डॉ. शोभा
भारद्वाज( पूर्व लेक्चरर, अर्न्तराष्ट्रीय
रिलेशन में डॉक्टरेट, लेखिका)
भारत की धरती से
बौद्धधर्म मंगोलिया तक पहुँचा था। सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा
पहले बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणी थे उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रसार दक्षिण पूर्व
एशिया में किया। इनके बाद अनेक बौद्ध भिक्षुकों ने दूर दूर तक बौ़द्ध धर्म का
प्रचार किया। जहाँ भी बौद्ध धर्म(इसमें सनातन धर्म की परंपराएं भी मिश्रित हैं) का
प्रभाव है वहाँ पूर्वजों को बहुत सम्मान दिया जाता है। कई देशों में पितरों की याद
खास तरह से मनाते हैं जो हमें भारत के पितृ पक्ष की तरह लगते हैं। वहाँ भी मान्यता
है कि पूर्वजों की आत्मा साल में एक बार धरती पर आती है। इसे ओबोन कहते हैं। इस
दिन शाकाहारी भोजन बना कर घर के बाहर या मंदिरों के बाहर रखते हैं।
हंगरी घोस्ट
फैस्टिवल सातवें महीने की 15वीं रात को होता
है। इस महीने को घोस्ट मंथ कहते हैं। इन दिनों स्वर्ग, नर्क के दरवाजे 15 दिन के लिए़ खुलते हैं। पूर्वजों की आत्मायें एवं घोस्ट ऐशिया के देशों में
बसे परिजनों के यहाँ धरती पर पधारती हैं। अतः इस फैस्टिवल का आयोजन आत्माओं को
शांत करना है। बौद्ध टोइस्टी धर्म एवं अनेक देश जैसे कोरिया जापान में भी इसे
हंगरी घोस्ट फैस्टिवल कहते हैं। मैं सिंगापुर गई थी। इसकी तैयारी एक हफ्ते पहले से
शुरू हो जाती है। घर का रास्ता दिखाने के लिए घर के बाहर पेपर लैंप जलाये जाते
हैं। वहाँ विभिन्न साउथ ईस्ट देशों के खाने के रैस्टोरैंट हैं। प्रवेश द्वार एवं
स्टेज़ पर बहुत सुंदर सजावट की गई थी। बड़े मंजीरे, ड्रम एवं अनेक वाद्य यंत्रों से सुंदर संगीत का समा बंधा
था। लोग कुर्सियों पर शांति से बैठे थे। पता चला फैस्टिवल ऑफ डेथ की शुरूवात है।
इस आयोजन को देख कर मैंने भी प्रणाम किया। भारत में पितृ अमावस को पितृ विर्सजन
किया जाता है। यहाँ भी पूर्वजों का सत्कार करने के बाद उन्हें सम्मान से विदा भी
किया जाता है। रात के समय पूर्वजों को राह दिखाने के लिए नदी पर जाकर कागज की नाव
पर मोमबत्ती जला कर प्रवाहित करते हैं। अनगिनत नावें नदी पर तैरती हैं। मनभावन
दृश्य होता है। आकाश में टिमटिमाते तारे नीचे कागज की नावों में जलती मोमबत्तियाँ।
भारतीय लोक जीवन में हम श्राद्ध पर्व मनाते हैं तो मुख्य चीन में छींग मिंग-उनका
परंपरागत त्योहार है। इस दिन पूर्वजों को याद किया जाता है। चीनी अपने दिवंगत
लोगों की समाधि पर जाकर उसे साफ कर फूल मालाएँ अर्पित कर स्वादिष्ट खाना रख कर
प्रार्थना कर करते हैं। इसके बाद परिवार का मुखिया उनके पीछे क्रम से परिवार के
सदस्य समाधि के चक्कर लगा कर पूर्वजों को गर्म खाना परोस कर, खुद ठंडा खाना खाते हैं। इसलिए इसे ठंडे भोजन
का दिन भी कहा जाता है। भारत में प्राचीन परंपरा है जिसमे पितृ ऋण सबसे बड़ा ऋण
माना जाता है ताकि संतान अपने पूर्वजों को सदैव याद रखे।
यहूदी समाज का
पूर्वजों के लिए प्रार्थना का दिन योम किप्पुर प्रायश्चित, दैवी फैसले और आत्माओं के कष्ट का दिन माना जाता है। 25 घण्टे उपवास कर एक यहूदी से आशा की जाती
है िक वह अपने बुरे कर्मों को गिने अपनी
कमियों पर विचार कर ईश्वर से क्षमा करने के लिए प्रार्थना करे एवं दूसरों के प्रति
किए गलत कृत्यों का प्रायचित करे। वियतनाम में पक्षियों, मछलियों एवं गरीबों को भोजन कराते हैं। पर्व को ’तेतत्रुंग न्गुयेन’ कहते हैं। हमारे यहाँ पंडितों को जिमाने से पहले कौओं और
गाय को खीर पूड़ी खिलाते हैं।क्रमशः
यह आलेख मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा द्वारा प्रकाशित इंगित पत्रिका के राष्ट्रीय संगोष्ठी विशेषांक से भारतीय जीवन शैली का वैश्विक रूप से लिया गया है।
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