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Tuesday, 26 November 2024

भारत की महक का आनंद!!🙏 नीलम भागी

 


राष्ट्र की संस्कृति को लेकर आयोजित लोकमंथन 20 24 भाग्य नगर में शामिल होने के लिए जब मैं एयरपोर्ट पहुंची तो वहां पर विदेश से आए ग्रुप भी मेरी फ्लाइट में थे। बेल्ट से सामान उठते समय भी  कोई हाय हेलो नहीं थी।  कार्तिक ने पिकअप के लिए हमें एक जगह बिठाया तो परिचय हो गया। होटल के लिए एक ही बस में बैठे बस  हाइटेक सिटी हैदराबाद की ओर चल दी। मेरे आगे आयोवा और साइड में ईवा बैठी थीं। ये आर्मेनिया और लिथुआनिया से थीं। बस चलते ही अपनी भाषा में बहुत सुंदर गाने लगी। पहले तो मैं इनकी भाषा ना जानते हुए भी, इनकी खुशी में गाए हुए गीत के भाव को समझते हुए, आनंद उठाती रही फिर मैं उठकर वीडियो बनाने लगी , ईवा तो हंस कर चुप हो गई। शाम को ठंड हो गई थी। मैंने आयोवा  से कहा, खिड़की बंद कर लो। उसने जवाब दिया मैं भारत में आई हूं। मैं यहां की आवाज को, हवा को और जो यहां कि महक आ रही है, खिड़की खोलने से  सबको महसूस करते हुए आनंद उठा रही हूं। यह सुनकर मैं उस भाव को लिख नहीं सकती जो मैंने महसूस किया।




Wednesday, 20 November 2024

अच्छे लोगों के काम की प्रशंसा तो होनी ही चाहिए नीलम भागी





 


हैदराबाद लोकमंथन के लिए समय से काफी पहले एयरपोर्ट पहुंचे गई। सिक्योरिटी जांच  के बाद पर्स और इन्हेड सामान उठाकर इंडिगो उड़ान संख्या 6E5198 के लिए गेट नंबर 51 पर टहलते हुए पहुंची। समय खूब है।  सुबह से मोबाइल देखा नहीं था। मोबाइल देखने का सोचा तो मोबाइल था ही नहीं! पर्स अच्छी तरह देखा। मोबाइल नहीं! याद आया कि मैंने सिक्योरिटी जांच में ट्रे में से पर्स उठा कर, जल्दी में मोबाइल ट्रे में छोड़ दिया। 51 नंबर गेट पर रोमन जी बैठी थी। मैंने उनसे कहा कि मेरा मोबाइल छूट गया है सिक्योरिटी में। अपना बैग  मैं यहां छोड़ जाऊं। उन्होंने मुझे तसल्ली दिया कि आपके पास समय है। सामान आप सामने सीट पर रख दीजिए, मैं बैठी हूं। मैं घबराई हुई चल दी।  रास्ते में कोई भी बग्गी नहीं मिली। दो पोर्टल सर्विस वाले मिले उनसे मैंने पूछा कितनी दूर है सिक्योरिटी? मैं आगे निकल गई थी वे वापिस  मेरे साथ आकर 27 नंबर से मुझे रास्ता समझा कर वे गए। सिक्योरिटी में  वहां पर हंसराज यादव जी से मैंने बात की। उन्होंने मुझे यह नहीं कहा कि आप हेल्प डेस्क पर जाइए बल्कि मेरे साथ हेल्प पर पहुंचे और मेरे सामने मोबाइल ऑन करवाया और फटाफट अपनी ड्यूटी पर जाकर बैठकर गए। वहां पता चला मोबाइल में बार-बार कॉल आ रही थी तो ट्रे में मेरा मोबाइल देखकर संभाल लिया। कॉल देखी तो हमेशा की तरह हमारे राष्ट्रीय मंत्री प्रवीन आर्य जी की कॉल थी। उन्हें कॉल बैक की। हमेशा की तरह उन्होंने   जानकारी  ली । मैंने बता दिया कि लोकमंथन हैदराबाद  से फोन आ गया है अभी कि कहां से पिकअप होगा। अभिषेक अपने रास्ते पर जाते हुए भी मेरे पूछने पर तुरंत बागी मोड़ कर ले आए और मुझे बिठाया। और गेट नंबर 51 पर छोड़ दिया। इतना कोऑपरेटिव स्टाफ देखकर बहुत अच्छा लगा। रोमन कहने लगी," मैंने आपको तुरंत इसलिए भेजा था एक घंटे के ऊपर हो जाता है तो मोबाइल जमा हो जाता है। मिल  तो जाता पर थोड़ा प्रोसेस लंबा हो जाता है। और मैं सोच रही थी कि अगर मोबाइल न मिलता तो मैं क्या करती! क्योंकि मुझे तो कोई मोबाइल नंबर भी नहीं याद। इसी में मेरी टिकट बगैर है और पहली बार हैदराबाद जा रही थी। पोर्टल वालों का नाम पूछना गई। और मैं हैदराबाद पहुंच गई लोक मंथन के लिए ।


Friday, 8 November 2024

आज के दिन कन्हैया गोपाल बने नीलम भागी नीलम भागी

 

कृष्ण और बलराम इस दिन से गाय चराने गए और गोपाल बने। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी यानि गोवर्धन पूजा के सातवें दिन को गोपाष्टमी  के रुप में मनाया जाता है। यह उत्सव श्री कृष्ण और उनकी गायों को समर्पित है। इस दिन गौधन की पूजा की जाती है। गाय और बछड़े की पूजा करने की रस्म महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी के समान है। हमारे परिवार में तो गाय परिवार का मुख्य सदस्य  थी तभी तो फैमली फोटोग्राफ में होती है। मेरी बेटी उत्कर्षनी वशिष्ठ(अंतर्राष्ट्रीय लेखिका) विदेश में कहीं भी जाती है तो कुछ भी खाने से पहले इनग्रेडिएंट चेक करती हैं कि उसमें बीफ तो नहीं है क्योंकि वह गंगा का दूध पीकर और उसकी बछियों यमुना आदि  के साथ खेलते हुए पली है।

गोपाष्टमी पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। नीलम भागी





Monday, 4 November 2024

नदी केन्द्रित, लोककथाओं से समृद्ध नवंबर के उत्सव नीलम भागी November Festivals Neelam Bhagi

 



रवि की फसल की बुआई हो जाती है फिर बड़ी श्रद्धा और उत्साह से उत्सव मनाते हैं। इन सभी उत्सवों में प्रकृति, वनस्पति और जल है।



दीपावली उत्सव(1नव.) धूमधाम से मिट्टी के दिए जलाकर, पर लक्ष्मी जी की पूजा खील बताशे से की जाती है ताकि गरीब अमीर सब कर सकें। मेवा, मिठाई खूब खाया जाता है। दिवाली के अगले दिन पर्यावरण और समतावाद का संदेश देता, गोर्वधन पूजा अन्नकूट का उत्सव दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला कृष्ण प्रेमी परिवार के साथ या सामूहिक रुप से मनाता है। जिसमें 56 भोग बनते हैं। यम द्वितीया का त्यौहर भाई दूज, मथुरा में बहन भाई यमुना जी में नहा कर मनाते हैं। भाई, बहन के घर जाता है। बहन भाई का खूब आदर सत्कार करती है। भाई बहन को उपहार देता है।

सादगी, पवित्रता, लोकजीवन की मिठास का पर्व ’छठ’ है। छठ पर्व(5 से 8 नव.) में प्रकृति पूजा सर्वकामना पूर्ति, सूर्योपासना के निर्जला व्रत को स्त्री, पुरुष और बच्चों के साथ अन्य धर्म के लोग भी मनाते हैं। छठ पूजा, जिसमें किसी पुरोहित की जरुरत नहीं है। घाट साफ सफाई सब आपसी सहयोग से कर लेते हैं। बिहारियों का पर्व उनकी संस्कृति है। छठ उत्सव, प्रवासी अपने प्रदेश जैसा ही मनाता है। 

चार दिन का कठोर व्रत नहाय खाय से शुरु होता है। सूर्यास्त पर व्रती, चावल और लौकी की सब्जी को खाता है। दूसरा दिन निर्जला व्रत खरना कहलाता है। शाम सात बजे गन्ने के रस और गुड़ की बनी खीर खाते हैं। चीनी नमक नहीं। अब सख्त व्र्रत शुरु होता है निर्जला व्रत, दिन भर व्रत के बाद सूर्य अस्त से पहले घर में देवकारी में रखा डाला(दउरा) उसमें प्रकृति ने जो हमें अनगिनत दिया है उनमें से इसे भर कर, डाला को सिर पर रख कर सपरिवार घाट पर जाते हैं। व्रती पानी में खड़े होकर हाथ में डाले के सामान से भरा सूप लेकर सूर्य को अर्घ्य देती है। सूर्यास्त के बाद सब घर चले जातें हैं, फिर सूर्योदय अर्घ्य के बाद व्रत का पारण होता है।

वंगाला(8 नवं)मेघालय में गारो समुदाय द्वारा फसल कटाई से सम्बन्धित उत्सव है। गारो भाषा में ’वंगाला’ का अर्थ ’सौ ढोल’ है। सूर्यदेवता(सलजोंग) के सम्मान में गारो आदिवासी ’वांगला’ नामक त्योहार मनाते हैं। एक हफ्ते तक मौखिक, पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा से सूर्य की आराधना की जाती है। रंगीन वेषभूषा में सिर पर पंख सजाकर अंडाकार आकार में खड़े होकर ढोल की ताल पर नृत्य करते हैं।

गोपाष्टमी पर्व( 9 नव) श्री कृष्ण और उनकी गायों को समर्पित है। इस दिन गौधन की पूजा की जाती है। अक्षय नवमीं(10 नव.) जिसे आंवला नवमी भी कहते हैं। इस दिन स्वास्थ्यवर्धक आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है।

     कुछ उत्सव किसी अंचल में मनाए जाते हैं। कुछ देश भर में, भले ही नाम अलग अलग हों। जैसे दक्षिण भारत में कार्तिक मास के पावन अवसर पर काकड़ आरती का प्रारंभ, परम्परानुसार शरदपूर्णिमा के दूसरे दिन से होता हैं। देवउठनी एकादशी(12 नव.) के अवसर पर काकड़ आरती को भव्य स्वरूप दिया जाता है। तुलसी सालिगराम का विवाह(13 नवंबर)को मनाया जाता है। वारकरी सम्प्रदाय के बुजुर्ग बताते हैं कि संत हिरामन वाताजी महाराज ने 365 वर्ष पहले काकड़ आरती की शुरुआत की थी। आरती में शामिल होने के लिए श्रद्धालु प्रातः 5 बजे विटठल मंदिर में आते हैं और भजन मंडलियां पकवाद, झांज, मंजीरों एवं झंडियों के साथ नगर भ्रमण करती है। जगह जगह चाय, कॉफी, दूध एवं ंनाश्ते की व्यवस्था श्रद्धालुओं द्वारा रहती है। प्रत्येक मंदिर में सामूहिक काकड़ा जलाकर काकड़ आरती प्रातः 7 बजे तक, प्रशाद वितरण के साथ सम्पन्न होती है। इसी तरह उत्तर भारत में प्रभात फेरी निकाली जाती है।

गंगा महोत्सव(11 से 15 नव.) कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूणर््िामा भी कहते हैं। त्रिपुरास राक्षस पर शिव की विजय का उत्सव है। शास्त्रों में वर्णित है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी, में स्नान करते हैं। इसे देव दीपावली(15 नवम्बर ) गंगा दीपावली के रूप में मनाते हैं। गंगा नदी और देवी देवताओं के सम्मान में घरों में रंगोली बना कर तेल के दियों से सजाते हैं। महाभारत काल में हुए 18 दिन युद्ध के बाद की स्थिति से युधिष्ठिर कुछ विचलित हो गए तो श्री कृष्ण पाण्डवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान में आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पाण्डवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद दिवंगत आत्माओं की शंांित के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। भारत देश भक्ति से जुड़ा हैं। इस दिन बहादुर सैनिक जो भारत के लिए लड़ते हुए शहीद हो गए हैं उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है।  

  गुरू नानक जयंती(15 नवंबर) को गुरुद्वारों की सजावट देखने लायक होती है। शबद कीर्तन होता है और लंगर वरताया जाता है।

सामाजिक समरसता का प्रतीक ’वन भोजन’ भी कार्तिक मास में आयोजित किए जाते हैं। इसमें कुछ लोग मिलकर अपनी सुविधा के दिन, किसी नदी सरोवर के पास अपना बनाया खाना, लेकर प्रकृतिक परिवेश में एक जगह रख देते हैं। कोई प्रोफैशनल नहीं होता है, जिसे जो आता है वो अपनी प्रस्तुति देता है। खूब मनोरंजन होता है। फिर सब मिल जुल कर भोजन करते हैं। जल के किनारे शाम को दीपक जला कर लौटते हैं। 


बाली जात्रा कटक एशिया का सबसे बड़ा मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है। विशाल मैदान! जिसका मुझे अंतिम छोर नजर नहीं आ रहा था जो महानदी के गडगड़िया घाट पर लगता है। बाली जात्रा कटक, 2000 साल पुराने समुद्री संस्कृतिक संबंधों को दर्शाता है। प्राचीन काल में यहां के ओड़िआ नाविक व्यापारी जिन्हें ’साधवा’ कहा जाता था, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो (इंडोनेशिया), वर्मा (म्यांमार) सिलोन (श्रीलंका) से व्यापार करते थे। कार्तिक पूर्णिमा के दिन से यह 4 महीने के लिए व्यापार के लिए निकलते थे। इस समुद्री यात्रा में हवा इनका साथ देती थी। पाल वाली नाव हवा की दिशा और पवन ऊर्जा पर निर्भर यह नाविक, समुद्री व्यापारी, व्यापार के लिए चल देते थे।  इस बड़ी-बड़ी जहाजनुमा नाव को ’बोइतास’ कहा जाता है। जब यह व्यापार को जाते थे तो परिवार की महिलाएं उनकी कुशल वापसी के लिए अनुष्ठान करती थीं। जिसे ’बोइता वंदना’ कहते हैं, जो एक परंपरा बन गया है। उसके प्रतीकात्मक आज इसमें बोइता (छोटी नाव) उत्सव भी मनाया जाता है। यानि कार्तिक पूर्णिमा को सुबह जल्दी पूर्वजों की याद में ’बोइता वंदना’ अपने घर के आसपास, जहां भी जल होता है। उसमें सुबह-सुबह कागज या सूखे केले के पत्तों से नाव बनाकर, उसमें दीपक जलाकर और पान रखकर, उन जांबाज नाविकांे की याद में, जल में प्रवाहित करते हैं। पूर्वजों की यात्रा के प्रतीकात्मक रूप में समुद्री नाविक व्यापारियों के लिए है बाली जात्रा। कटक नगर निगम द्वारा आयोजित बाली यात्रा के एक कार्यक्रम में 22 स्कूलों के 2100 बच्चों ने 35 मिनट में 22000 कागज की नाव बनाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है। बाली यात्रा कीर्तिमान है और गिनी बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। पर्वों पर नदी स्नान करना हमारे धर्म में है। यहां तो पवित्र महानदी के किनारे बाली यात्रा का आयोजन किया जाता है तो श्रद्धालु ’बोइता वंदना’ के बाद महानदी में स्नान कर, धार्मिक महत्व की बाली जात्रा में शामिल होकर, मेले का आनंद उठाते हैं। यह व्यापार, वाणिज्य सांस्कृतिक खुला मेला है। लाखों की संख्या में यहां लोग आते हैं। एक ही स्थान पर सबके लिए सब कुछ है। युवाओं के लिए आधुनिक संगीतमय, सांस्कृतिक कार्यक्रम है, पारंपरिक कार्यक्रम है। विभिन्न विषयों पर चर्चा के लिए मंडप है। लोक संस्कृति की झलक है। स्थानीय व्यंजन दही बड़ा आलू दम, धुनका पुरी, कुल्फी गुपचुप आदि के खाद्य स्टॉल हैं, खिलौने, अनोखी वस्तुएं है व्यापार मेले का इतिहास है। हथकरघा, हस्तशिल्प, कला, अनुष्ठान हैं। प्राचीनता और नवीनता है। कलिंग(पूर्व में उड़ीसा) प्रसिद्ध शक्तिशाली समुद्री शक्ति थी। बाली जात्रा उड़ीसा के समृद्ध समुद्री विरासत का प्रतीक है।

झिड़ी का मेलाः जम्मू से 22 किमी. दूर झिड़ी गाँव है। इस स्थान पर बाबा जित्तो और बुआ कौड़ी का मंदिर है। जित्तो का जीवन हक, उसूलों और अधिकारों का संघर्ष है, उनकी याद में लगने वाला, उत्तर भारत में सबसे बड़ा वार्षिक किसान झिड़ी का मेला है। जिसमें मुख्य आर्कषण खेती बाड़ी से जुड़े स्टॉल होते हैं। झिड़ी गाँव में यह मेला कार्तिक पूर्णिमा से तीन दिन पहले और तीन दिन बाद तक क्रांतिकारी ब्राह्मण किसान, माता वैष्णों के परम भक्त ’बाबा जित्तो’ और उनकी बेटी, ’बालरुप कौड़ी बुआ’ की याद में लगता है। देश भर से आए श्रद्धालुओं को ठहराने के लिए स्कूल कॉलिज सब बंद रहते हैं और 24 घण्टे भण्डारा चलता है। श्रद्धालु बाबा तालाब में स्नान करते हैं। मन की मुराद पूरी होती है। ऐसा माना जाता है कि उसमें नहाने से त्वचा रोग ठीक हो जाते हैं, निसंतान को संतान प्राप्त होती है। मेले में किसानों से जुड़े लगभग डेढ़ दर्जन विभाग सक्रिय रहते हैं। मेले के मुख्य आर्कषण खेती, बागवानी, डेयरी, रेशम उद्योग, खादी, फलवारी, नवीन तकनीक, अच्छे माल मवेशी, दंगल और ग्रामीण खेल हैं। श्रद्धालु बुआ कौड़ी के लिए गुड़िया लाते हैं। बाबा जित्तो ने उस समय की सामंती व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे। आज किसान सबसे पहले अपने खेत का अनाज बाबा जित्तो को चढ़ाते हैं, बाद में अपने लिए रखते हैं क्योंकि उन खेतों में जाने वाला पानी बाबा जित्तो की ही देन है। 

 कार्तिक पूर्णिमा से शुरु होने वाला पुष्कर का ऊँट मेला(9से 15 नव), विदेशी सैलानियों को भी आकर्षित करता है। कई किमी. तक यह मेला रेत में लगता है जिसमें खाने, झूले, लोक गीत, लोक नृत्य होते हैं। कालबेलिया नृत्य ने तो विदेशों में भी धूम मचा दी है। ऊँटों को पारंपरिक परिधानों में सजाया जाता है। ऊँट नृत्य करते हैं और इनसे वेट लिफ्टिंग भी करवाई जाती है। रात को आलाव जला कर गाथाएं भी सुनाई जाती हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन लाखांे श्रद्धालु पुष्कर झील में स्नान करके ब्रह्मा जी के मंदिर में दर्शन करते हैं। अगर ऊँट खरीदना हो तो खरीदते हैं। सबसे सुन्दर ऊँट और ऊँटनी को इनाम मिलता है।   

जैन का धार्मिक दिवस प्रकाश पर्व है। 

रण उत्सव(1नवं से 28 फरवरी) गुजरात का रण उत्सव, अपनी रंगीन कला और संस्कृति के लिए विश्व प्रसिद्ध है। तीन महीने तक मनाये जाने वाले इस उत्सव में कला, संगीत, संस्कृति के साथ इसमें बुनकर, संगीतकार, लोक नर्तक और राज्य के श्रेष्ठ व्यंजन निर्माताओं के साथ कारीगर भी आते हैं। इस दौरान कलाकार रेत में भारत के इतिहास की झलक पेश करते हैं।

सोनपुर मेला(13नव से 14 दिसम्बर) गंडक नदी के तट पर एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला कार्तिक पूर्णिमा  स्नान के बाद शुरु होता है। चंद्र गुप्त मौर्य, अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुँवर सिंह ने भी यहाँ से हाथियों की खरीद की थी। सन् 1803 में रार्बट क्लाइव ने सोनपुर में घोड़े के लिए अस्तबल बनवाया था। यहाँ घोड़ा, गाय, गधा, बकरी सब बिकता था। पर आज की जरुरत के अनुसार यह आटो एक्पो मेले का रुप लेता जा रहा हैं। हरिहर नाथ की पूजा होती है। नौका दौड़, दंगल खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। यह मेला 15 किमी. तक फैलता है।

 बूंदी महोत्सव(30 नवं.से 2 दिस.) राजस्थान के हड़ौती क्षेत्र में छोटा सा बूंदी अपनी ऐतिहासिक वास्तुकला और संस्कृति के लिए जाना जाता है। इसके खूबसूरत दर्शनीय स्थलों और प्रसिद्ध मंदिरों में हनुमान जी मंदिर, राधाई कृष्ण मंदिर, नीलकंठ महादेव बूंदी के कारण यह छोटी काशी के रुप में जाना जाता है। इसमें किलों का भी मेल है। बूंदी उत्सव में बिना किसी शुल्क के सांस्कृतिक गतिविधियों, विभिन्न प्रतियोगिताओं और रंगारंग कार्यक्रमों का आनन्द उठाने के लिए दुनिया भर से लोग हड़ौती पहुंचते हैं। राजस्थानी व्यंजनों के स्वाद के साथ खरीदारी कर सकते हैं कार्तिक पूर्णिमा की रात में महिला पुरुष दोनों पारंपरिक वेशभूषा पहनकर चंबल नदी के तट पर दिया जला कर, आर्शीवाद लेते हैं। 

माजुली महोत्सव(21 से 24 नव) ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित माजुली द्वीप पर संगीत और नृत्य के द्वारा असम की सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है। यह दुनिया भर से संगीत प्रेमियों को आकर्षित करता है।    

कार्तिक मास में तीर्थस्थानों पर स्नान करते हैं। धर्म और लोककथाओं के साथ, उत्सव में नदियाँ हमारी संस्कृति की पोषक हैं।


 यह लेख प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से प्रकाशित प्रेरणा विचार पत्रिका के नवंबर अंक में प्रकाशित हुआ है।

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Thursday, 31 October 2024

बाजारों की रौनक देखने जाना, रौनक बढ़ाने में आपका सहयोग है!! नीलम भागी DEEPAWALI Neelam Bhagi

 


दीपावली पर  सज धज कर, परिवार के साथ हमारा बाजारों , मेलों,  सांस्कृतिक आयोजनों में जाना हमारी परंपरा में है। हम वहां पर की गई सजावट देखते हैं। खरीदारी करते हैं और सबसे बड़ी बात, घूम कर, बच्चे बहुत खुश होते हैं।   हमारे जाने से, वहां की रौनक बढ़ाने में, हमारा भी सहयोग होता है। सहयोग करना तो पुण्य का काम है।  सड़क किनारे बैठे हुए, छोटे-छोटे दुकान लगाने वाले भी महीनों तैयारी करते हैं।  जब वे सामान बनाते हैं तो उन्हें आस होती है कि आप उनके सामान को कम से कम देखें ज़रूर। आप उनसे खरीदते हैं तो उस समय उनके चेहरे की खुशी देखने लायक होती है। आपने बिना सोचे ही उनको प्रमोद किया है! आगे के लिए उनका उत्साह बढ़ाया है। वैसे भी यह त्यौहार खर्च और निवेश का है। दिवाली का त्यौहार धूमधाम से मिट्टी के दिए जलाकर मनाया जाता है। लक्ष्मी जी की पूजा खील बताशे से ही होती है ताकि गरीब अमीर सब करें। लेकिन मेवा, मिठाई खूब खाया जाता है। उपहार का लेनदेन चलता है। भारतवासी दुनिया के किसी भी कोने में रहें। सज धज कर परिवार के साथ मंदिर जाना और बाजारों में घूमने का लोभ नहीं छोड़ते इसलिए जाते ही हैं। आप बच्चों को ऑन लाइन कुछ भी दिलाएं लेकिन अगर घूमने नहीं लेकर गए तो उनको त्यौहार नहीं लगता। उत्कर्षनी राजीव भी गीता दित्त्या को दिवाली पर मंदिर और वहीं अमेरिका के मॉल में घुमाने लेकर गए हैं। त्योहार, उत्कर्षनी भारत की तरह ही मनाती है।

उत्कर्षिनी वशिष्ठ (इस वर्ष दो राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार, जी सिनेमा अर्वाड, फिल्म फेयर अर्वाड, दो आइफा अर्वाड से सम्मानित अंर्तराष्ट्रीय लेखिका) का कहना है कि  हम जहाँ भी जाते हैं,अपनी भारतीय संस्कृति नहीं छोडते हैं। अमेरिका में रहती हूँ पर दिवाली में घर में फैली पकवानों की महक दिमाग पर छाने लगती है। वही महक मैं यहाँ पकवान बना कर फैलाती हूँं। मेरी बेटियाँ मदद करती हैं। दिवाली पर सुनी कहानियाँ गीता अपने मित्रों को सुनाती है और उन्हें बुलाती है। हमारी दिवाली का मित्र इंतजार करते हैं। गीता दित्त्या के नन्हें मित्र भी दिवाली  त्यौहारों का इंतजार करते हैं। 










Sunday, 27 October 2024

झटपट नारियल की हेल्दी चटनी, बिना मिक्सी के बनाएं! नीलम भागी Neelam Bhagi

 





झटपट नारियल  की हेल्दी चटनी बनाने के लिए बाजार जाने की जरूरत नही, न ही मेहनत करने की। बहुत कम समान से बन जाती है।

नारियल का बुरादा, दही, साबुत लाल मिर्च, राई या सरसों, नमक और काला नमक, करी पत्ता और पसंद का घी या तेल ।

यह चटनी फ्रिज में दो दिन तक  चलती है और तुरंत बनती है इसलिए ज्यादा बनाने की तो जरूरत ही नहीं है। मात्रा अपने परिवार की जरूरत के अनुसार ले सकते हैं। मसलन आधा कप डेसीकेटेड नारियल(नारियल का बुरादा) को फेंटे हुए एक कप दही में मिला दें। उसमें स्वाद अनुसार नमक और थोड़ा सा काला नमक डाल दे। पतला, गाड़ा  भी अपनी इच्छा अनुसार और दही या छाछ  मिला कर, कर सकते हैं।  मिलाने के बाद इसमें छौंक  लगाना है। जिसके लिए  तड़का  पैन में थोड़ा सा घी या तेल, स्लो आंच  करके, उसमें राई डालेंगे। सरसों जब  फूटेगी तो उसमें कैंची से मोटे-मोटे काट के लाल मिर्च के  टुकड़े डालेंगे। लाल मिर्च रंग बदलने लगे तो तुरंत उसमें करी पत्ता डाल कर दें। करी पत्ता कुरकुरा होने लगे तो गैस बंद कर देंगे और इसको ढक देंगे। थोड़ी देर बाद इस तड़के को चटनी के ऊपर डालकर, मिला देंगे। कैची से काट कर डाली लाल मिर्च का यह फायदा है कि चटनी में जबरदस्त फ्लेवर आएगा।  जिसको मिर्ची नहीं खानी है वह निकाल सकता है और खाने वाले को तो स्वाद ही लगेगी। इस झटपट बनाई हुई चटनी को नाश्ते स्नैक के साथ जब चाहे खाएं और बनाएं। फ्रिज में यह दो दिन तक रहती है। दही के कारण खट्टी होती जाती है। इस फाइबर युक्त, इम्युनिटी बढ़ाने वाली चटनी को इडली चटनी, डोसा चटनी, उत्तपम चटनी, मेदू बड़ा चटनी, पोंगल चटनी, मैसूर बोंडा चटनी, अप्पे चटनी  भी कह सकते हैं।


Friday, 25 October 2024

बच्चियों को विदेश में कैसे पता चलता अहोई अष्टमी!! नीलम भागी

 


उत्कर्षनी ने अमेरिका से अहोई पूजा की तस्वीर भेजी। साथ में लिखा कि है उसकी बेटियों गीता दित्या ने होई माता बनाई है। मैं  देखती हूं कि कोई भी त्यौहार हो  उत्कर्षनी  ऐसे ही मनाती है, जैसे भारत में हमारे बड़े संयुक्त परिवार में मनाया जाता है। हमारे यहां बच्चे बड़े हो गए। देश विदेश में चले गए तो हम भी अहोई पर बाजार से कैलेंडर लाकर, दीवार पर लटका कर, पूजा करते हैं। लेकिन उत्कर्षनी राजीव अपनी बेटियों के साथ वैसे ही अपने बचपन की तरह त्यौहार मनाते हैं। तभी तो दीवार पर अहोई माता बनाई है।  पहले उत्कर्षनी स्कूल से आते ही दीवार पर अहोई माता बनाती थी। फिर शांभवी सर्वज्ञा बनाती और बहुत खुश होती। उनकी मां, भारती  उनके लिए  अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। उत्कर्षनी ने  अपनी भारती मामी को बेटों के लिए रखा जाने वाला होई का व्रत, बेटियों के लिए रखते हुए हमेशा देखा। उसकी भी दो बेटियां हैं। वह भी उनके जन्म से रख रही है। उत्कर्षनी ने अगर बेटियों के लिए होई का व्रत ना रखा होता तो  गीता दित्या को कैसे पता चलता!! अहोई अष्टमी का त्यौहार !!  यह सब देखकर बहुत अच्छा लगता है कि गीता और दित्या अपने त्योहारों को भारत की तरह ही उत्कर्षनी के साथ पकवान बनाने में मदद करके मनाती हैं। उत्कर्षनी अपना बचपन दोहराती है। बचपन के दिन भुला ना देना, दीवार पर अहोई माता बनाई देख कर याद आता है। गीता मां का इतना सहयोग करती है कि पूजा  के लिए उत्कर्षनी तैयार होती है तो अपना और दित्या का भी मेकअप कर लेती है।
https://neelambhagi.blogspot.com/2020/11/ahoi-ashtami-neelam-bhagi.html?m=1







Wednesday, 23 October 2024

सूजी!! बारीक, मोटी यानि मोटा मैदा !! नीलम भागी Neelam Bhagi

 



हमारे घर में गाय पलती थी। जब वह दूध देती थी तो उसके लिए दलिया बनता था। चक्की पर गेहूं जाता था और चक्की वाले से कहा जाता था कि इसका दलिया पीसकर दो। दलिया आता तो उसको छाना जाता। आखिर में जो दलिया बचता उसे बारीक  आटा छानने वाली छलनी से छाना जाता। जो छलनी के ऊपर रह जाता बारीक दलिया यानी मोटी सूजी और जो नीचे बचता चलने के बाद, वह बारीक सूजी होती या मोटा आटा समझ लो। लेकिन उसकी रोटी बनाने से  बहुत पहले उसे गूंथ कर रखना पड़ता। ज्यादातर यह भी हलुआ, उपमा या फिरनी ही बनाने के काम आता था। यह जो दलिया पीसकर बची हुई सूजी होती थी, यह कभी मैदे की तरह सफेद नहीं होती थी। तब बाजार से भी जो सूजी आती थी, वह भी कभी बिल्कुल सफेद नहीं होती थी। आजकल जो सूजी आती है। उस पर गेहूं का जरा भी छिलका नजर नहीं आता है। गाय की सानी के लिए चोकर यानि  जो आटा छानकर चलनी के ऊपर आता है,  उसका बोरा अलग से मंगाया जाता था। आजकल सफेद सूजी होती है समझ लो मोटा मैदा और व्हीट ब्रान अलग बिकता है।  सूजी के वही दक्षिण भारतीय व्यंजन जो मेहनत से दाल चावल पीसकर, फर्मेंट करके बनाए जाते हैं। उसके लिए कहते हैं कि सूजी से इंस्टेंट बना लो यानी सूजी में दही और कोई भी पाउडर फ़ुलाने वाला, बेकिंग पाउडर या इनो मिला कर दोसा, अप्पम, इडली, रवा ढोकला, चीला आदि झटपट जो मर्जी बनाकर वीडियो डाल देते हैं। और लोग बनाते हैं क्योंकि ऐसे बनाना बहुत आसान है। यानि  हम मैदे को तो हेल्दी, अनहेल्दी बखान करते हैं लेकिन सूजी हमें बिना फाइबर के कार्बोहाइड्रेट हेल्दी लगती है।






Sunday, 20 October 2024

हर राम कथा के मूल में वाल्मीकि रामायण है

 

आज इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती, पूर्वी विभाग ने भगवान वाल्मीकि पर गोष्ठी का आयोजन  किया | कार्यक्रम की अध्यक्षता सुरेश गुप्ता जी ने की | मंच का संचालन मनोज शर्मा जी ने किया | कार्यक्रम का प्रारम्भ सरस्वती वंदना से दिलीप जी ने किया | 

वक्ताओ ने भगवान वाल्मीकि जी के बारे मे अपने उदगार रखे | मंच पर उपस्थित जगदीश सिंह जी जिन्होंने एक पुस्तक सिख इतिहास के चमकते सितारे पर एक पुस्तक लिखी है उन्होंने बताया महर्षि वाल्मीकि एक आदिकवि थे जिन्होंने महाग्रन्थ रामायण की रचना की थी | 

मनोज शर्मा जी ने बताया कि कैसे हमारे आदिपुरुष महान व्यक्तियों के बारे मे गलत गलत भ्रान्तिया फैला दी गई है कि वो ऐसे थे वो ऐसे थे कुछ चीजें हमारे ग्रंथो मे कुछ इतिहासकारों ने जोड़ दी जिससे उनमे वो गलत बातो को ही इंगित करते है तो हमें अपने ग्रंथो को अलमारी मे सजो के रखने के बजाय उनका अध्ययन करना चाहिए ताकि हम अपनी आने वाली पीड़ियों को अपने ग्रंथो के बारे मे बता सके | 

मुख्य वक्ता विनोद बब्बर जी ने बताया कि हम उन महान संतो के वंशज है जिन्होंने इतनी तपस्या की है और ऐसे ऐसे ग्रन्थ लिख कर दे गए है उन्होंने बताया कि वो त्रिकाल दर्शी थे | वो महाभारत काल मे भी थे | उन्होंने बताया कि हम सबको संस्कृत आती है हम सब गायत्री मंत्र जानते है और रोज बोलते भी है | उन्होंने डी एन ऐ का अर्थ भी बताया कि अंग्रेजी मे कुछ भी हो पर हिंदी मे इसे दादा नाना का अंश कहेँगे कि हम सब अपने दादा नाना के अंश है | तो हमारे दादा भगवान वाल्मीकि है और हमें उन पर गर्व है वो सिर्फ एक समाज के नहीं है, हम सबके है |

कार्यक्रम मे पूर्वी विभाग मे शाहदरा जिले के दायित्वों की भी प्रान्त कार्यकारी अध्यक्ष विनोद बब्बर द्वारा घोषणा की गई | घोषणा इस प्रकार रही | 


अध्यक्ष     सागर चौहान 

उपाध्यक्ष   प्रणव मिश्रा 

उपाध्यक्ष   मुकेश शर्मा 

महामंत्री   नितिन शर्मा 

मंत्री        जतिन आहूजा 

मंत्री        एम नागराज 

कोषाध्यक्ष  नीरज चौहान 

कार्यकारिणी सदस्य संतोष सक्सेना 

कार्यकारिणी सदस्य राजेंदर राठौर

कार्यकारिणी सदस्य  जयपाल सिंह 

अंत मे सभी का धन्यवाद किया गया | मंच पर प्रान्त कार्यकारी अध्यक्ष विनोद बब्बर जी, गिरजेश रस्तोगी जी, जगदीश सिंह जी, नीलम भागी जी, सुरेश गुप्ता जी, और समझसेवी तायल जी, गुरमुख सिंह जी, संजय साहू जी, सुरेश जी, अनुपम जी उपस्थित रहे |

मनोज शर्मा 'मन'

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