करता हूं।’’ थोड़ी देर में हेमू का कमज़ोर आवाज में फोन आया,’’जी आंटी दलिया ले लिया हूं।’’ सबने चैन की सांस ली। थोड़ी देर में संतोष का फोन आया। उसने कहा,’’हेमू के भइया पटना से फ्लाइट पकड़ कर रात 11 बजे यहां पहुंच जायेंगे। हेमू को नहीं बताइएगा।’’ सुन कर मन को शांति मिली कि अब कुछ ही घण्टों की बात है। 

 इस एपिसोड के बाद मैंने महसूस किया कि मेरी तबियत तो बहुत अजीब हो रही है। नीलम भागी क्रमशः 

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Tuesday, 11 May 2021

मैं कोरोना से ठीक हुई नीलम भागी Be Positive and follow covid 19 protocols! I have survived covid! Whay can"t you? Part - 2 Neelam Bhagi

बे वजह तो मैं कहीं नहीं जाती थी लेकिन जहां जाना होता वहां जाती। पर्स में सेनेटाइजर और मास्क जरुर रहता। जो कुर्ता पहनना होता उसकी जेब में भी मास्क पहले रखती ताकि गेट से बाहर निकलते ही मास्क लगा लूं, मास्क भूलने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता! 34वां गार्डन टूरिज्म फैस्टिवल र्गाडन ऑफ फाइव सेंसेज उद्यान मेले से गार्डिनिंग का सामान और बीज ले आई। हुनर हाट दिल्ली घूम आई और शिल्प हाट नौएडा में आयोजित सरस मेले में भी गई। इन मेलों में जाने का मकसद र्गाडनिंग के लिए कुछ नया देखना था क्योंकि लॉकडाउन में पौधों का श़ौक़ लग गया था। सर्दियों में टैरेस गार्डिनिंग शुरु की जिसमें किचन वेस्ट से हरी पत्तेदार सब्ज़ियां उगाईं, जिनका रिज़ल्ट गज़ब का रहा। अब मैं गर्मियों की सब्ज़ियां लगाने में व्यस्त हो गई जिससे कोरोना के आंकड़े देखने का याद ही नहीं रहता था। 7 मार्च को मैंने वैक्सीन भी करवा लिया। दूसरी डोज़ 8 अप्रैल को लगवाने को कहा गया। आधा घण्टा वैक्सीन लगाने के बाद बिठा कर कहा कि घर जाकर अगर बुखार लगे तो बुखार की गोली खा लेना। मुझे कुछ नहीं हुआ। सरस आजीविका मेला देखने जाती तो अंधेरा होने से पहले कल्चरल प्रोग्राम बीच में छोड़ कर, आटो पकड़ कर घर आती। मास्क उतार कर हाथ धोकर, जल्दी से छत पर जाकर पौधों में पानी लगाती कि मेरे पौधे न मर जायें क्योंकि इस बार गर्मी जल्दी आ गई। सुबह शाम धूप न होने पर टैरेस पर पौधों में मस्त रहना, मेरी आदत बन गई। नीचे उतरते समय मेरे हाथ में कोई हरी सब्ज़ी होती। 13 अप्रैल को मैं आखिरी बार छत पर गई थी। तापमान ज्यादा होने पर भी, तब भी मेरे कंटेनर में पालक, मेथी, सौंफ और लाल चौलाई थी। कैसे और कब तक ये चलेंगी? उसके बाद मुझे ये लिखना था। भिंडी और टमाटर खूब लगे हुए थे। बैंगन मिर्च के पौधे बढ़ रहे थे। अचानक मुझे अपने पर गर्व होने लगा कि मैंने जो भी पौध ट्रांसप्लांट किए, उनमें से एक भी पौधा मरा नहीं। मुझे इसका वीडियो बनाना चाहिए। 8 अप्रैल को मैसेज़ आया कि दूसरा टीका भी लगवा लो। मैं सेकेण्ड डोज़ के लिए गई तो कह दिया कि दो हफ्ते के बाद लगेगा। मैं सीढ़ियों पर थी हमारे सेकण्ड फ्लोर पर रहने वाले हेमू ने नमस्ते की। मैंने पूछा,’’ अरे बेटा, ऑफिस नहीं गए!’’ उसने कहा कि नहीं मैं घर से काम कर रहा हूं। मैंने कहा,’’जब तुम्हारे पास टाइम हो एक वीडियो बनाना है।’’ उसने जवाब दिया कि अभी बना देता हूं। फिर काम पर बैठ जाउंगा। मैं तो किचन वेस्ट लेकर अपने पौधों के पास जा ही रही थी। सीढ़ियां खत्म होते ही सामने आठ ट्रे पौदीने की, और आगे पौधों में टमाटर लदे हुए। एक महीने के भिंडी के पौधे जिनमें 4 पत्ते और 3 भिंडिंयां। वो हैरान होकर कहने लगा,’’खाद बीज तो बहुत बढ़िया हैं।’’ मैंने जवाब दिया कि खाद किचन वेस्ट और पत्तियों से बनाई है, बीज तो बढ़िया ही लेती हूं। मैंने उसे अपना मोबाइल दिया। वो बोला कि वह उसके मोबाइल से ही बनायेगा। दस मिनट का उसके पास समय था। मेरा अपना अनुभव था कहीं से पढ़ना सुनना नहीं था। फटाफट बना कर, वह जाते जाते बोला कि उसकी मीटिंग है वो वीडियो सैंड कर देगा। पानी लगा कर मैं नीचे आकर घर के कामों में लग गई। पर मेरे पास अधूरे वीडियो आए। उसने जो भी कारण बताया मुझे समझ नहीं आया। ब्रेक में उसने आकर मुझे सिखाया जब वीडियो लोड होने लगा तब मुझे ध्यान आया कि इसने मास्क नहीं लगा रखा, सोचा जल्दी में आया है, घर में कौन मास्क लगा कर ऑफिस का काम करता है!! मैं तो अपने घर में हूं घर में कौन मास्क लगा कर घूमता है!! वीडियो लोड होते ही वह चला गया। वहम तो आया पर साथ ही याद आया कि इसने तो सैंपल के समय ही वैक्सीन करवा लिए थे। क्रमशः         


Monday, 10 May 2021

जरुरत है सिर्फ हौंसले की, तुम इसे बनाए रखना! मैं कोरोना से ठीक हुई Be positive and follow covid 19 protocols!I have survived covid! Why can't you ? Part 1 Neelam Bhagi

कोई बात ऐसी बात होती है जो हमें जरुरत के समय बहुत काम आती है। हुआ यूं कि 24 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगने के बाद, मैं पहले दिन ही स्टोर पर गई। उसके बाद होम डिलीवरी से सामान आने लगा और मैं बिल्कुल भी घर से बाहर नहीं निकली। दिसम्बर में मेरे भानजे की शादी लोकल ही थी। उत्कर्षिणी   ने कहा,’’ आप नहीं जाओगी।’’मैं नहीं गई। इन दिनों लिखने और पेड़ पौधे उगा कर ही, अपने हिस्से का वायु प्रदूषण कम करने में लगी रही और अखबार टी.वी. में कोरोना की खबरों पर ही ध्यान देने लगी। 26 जनवरी को मैं पहली बार उन कार्यक्रमों में गई, जहां जहां पैदल जा सकती थी। पूरे नियम कायदों का पालन करते हुए। मैंने महसूस किया कि लोग तो आ जा रहें हैं और मैं सड़क पर चलना भूल रही हूं। घर आते ही मैंने अंकुर को फोन पर बताया कि आज मैं 26 जनवरी मनाने गई थी। उसने सुनते ही कहा कि मैं आपको लेने आ रहा हूं। अदम्य शाश्वत भी आप से मिलने के लिए बहुत बेचैन हैं, अब यहां मना नहीं कर सकतीं। वैक्सीन लगने के बाद आप कहीं भी आना जाना। इतने दिनों बाद उनके घर गई वे भी बहुत खुश हुए। वहां से 2 दिन बाद लौटी। फिर मैं कहीं नहीं गई। 

    9 फरवरी को संजय वर्मा ने सुंदरकाण्ड के पाठ के आयोजन पर बुलाया था। इन दिनों कम लोगों को बुलाया जाता है इसलिए गई और मेरे घर से तो पैदल का रास्ता है। 26 जनवरी और अंकुर के घर जाने से कोरोना का हौवा थोड़ा कम हो गया था। यहां भी मास्क लगाये चली गई। सामने ही गगन सूरी खड़ा था। उसने देखते ही पैर छुए और बोला,’’दीदी आओ पण्डाल में बैठते हैं। अंदर बहुत लोग हैं। सोशल डिस्टैंसिंग दिमाग में आते ही मैं उसके साथ चल दी। एक मेज के चारों ओर उसकी कजिन बैठीं थी वहां उसने मेरे लिए कुर्सी लगवाई। वेटर कॉफी, कोल्ड्रिंक और स्नैक्स सर्व लगे। मेरे मना करने पर गगन पूछने लगा,’’दीदी आपको जो पसंद हो, मैं प्लेट लगवा कर लाता हूं।’’ मैंने धीरे से कहा,’’गगन 24 मार्च के बाद आज मैं पहली बार किसी आयोजन में आईं हूं, कोरोना के डर से न कहीं जाती, न बाहर का खाती।’’सुनते ही वह हंसते हुए बोला,’’दीदी मुझे और ये जितनी(कजिन की ओर इशारा करके) बैठीं हैं न इन सबको कोरोना हो चुका है।’’ वे शायद 4 या 5 थीं। सुनकर मुझे बड़ा अच्छा लगा कि 5 लोग तो कोरोना से जीत कर मेरे सामने बैठे हैं। मैंने पूछा,’’गगन ठीक कैसे हुआ?’’वह बोला,’’दीदी मम्मी जिस डॉक्टर से इलाज लेती थीं। वही अब हमारे फैमली डॉक्टर हैं। कुछ भी हो हम उन्हीं के पास जाते हैं। लॉकडाउन में उन्हें फोन किया। उन्होंने जैसे कहा वैसे किया। मैं तो कोरोना सुन कर डर गया था। उन्होंने कहा कि डरना नहीं है। घर में ही रहो, नारियल पानी पीना है। उनकी दवा नियम से खाई। ठीक हो गये। इतने में गगन की बेटी अशिंका आई। गगन ने मेरा परिचय करवाते हुए कहा,’’तूु पूछती है न मेरी राइटिंग इतनी सुंदर कैसे है? इन दीदी ने बनवाई थी।’’अब मेरा कोरोना का भूत उतर गया था। मैंने बहुत स्वाद से खाया। अगले दिन से मैं मास्क लगा कर, पर्स में सेनेटाइजर रख कर, आने जाने लगी। नीलम भागी क्रमशः