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Tuesday, 26 September 2023

नए भारत का बाल साहित्य Part 5 Neelam Bhagi

 

नौएडा में अलग अलग राज्यों से लोग आ रहे थे। परिवारों की आय में, परिवेश में, माहौल में स्टेटस में फर्क था पर बच्चे हमेशा एक से ही होते हैं। रीडिंग सीखते ही पंचतंत्र, हितोपदेश, अमर कथाएँ, जातक कथाएँ और अकबर बीरबल सभी बहुत चाव से पढ़ते थे।


  राजीव खे़रोर डायरेक्टर (लॉस एंजिल्स अमेरिका) का कहना है कि भारत का बाल साहित्य लेखन के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए, जो बच्चों को उनकी संस्कृति, सभ्यता और विरासत से जोड़ता हो और उनपर कार्यक्रम भी बनें। जैसे

आस्ट्रेलियाई ब्रॉडकास्टिंग कंपनी दुनिया में सबसे ज्यादा बच्चों के कार्यक्रम बनाती है। यह आस्ट्रेलियाई सरकार का विश्वास है कि लोगों की एक बेहतर पीढ़ी बनाने के लिए हमें बच्चों के लिए ज्ञानवर्धक कार्यक्रमों की आवश्यकता है, ताकि उन्हें बेहतर इंसान बनाने के लिए संज्ञानात्मक कौशल विकसित हो सकें। वे उन कंपनियों को उत्पादन का पैसा देते हैं जो बच्चों के ज्ञानवर्धक कार्यक्रम बना रही हैं। और यही कारण है कि ऑस्टेªलियाई बच्चों के कार्यक्रम दुनिया के सभी प्रसारण नेटवर्कों के लिए सिंडिकेट हैं।         

 अर्पणा भारद्वाज बोस्टन कंस्लटैंट ग्रुप, मैनेजिंग डॉयरैक्टर एण्ड र्पाटनर का, नये भारत के बाल साहित्य के बारे में विचार है कि ’’यह सलेबस से अलग समझ बढ़ाने वाला हो। वैज्ञानिक दृष्टिकोण का ध्यान रख कर रचित हो न कि अंधविश्वास और भाग्यवाद को परोसता हो। बालमन पर इसका बहुत असर होता है। जिसका प्रभाव बचपन में पढ़ने वाले पर और बाद में कहीं न कहीं, उसके बच्चों पर भी पड़ता है। जैसे मुझे भारत छोड़े बीस साल हो गए हैं। मेरे मन पर रामायण, महाभारत के प्रसंगों का प्रभाव है। अपनी बेटी रेया को उनके द्वारा ही फैमली वैल्यू सिखाती हूँ। इसलिए स्कूल में मंडारिन की जगह वह हिंदी शौक से पढ़ती है। ताकि वह खुद से ही उन कहानियों को हिंदी में पढ़े’’    

अभिजात भारद्वाज सी.सी.ओ( सी. एल. ओ. मुंबई) का कहना है कि नये भारत के बाल साहित्य में बच्चे सही पढ़े। जिससे उनमें स्वाभीमान जागे। मसलन शिवाजी ,राजा चोल आदि। आजकल किसी भी सोसाइटी के प्ले एरिया में जाकर देखें। बच्चे टेढ़े मेढे़ अंदाज में अंग्रेजी बोलते मिलेंगे। नाम भी उनके बिना किसी अर्थ के दिया, टिया, मिया, लिया आदि हैं। जो अमेरिका के लिए तैयार किए जा रहें हैं। वीजा मिलते ही देश छोड़ चल देंगे। विदेशियों को उनके नाम लेने में परेशानी न हो इसलिए नाम भी ऐसे रखें हैं। इसलिए पढ़ने की संस्कृति को विकसित करना होगा, जिससे भारत के गौरवशाली इतिहास को जानें।

जिन बच्चों को पढ़ने की आदत हो गई है तो अब सुविधाएँ भी बहुत हो गईं हैं। कहीं जाना हो तो किताबें उठा कर जाने की बजाए किंडल साथ है तो किताब उपलब्ध है। किताब की तरह ही पेज हैं। कोई शब्द समझ न आए तो उस पर अर्थ भी तुरंत सामने है। पर मकसद है कैसा साहित्य उनको संवेदशील बनायेगा। मनोरंजक ढंग से बच्चों के मानसिक स्तर के अनूरूप तार्किकता जगाने वाली सामग्री हो, जिसे बच्चे दिल से पढ़ें। उसे पर्यावरण, अपनी संस्कृति और सभ्यता से जोड़ना होगा। देश जितने साल गुलाम रहा, उतने साल आजादी के लिए संघर्ष भी चला, बताना होगा। अपने पर्वो की कहानियों से परिचय करवाना जरुरी है। क्योंकि उत्सव समाज को जोड़ता है। अपने ऋषि मुनियों की जीवन गाथा से परिचय कराने वाला लेखन हो। महापुरुषों का सरल ढंग से परिचय कराना है। इस सब के लिए लिखते समय, बच्चे का मन लेकर, बचपन में उतरना होगा। तभी वह नये भारत का बाल साहित्य होगा। डिजिटल युग है इसलिए नये भारत के बाल साहित्य में बच्चे के परिवेश को, लोकजीवन, गाँव, गरीब आदिवासी बच्चों को समुचित स्थान देना होगा क्योंकि साहित्य सबके लिए है।  भारत का बाल साहित्य पढ़ते हुए, उसके जीवन में ईमानदारी, हर्ष, उल्लास, आत्मविश्वास आए। उसे पता ही नहीं चले कि कब उनमें पढ़ने की आदत हो गई है और किताबों से दोस्ती हो जाए। उत्त्कर्षिनी मंच पर बेस्ट डॉयलॉग राइटर का अवार्ड ले रही थी और मेरी आँखों से टपटप आँसू बह रहे थे।




 

कहानी भाग्यवादी और भूत प्रेत वाली नहीं नीलम भागी नए भारत का बाल साहित्य Part 4

 




लोरी
, पालना गीत, तुकांत कविता घर में सुर और लय से सुनते हुए जब बच्चा नर्सरी में आता तो इसी शैली में मौखिक चित्रों के साथ बच्चों का पुस्तकों से परिचय कराया जाता था। स्थानीय किवंदतिंयों से जानी गई कहानियाँ, आस पास के पशु पक्षियों से संबंधित कहानियाँ, सुनाने से उनकी मौखिक भाषा शैली संवरती। मेरी दादी बहुत ग़ज़ब की कहानी बाज थीं । उनकी कहानी में कवित्त ज़रुर होता था। बाइस साल मैंने देखा बच्चों को मेरी दादी की कहानी बहुत अच्छी लगती थी। कौआ चिड़िया की खिचड़ी की कहानी का कवित्त बच्चे घर में गाते हुए जातेे थे। उनकी कहानी में एक दागड़दौआ था। बी.एस.सी. तक मेरे पास जूलॉजी थी, उसमें और चीड़ियाघर में मैंने दागड़दौआ कहीं भी न देखा, न पढ़ा। पर बच्चों को एक बार में उसका कवित्त याद हो जाता था। दादी की कहानियाँ कभी भी भाग्यवादी और भूत प्रेत वाली नहीं थीं। इसलिए बच्चों को जो भी बताया सुनाया जाता, उसका मनोरंजक होना पहली शर्त थी।

   जैसे हाथी का चित्र लगा कर बाल गीत

हाथी आया, हाथी आया।

झूम झूम कर आता है।

अपने कान हिलाता है।

लंबे दाँत दिखाता है।

छोटी पूंछ हिलाता है।

थप थप करता आता है।

हाथी मुझको भाता है।

बाइस साल तक पहले दिन स्कूल आने वाले बच्चे इसे गाते हुए घर जाते थे। फिर उन्हें हाथी और दर्जी की कहानी सुनाई जाती थी। इसी तरह नई नई बच्चों के मन के अनुकूल रचना की जाती जो बच्चों में हिट हो जाती यही तो बाल साहित्य है जो समय और बच्चों की आयु के अनुसार विकसित होता जाता है। कई बार हटाना भी पड़ता था। जैसे

नई बच्ची ने आते ही कविता सुनाई


चक्की रानी, चक्की रानी।

उसमें आटा पीसेगे,

रोटियाँ पकायेंगे। 

भइया को खिलायेंगे।

भइया पढ़ने जायेगा।

अफसर बनके आयेगा।

बाल मन पर, हर बात बहुत असर करती है। यह तो बेटा बेटी में भेद भाव कर रही है। ऐसे बालगीत को बदला। क्रमशः 





बच्चे को पढ़ने की आदत तो बाल साहित्य से ही मिलेगी! नीलम भागी Part 3


 जो बच्चा मुझे हिंदी पढ़ कर सुना देता था, उसे अब कहानी की किताब घर ले जाने को मिल जाती थी। क्योंकि अब उसे कक्षा अनुसार पाठ्यक्रम स्कूल में करना है। जो बच्चा कक्षा कार्य पहले कर लेता, वह बाकियों को डिस्टर्ब न करे। उसे स्कूल में पढ़ने को लोक कथाएँ देकर व्यस्त कर दिया जाता था। किताबें खरीदते समय मैं ध्यान रखती कि उसमें बच्चों के मन की बात, उनकी मूल प्रवृतियाँ, मनोरंजक ढंग से उनकी भाषा में लिखी हों। जिस किताब को उत्त्कर्षिनी पूरा पढ़ कर ही छोड़ती थी। मुझे वही किताब बच्चों के लिए उपयुक्त लगती थी। उत्त्कर्षिनी भी हमारे इस प्रयोगशाला स्कूल में पाँच साल पढ़ी थी। गर्मी की छुट्टियों में बचत के लिए ये प्रवासी बच्चों को गाँव भेज देते थे। इस समय मैं खाली रहती तो बाल साहित्य पर शोध उत्त्कर्षिनी पर करती। नये बस रहे नौएडा में जीविका के लिए लोग अपना काम भी कर रहे थे। अगर कहीं किराये पर किताब देने की दुकान खुलती  तो मैं उत्त्कर्षिनी को लेकर दुकानदार से बात करती कि मुझसे खाता नहीं खोला जायेगा। सब किताबों का किराया एडवांस में लो। ये किताबें पढ़ती जायेगी और बदलती जायेगी। बेटी भुक्खड़ों की तरह सब किताबें चाट जाती थी। जो किताबें उसे बहुत पसंद आतीं, उन्हें मैं बच्चों के लिए खरीद लेती। अब मैंने उसे डिक्शनरी देखना सिखा दिया। वह अखबार में बच्चों का कोना पढ़ने लगी। मैं समझ गई कि ये नदी की मछली नहीं है, इसे समुद्र चाहिए।

इसको दिल्ली में बी.सी.राय चिल्ड्रन लाइब्रेरी की मेम्बरशिप ले दी। मेरी मजबूरी को समझ कर ये किताबों की दुनिया में खो गई। सप्ताह की आठ किताबें पढ़ जाती थी।

बच्चे को पढ़ने की आदत तो बाल साहित्य से ही मिलेगी। मेरे घर के पास दिल्ली के स्कूल की ब्रांच खुली। मैंने तुरंत उत्त्कर्षिनी जो उस समय किताब पढ़ रही थी, उससे छीन कर रखी और तीसरी कक्षा में उसका एडमीशन करवाने पहुँच गई। क्योंकि यहाँ से वह अपने आप आ जा सकती थी। इसने टैस्ट में न बोला न लिखा। मैं समझ गई कि कहानी छिनने का गुस्सा है। प्रिंसिपल बोली कि इतनी बड़ी लड़की यह तो नर्सरी के लायक भी नहीं है। मैंने कहा,’’आप मुझसे एक साल की फीस एडवांस लीजिए। मुझसे लिखवा लीजिए। एक महीने बाद अगर ये कक्षा के लायक नहीं होगी। फीस रख कर इसे निकाल दीजिएगा। नया स्कूल था बच्चों की जरुरत थी शायद इसलिए एडमीशन हो गया। पढ़ने की स्पीड के कारण पहले महीने वह पहले तीन बच्चों में थी। क्रमशः



     

पाठशाला और प्रयोगशाला नए भारत का बाल साहित्य नीलम भागी भाग 2Part 2

अपने पच्चीस साल के प्रयोग से प्राप्त परिणाम से लिख रही हूँ। मैं 1982 में नोएडा रहने आई। देश के नामी स्कूलों को सस्ते दरों पर जगह दी गई, पर जिसमें स्टेटस, आय, माता पिता की शैक्षिक योग्यता आदि उनके नियमों के अनुसार दाखिला दिया जाता था। या सरकारी दूर कहीं प्राइमरी स्कूल था। ऐसे में असंगठित क्षेत्रो के कामगारों आदि के दूर दराजों से आए बच्चों के लिए मैंने घर में पाठशाला खोल ली। जो पाठशाला कम, प्रयोगशाला अधिक थी। मैंने बी.एड में चाइल्ड साइक्लोजी बहुत मन से पढ़ी थी। दो सौ से अढाई सौ बच्चा, तीन से बारह साल का हमेशा रहता, इसमें पढ़ता था। मेरी क्षमता के कारण संख्या हमेशा इतनी रही लेकिन बच्चे बदलते रहते थे। कारण था नौएडा भी विकास कर रहा था। जिससे कुछ की आय भी बढ़ रही थी। उसके बच्चे का पब्लिक स्कूल में एडमीशन हो जाता तो वह औरों को मेरे यहाँ पढाने की सलाह देता था। कुछ ऐसे भी थे मसलन भवन बनाने राज मिस्त्री, लेबर आते थे जिनके बच्चे मेरे यहाँ पढ़ने बिठा दिए जाते। भवन तैयार हो गया। तोे अब जहाँ काम मिला उन्होंने वहाँ झुग्गी डाल ली। बच्चों की पढ़ाई छूट गई।

  और मेरी याद में बी.एड. में पढ़ी कोठारी कमीशन की रिर्पोट आ जाती कि पचास प्रतिशत बच्चे प्राइमरी शिक्षा पूरी करने से पहले स्कूल छोड़ देते हैं। अब मन में एक संकल्प लिया कि मेरे स्कूल में जो भी बच्चा आयेगा, सबसे पहले उसे हिंदी पढ़ना सिखाना है। क्योंकि पता नहीं कब उसके पापा की फैक्टरी बंद हो जायेगीे। पापा बच्चों को गाँव भेज कर नई नौकरी की खोज में लग जाते। मैंने इस बात को ध्यान में रखा और दाल रोटी की जरुरत ने नये नये तरीके भी सुझाए। इनमें ऐसे बच्चे भी थे जिनके माता पिता हस्ताक्षर करना भी नहीं जानते थे। इसलिए इन्होंने जो सीखना था, स्कूल से ही सीखना था। उस समय चंपक, नंदन, चंदामामा, लोक कथाएँ, पंचतंत्र की कहानियाँ, कॉमिक्स आदि मंगा कर रखती थीं। मेरा मन बच्चे का हो गया था। हाथ में तस्वीरों वाली कहानी की किताब लेकर प्रतिदिन किसी न किसी कक्षा में कहानी सुनाने जाती। पहले किताब के पन्ने पलट कर चित्र बच्चों के सामने करती फिर उन्हें एक कहानी सुनाती। उस कहानी में बीच बीच में बच्चों को भी शामिल करती, वो भी बोल कर अपनी राय देते। इसलिए मैं जिस कक्षा में जाती बच्चे पहले तालियाँ बजाते थे। कहानी सुनाने के बाद मैं कभी नहीं पूछती कि बच्चों तुम्हें इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है? शिक्षा सीख आदि देने के लिए तो पाठ्यक्रम में किताबें हैं न! ये तो छोटी छोटी कहानियाँ, सरल भाषा शैली में, संवाद शैली अधिक और शुद्ध मनोरंजन के लिए सुनाती थी। जब बच्चे कहानी में बुरी तरह से खो जाते यानि सुई पटक सन्नाटाहोने पर मैं किताब में बीच बीच में देख कर बोलती, ताकि बच्चों को लगे कि पुस्तकों में कितनी अच्छी अच्छी कहानियाँ होती हैं! जिससे उनमें किताबें पढ़ने का शौक जागता था। क्रमशः 



भारत का बाल साहित्य नीलम भागीPart 1

 


फिल्म फेयर 2023 के पुरुस्कार समारोह में मैं बैठी अपने आस पास देश की नामी हस्थियों को देख रही थी। इन्हेें मैंने स्क्रीन पर, अखबारों में, रजत पटल पर ही देखा था। हम जहाँ बैठे थे वहाँ वे ही व्यक्तित्व बैठे थे, जिनका नॉमिनेशन किसी न किसी कैटागिरी में था या जिनके हाथों से विजेताओं को पुरुस्कृत किया जाना था। आज साक्षात देख कर मैंने उत्त्कर्षिनी वशिष्ठ(बेस्ट डॉयलॉग लेखन के लिए ज़ी सिनेमा अर्वाड, आइफा अवार्ड बेस्ट डॉयलॉग लेखन और बेस्ट स्क्रीन प्ले के लिए आइफा अवार्ड, 69वें नेशनल फिल्म अर्वाड बेस्ट डॉयलॉग लेखन और बेस्ट स्क्रीन प्ले लेखन उसके द्वारा लिखित पहली फिल्म गंगुबाई काठियावाड़ी पर सरबजीत आदि बाद में लिखी ) से कहा,’’बेटी, यहाँ जिसे भी देख रहीं हूँ, उन्होंने यहाँ तक आने में कितनी मेहनत की होगी! तुझे तो लेखन में लीन देख कर मुझे लगता था कि तपस्या इसे ही कहते हैं। तेरे कारण मैं यहाँ बैठी हूँ।’’सुनते ही बेटी ने जवाब दिया,’’माँ, बचपन में आपने जिस तरह से बाल साहित्य से मुझे परिचय करवा कर पढ़ने की आदत डलवाई थी, मैं उसका प्रॉडक्ट हूँ और आपके कारण यहाँ नामित हूँ।’’ हम समय से पहुँच गए थे। सैलिब्रिटी का इंतजार हो रहा था और मेरे ज़हन में भारत के बाल साहित्य पर शोध चल रहा था। जिसकी बुनियाद जीविका के लिए किया गया मेरा संर्घष था। क्रमशः




Sunday, 24 September 2023

राष्ट्रीय बेटी दिवस और नदी दिवस नीलम भागी



मेरी  दादी  जिनके प्रदेश का नाम भी नदियों पर  है पंजाब। आपने नदियों पर गीत, चालीसा, कविताएं सुनी होंगी। पदमश्री विलक्षण लोक गायिका मल्लिका ए नौटंकी गुलाब बाई का एक बहुत मशहूर गाना "नदी नारे न जाओ श्याम पैया परूं" जिसे  फिल्म में लिया पर उस पहली नौटंकी वाली महिला को क्रेडिट तक नहीं दिया। नदियों की आरती भी सुनी होगी। पर नदी से संबंधित गाली नहीं सुनी होगी। जो मेरी दादी पंजाबी में हम  बहनों को नाम से नहीं बुलाती हमेशा आवाज लगती  

नी रूड़ जानिए 

रूड का मतलब होता है, बह जाना और बहाके तो नदिया ले जाती हैं। मतलब अरी मैंने सुना तुम बह गई हो। लेकिन उन्हें पूरे भारत की नदियों के नाम याद थे क्योंकि घर में पलने वाली गाय का नाम नदी के नाम पर होता । बछिया के जन्म लेते ही उसका नाम गोदावरी, कावेरी, गोमती, गंगा, यमुना आदि रखती। उनका मानना था कि जैसे इन नदियों में पानी सदा बहता है। इस तरह नदी नाम की गाय दूध से परिवार का पोषण करेंगी। पर हमारा नाम नी उड़ जानिए ही रहता। लेकिन आज बेटियां कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं और नदियां प्रदूषित और विलुप्त हो रहीं हैं।





Monday, 11 September 2023

बहुत प्यारी सोच नीलम भागी Bahut Pyari Soch Soch Neelam Bhagi

 

रक्षा बंधन मनाने के पीछे हमारे पूर्वजों की बहुत प्यारी सोच है। गांव की बेटी, दूसरे गांव में ब्याही जाती है। उसके सुख दुख की खबर भी रखनी है। माता पिता सदा तो रहते नहीं हैं। उनके बाद भाई बहन की सुध लेता रहे। इस त्यौहार पर भाई के घर बहन आती है या भाई, बहन के घर राखी बंधवाने जाता है। बहन भाई का यह उत्सव परिवारिक मिलन है। प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन सावन मास की पूर्णिमा को  मनाया जाता है। भगवान कृष्ण ने जब शिशुपाल का वध किया था तो उनकी अंगुली से रक्त बहता देखकर द्रोपदी ने अपनी साड़ी चीर कर उसका टुकड़ा उनकी अंगुली पर बांधा था। तभी से रक्षा बंधन मनाने की परंपरा है। अब छोटे परिवार हैं। कहीं दो भाई हैं, कहीं दो बहने हैं। उत्कर्षिणी  जब भारत में होती है तो  संयुक्त परिवार होने से सब बहन भाई एक दूसरे को राखी बांधते हैं। जब अमेरिका में होती है तो त्योहार भारत की तरह मानते हैं। राखी गीता और दित्या एक दूसरे को बांधती हैं।#Rakshabandhan

Friday, 8 September 2023

जन्माष्टमी पर मथुरा के पेड़े नीलम भागी

 


मैं मुंबई जाते समय मथुरा के पेड़े लेकर जाती थी। मथुरा का स्टेशन आने से पहले अटेंडेंट से कह देती थी कि मुझे 2 किलो पेड़े चाहिए। स्टेशन पर बृजवासी की पेड़ों की दुकान है। मेरा डब्बा पता नहीं कहां लगे? इसलिए मैं उन्हें कहती और वह हमेशा मंगा देते। गीता को  मथुरा के पेड़े बहुत पसंद हैं । उसका स्वाद बना रहे इसलिए मैं उसे एक सुबह और एक शाम को देती। अब अमेरिका में रहने से वह मथुरा के पेड़े का स्वाद नहीं भूली है। उत्कर्षिनी खूब अच्छे से खोया बना कर, भूनती  है और वही रंग देती है। गीता  मां की मदद करते हुए पेड़े बनाती है। और जन्माष्टमी पर बने पेड़े आप देखिए। पेड़ों की शेप मथुरा जैसी नहीं है पर स्वाद में मथुरा से कम नहीं होंगे। क्योंकि उत्कर्षनी लाजवाब कुक है। हर त्यौहार पर बनने वाली मिठाई, वह स्वयं बनाती है। गीता दित्या अपने त्योहारों का खूब इंतजार करती हैं। उत्कर्षिनी भारतीय त्योहारों को बहुत श्रद्धा से मनाती है। अपनी व्यस्तता में भी मिठाई बनाती है और बेटियों को त्यौहार की कहानी सुनाती है।






Thursday, 7 September 2023

साड़ी में नारी Rang Sari Mahotsav

 


निज संस्कृति से जुड़े रहने के साथ महिला  सशक्तिकरण का संदेश दे गया *"रंग साड़ी महोत्सव”*#RangSariMahotsav

 नोएडा में आयोजित “रंग साड़ी उत्सव” का मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण पर पर जोर देना और महिला उद्यमियों को कार्यस्थल पर भी साड़ी पहनने के लिए प्रेरित करने व उनके द्वारा संचालित व्यापार को आत्मनिर्भरता के साथ बढ़ाने के लिए प्रेरित करना था।कार्यक्रम में 100 से ज्यादा महिला उद्यमियों ने भाग लिया। 

       इस महोत्सव में उत्कृष्ट सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झलकियां भी देखने को मिली । साथ ही साड़ी में रैंप वॉक करने वाली महिलाओं की क्राउन पहना कर सम्मानित भी किया गया। यह कार्यक्रम डॉ. निधि बंसल (फाउंडर "रंग साड़ी" ) , दिपाली जैन (बेटियां फाउंडेशन) एवं अदिति बंसल(फाउंडर, स्टूडियो वोवेन वॉल्स) के संयोजन में आयोजित किया गया था । उत्सव का आरंभ प्रीति शर्मा द्वारा गणेश वंदना से हुआ, संगीता दत्ता का मंच संचालन भव्य रहा। आरसी बंसल ने उत्सव के आयोजन की पूरी बागडोर अपने हाथ में ली और मजबूती से निभाया। कार्यक्रम के माध्यम से महिला उद्यमियों के द्वारा चलाए जा रहे स्टार्टअप्स का आगाज हुआ ।

    इस कार्यक्रम में गिफ्टिंग पार्टनर्स ने अपने द्वारा बनाए गए उत्पाद सभी अतिथियों को भेंट किए। गिफ्टिंग पार्टनर्स के तौर पर ओजे ऑर्गेनिक्स सैन्फे, ओरिफ्लेम, हैल्थ बेकर्स, तामी, स्टूडियो वोवेन वॉल्स, स्पाइसी शूगर, रंगली रंगलियट,मानसून सैलून, वैन्टेज आदि ने कार्यक्रम में भाग लिया । 

     कार्यक्रम के दौरान "महिला उद्यमिता एवं वित्तीय साक्षरता" विषय पर सारिका जैन, अन्जू जैन, डॉ संगीता तनेजा, कंचन मित्तल, संगीता वार्षणे आदि के द्वारा सारगर्भित परिचर्चा की गई।कार्यक्रम के दौरान डॉ निधि बंसल ने “बेटियां फाउंडेशन” के नोएडा डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टर का पदभार ग्रहण किया। साथ ही डॉ निधि बंसल को ओ.जे. आर्गेनिक्स का ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया। इस अवसर पर शिल्पी बहादुर,मोनिका मल्होत्रा,तन्वी चावला,अम्बिका खेत्रपाल,विभा जैन सभी को गेस्ट ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया ।लोक उत्थान कल्ब के फाउंडर आर पी हंस ने सभी साड़ी वाकर्स को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया एवं नोएडा के इनर व्हील कल्ब ने सभी वाकर्स को क्राउन पहना सम्मानित किया। समाजसेवी व पत्रकार मनीष गुप्ता ने जनसंपर्क का कार्य बखूबी निभाया।

    इस विशिष्ट व अनूठे कार्यक्रम में देश की शिक्षा, सनातन, संस्कृति, सभ्यता, स्नेह, सम्मान एवं स्वाभिमान का अद्भुत समागम देखने को मिला ।

उल्लेखनीय है कि  'रंग साड़ी' डॉ निधि बंसल द्वारा संचालित एक ऐसा मिशन है जिसके तहत भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने और बनाए रखने के लिए महिला उद्यमियों एवं घरेलू महिलाओं को साड़ी पहनने के लिए प्रेरित किया जाता है। डॉ. निधि बंसल बेहतरीन कवयित्री एवं लेखिका होने के साथ साथ सामाजिक मंचों का संचालन भी करती हैं। "रंग साड़ी" मिशन की कल्पना व शुरुआत डॉ निधि द्वारा की गई है।  इसके अलावा एक टॉक शो लेट उर्जा टॉक्स भी डॉ निधि बंसल के द्वारा ही संचालित किया जाता है।

भवदीय

मनीष गुप्ता