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Tuesday 19 October 2021

चामुण्डा देवी 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 15 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

कांगड़ा में हमारे साथियों ने ढोलक का बन्दोबस्त कर ही लिया। इस कारण से कांगड़ा देवी से निकलने में थोड़ा शाम गहराने लगी। लेकिन अंधेरा होने से पहले जितना भी रास्ता देखा, उसे देख कर यही कहा जा सकता है कि प्रकृति ने अपना भरपूर सौन्दर्य यहां बिखेरा है। बाहर अंधेरा होते ही बस के अंदर होने वाले सत्संग का आनन्द उठाने लगी। अशोक भाटी आरती के बाद हमेशा की तरह जल और मेवे का प्रशाद देने लगे। बाकि भजन गाने वालों का  साथ तालियां बजा कर दे रहे थे। निक्की का गाया भजन ’भोले बाबा मेरी गली आया न करो, प्यार वाला चिमटा बजाया न करो’ जैसे ही पूरा हुआ बाले ने उससे ढोलक लेकर कहा,’’मेरे गाए भजनों का तो कोई मतलब होता है।’’मैंने भी मंजीरा बजाना बंद करके उनसे पूछा,’’कैसे भजन गाती हो?’’ उसने जवाब दिया,’’टीका बिंदी वाले नहीं।’’और गाने लगी’’मुझे बेटा दीजे मां, मुझे दुनियां ताने मारे।’’

उसका साथ इस भजन में सभी महिलाओं ने दिया, पर कोई नाचा नहीं। अब तक यात्रा में वह खूब गातीं थीं, मैंने कभी शब्द अर्थ पर ध्यान ही नहीं दिया। मैं जानतीं हूं कि ये श्रद्धालु कवि, गीतकार, साहित्यिक यात्री नहीं हैं। जो भी सरल शब्दों में भक्तिभाव से गाते हैं वोे इनके मन के उद्गार हैं। जिसमें सबका स्वर मिलने सेे बस के अन्दर अलग सा समां बंध जाता है। 26 किमी. का रास्ता बहुत जल्दी बीत गया। बस रुकते ही हम लोग मंदिर की ओर चल पड़े। वहां आरती शुरु हुई। कानों में धुन पड़ते ही अपने आप हाथ जुड़ गए। आवाज़ की दिशा में मेरी भी गति तेज हो गई। लोग आते जा रहे थे और लाइन में जमीन पर बैठते जा रहे थे। पीछे कुर्सियां लगी हुईं थीं। एक कुर्सी खाली थी मैं भी उस पर बैठ गई। आरती के स्वर में तालियों से साथ देने लगी। जो मैंने उस समय आरती में महसूस किया, उसे नहीं लिख सकती। मां के भक्त आरती में शामिल होने के लिए आते जा रहें है। जहां जगह मिलती है। वहीं से साथ दे रहें हैं। सबकी श्रद्धा से वहां एक अलग सा भाव छा गया था। आरती के समापन पर तंद्रा टूटी। सब अपने आप दर्शन के लिए लाइन में लग गए। मेरे दिमाग पर तो आरती ही छाई रही। अचानक मुझे याद आया कि आरती में तो हमारी बस के शैतान बच्चे केशव और कान्हा भी ताल दे रहे थे और मैंने दर्शन किए। पूरा मंदिर परिसर घूमा। 


हिमाचल के कांगड़ा जिले में स्थित चामुण्डा देवी का मंदिर समुद्र तल से 1000 मी. की ऊंचाई पर है। धर्मशाला से यह 15 किमी. की दूरी पर बंकर नदी के किनारे पर यह मंदिर, अपने आसपास के प्राकृतिक सौन्दर्य से भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। चामुण्डा देवी मुख्यतः काली माता को समर्पित है। माता काली शक्ति और संहार की देवी है। जब जब धरती पर कोई संकट आया है। तब तब माता ने दानवों का संहार किया है। असुर चण्ड मुण्ड को मारने के कारण माता का नाम चामुण्डा पड़ गया है। मंदिर के गर्भ गृह कि प्रमुख प्रतिमा तक सभी आने वाले श्रद्धालुओं की पहुंच नहीं है। मंदिर के पीछे एक गुफा है जिसके अंदर भगवान शंकर का प्रतीक शिवलिंग है। मंदिर के पास ही देवी देवताओं की अद्भूत कलाकृतियां हैं। यहां पहुंचने के रास्ते में अंधेरा होने से पहले जो मैंने हरी हरी वादियों में मनमोहक प्राकृतिक नज़ारे देखे, वो मेरे जेहन में बस गए हैं।

बाहर आने पर देखा यहां नवरात्रों की तैयारियां चल रहीं हैं और मेला लगा हुआ है। बड़ी प्यारी हवा चल रही थी। हम पैदल बस स्टैण्ड की ओर चल दिए। वहां हमारी बसे खड़ीं थीं। और गर्मा गर्म खिचड़ी का प्रशाद तैयार था। मैं चाय की दुकान की कुर्सी पर बैठ कर हवा खाने लगी। रानी हमेशा दोनों समय मुझसे पूछने आती,’’दीदी आपने प्रशाद ले लिया।’’मैं प्रशाद बड़े स्वाद से खा रही थी। अशोक भाटी एक किलो दहीं की थैली लेकर आए बिना किसी औजार या दांतो की मदद से हाथ से थैली खोली और मेरी खिचड़ी में दहीं डाला। इधर सुस्वाद प्रशाद का आनन्द लिया जा रहा था। मौसम ठण्डा होता जा रहा था और यात्री पथरीली जमीन पर माता के भजनों पर खूब नाच रहे थे। क्रमशः        



  


4 comments:

kulkarni said...

kya baat bahut bhadia hai , nice written and nice experience

Unknown said...

Bhahut sundar jai mata di, ��

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद आभार कुलकर्णी जी

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद आभार