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Saturday, 31 December 2022

बच्ची रोती रही और माँ सोती रही! साहित्य संर्वधन यात्रा भाग 2 नीलम भागी sitamarhi to Nepal Yatra Part 2 Neelam Bhagi

 


पानी बेचने वाला आया तो मैंने दो बोतल रेल नीर की खरीदी। उसने 40रू मांगे। मैं देने लगी तो सभी कोरस में बोले,’’15रू की बोतल के तुम 20रू कैसे लोगे?’’मुझे हमेशा प्लेटर्फाम पर 15रु की बोतल मिलती थी। ट्रेन में 20रु मांगता तो मैं दे देती थी। अब उसने 100 में से 30रु काट कर मुझे 70रु लौटा दिए। एक बोतल भुवनेशजी के पास रखी तो वो बोल कि उनके पास भी दो लीटर. है। मैं बोली,’’ऊपर ही रखो, मैं ले लूंगी। अब वे डिनर के लिए नीचे आए तो बहुत परेशान लगे। पूछने पर बताया कि दिल्ली एमसीडी के चुनाव में वे बहुत व्यस्त हैं और साहित्य संर्वधन यात्रा के लिए 5 अगस्त से स्वीकृति दी हुई है। सीमित संख्या है जाना जरुरी है। उनके लगातार फोन आ रहे थे। मैंने कहा कि अब यात्रा में मन लगाओ। लौटने पर फिर वहाँ संभाल लेना। आपको मैंने मंच संचालन से लेकर कार्यक्रमों की कुशलता से व्यवस्था संभालते हुए देखा है। खाना खाकर वे जाकर सो गए। सुन्दरी परिवार ने मैसेज किया कि खाना सब यहीं खाकर जायेंगे। सब आते रहे खाते रहे, सुंदरी सबके साथ खाती रही। कुल 16 लोगों ने खाया। नीचे कचरे का ढेर लग गया। सामने फोटो लेती तोे लड़ाई का डर था। सोचा कि इनके सोने पर लूंगी। सुन्दरी ने लाइट बंद की। 4 न0 पर सुन्दरी दो बेटियों के साथ सो गई। छोटी बेटी के हाथ में नर्सरी राइम लगा कर मोबाइल दे दिया। 5 न0 पर भाई ने खिड़की की तरफ सिर किया और बहन ने रास्ते की ओर और 6 न0 पर भी इसी तरह दो लोग सो गए। मेरा तकिया पता नहीं कब उनके पास पहुंच गया। पर इनके पास 6 तकिए थे। बराबर के कैबिन में चर्चा भी चल रही थी और लाइट भी जल रही थी। चर्चा का विषय था अमुक गाँव में कितने आई.ए.एस, पी.सी.एस. और आई.आई.टी आदि में निकले हैं। नर्सरी राइम की धुन में मैं सो गई। बच्ची के रोने से और र्दुगन्ध से रात को दो बजे मेरी नींद खुल गई। पहले अंधेरे में कचरे की फोटो ली। गला सूख रहा था। मैंने अपनी बोतल में से दो घूट पानी पिया था, बोतल नहीं थी। 6 बजे की गाड़ी थी दिनभर का पानी का कोटा लगभग मैंने घर में ही पूरा कर लिया था। गंदे वाशरुम के कारण गाड़ी में मैं कम ही पानी पीती हूँ। जब मैं सोई तो साइड टेबल पर सुंदरी की आधी पानी की बोतल थी, मेरी लगभग पूरी थी। अब सिर्फ एक बोतल थी आधी। देखा सुंदरी  ने मेरी ओर पीठ किए ही बिना देखे ही पानी की बोतल उठाई और लेटे लेटे गर्दन उठा कर गटगट पी गई। मैं बोली,’’यहाँ मेरा पानी था।’’उसने बिना इधर देखे जवाब दिया, वहीं होगा, हमारा तो अपना ही नीचे ढेर लगा हुआ है और सो गई। बच्ची उसी वॉल्यूम से रोती रही। फोन की चार्जिंग खत्म हो गई थी। सुंदरी ने उससे फोन लेकर नींद में ही पर्स में डाल लिया। और बच्ची को बिना चुप कराए गहरी नींद में सो गई। मैंने नीचे उसकी नैपी को पेपर से ढक दिया। भुवनेश जी ने नई पानी की बोतल ऊपर स्टैण्ड पर ही रख दी थी। मैंने उठा कर पी और सीट के कोने में रख ली। बच्ची के रुदन में ही मैं सो गई। सुबह जैसे ही मेरी आँख खुली मेरे उठने का ही इंतजार हो रहा था। मेरे पैरों के पास की जरा सी जगह में मीडिल सीट के कारण गर्दन झुकाए भइया सुन्दरी से बतिया रहे थे। तुरंत बोले,’’आप परेशान न होइए, हम अभी सीट खोल देते हैं। मेरे खड़े होते ही दो भइया ने बिस्तर हटा कर सीट खोल कर मेरे बैठने की जगह छोड़ कर दोनों बैठ कर बतियाने लगे। क्रमशः     







Friday, 30 December 2022

सीतामढ़ी(बिहार) की ओर साहित्य संर्वधन यात्रा भाग 1 नीलम भागी Part 1 Neelam Bhagi


    प्रो0नीलम राठी(राष्ट्रीय मंत्री) का फोन आया कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद् द्वारा दिनांक 21 से 24 नवम्बर 2022 तक चार दिवसीय ’सीतामढ़ी(बिहार) से जनकपुर(नेपाल)’के लिए साहित्य संर्वधन यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। और साथ ही विवरण आ गया। कुल 12 साहित्यकारों को जाना था। पत्र पढ़ते ही मैंने सबसे पहले श्री ऋषि कुमार मिश्र जी(राष्ट्रीय महामंत्री) को अपनी सहभागिता की धन्यवाद सहित स्वीकृति दी। प्रो0 नीलम राठी से पूछा,’’नौएडा दिल्ली से और कौन जा रहें हैंं?’’उन्होंने बताया कि भुवनेश सिंघल जी(महामंत्री दिल्ली) जा रहे हैं। मैंने उन्हें फोन किया कि वे अपनी टिकट के साथ मेरी भी बुक करवा लें। टिकट लौटने की कनर्फम थी पर जाने की वेटिंग में थी। हमेशा की तरह हमारे प्रवीण आर्य जी(राष्ट्रीय प्रचार मंत्री) ने कनर्फम जरुर किया।

  19 नवम्बर शाम 5 बजे आनन्द विहार रेलवे स्टेशन से हमें लिच्छवी एक्सप्रेस पकड़नी थी। टिकट कनर्फम का मैसेज आ गया। बी  में 2 और 3 नम्बर सीट यानि मीडिल और अपर। मैं कैबिन में पहुंची, वहाँ तो खड़े होने की भी जगह नहीं थी। बड़े बड़े थैलों में बैडिंग के पैकेट रखे थे। इस रुट की यात्रा मैं कई बार कर चुकी हूं जो मेरी बहुत मनोरंजक रहीं हैं। मैं इत्मीनान से किसी तरह वहाँ टेढ़ी मेढ़ी खड़ी हो गई। मैं समझ गई कि ये जगह तो खाली, बैडिंग के पैकिट सीटों पर सवारियों को मिलने पर ही होगी। ऐसा ही हो रहा था। वह बड़ी फुर्ती से पैकिट ले जाकर पहुंचा रहा था। इतनी देर में मैंने लोअर सीट वाले से सीट बदलने को कहा तो उस भले इनसान ने कहा,’’ हमारी चार सीटे हैं दो लोअर हैं बेटा बेटी आए नहीं, दो खाली जायेंगी। आप मेरी लोअर लें लें।’ एक आदमी खड़ा सुन रहा था। उसने तुरंत सीटिंग एरेंजमैंट कर दिया। उसकी एक सीट इस कैबिन में थी दो कहीं और थीं और पाँच स्लीपर में थीं। उसने हमारे सामने की 4,5,6 न0 सीट ले लीं। कुछ जगह होने लगी, इतने में भुवनेश जी भी आ गए। अब सीट पर रखे बिस्तर के बंडल नीचे रख कर भुवनेश जी ने सीट पर बैठने की जगह की। अब जैसे जैसे फर्श खाली होता जा रहा था। सामने वालों का सामान फिट होता जा रहा था। एक सुन्दरी और उसकी 5 और 2 साल की दो बेटियाँ और दो बड़ी लड़कियां आकर बैठ गईं। भुवनेश जी तो एमसीडी के चुनाव में व्यस्त होने के कारण बहुत थके हुए थे। वे अपर सीट पर जाकर सो गए। 2 न0 सीट वाले सामने की साइड सीट पर पति पत्नी के साथ बैठ गए। जूते मैंने बैग में रख लिए और छोटी हील की चप्पल निकाल कर रख दी। इन महिलाओं के कपड़े भी चटकीले थे और चप्पलें भी चमकीलीं। सबने अपनी चप्पलें एक थैले में डाल दीं।ं मैं सर के नीचे कम्बल, चादर, तकिया लगा कर, एक चादर ओढ़ कर लेट गईं। टीटी आकर टिकट चैक कर गया। सामने वाले ने सीटों की अदला बदली उसे समझा दी। अगले दिन सुबह 11 से 1 बजे के बीच उतरने वाली सवारियां थी। टीटी के जाते ही और सामान भी आ गया। उनकी एक महिला और आ गई। महिलाएं मेरी चप्पल ही इस्तेमाल कर रहीं थीं। मेरे पैरों के पास थोड़ी जगह थी, वहाँ उनका एक साथी आकर बैठ गया। मैं और सिकुड़ गई तो दूसरा भइया आकर बैठ गया। बच्चियों के हाथ में नर्सरी राइम लगा कर मोबाइल पकड़ा दिया और बाकि पारिवारिक गोष्ठी करने लगे। जो भी आता सामान लाता। मेरा पर्स भी उठा कर उन्होंने मेरे सिर के बराबर तकिए के साथ रख दिया। खा खा कर रैपर भी नीचे। बच्ची की नैपी भी नीचे कचरे का पहाड़ बनता जा रहा था। सुन्दरी बस तीन ही काम कर रही थी, खाना और गंदगी फैलाना और लिपिस्टि की शेप ठीक करना। क्रमशः  






Tuesday, 27 December 2022

2 घंटे में जूते धोकर, सुखाना नीलम भागी गी

 


2 घंटे में जूते सुखाने के लिए जूता धोने के बाद पहले लटका देती हूं। जब पानी की बूंदे टपकना बंद हो जाती हैं तो उसमें पुराने अखबार के गोले बनाकर भरती हूं।


वह पानी सूख लेते हैं फिर उन्हें निकालकर दूसरे भरती जाती हूं। इस तरह तब तक करती हूं जब तक अखबार भीगने बंद हो न हो जाए। फिर इसमें अखबार ठूस कर इन्हें लटका देती हूं।1 घंटे बाद इस अखबार को भी निकला देती हूं फिर अखबार भरे जूते, किसी ऐसी जगह लटका देती हूं जहां धूप और हवा लगे। न भी धूप और हवा मिले तो भी चलेगा। अखबार  नमी सोख लेती है। 2 घंटे बाद जूते पहनने लायक हो जाते हैं। मैं तो ऐसे ही सुखाती हूं।


Saturday, 10 December 2022

सर्दी में मुफ्त में दही जमाने की मशीन नीलम भागी


सर्दी में दही जमाना बहुत आसान है। मैं इस तरह से जमाती हूं। 2 किलो मेरे घर में दूध जैसे ही उबलता है, मैं दूध का पतीला तुरंत ढक कर रख देती हूं। अब कल का बचा दूध चाहे फ्रिज में ठंडा हो, उसमें जामुन लगाकर यानि  थोड़ा सा दही डालकर, इस बचे दूध में  मिला देती हूं और अच्छी तरह हिला देती हूं। अब इस जामुन लगे दूध के बर्तन को उबले गर्म दूध के पतीले के ऊपर रख देती हूं । नीचे का उबला हुआ दूध जब तक रूम टेंपरेचर पर आता है यानी फ्रिज में रखने लायक होता है, तब तक मेरा दही जो इस पतीले के ऊपर जमने को रखा होता है, वह लगभग जम जाता है। अगर जम गया तो फ्रिज में रख देती हूं। नहीं जमा थोड़ी देर बाहर रखने पर जम जाता है। है न मुफ्त की मशीन दही जमाने की मशीन! इसका मैं साथ में वीडियो लिंक भी दे रही हूं। 

https://youtu.be/aDCFYhaVIW8

देखकर भी समझ सकते हैं। बहुत आसान है। आपके उबले दूध की उर्जा जरा भी बेकार नहीं जाती।  उसे दही जमाने में इस्तेमाल कर दी और आसानी से दही जम जाता है। 

ध्यान रखना है जिस बर्तन में दही जमाना है, वह मेटल का होना चाहिए कांच या प्लास्टिक का नहीं। क्योंकि मैटल गुड कंडक्टर आफ हीट होता है जो आपके उबले हुए दूध के पतीले से ऊष्मा लेगा।





Sunday, 4 December 2022

झांसी से दिल्ली झांसी यात्रा भाग 14 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 14Neelam Bhagi


 रात 10:00 बजे मैं और डॉ. सारिका लगेज लिए  स्टेशन के लिए निकले दूर रिसॉर्ट के गेट से दो लेखक आते दिखे और कार जाती। मैं जोर से चिल्लाई गाड़ी रोको पर इतनी दूर मेरी आवाज नहीं पहुंची। पास आने पर उन्होंने बताया,"  वे पितांबरा देवी के दर्शन करके आए हैं और उनका तीसरा साथी स्टेशन गया। हम दतिया से आए हैं।" यानि कार गई। इस जगह से तो कोई सवारी भी नहीं गुजर रही थी। मैं सामान के साथ चलते हुए डॉक्टर महेश पांडे को फोन लगा रही थी, जो अंगेज आ रहा था। डॉ. सारिका जल्दी-जल्दी चलती जा रही थी, चौराहे पर रुक गई। मैं उनके पीछे-पीछे डॉ. महेश पांडे का कॉल आया, मैंने उन्हें बताया कि कार तो चली गई है।  मेरी 11:00 बजे  की गाड़ी है, कैसे करें?  अगर कोई मोटरसाइकल गुजरता तो डॉ सारिका उसे कहती कि रास्ते में ऑटो  टैक्सी मिले तो इधर स्टेशन जाने के लिए भेजना।  डॉ. महेश पांडे  फोन पर बोले," प्लीज आप रुकिए, मैं अभी आ रहा हूं और बस उसी वक्त चल पड़े और हमारे पास लगभग दौड़ते हुए आए बोले," आप बिल्कुल चिंता मत कीजिए। हम आपको कैसे भी पहुंचाएंगे और ड्राइवर से फोन पर बात करने लगे उसने कहा कि जो गेस्ट हैं, मैं अभी उनको स्टेशन पर छोड़कर आता हूं और इनको ले जाता हूं।  इतने में एक  खाली शेयरिंग ऑटो वाला आया बोला," मुझे किसी ने भेजा है,  स्टेशन के लिए। डॉ. महेश पांडे ने उसे भेज दिया और मुझे समझाने लगे कि आप बिल्कुल घबराइए नहीं, इनसे तेज कार पहुंचा देगी, ड्राइवर आ रहा है बस इतने में पीछे से अरुण जी भी आते दिखे उनकी भी 11:30 बजे की गाड़ी थी। डॉ. सारिका गाड़ी का टाइम चेक कर रही थी। मेरी गाड़ी भी समय पर थी यानी पूरे 11:00 बजे. अब वे कहने लगे कि आप हमारे सामने निकल गई थी ना किला देखने को और बोला था वहीं से स्टेशन चले जाएंगी। अभी आपका फोन आया तब हमें पता चला कि आप नहीं  गई। हमें पता होता तो ऐसा बिल्कुल ना होता, पर आप बिल्कुल परेशान मत होइए और हल्की बूंदाबांदी तो चल रही थी। कभी भी तेज बारिश हो सकती थी और वह बताते जा रहे थे  गाड़ी आने वाली है, आने वाली है और गाड़ी आ गई।  अगला दरवाजा खोलकर बैठ गई उन्होंने हमारा सामान बगैरा रखा और गाड़ी हम तीनों को लेकर उड़ती हुई चल दी। जल्दी में मुझे डॉ. महेश पांडे को धन्यवाद करना भी याद नहीं रहा। उन्होंने किसी को जरा भी असुविधा नहीं होने दी।  ड्राइवर ने 10 मिनट पहले स्टेशन पर पहुंचा दिया। अब इन दोनों को बाय किए बिना  मैं प्लेटफार्म नंबर 4 की ओर चल दी। हड़बड़ाहट में प्लेटफार्म नंबर 3 पर उतर गई। मेरी परेशानी देखकर एक लड़के ने मेरे हाथ से किताबों का बंडल भी ले लिया और सामान भी ले लिया और अपने साथी से कहा मैं इनको 4 नंबर प्लेटफार्म पर छोड़ कर आता हूं। और वो छोड़ के जहां मेरा बी 2 डब्बा लगना था, वहां सामान रख कर चला गया। उसी वक्त गाड़ी आ गई। वहीं खड़े कुछ लड़कों ने जो मेरे डिब्बे के थे। मेरा सामान रख दिया। मेरी सीट  पर एक महिला सो रही थी। मेरे बैठते  ही उठ कर चली गई। सामने लोअर सीट पर दो लड़कियां बैठी थी, एक ब्लैक ब्यूटी और दूसरी गोरी ब्यूटी। गोरी ने मुझे कहा कि आप बी 1  में चली जाएंगी क्योंकि इसकी सीट वहां पर है यह हिंदी बिल्कुल नहीं जानती है, अकेली  मेरे बिना नहीं जाना चाहती। मैंने कहा कि अगर वह लोअर सीट है  तो मैं चली जाऊंगी। लोअर नहीं थी ।  जो मेरे साथ लड़के  चढ़े थे उनमें से एक बोला," मैं चला जाता हूं और वह चला गया। अब ब्लैक ब्यूटी उसकी सीट पर बिस्तर  लगाकर लेट गई, थोड़ी देर में वह लड़का वापस आया पता नहीं उस ने सीट की क्या कहानी सुनाई मैं नींद में थी। अब ब्लैक ब्यूटी फिर गोरी के पास अधलेटी बैठ गई। रात भर  कुछ सीट का चक्कर चलता रहा। ढंग से सो नहीं पाई। क्योंकि मेरा ध्यान इन कम उम्र लड़कियों पर ही लगा रहा। दिल्ली आने से पहले सब लड़के वगैरा उतरने की तैयारी में लग गए। सुंदरी ने एक प्रश्न उछाला कि हमें कोई ऐसी जगह आप लोगों को पता है जहां हम शाम तक रुक जाए थोड़ा रेस्ट कर लें, फ्रेश हो लें। अब वह सब जॉब वाले लड़के  गूगल से उनके लिए सर्च करने लगे और फिर गोरी बोली, "जो मिल रहे हैं , वह पैसा बहुत मांग रहे हैं,  हमें तो कुल थोड़ी देरी रुकना है। 11  बजे हम सरोजनी नगर मार्केट में शॉपिंग करने जाएंगे तो चार बज जाएंगे। शाम को देहरादून की ट्रेन है, समय पास करना है। लड़कियों के लिए सभी बहुत गंभीर हो गए। उन्होंने कहा कि पहाड़गंज के पास में मत ठहरना। बेहतर यही है कि स्टेशन के डोरमेंट्री में सामान रखकर टाइम बिताना। निजामुद्दीन स्टेशन पर गाड़ी लगती हैं। खूब बारिश थी सुबह 5:00 बजे थे पर बिल्कुल अंधेरा था। मेरे घर तक ऑटो डेढ़ सौ रुपए में आता है पर बारिश में 300 में आई। मेरी किताबो का कोई नुकसान नहीं हुआ और मेरी यात्रा को विराम मिला।

Saturday, 3 December 2022

पुनिया से राय प्रवीण! बुंदेलखंड की लोकगाथा झांसी यात्रा भाग 12 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 13 Neelam Bhagi

  





रात 9.00 बजे हम रिर्सोट पहुँचें, डिनर किया। मेरी 11 बजे की गाड़ी थी। डॉ. सारिका की 11.30 की। स्टेशन पहुँचाने के लिए एक गाड़ी खड़ी थी। हमने 10 बजे यहाँ से निकलना था। ओरछा का राय प्रवीण महल समय अभाव के कारण नहीं देख पाई। पर इस विदुषी महिला की जीवन यात्रा मेरे जे़हन बस गई, जिसने अपने वाक्यचार्तुय के बल पर अकबर को उसकी जिद छोड़ने पर मजबूर कर दिया और साथ ही उसे एक करोड़ रूपये का जुर्माना भी माफ करना पड़ा था। अपूर्व सुन्दरी, कुशल नृत्यांगना, संगीत साधिका, आचार्य केशव की शिष्या राय प्रवीण ने बुंदेलखंड का मस्तिष्क ऊँचा कर दिया था। वह सम्मान के साथ अपनी मातृभूमि पर लौटी थी। 

16वीं शताब्दी में ओरछा बड़ा और समृद्ध राज्य था। ओरछा के राजा मधुकर शाह ने अपने तीन बेटों वीर सिंह, राम सिंह और इंद्रजीत को अलग अलग जागीर दी। एक दिन इंद्रजीत ने अपनी जागीर में एक लड़की को नाचते और भजन गाते सुना जिसका नाम पुनिया था। इंद्रजीत ने उसके पिता को उसे राजा की ओर से शिक्षित करने को कहा। ये पुनिया बड़ी होने पर अब राय प्रवीण थी। इस दरबार की गायिका, कवियत्री, नर्तकी की ख़ूबसूरती पर राजा इंद्रजीत मोहित थे। उसके रूप के चर्चे दूर दूर तक फैले। मुग़ल बादशाह अकबर ने उसे अपने दरबार में भेजने का फरमान जारी किया। फरमान पाते ही इंद्रजीत हतप्रभ हो गए। ओरछा नरेश इंद्रजीत राय प्रवीण को पाकर अपने को गौरवशाली और धन्य समझते थे। वे उसे भेजना नहीं चाहते थे। उन्होंने दूत को वापिस लौटा दिया। तब अकबर ने ओरछा नरेश पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना कर दिया। अब राजा इंद्रजीत परेशान हो गए। आचार्य केशवदास ने इंद्रजीत को समझाया कि हम लोग अकबर से टक्कर नहीं ले सकते इसलिए राय प्रवीण को उनके साथ शाही दरबार में भेज दीजिए। उन्हें उसकी बुद्धिमता पर विश्वास हैं वह अपने वाक्यचातुर्य के बल पर अपनी मर्यादा की रक्षा स्वयं कर लेगी। कहीं राय प्रवीण के दिल में भी इंद्रजीत को छोड़ कर जाते हुए मन में डर था कि अगर वह दरबार से न लौट सकी तो! उसने अपने मन की बात गुरूदेव से कह दी। आचार्य ने उसे भली भंाति समझाया। दोनों अकबर के दरबार में पहुंच कर, उन्हें प्रणाम करके बैठ गए। अकबर ने राय प्रवीण से कुछ प्रश्न पूछे, जिसके उसने काव्यमय उत्तर दिए। अकबर का मन उसे वहाँ रखने का था और उसने राय प्रवीण से प्रश्न भी कर दिया,’’क्या आप हमारे दरबार की शोभा बढ़ा सकती हो?’ राय प्रवीण ने जवाब दिया,’’आप महान विद्वान, गुणग्राही बादशाह हैं। मेरा अहोभाग्य है जो मुझे आपके शाही दरबार में आश्रय प्राप्त हो। जरा मेरी एक विनती सुन लीजिए -    

विनती राय प्रवीण की, सुनिये शाह सुजान।

जूठी पातर भकत को, वारी वायस श्वान।

 जिसका अर्थ है कि राजा की जूठी पत्तल को नौकर, कौवा, कुत्ता खाते हैं। कुछ देर अपनी भावनाओं पर अकबर ने काबू रखा फिर उसने जुर्माना माफ करके गुरू शिष्या को ससम्मान ओरछा भेजा। 

 इंद्रजीत ने राय प्रवीण के लिए बाग से घिरा ’राय प्रवीण महल’ बनवाया। ओरछा जाने वाले पर्यटकों को इसकी दीवारों पर बनी चित्र, पेंटिंग आकर्षित करते हैं। क्रमशः



Friday, 2 December 2022

आजाद पार्क ओरछा झांसी यात्रा भाग 11 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 11 Neelam Bhagi

 



आजाद पार्क ओरछा झांसी यात्रा भाग 11 नीलम भागी हम कुछ ही कदम चले, हमें एक ई रिक्शा


मिल गया। दो सौ रुपए रिर्सोट तक के उसने हमसे मांगे, हम झट से बैठ गए। हल्की बूंदाबांदी तो हो ही रही थी। सुबह श्रीधर पराड़कर जी रास्ते भर यहाँ के बारे में बताते जा रहे थे। चंद्रशेखर आजाद के बारे में बताया कि उन्होंने यहाँ अज्ञातवास बिताया। बैठक में समय से पहुँचना था इसलिए जब आजाद पार्क के सामने से गुजरे तो मैंने गाड़ी से ही फोटो ले ली थी। मेरे ज़हन में तो सुबह श्रीधर पराड़कर जी के बताए आजाद, कवि केशव और रायप्रवीण दिमाग में छा जाने वाले परिचय ही घूम रहे थे। पर ये क्या!! रिक्शावाले ने रिक्शा साइड में लगा कर आजाद पार्क के बारे में बताना शुरु किया। मैं तुरंत उतर कर चल दी। डॉ सारिका और डॉ. संजय पंकज भी आ गए। हमने वहाँ बाहर से ही तस्वीरें लीं।    

आजाद पार्क आजादपुरा(पुराना नाम ढिमरपुरा) में है।ं श्री राजाराम सरकार के दर्शन के लिए जाते हैं तो मेनरोड पर ही है।

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रतीक अमर शहीद च्ंाद्रशेखर आजाद यहाँ 1924 में ओरछा में आए थे। ओरछा में रह कर वे क्रांति के सूत्रों का संचालन करते थे। 1930 तक ये सन्यासी के भेष में ब्रह्मचारी हरिशंकर के नाम से रहते हुए, यहाँ बच्चों को पढ़ाते थे और रामायण बांचते थे। उनकी कुल सम्पत्ति एक कंबल और रामायण का गुटका था। चंद्रशेखर आजाद का कोई क्रांतिकारी साथी समझाता कि उन्हें शहर में रहना चाहिए तो उनका जवाब होता कि ओरछा के आस पास आल्हा-ऊदल की भूमि, सदाचार के साधक हरदौला का चबूतरा है। कवि केशव और उनकी शिष्या राय प्रवीण की संगीत साधना है और सबसे बड़ी बात राजा राम सरकार पास में हैं। 

 पार्क के बगल से सतारा नदी निकलती है। 31 मार्च 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आदमकद कांस्य की चंद्रशेखर आजाद की प्रतिमा का लोर्कापण किया। पार्क की दीवारों पर बहुत सुन्दर चित्रकारी की गई है जो दिन में बहुत सुन्दर लगती है और रात में सड़क पर चलती गाड़ियों की लाइट जब बाउण्ड्रीवाल पर पड़ती है तो ये चित्रकारी बहुत आर्कषक लगती है। हम रिक्शा पर बैठे। और मैंने रिक्शावाले की देशभक्ति को मन ही मन सराहा जिसने खराब मौसम में बिना हमारे कहे। हमारा आजाद पार्क से परिचय करवाया। क्रमशः 







 


Thursday, 1 December 2022

सशस्त्र सलामी दी जाती है श्री राजाराम सरकार को! झाँसी यात्रा भाग 10 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 10 Neelam Bhagi



मैं तो सुबह यहाँ आ चुकी थी। सब आरती के लिए चले गए। मैं अपनी आदत के अनुसार  साफ सुथरे मंदिर प्रांगण में घूमती रही, दुकाने देखती रही। करोड़ों लोगों की आस्था के केन्द्र इन प्राचीन मंदिरों में, मुझे यहां बैठने से अलग सा सकून मिलता है इसलिए मैं हमेशा की तरह बैठ गई।

राजा राम के अयोध्या से ओरछा आने की कथा बहुत मनोहारी है। कथाओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे पर उनकी रानी रामभक्त थीं। राजा मधुकर शाह ने एक बार महारानी कुंवरि गणेश से वृंदावन चलने कर प्रस्ताव किया तो उन्होंने विनम्रता से टाल कर अयोध्या जाने का आग्रह किया। राजा ने कहा कि आप अपने राम को ओरछा लाकर दिखाओ। महारानी ने चैलेंज स्वीकार कर लिया। उन्होंने अयोध्या जाकर 21 दिन तक तप किया। कोई परिणाम न मिलने पर उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी। जहाँ श्रीराम का बाल रूप उनकी गोदी में आ गया। महारानी ने उनसे अयोध्या चलने की विनती की। भगवान ने तीन शर्तें रख दीं। 

ओरछा में जहाँ बैठ जाउँगा वहाँ से नहीं उठूंगा।

राजा के रुप में विराजमान होने पर वहाँ किसी और की सत्ता नहीं चलेगी।

स्वयं बालरूप में पैदल पुष्प नक्षत्र में साधु संतों के साथ चलेंगे।

 भगवान के ओरछा आने का सुन कर राजा ने उन्हें बैठाने के लिए भव्य चर्तुभुज मंदिर का निर्माण करवाया इस तैयारी के दौरान महारानी ने भगवान को रसोई में ठहराया। अब भव्य मंदिर सूना पड़ा है और भगवान रसोई में ही विराजमान हैं। पर ओरछा में श्रीरामराजा सरकार का ही शासन चलता है। सब कुछ समय से होता है। चार पहर आरती होती हैं, सशस्त्र सलामी दी जाती हैं। ओरछा की चारदीवारी में कोई वीवीआईपी हो तो भी उन्हें सलामी नहीं दी जाती हैं। 31 मार्च 1984 को श्रीमती इंदिरा गांधी दर्शनों के लिए पहुँची। भगवान को भोग लग रहा था। उनको नियम बताए तो उन्होंने भी लगभग आधा घण्टा दर्शन के लिए इंतजार किया। 

क्योंकि 600 साल पहले महारानी कुंवरि गणेश  की गोद में रामलला आए थे। उनके लिए बनवाए भव्य मंदिर में न विराजकर वे उनकी रसोई में विराज गए थे तब से ब्ंाुदेलखंड में यह गूंजता है।           

राम के दो निवास खास, दिवस ओरछा रहत, शयन अयोध्या वास

यहाँ राजा श्रीराम का शासन चलता है। दिन भर ओरछा रहने के बाद शयन के लिए भगवान अयोध्या चले जाते हैं। रात में आरती होने के बाद ज्योति निकलती है, जो पास ही स्थित पाताली हनुमान मंदिर ले जाई जाती है। मान्यता है कि ज्योति के रूप में श्रीराम को हनुमान जी शयन के लिए अयोध्या ले जाते हैं। सबके आने पर हम मंदिर से बाहर आकर सवारी ढूंढने लगे मंदिर से दर्शनार्थियों की भीड़ निकली। झांसी जाने वाली कुछ ही ऑटो थे और लोग ज्यादा थे। हम पैदल चल दिए कि जो भी सवारी मिलेगी ले लेंगे। क्रमशः










Wednesday, 30 November 2022

झांसी का किला और पर्यटन स्थल झांसी यात्रा भाग 9 नीलम भागी Jhansi Yatra Part 9 Neelam Bhagi

मैं श्री राजा राम सरकार का मंदिर ओरछाधाम में सुबह दर्शन कर आई थी। अब मैंने झांसी के किले को देखना था। जानती थी कि किला इस समय बंद हो गया है। पर बचपन से मेरे मन पर वीरांगना की जो छवि बनी है, जिसने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था और ये किला उसका गवाह है। इसके कारण मैं किले पर जरुर जाना चाहती थी। डॉ. सारिका कालरा सुबह ही लेखक समूह की बैठक में दिल्ली से रातभर का सफ़र करके पहुँची थीं। उनकी 11.30 की गाड़ी थी मेरी 11 बजे की थी। हम दोनों ने एक साथ स्टेशन पर आना था। श्रीराजाराम सरकार की आरती 8 बजे से थी। डॉ. सारिका थोड़ा आराम करके वहाँ जाना चाहतीं थी। मैंने कहा तो मेरे साथ किले के लिए चल दीं। वीना राज जी को स्टेशन छोड़ने जो गाड़ी जा रही थी, वही हमें किले पर छोड़कर आती और वहाँ शो देखकर हम स्टेशन पर अपने आप चले जाते। जाते समय हमें खाने के पैकेट भी पकड़ा दिए। हल्की बूंदाबांदी तो हमारे चलते ही शुरु हो गई थी। झांसी से परिचय करते हुए हम जा रहे थे। ड्राइवर भी शहर के बारे में बताता जा रहा था। स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियाँ चौराहों पर लगी हुई थीं। पर बूंदाबांदी के कारण गाड़ी से उतर कर हम ऐतिहासिक शहर की तस्वीरें नहीं ले पा रहे थे। अंदर से जो लीं वो बरसात से साफ नहीं हैं। 15 एकड़ में फैला झांसी का किला सुबह सात से शाम 6 बजे तक खुलता है। सायं 7.30 बजे शो होता है। बंगरा नामक पहाड़ी पर 1613ई. में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस किले की महत्वपूर्ण भूमिका थी। किला दूर से ही दिखने लगा था, कुछ दूर पर गाड़ी रोक दी। ड्राइवर ने कहा कि आप जाकर पूछ लो कि समान जमा करने की कोई जगह है तो लौटते समय वहाँ से ले लेना। मैं और डॉ. सारिका किले के मुख्यद्वार पर पहुँचे जो कॉफी ऊँचाई पर था। वहाँ  पूछा कि टिकट कब मिलेगी? उसने कहा,’’सात बजे।’’ मैंने पूछा,’’आप हमारा सामान रख लेंगे हम शो के बाद ले लेंगे।’’उसने जवाब दिया,’’नहीं।’’ मैंने पूछा,’’यहाँ से कितनी दूरी पर शो होता है,’’ उन्होंने बताया,’’पहले इधर, फिर उधर, जिधर फिर फाँसी घर आयेगा उसके पास शो होता है। अगर बरसात हो गई तो कैंसिल हो जायेगा।’’ उनके बताए मार्ग में जिधर तक मेरी नज़र गई, बहुत अच्छी बनी हुई है पर सड़क पर चढ़ाई थी। हमारे पास किताबें बहुत थीं। सामान लेकर हम नहीं जा सकते थे। वहाँ ऊँचाई से रात में झाँसी बहुत सुन्दर लग रहा था। उस दिन बारावफात था। किले के आस पास बहुत रौनक थी। लौट कर गाड़ी में बैठ गए और रिर्सोट की ओर चल दिए कि वहाँ सामान रख कर ओरछाधाम चले जायेंगे। कुछ लोगों ने कल जाना था। बहुत कम लोगों ने स्टेशन जाना था। एक गाड़ी समय से स्टेशन पर छोड़ने जाती। रिर्सोट के सामने जा रहे एक ऑटो को ड्राइवर ने रुकवा दिया। दोनों रिर्सोट में सामान रखने गए तो डॉ. संजय पंकज(बिहार) और अरुण जी(राजस्थान) ओरछाधाम के  लिए आ रहे थे। हमने उनसे कहाकि वे जाकर ऑटो पर बैठे और हम आ रहीं हैं। हमारे आते ही ऑटो हमें ले चला। आरती से पहले हम पहुँच गए। क्रमशः