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Wednesday 10 January 2024

भारत की लोक जीवन शैली का वैश्विक रूप नीलम भागी

 



बाहर कात्या मुले, और उसकी माँ जो जर्मनी से आई थीं मेरे लिए चिंतित खड़ी थी क्योंकि मैं पहले दिन ही अकेली घूमने चली गई थी। मुझे देखते ही उसने मुझे गले लगा कर मेरे दोनो गालों पर चुम्बन जड़ा, ऐसा ही उसकी माँ ने मेरे साथ किया मैंने अभिवादन का जवाब हाथ जोड़ कर दिया। इतने में एक गाड़ी आकर रूकी, उसमें से एक प्रभावशाली व्यक्तित्व का लड़का उतरा। उसने वही चुम्मन अभिवादन उन दोनो के साथ किया, उन्होंने भी बदले में उसके साथ वैसा ही किया। कात्या मुले ने बताया कि ये उसका मित्र ट्यूनेशिया से अनीस है। अनीस बड़ी अंतरंगता से मेरी ओर बढ़ा और मैने दोनो हाथ जोड़ कर नमस्ते किया, वह वहीं रूक गया। अब हमें जब भी अनीस बाहर अपने मित्रों के साथ भी मिलता तो हाथ जोड़ कर नमस्ते ही करता। मुझे साड़ी में देख कर उसके मित्र भी ऐसा ही करते। अविवाहित 42 वर्षीय जर्मन कात्या मूले दुबई में रेंट पर अकेली विला में रहती थी, उसका एक हिस्सा उसने हमें रेंट पर दिया था। इवेंट मैनेज करती थी। पूरे सप्ताह गधे की तरह काम करती, घर में ही ऑफिस था पर सब  काम अनुशासन में और समय से करती थी और विश्व भ्रमण का लक्ष्य पूरा कर रही थी। भारत वह घूम चुकी थी और दक्षिण भारतीय विवाह समारोह में भी शामिल रही और यहाँ की परिवार व्यवस्था से बहुत प्रभावित थी। भारतीय मसालों के खास स्वाद और सुगंध से उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम के व्यंजन उसे बहुत पसंद थे। उसकी लाइब्रेरी में गीता थी जिसके बारे में उसका कहना था कि जब भी इसे पढ़ती हूँ कुछ नया पाती हूँ। दुबई में लगभग 102 देशों के लोग काम के सिलसिले में रहते हैं। शुक्र, शनिवार वहाँ ऑफ था। सादा एक डिनर वह ऑरगनाइज करती थी। मसलन ़दो डिश उसकी किचन में मुझे बनानी है। उसकी फ्रैंच सहेली एंजिलक्यू पहले आयेगी, दो वो बनायेगी उसका पति बाद में ऑफिस से आयेगा, दो कात्या मुले  बनायेगी। एंजिलक्यू के आने पर हम तीनों किचन में गये। मैंने दालमक्खनी और पालक पनीर बनाया। एंजिलक्यू तो छौंक की ही खूशबू को ही लंबी लंबी सांसो से सूंघ कर खुश होती रही। कात्या मुले ने मैश पोटैटो बनाए और कद्दु का सूप बनाया। एंजिलक्यू की दोनो नॉनवेज डिश थीं। मैं तैयार होने आ गई। दक्षिण भारतीय सिल्क साड़ी पहन कर जब मैं गई, दोनों बहुत खुश हुईं, एंजिलक्यू इंगलिश नहीं जानतीं थीं। उन्होंने साड़ी के कारण मेरे लिए कहा कि ये डिनर क्वीन ह,ै ये काम नहीं करेगी। मैं साड़ियाँ ही लेकर गई थी इसलिए मैं हमेशा डिनर क्वीन ही रहती थी। मैंने कात्या मुले से कहाकि यह हमारी गैस्ट है, तुम इससे ही बात करो। उसने मुझे दस बार धन्यवाद किया। बेटी भी आ गई। कुछ ही देर में एंजिलक्यू पति भी आ गये। लॉन में ही सबने मिलकर खाना लगाया। इण्डियन, जर्मन और फैंच खाने की तस्वीरें ली गई। मेरे परिचय में उसने कहाकि ये भारत से नीलम है। सिग्रेट, शराब नहीं पीती है, न ही नॉनवेज खाती है। उन्होंने बड़े हैरान होकर मुझे देखा। डिनर के बाद सबने मिलकर बर्तन, किचन साफ की बचे खाने को फ्रिज में पैक किया। धन्यवाद और बाय करके अपने अपने घर चल दिये। बेटी थोड़ी फैंच जानती है। उसने बताया कि दस मिनट तक आपकी साड़ी और सब्जी, दाल पर चर्चा चली। कात्या मूले हमेशा सबसे मेरा परिचय इस तरह ही करवाती थी।

 वो हिन्दी नहीं जानती थी। मैं अंग्रेजी अच्छी नही जानती, बोलना भी थोड़ा मुश्किल था पर बोलती। शाम को हम दो से तीन घण्टें बातें जरुर करते। वह अति व्यस्त महिला थी, मैं तो घूमने बेटी के पास गई थी। उसके बुलाने पर ही मैं बतियाने जाती थी। हम भारत के धर्म, कर्म, पहनावा, संगीत, साहित्य, तलाक दर और परिवार पर बातें करते थे। उसकी माँ और बहन जर्मनी के एक शहर में अलग अलग रहतीं थी।  कात्या मुले ने मुझसे पूछा कि मेरे परिवार में कितने लोग रहते है? मैंने बताया कि मेरी माँ, दो भाई उनकी पत्नियाँ, बच्चे, मैं मेरी बेटी। बेटी तो अब बाहर आ गई। इसकी शादी होगी। इतने लोग और खाना एक जगह बनता है। सुनकर वो बोली,’’ मैं तो बूढ़ी होने पर मैं जर्मनी जाकर ओल्डेज होम चली जाउंगी।’’ फिर उसने मुझसे पूछा कि अगर वह बूढ़ी होने पर हमारे घर में रहना चाहेगी तो मैं उसे रख लूंगी। मैंने कहाकि तुम अभी चलो रहने, हमारे घर में सब तुम्हें देख कर खुश होंगे। पर तुम रह नहीं पाओगी। उसने पूछा,’’क्यों?’’ मैंने कहाकि मेरी भाभियां अध्यापिकाएं हैं और भाई व्यापार करते हैं। वे सुबह जाती है। भाई रात को देर से आते हैं। घर सब की सुविधा के अनुसार चलता है। कोई ब्रेकफास्ट, लंच डिनर टाइम फिक्स नहीं है। वो बड़ी हैरान होकर सब सुनती थी। अभी मेरे लौटने में एक महीना था। उसे मेरा इण्डिया लौटे बिना, वीजा बढ़वाने की चिंता सताने लगी थी।

  सिंगापुर प्रवास में नार्थ ईस्ट की लड़की शिखा घर संभालती थी। वह एक साल ही किसी देश में ठहरती थी। वह भारतीय खाने बहुत लज़ीज बनाती थी इसलिए उसकी बहुत डिमाण्ड थी। मेरे साथ वह 25 दिन रही, मेरा जितना खाना बनाने का अनुभव था, मैंने सारा उसे दिया। उसने सबको बना कर खिलाया। भोजन सिर्फ खाना नहीं बल्कि कई परिवारों के एकत्रित होने, सामाजिक संसर्ग बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। शिखा तो जिस देश जायेगी अपने स्तर पर हमारे व्यंजनों का स्वाद फैलाएगी। इण्डोनेशिया से यूनी मेरे लौटने से पाँच दिन पहले आई। वह चाइनीज़ घर से आई थी। मैंने उसे कहा कि जो भी वह सबसे स्वाद बनाती है अपनी मरजी़ से बनाए। उसने तरह तरह के चाइनीज खाने से मेज़ भर दी। सभी बहुत स्वाद! मैंने अर्पणा से कहा कि लो घर में चाइनीज़ रैस्टोरैंट खुल गया!’’ उसने कहा,’’ मासी वीकएंड पर मैं बनालूँगी। पर बाकि दिन।’’इधर यूनी भी भारतीय खाना सीखने की शौकीन और हिंदी बिल्कुल नहीं जानती, इण्डियन फूड और परांठा का जाप कर रही। कुक तो लाजवाब थी आटा लगाना, रोटी परांठा और छौंक लगाने सिखा दिए। रोटी गोल प्रैक्टिस से होगी। आज उसे दस साल अर्पणा के घर में हो गए हैं। कोई भी उनके ग्रुप में पार्टी हो उसकी बनाई एक भारतीय डिश जरूर जाती है। ब्रेक पर जब वह इण्डोनेशिया जाती है तो वहाँ भी उसे भारतीय खाना बनाना पड़ता है क्योंकि उसके परिवार और मित्रों की मांग है।   क्रमशः 

यह आलेख मध्य भारतीय हिंदी साहित्य सभा द्वारा प्रकाशित इंगित पत्रिका के  राष्ट्रीय संगोष्ठी विशेषांक में प्रकाशित है।




  

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