मैं श्री राजा राम सरकार का मंदिर ओरछाधाम में सुबह दर्शन कर आई थी। अब मैंने झांसी के किले को देखना था। जानती थी कि किला इस समय बंद हो गया है। पर बचपन से मेरे मन पर वीरांगना की जो छवि बनी है, जिसने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था और ये किला उसका गवाह है। इसके कारण मैं किले पर जरुर जाना चाहती थी। डॉ. सारिका कालरा सुबह ही लेखक समूह की बैठक में दिल्ली से रातभर का सफ़र करके पहुँची थीं। उनकी 11.30 की गाड़ी थी मेरी 11 बजे की थी। हम दोनों ने एक साथ स्टेशन पर आना था। श्रीराजाराम सरकार की आरती 8 बजे से थी। डॉ. सारिका थोड़ा आराम करके वहाँ जाना चाहतीं थी। मैंने कहा तो मेरे साथ किले के लिए चल दीं। वीना राज जी को स्टेशन छोड़ने जो गाड़ी जा रही थी, वही हमें किले पर छोड़कर आती और वहाँ शो देखकर हम स्टेशन पर अपने आप चले जाते। जाते समय हमें खाने के पैकेट भी पकड़ा दिए। हल्की बूंदाबांदी तो हमारे चलते ही शुरु हो गई थी। झांसी से परिचय करते हुए हम जा रहे थे। ड्राइवर भी शहर के बारे में बताता जा रहा था। स्वतंत्रता सेनानियों की मूर्तियाँ चौराहों पर लगी हुई थीं। पर बूंदाबांदी के कारण गाड़ी से उतर कर हम ऐतिहासिक शहर की तस्वीरें नहीं ले पा रहे थे। अंदर से जो लीं वो बरसात से साफ नहीं हैं। 15 एकड़ में फैला झांसी का किला सुबह सात से शाम 6 बजे तक खुलता है। सायं 7.30 बजे शो होता है। बंगरा नामक पहाड़ी पर 1613ई. में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इस किले की महत्वपूर्ण भूमिका थी। किला दूर से ही दिखने लगा था, कुछ दूर पर गाड़ी रोक दी। ड्राइवर ने कहा कि आप जाकर पूछ लो कि समान जमा करने की कोई जगह है तो लौटते समय वहाँ से ले लेना। मैं और डॉ. सारिका किले के मुख्यद्वार पर पहुँचे जो कॉफी ऊँचाई पर था। वहाँ पूछा कि टिकट कब मिलेगी? उसने कहा,’’सात बजे।’’ मैंने पूछा,’’आप हमारा सामान रख लेंगे हम शो के बाद ले लेंगे।’’उसने जवाब दिया,’’नहीं।’’ मैंने पूछा,’’यहाँ से कितनी दूरी पर शो होता है,’’ उन्होंने बताया,’’पहले इधर, फिर उधर, जिधर फिर फाँसी घर आयेगा उसके पास शो होता है। अगर बरसात हो गई तो कैंसिल हो जायेगा।’’ उनके बताए मार्ग में जिधर तक मेरी नज़र गई, बहुत अच्छी बनी हुई है पर सड़क पर चढ़ाई थी। हमारे पास किताबें बहुत थीं। सामान लेकर हम नहीं जा सकते थे। वहाँ ऊँचाई से रात में झाँसी बहुत सुन्दर लग रहा था। उस दिन बारावफात था। किले के आस पास बहुत रौनक थी। लौट कर गाड़ी में बैठ गए और रिर्सोट की ओर चल दिए कि वहाँ सामान रख कर ओरछाधाम चले जायेंगे। कुछ लोगों ने कल जाना था। बहुत कम लोगों ने स्टेशन जाना था। एक गाड़ी समय से स्टेशन पर छोड़ने जाती। रिर्सोट के सामने जा रहे एक ऑटो को ड्राइवर ने रुकवा दिया। दोनों रिर्सोट में सामान रखने गए तो डॉ. संजय पंकज(बिहार) और अरुण जी(राजस्थान) ओरछाधाम के लिए आ रहे थे। हमने उनसे कहाकि वे जाकर ऑटो पर बैठे और हम आ रहीं हैं। हमारे आते ही ऑटो हमें ले चला। आरती से पहले हम पहुँच गए। क्रमशः
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