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Monday, 30 January 2023

धनुष धाम धनुषा नेपाल साहित्य संर्वधन यात्रा भाग14 नीलम भागी Dhanusha Nepal Sahitya Samvardhan Yatra Part 14 Neelam Bhagi

साफ बढ़िया बनी सड़क पर चारों गाड़ियाँ दौड़ने लगी। वृक्षारोपण किया गया हैं। कहीं कहीं तो लकड़ी के ट्री र्गाड हैं। सड़कों पर शहीद द्वार बने हैं तो किसी चौराहे पर राजा जनक हल जोत रहें हैं की मूर्ति है। कमला माई को भी देखा जैसी संगोष्ठी में पवित्र नदी की चिंता की गई थी वैसे ही पाया। 18 किमी. की दूरी 45 मिनट में पूरी करके मंदिर पहुंच गए। वहाँ शांत भीड़ मंदिर परिसर से बाहर खड़ी थी। पता चला कि वहाँ चुनाव हुए हैं वोटो की गिनती चल रही है। 








 जूते उतार कर मंदिर में प्रवेश किया।      

   लोकमान्यता के अनुसार दधीचि की अस्थियों से वज्र, सारंग तथा पिनाक नामक तीन धनुष रूपी अमोघ अस्त्रों का निर्माण हुआ था। वज्र इंद्र को मिला था। सारंग विष्णुजी को मिला था और पिनाक शिवजी का था जो धरोहर के रूप में जनक जी के पूर्वज देवरात के पास रखा हुआ था।

 इस धनुष को उठाना और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाना, जनक जी के वंश में किसी के वश की बात नहीं थी। इसका कभी प्रयोग ही नहीं हुआ इसलिए यह पूजा घर में रखा गया था। उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ जब सीता जी ने पूजाघर की सफाई करते समय पिनाक को इधर से उधर कर दिया। उनका यह गुण देख कर मिथिला नरेश ने घोषणा की कि जानकी का विवाह उन्होंने उस व्यक्ति से करने का निश्चय किया है जो पिनाक की प्रत्यंचा चढ़ाने में समर्थ हो।

  जनक के यज्ञ स्थल यानि वर्तमान जनकपुर के जानकी मंदिर के निकट यह समारोह हुआ था।

यहां पंडित जी श्रद्धालुओं को चित्र दिखाते हुए बताते हैं कि जब पिनाक धनुष टूटा तो भयंकर विस्फोट हुआ था और एक भाग श्रीराम मंदिर के सामने तालाब में गिरा और दूसरा धनुषकोटी तमिलनाडु में गिरा और मध्य भाग यहां गिरा। धनुषा धाम के निवासियों ने इसके अवशेष को सुरक्षित रखा। जिसकी पूजा अनवरत चल रही है और मेरा सौभाग्य है कि मैं भी यहां दर्शन कर रहीं हूं। 550 साल से अधिक पुराना पेड़ है, जिसकी जड़ में पताल गंगा है। जिसका जल स्तर घटता बढ़ता रहता है। मंदिर से बाहर आकर सबका इंतजार कर रहे थे। एक छोटा लड़का मांगने लगा, डॉ. ख्याति पुरोहित उसे कुछ देने लगी तो श्रीधर पराड़कर जी ने उसे कहा कि तुम पहले कुछ भी सुना दो गाना, भजन कविता फिर तुम्हें देंगे। लड़का तो ये जा वो जा।






 हर साल मकर संक्राति के अवसर पर यहां मेला लगता है। दर्शन करके, सब चाय पीने लगे और मैं अपना मनपसंद शौक़, इधर उधर बतियाकर सबके आते ही गाड़ी में बैठ गई। और  गाड़ी जनकपुर की ओर चल दी। सब गाड़ियाँ एक साथ चल रहीं थीं। एक जगह चैकिंग हुई। एक ड्राइवर दारु पीकर गाड़ी चला रहा था। उसे रोक लिया। बाकियों को जाने दिया। यहाँ की दुरुस्त कानून व्यवस्था देखकर अच्छा लगा। हमारी गाड़ी मारवाड़ी धर्मशाला जाने के लिए शॉर्टकट रास्ते की ओर से चल दी। रास्ते में होलसेल मार्किट पड़ती थी। यहाँ जाम में गाड़ी फस गई। ऐसा जाम की कोई गाड़ी हिल भी नहीं पा रही थी। पीछे तीनों विद्वान ओ. पी. भार्गव जी(प्रधानाचार्य), धर्मेन्दर पाण्डेय(अधिमान्य पत्रकार), दीनानाथ द्विवेदीजी(कवि, लेखक अयोध्या), में बहुत ही लाजवाब किसी न किसी विषय पर गाड़ी में चर्चा चलती। मुझे तो यहाँ श्रोता बनना ही अच्छा लग रहा था। द्विवेदी जी मारीशियस के बारे में बता रहे थे। प्रसंग समाप्त होते ही ध्यान गया कि काफी देर से हम रुके हैं। ड्राइवर साहेब भी मेरी तरह मंत्रमुग्ध सुन रहे थे। भार्गव जी गाड़ी से यह कहते हुए उतरे कि अभी मैं जाम खुलवाता हूँ। नीचे उतरते ही उन्होंने अपनी कार्यवाही शुरु कर दी। उनके साथ और गाड़ी वाले भी लग गए। बड़ी शांति से 10 मिनट में रास्ता साफ हो गया और मुझे अपने साथियों पर गर्व हुआ। हमारे पहुँचने से पहले ही तीनों गाड़ियाँ पहुँची हुई थीं। क्रमशः      


Friday, 27 January 2023

’अध्यात्म व लोकजीवन में सांस्कृतिक स्रोत कमला नदी’ विषय पर संगोष्ठी जनकपुर(नेपाल)में संगोष्ठी, साहित्य संवर्धन यात्रा भाग 13 नीलम भागी

लोक कथा है कि सीता जी के विवाह में मटकोर(कमला पूजन) में कमला माई की मिट्टी लाई गई थी और सीता जी के नेत्र से कमला जी उदय हुई थीं। सीता जी की प्रिय सखी कमला हैं। मटकोर पूजन का प्रश्न उत्तर में एक लोकगीत है, जिसे मिथलानियाँ इस अवसर पर गाती हैं। 

कहाँ माँ पियर माटी, कहाँ मटकोर रे।

कहाँ माँ के पाँच माटी, खोने जाएं।

पटना के कोदार है, मिथिला की माटी।

मिथिला के ही पाँचों सखी, खोने मटकोर हैं। 

पाँच सुहागिने कुदार, तेल, सिंदूर, हल्दी, दहीं लेकर, 5 आदमी नदी के किनारे की मिट्टी खोदते हैं उसमें से मिट्टी निकाल कर, ये सब और पाँच मुट्ठी चने डाल देते हैं। वर वधु नदी में स्नान करते हैं। लौटते समय चने, पान सुपारी बांटते हैं। उस मिट्टी को वर वधु के उबटन में मिला कर हल्दी की रस्म होती है। 

मिथला में विवाह संस्कार की शुरुवात ही नदी पूजन से होती है क्योंकि हर नदी वहाँ के स्थानीय लोगो के लिये पवित्र है और उनकी संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ी है।




जनकपुर नेपाल पहुँचते ही प्रदेश सरकार भूमि व्यवस्था, कृषि तथा सहकारी मंत्रालय, जनकपुरधाम धनुषा में, ’अध्यात्म व लोकजीवन में सांस्कृतिक स्रोत कमला नदी’ विषय पर संगोष्ठी में नेपाल के विद्वान वक्ताओं को सुना। मिथिला की जीवन रेखा, कमला नेपाल के चुरे क्षेत्र स्थित सिंधुली से निकलने वाली पवित्र कमला की 328 किमी. की यात्रा में, 208 किमी का सफ़र नेपाल में और 120 किमी. भारत में। कई शाखाओं में विभाजित होती है, कोई बागमती तो कोई कोसी में मिलती हुई अंत में गंगा में समां जाती है। कमला बचाओ अभियान को समर्पित विक्रम यादव ने कहाकि दोनो देशों की संस्कृति, लोकजीवन और जीवन जीने का तरीका एक सा है। मिथला की गंगा कमला ही है। जहाँ इनका जल जाता है उर्वराशक्ति बढ़ती है और ये महालक्ष्मी कहलाती हैं। लेकिन अब साल भर मिट्टी गिट्टी निकालने से, जंगल के विनाश के कारण इसको जल संकट है। पूजन आचमन के साथ इसके आसपास के गाँवों में वृक्षारोपण, सफाई और पर्यावरणीय मेले लगा कर लोगों को जागरुक करना है। जो वे कर रहें हैं। श्याम सुन्दर साहित्यकार, पत्रकार ने कहा कि दोनों ओर के लोगों की कमला पूजा (लोक पर्व) और कमला की गाथाएं एक सी है। तीनों तरफ से नदी से घिरी मिथलाभूमि में मल्लाह बीन(साल में दो बार पूजा) होती है। कमला के किनारे का बासमती चावल और मौलिक मछली यहाँ का मुख्य भोजन है यानि मछली पालन और कृषि मुख्य व्यवसाय है। सुजीत झा साहित्यकार पत्रकार ने बताया कि कोई भी धार्मिक संस्कार मुंडन, विवाह में, मसलन जानकी विवाह में भी कमला प्रसंग है। गोलू झा ने कमला के जन्म की लोक कथा सुनाई। ये ब्राह्मण कन्या थी। इनकी तपस्या के तेज से पर्वतराज ने खुश होकर वरदान मांगने को कहा तो इन्होंने कहा कि मिथिला से गंगा जी दूर हैं। वे गंगा की तरह ही सबका भला करना चाहती हैं। महंत बाबा नवलकिशोर ने कहा कि गंगा कमला में कोई फर्क नहीं है जैसे सियाराम में। जो सीता शिव का धनुष उठा लेती है।ं वो भी मटकोर(कमला पूजन) में अपनी सखि कमला से मांगतीं हैं। मिथिला की जनकदुलारी के कारण ही तो मिथिलानी को अधिकार है कि वो वैवाहिक लोक गीतों में भगवान के बरातियों को हंसी ठिठोला में गाली दे सकती हैं, चरित्र पर अंगुली उठा सकती है।

 माता पिता गोरे हैं। आप क्यों काले हैं?

कोहबर में आश्चर्य देखा

मन हरिया के करिया बदन देखो

कनिया तो पूनम का चांद, वर अमावस देखो

संगोष्ठी की अध्यक्षता श्रीधर पराडकर जी ने की। संगोष्ठी के समापन पर आयोजकों ने कहा कि हम पहले धनुषा कमलामाई से मिलने जाएं, हम चल पड़े। क्रमशः







Wednesday, 25 January 2023

जलेश्वर से जनकपुर धाम नेपाल, साहित्य संर्वधन यात्रा भाग 12 नीलम भागी Janki Mandir Sahitya Samvardhan Yatra Part 12 Neelam Bhagi

सीमा पर गाड़ियों का भंसार बना था और यह तय हुआ कि अब चारों गाड़ियाँ एक साथ रहेगी। जलेश्वर तक तो सब साथ ही रहे और नेटवर्क भी आ रहा था। हमारा नेट वर्क तो यहाँ का था नहीं, दो चार लोगों के पास का था। इधर शराब की दुकानें बहुत हैं। मुझे बतियाना बहुत अच्छा लगता है इसलिए मैं बतियाने लगी लगी। अब ड्राइवर साहेब बताने लगे कि जब से बिहार में शराब बंदी हुई है तब से सीमा के आस पास लोग पैसे वाले हो गए हैं। लोग दारु पीने यहाँ आते हैं। पियो जित्ता मर्जी, पर लेकर भारत नहीं जा सकते हैं और न ही पीकर गाड़ी चला सकते हैं। अब दारु की यारी तो बहुत पक्की होती है। शराबी बड़े मेल से आते हैं। जो दारु नहीं पीता है वह गाड़ी चलाता है बाकि टुन्न होकर बैठ जाते हैं। यहाँ से जनकपुर की दूरी 18.2 किमी है। जनकपुर का रास्ता बहुत अच्छा हो गया है। अच्छी सड़कें ट्री गार्ड के साथ पेड़ लगे हुए हैं।

 सबसे अच्छा यह देख कर लगा कि सेन्ट्रल वर्ज में वृक्षारोपण है, स्ट्रीट लाइट है और सोलर पैनल लगे हुए हैं यानि सौर उर्जा का सदुपयोग किया गया है। तीन गाड़ियाँ तो नौलखा मंदिर यानि जानकी मंदिर पहुंच गईं। किसी के पास यहाँ का नेटवर्क नहीं था। चौथी गाड़ी में सबके पास नेटवर्क था। मंदिर दोपहर में बंद था। 4 बजे खुलना था। सब मंदिर परिसर में घूमने लगे और नैटवर्क लेने में लग गए। इतने में चौथी गाड़ी भी आ गई।



 यहाँ घूमना लोगों को देखना बहुत अच्छा लग रहा था।


पर इतने खूबसूरत मंदिर का सफेद फर्श गंदा हो रहा था। जहाँ इतनी भीड़ आती है, मधुर मैथिली में गाए भजन एक अलग सा भाव पैदा करते हैं। वहाँ तो हर समय सफाई रहनी चाहिए। नेपाल घूमने पर मुझे यहाँ के मंदिरों की इसी बात ने प्रभावित किया था कि यहाँ मंदिरों में सफाई बहुत अच्छी है। खैर बाहर कोई साधू विचित्र सज्जा में या अघोरी रुप में मिल जाते हैं। ऐसे ही एक फर्श पर बड़ी शान से अध लेटे से थे। मुझे आदेश दिया,’’इधर आओ।’’ मैं हाथ जोड़ कर उनके पास जाकर खड़ी हो गई। उन्होंने मुझे भभूत दी। मैंने बड़ी श्रद्धा से माथे पर लगाई। आर्शीवाद की तरह उनका हाथ उठा रहा। मुझे बहुत अच्छा लगा। 




इतने में डॉ0 मीनाक्षी मीनल ने कहा कि हमें पहले पहुँचते ही प्रदेश सरकार भूमि व्यवस्था, कृषि तथा सहकारी मंत्रालय, जनकपुरधाम धनुषा में, ’अध्यात्म व लोकजीवन में सांस्कृतिक स्रोत कमला नदी’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में जाना है। कमला बचाओ अभियान से जुड़े विक्रम यादव जहाँ हमारा स्टे है, वहाँ इंतजार कर रहे हैं। सब फटाफट गाड़ियों में बैठे मारवाड़ी निवास पहुँचे। हम लोग बहुत लेट हो चुके थे। सामान भी नहीं उतारा। उनकी गाड़ी के पीछे हमारी गाड़ियां चलने लगीं। हम शहर से परिचय करते हुए संगोष्ठी स्थल पहुंच गए। वहाँ एक पेड़ पर भूरे रंग का चीकू की तरह न जाने कौन सा फल था। जिससे भी पूछा, उसने उसका अलग ही नाम बताया। सब जल्दी से संगोष्ठी हॉल में पहुँचे। वहाँ सब हमारे इंतजार में थे। तुरंत सबको जलपान करवाया गया और सबने अपना स्थान ग्रहण किया। क्रमशः     





 

Tuesday, 24 January 2023

जलेश्वर महादेव मंदिर जलेश्वर नेपाल भाग 11 नीलम भागी Jaleshwar Nath Mahadev Mandir Nepal Yatra Part 11 Neelam Bhagi

पंथ पाकर से हमारी यात्रा नेपाल की ओर चल दी। मैंने तीन बार नेपाल यात्रा की है पर यहाँ मैं पहली बार जा रही थी। अब हम जहाँ जा रहे हैं, ये मधेश प्रांत कहलाता है। ये तराई इलाका है। जो भारत के साथ बिहार में मिट्ठामोड़ सीमा के पास स्थित है। महोत्तरी जिले में स्थित शिव जी का मंदिर है। जिसे जलेश्वर महादेव मंदिर कहते हैं।



मंदिर के नाम पर ही इस शहर का नाम जलेश्वर है। सावन का महीना तो शिव पार्वती जी को समर्पित है तो दूर दूर से श्रद्धालु यहाँ आते हैं। हजारों शिव भक्त जलेश्वरनाथ बाबा का जलाभिषेक करते हैं और सुख शांति समृद्धि की मन्नते मांगते हैं। ये भारत और नेपाल के लोगों के लिए श्रद्धा और भक्ति का केन्द्र है। जहाँ प्रतिवर्ष नेपाल के नुनथर पहाड़ पर से बागमती का जल में कांवड़ लाकर लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं। महाशिवरात्रि और वसंत पंचमी को बहुत बड़ी संख्या में तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। वसंत पंचमी को यहाँ मेला लगता है जो होलिका दहन तक चलता है। अभिलेखों से पता चलता है कि मंदिर राजा जनक के समय से अस्तित्व में था। ऐसा माना जाता है कि सियाराम के विवाह में इस मंदिर से मिट्टी लाई गई थी। मंदिर में एक तांबे के शिलालेख से संकेत मिलता है कि 1869 बीएस(1812-1813)में मंदिर के लिए राजा गिरवान युद्ध बिक्रम शाह ने 275 बीघा जमीन दी थी। 




 नेपाल में मंदिरों की वास्तुकला पगौड़ा शैली में है लेकिन जलेश्वर महादेव का निर्माण गुम्बाज वास्तुकला के साथ किया गया है। मुख्य मंदिर के बीच में सीढ़ियाँ उतर कर वर्गाकार पानी से भरे भाग में शिवलिंग है जो पानी के नीचे है। मंदिर के पास बहुत बड़ा तालाब हैं। यहाँ गर्मी में भीषण गर्मी पड़ती है सर्दियों में सर्दी। इस शहर का धार्मिक महत्व जलेश्वर महादेव के कारण बहुत है। यहाँ भारत के सीमावर्ती शहरों से भी लोग मंदिर के दर्शन करने आते हैं। यहाँ के रेस्टोरेंट समोसे, चाट, गोलेगप्पे, कट्टीरोल और मोमोज के लिए मशहूर हैं। जलेबी का साइज़ भी बहुत बड़ा था। यहाँ का पेड़ा मशहूर है तो मांसाहार में सेकुवा(भुना हुआ मसालेदार मांस) के लिए भी प्रसिद्ध है। ये हमारा नेपाल में पहला दर्शनीय स्थल था। दर्शन के बाद सब थोड़ा आसपास दुकानों पर खरीदारी के मूड में चल दिए।


हर वस्तु का रेट दुकानदार दो बताता, भारत का और नेपाल का। हमारा 100रु यहाँ 160 नेपाली रु हो जाता है। समयबद्ध हमारी यात्रा थी।  पराड़कर जी जैसे ही अपनी गाड़ी में आकर बैठे तुरंत दाएं बाएं से सभी चारों गाड़ियों में आकर बैठ गए। अब हम जनकपुर की ओर जा रहे हैं।

https://youtu.be/an7hAZK_XsY

 क्रमशः     


Monday, 23 January 2023

पहले बच्चे के जीवन में दूसरे बच्चे का आना नीलम भागी

 

कुछ साल पहले भारती, सर्वज्ञा के जन्म के लिए हॉस्पिटल गई तो एक साल की शांभवी मेरे साथ पहली बार मां से अलग रही। जब भारती आई उसकी गोदी में छोटी सी बच्ची  को देखकर शांभवी बड़ी हैरान हुई। मां के पास बैठकर, चुपचाप उसकी हरकतें देखती रहती थी। छोटी बच्ची को बहुत केयर की जरूरत थी और अब शांभवी पूरी तरह से मेरे साथी लगी रहती, उसे मेरा परिवार के किसी भी बच्चे को प्यार करना, उठाना पसंद नहीं था। लेकिन मां तो मां होती है। कुछ समय भारती के पास जाती फिर मेरे पास आ जाती है। मुझे उसने बुआ की जगह नीनो कहना शुरू कर दिया। तब से सब बच्चे मुझे नीनो ही कहते हैं और शांभवी धीरे-धीरे अपनी बहन को बहुत प्यार करने लगी। अब तो दोनों इतनी आपस में घुलीमिली हैं कि उन्हें सहेलियों की भी जरूरत नहीं है.
     उत्कर्षिनी जब दित्या के जन्म के लिए हॉस्पिटल गई। गीता पहली में पढ़ती थी। उसको यह पता था कि मां हॉस्पिटल से बेबी लेने गई है। जब वह दित्या  को लेकर आती है  तब पहली बार गीता छोटी बहन को देख कर बहुत  प्यारा  रिएक्शन देती है। जिसको वीडियो में कैद कर लिया है और मुझे यह वीडियो देखना बहुत अच्छा लगता है। आपको शेयर कर रही हूं। गीता दित्या को संभालने में अपनी मां की बहुत मदद करती है। बेटियों को आशीर्वाद दे।


पंथ पाकड़, माँ जानकी की विश्राम स्थली साहित्य संर्वधन यात्रा भाग 10 नीलम भागी Sahitya Samvardhan Yatra Part 10 Neelam Bhagi

 



https://youtu.be/9mJuYd0FaBI

सुबह हमने होटल से चैक आउट किया और जनकपुर नेपाल की ओर चल दिए जो रामायण काल में मिथिला नरेश राजा जनक की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ से 13 किमी. उत्तर पूर्व  पर पंथ पाकड़ यानि राह का पाकड़ हैं। यहाँ विवाह के बाद जनकपुर से अयोध्या जाते हुए बारात ने विश्राम किया था। सीताराम की डोली रखी थी और बारात ने रात्रि विश्राम किया था। वहाँ स्थित पाकड़ के छायादार पेड़ के नीचे दुल्हा बने चारो भाइयों और दुल्हन तीनो बहनों के साथ जानकी जी ने उसी वृक्ष की घनी छाँव में विश्राम किया था। आदि वाल्मिीकि रामयाण में भी पंथ पाकड़ का ज़िक्र ’पंथि पर्कटी’ के रुप में आया है। आज वह वृक्ष सैंतीस विशाल वृक्षों का समूह बन गया है। मुख्य पेड़ जहाँ जानकी जी की डोली ठहरी थी वहाँ उनकी पिंडी के रूप की पूजा की जाती है। जिसके साथ रामजानकी का मंदिर है। पेड़ों से ढका यह मनोरम पवित्र स्थान बहुत अलग सी अनुभूति देता है। 





 जय शंकर साही, अरुण साही, राम निहोरा साही और भी हम सब को पंथ पाकड़ के बारे में बता रहे थे। मसलन पतझड़ के मौसम में कभी भी  इन सभी पेड़ों के पत्ते एक साथ नहीं झड़ते। लगता है जैसे इन वृक्षों ने आपस में अपना क्रम तय कर रखा है कि कब किसको पत्ते छोड़ने है। इसलिए यह स्थान हरा भरा सदाबहार है। कोई टहनी तक नहीं तोड़ता। यहाँ के पत्तों से भी बहुत स्नेह है जिन्हें कभी जलाया नहीं गया। धरती में दबा देते हैं। बारह महीने किसी न किसी पेड़ पर फल लगा रहता है। मंदिर की परिक्रमा करते समय झुकना भी पड़ता है। क्योंकि कोई शाखा नीचे है। बच्चे की छठी पूजने यहाँ आते हैं। गाय के गोबर से कोई आकृति सी बना देते हैं। पेड़ों से घिरा एक बहुत सुन्दर तालाब है।




उसके पानी में कभी कीड़े नहीं पड़े। घने पेड़ों की छाँव में उसका पानी हरा लगता है। कहा जाता है कि यहाँ सीता जी ने स्नान किया था। इस जगह पर आज भी इस क्षेत्र के बड़े बड़े विवादों का निपटारा किया जाता है। ऐसा लोगों का विश्वास है कि इस स्थल पर किसी विवाद का सहज और सत्य निपटारा हो जाता है। एक यह भी लोककथा है कि सीता जी ने रात्रि विश्राम के बाद पाकड़ की दातुन से अपने दाँत साफ किए थे और उस दातुन को फेंक दिया था। जिससे एक पाकड़ का पेड़ जन्मा और विशाल दायरे में फैला यह स्थान उसी एक पेड़ की शाखाओं से स्वयं नए नए बने पेड़ों से आच्छादित है। पंथ पाकड़ को पंडौल के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ साल भर भारत और नेपाल से श्रद्धालु आते हैं। विवाह योग्य लडका लड़की दिखाने का यहाँ परिवार आपस में तय करते हैं।

 यहाँ हमें नाश्ता करवाया गया। दहीं बहुत गज़ब का जमा हुआ था। 

सीतामढ़ी रेलवे स्टेशन से यह 8 किमी. दूर है और नजदीकी हवाई अड्डा पटना है।

क्रमशः