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Thursday, 31 October 2024

बाजारों की रौनक देखने जाना, रौनक बढ़ाने में आपका सहयोग है!! नीलम भागी DEEPAWALI Neelam Bhagi

 


दीपावली पर  सज धज कर, परिवार के साथ हमारा बाजारों , मेलों,  सांस्कृतिक आयोजनों में जाना हमारी परंपरा में है। हम वहां पर की गई सजावट देखते हैं। खरीदारी करते हैं और सबसे बड़ी बात, घूम कर, बच्चे बहुत खुश होते हैं।   हमारे जाने से, वहां की रौनक बढ़ाने में, हमारा भी सहयोग होता है। सहयोग करना तो पुण्य का काम है।  सड़क किनारे बैठे हुए, छोटे-छोटे दुकान लगाने वाले भी महीनों तैयारी करते हैं।  जब वे सामान बनाते हैं तो उन्हें आस होती है कि आप उनके सामान को कम से कम देखें ज़रूर। आप उनसे खरीदते हैं तो उस समय उनके चेहरे की खुशी देखने लायक होती है। आपने बिना सोचे ही उनको प्रमोद किया है! आगे के लिए उनका उत्साह बढ़ाया है। वैसे भी यह त्यौहार खर्च और निवेश का है। दिवाली का त्यौहार धूमधाम से मिट्टी के दिए जलाकर मनाया जाता है। लक्ष्मी जी की पूजा खील बताशे से ही होती है ताकि गरीब अमीर सब करें। लेकिन मेवा, मिठाई खूब खाया जाता है। उपहार का लेनदेन चलता है। भारतवासी दुनिया के किसी भी कोने में रहें। सज धज कर परिवार के साथ मंदिर जाना और बाजारों में घूमने का लोभ नहीं छोड़ते इसलिए जाते ही हैं। आप बच्चों को ऑन लाइन कुछ भी दिलाएं लेकिन अगर घूमने नहीं लेकर गए तो उनको त्यौहार नहीं लगता। उत्कर्षनी राजीव भी गीता दित्त्या को दिवाली पर मंदिर और वहीं अमेरिका के मॉल में घुमाने लेकर गए हैं। त्योहार, उत्कर्षनी भारत की तरह ही मनाती है।

उत्कर्षिनी वशिष्ठ (इस वर्ष दो राष्ट्रीय फिल्म पुरुस्कार, जी सिनेमा अर्वाड, फिल्म फेयर अर्वाड, दो आइफा अर्वाड से सम्मानित अंर्तराष्ट्रीय लेखिका) का कहना है कि  हम जहाँ भी जाते हैं,अपनी भारतीय संस्कृति नहीं छोडते हैं। अमेरिका में रहती हूँ पर दिवाली में घर में फैली पकवानों की महक दिमाग पर छाने लगती है। वही महक मैं यहाँ पकवान बना कर फैलाती हूँं। मेरी बेटियाँ मदद करती हैं। दिवाली पर सुनी कहानियाँ गीता अपने मित्रों को सुनाती है और उन्हें बुलाती है। हमारी दिवाली का मित्र इंतजार करते हैं। गीता दित्त्या के नन्हें मित्र भी दिवाली  त्यौहारों का इंतजार करते हैं। 










Sunday, 27 October 2024

झटपट नारियल की हेल्दी चटनी, बिना मिक्सी के बनाएं! नीलम भागी Neelam Bhagi

 





झटपट नारियल  की हेल्दी चटनी बनाने के लिए बाजार जाने की जरूरत नही, न ही मेहनत करने की। बहुत कम समान से बन जाती है।

नारियल का बुरादा, दही, साबुत लाल मिर्च, राई या सरसों, नमक और काला नमक, करी पत्ता और पसंद का घी या तेल ।

यह चटनी फ्रिज में दो दिन तक  चलती है और तुरंत बनती है इसलिए ज्यादा बनाने की तो जरूरत ही नहीं है। मात्रा अपने परिवार की जरूरत के अनुसार ले सकते हैं। मसलन आधा कप डेसीकेटेड नारियल(नारियल का बुरादा) को फेंटे हुए एक कप दही में मिला दें। उसमें स्वाद अनुसार नमक और थोड़ा सा काला नमक डाल दे। पतला, गाड़ा  भी अपनी इच्छा अनुसार और दही या छाछ  मिला कर, कर सकते हैं।  मिलाने के बाद इसमें छौंक  लगाना है। जिसके लिए  तड़का  पैन में थोड़ा सा घी या तेल, स्लो आंच  करके, उसमें राई डालेंगे। सरसों जब  फूटेगी तो उसमें कैंची से मोटे-मोटे काट के लाल मिर्च के  टुकड़े डालेंगे। लाल मिर्च रंग बदलने लगे तो तुरंत उसमें करी पत्ता डाल कर दें। करी पत्ता कुरकुरा होने लगे तो गैस बंद कर देंगे और इसको ढक देंगे। थोड़ी देर बाद इस तड़के को चटनी के ऊपर डालकर, मिला देंगे। कैची से काट कर डाली लाल मिर्च का यह फायदा है कि चटनी में जबरदस्त फ्लेवर आएगा।  जिसको मिर्ची नहीं खानी है वह निकाल सकता है और खाने वाले को तो स्वाद ही लगेगी। इस झटपट बनाई हुई चटनी को नाश्ते स्नैक के साथ जब चाहे खाएं और बनाएं। फ्रिज में यह दो दिन तक रहती है। दही के कारण खट्टी होती जाती है। इस फाइबर युक्त, इम्युनिटी बढ़ाने वाली चटनी को इडली चटनी, डोसा चटनी, उत्तपम चटनी, मेदू बड़ा चटनी, पोंगल चटनी, मैसूर बोंडा चटनी, अप्पे चटनी  भी कह सकते हैं।


Friday, 25 October 2024

बच्चियों को विदेश में कैसे पता चलता अहोई अष्टमी!! नीलम भागी

 


उत्कर्षनी ने अमेरिका से अहोई पूजा की तस्वीर भेजी। साथ में लिखा कि है उसकी बेटियों गीता दित्या ने होई माता बनाई है। मैं  देखती हूं कि कोई भी त्यौहार हो  उत्कर्षनी  ऐसे ही मनाती है, जैसे भारत में हमारे बड़े संयुक्त परिवार में मनाया जाता है। हमारे यहां बच्चे बड़े हो गए। देश विदेश में चले गए तो हम भी अहोई पर बाजार से कैलेंडर लाकर, दीवार पर लटका कर, पूजा करते हैं। लेकिन उत्कर्षनी राजीव अपनी बेटियों के साथ वैसे ही अपने बचपन की तरह त्यौहार मनाते हैं। तभी तो दीवार पर अहोई माता बनाई है।  पहले उत्कर्षनी स्कूल से आते ही दीवार पर अहोई माता बनाती थी। फिर शांभवी सर्वज्ञा बनाती और बहुत खुश होती। उनकी मां, भारती  उनके लिए  अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। उत्कर्षनी ने  अपनी भारती मामी को बेटों के लिए रखा जाने वाला होई का व्रत, बेटियों के लिए रखते हुए हमेशा देखा। उसकी भी दो बेटियां हैं। वह भी उनके जन्म से रख रही है। उत्कर्षनी ने अगर बेटियों के लिए होई का व्रत ना रखा होता तो  गीता दित्या को कैसे पता चलता!! अहोई अष्टमी का त्यौहार !!  यह सब देखकर बहुत अच्छा लगता है कि गीता और दित्या अपने त्योहारों को भारत की तरह ही उत्कर्षनी के साथ पकवान बनाने में मदद करके मनाती हैं। उत्कर्षनी अपना बचपन दोहराती है। बचपन के दिन भुला ना देना, दीवार पर अहोई माता बनाई देख कर याद आता है। गीता मां का इतना सहयोग करती है कि पूजा  के लिए उत्कर्षनी तैयार होती है तो अपना और दित्या का भी मेकअप कर लेती है।
https://neelambhagi.blogspot.com/2020/11/ahoi-ashtami-neelam-bhagi.html?m=1







Wednesday, 23 October 2024

सूजी!! बारीक, मोटी यानि मोटा मैदा !! नीलम भागी Neelam Bhagi

 



हमारे घर में गाय पलती थी। जब वह दूध देती थी तो उसके लिए दलिया बनता था। चक्की पर गेहूं जाता था और चक्की वाले से कहा जाता था कि इसका दलिया पीसकर दो। दलिया आता तो उसको छाना जाता। आखिर में जो दलिया बचता उसे बारीक  आटा छानने वाली छलनी से छाना जाता। जो छलनी के ऊपर रह जाता बारीक दलिया यानी मोटी सूजी और जो नीचे बचता चलने के बाद, वह बारीक सूजी होती या मोटा आटा समझ लो। लेकिन उसकी रोटी बनाने से  बहुत पहले उसे गूंथ कर रखना पड़ता। ज्यादातर यह भी हलुआ, उपमा या फिरनी ही बनाने के काम आता था। यह जो दलिया पीसकर बची हुई सूजी होती थी, यह कभी मैदे की तरह सफेद नहीं होती थी। तब बाजार से भी जो सूजी आती थी, वह भी कभी बिल्कुल सफेद नहीं होती थी। आजकल जो सूजी आती है। उस पर गेहूं का जरा भी छिलका नजर नहीं आता है। गाय की सानी के लिए चोकर यानि  जो आटा छानकर चलनी के ऊपर आता है,  उसका बोरा अलग से मंगाया जाता था। आजकल सफेद सूजी होती है समझ लो मोटा मैदा और व्हीट ब्रान अलग बिकता है।  सूजी के वही दक्षिण भारतीय व्यंजन जो मेहनत से दाल चावल पीसकर, फर्मेंट करके बनाए जाते हैं। उसके लिए कहते हैं कि सूजी से इंस्टेंट बना लो यानी सूजी में दही और कोई भी पाउडर फ़ुलाने वाला, बेकिंग पाउडर या इनो मिला कर दोसा, अप्पम, इडली, रवा ढोकला, चीला आदि झटपट जो मर्जी बनाकर वीडियो डाल देते हैं। और लोग बनाते हैं क्योंकि ऐसे बनाना बहुत आसान है। यानि  हम मैदे को तो हेल्दी, अनहेल्दी बखान करते हैं लेकिन सूजी हमें बिना फाइबर के कार्बोहाइड्रेट हेल्दी लगती है।






Sunday, 20 October 2024

हर राम कथा के मूल में वाल्मीकि रामायण है

 

आज इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती, पूर्वी विभाग ने भगवान वाल्मीकि पर गोष्ठी का आयोजन  किया | कार्यक्रम की अध्यक्षता सुरेश गुप्ता जी ने की | मंच का संचालन मनोज शर्मा जी ने किया | कार्यक्रम का प्रारम्भ सरस्वती वंदना से दिलीप जी ने किया | 

वक्ताओ ने भगवान वाल्मीकि जी के बारे मे अपने उदगार रखे | मंच पर उपस्थित जगदीश सिंह जी जिन्होंने एक पुस्तक सिख इतिहास के चमकते सितारे पर एक पुस्तक लिखी है उन्होंने बताया महर्षि वाल्मीकि एक आदिकवि थे जिन्होंने महाग्रन्थ रामायण की रचना की थी | 

मनोज शर्मा जी ने बताया कि कैसे हमारे आदिपुरुष महान व्यक्तियों के बारे मे गलत गलत भ्रान्तिया फैला दी गई है कि वो ऐसे थे वो ऐसे थे कुछ चीजें हमारे ग्रंथो मे कुछ इतिहासकारों ने जोड़ दी जिससे उनमे वो गलत बातो को ही इंगित करते है तो हमें अपने ग्रंथो को अलमारी मे सजो के रखने के बजाय उनका अध्ययन करना चाहिए ताकि हम अपनी आने वाली पीड़ियों को अपने ग्रंथो के बारे मे बता सके | 

मुख्य वक्ता विनोद बब्बर जी ने बताया कि हम उन महान संतो के वंशज है जिन्होंने इतनी तपस्या की है और ऐसे ऐसे ग्रन्थ लिख कर दे गए है उन्होंने बताया कि वो त्रिकाल दर्शी थे | वो महाभारत काल मे भी थे | उन्होंने बताया कि हम सबको संस्कृत आती है हम सब गायत्री मंत्र जानते है और रोज बोलते भी है | उन्होंने डी एन ऐ का अर्थ भी बताया कि अंग्रेजी मे कुछ भी हो पर हिंदी मे इसे दादा नाना का अंश कहेँगे कि हम सब अपने दादा नाना के अंश है | तो हमारे दादा भगवान वाल्मीकि है और हमें उन पर गर्व है वो सिर्फ एक समाज के नहीं है, हम सबके है |

कार्यक्रम मे पूर्वी विभाग मे शाहदरा जिले के दायित्वों की भी प्रान्त कार्यकारी अध्यक्ष विनोद बब्बर द्वारा घोषणा की गई | घोषणा इस प्रकार रही | 


अध्यक्ष     सागर चौहान 

उपाध्यक्ष   प्रणव मिश्रा 

उपाध्यक्ष   मुकेश शर्मा 

महामंत्री   नितिन शर्मा 

मंत्री        जतिन आहूजा 

मंत्री        एम नागराज 

कोषाध्यक्ष  नीरज चौहान 

कार्यकारिणी सदस्य संतोष सक्सेना 

कार्यकारिणी सदस्य राजेंदर राठौर

कार्यकारिणी सदस्य  जयपाल सिंह 

अंत मे सभी का धन्यवाद किया गया | मंच पर प्रान्त कार्यकारी अध्यक्ष विनोद बब्बर जी, गिरजेश रस्तोगी जी, जगदीश सिंह जी, नीलम भागी जी, सुरेश गुप्ता जी, और समझसेवी तायल जी, गुरमुख सिंह जी, संजय साहू जी, सुरेश जी, अनुपम जी उपस्थित रहे |

मनोज शर्मा 'मन'

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Friday, 18 October 2024

पंजाबी करवा चौथ, मेड करवा चौथ !! नीलम भागी Neelam Bhagi

 

मेरी सहेली सुषमा नेब का फोन आया कि बहू को सरगी दे आई। मैंने जवाब दिया," उनके यहां सरगी खाने का रिवाज नहीं है।" वह बड़ी हैरानी से  कहने लगी कि तुम देती तो वह खाती। मैंने कहा," इसमें बेटे जुड़ा है तो मैं किसी भी रिवाज को बदलने की हिम्मत नहीं करती, वह खुद चाहे बदल ले तो रोकूंगी नहीं बल्कि मुझे अच्छा लगेगा। नौकरी वाली लड़की है पर मैं हिम्मत नहीं कर पा रही हूं। बेटी उत्कर्षनी पंजाबी परिवार में है। उसे सरगी देती हूं पर वह भी नहीं खाती।" उसका जवाब था," तो वह भी मेड वाला करवा चौथ रखती है। जैसे  वो लोग रात को 12:00 के बाद से कुछ नहीं खाती पीती। अगले दिन चांद देखकर ही खाती पीती है।" मैंने उसे समझाया कि मेरी बहन डॉ. शोभा भी इसी तरह का करवा चौथ रखती है। उसका जवाब,"यानि वह भी मेड वाला करवा चौथ रखती है।" मैंने कहा,"सनाढ्य ब्राह्मण और कुछ उत्तर भारत के राज्यों में इसी तरह रखा जाता है।"  पंजाब में करवा चौथ पर मायके और ससुराल दोनों जगह से सरगी मिलती है। जिससे  बहू अपनी पसंद के खाने पीने के समान लाती हैं। तड़के उठकर नहा कर एक थाली में गौरजा के लिए निकलती है। जिसमें जो भी उन्होंने खाना होता है, वह सब रखती हैं और श्रृंगार का सामान। इसे किसी भी महिला को दे देती है और फिर खाती हैं, पीती हैं। चाय की तलब न लगे इसलिए  सरगी के बाद चाय भी पी लेती हैं। फिर सो जाती हैं और व्रत शुरू हो गया। पहले करवा चौथ पर सास अगर शाम को 4:00 बजे के करीब बायाना  निकालने के बाद, सास जो दूध, चाय, कॉफी, जूस पिला दे तो यह हमेशा का रिवाज बन जाता है। बहू से कोई काम नहीं करवाया जाता है क्योंकि वह व्रती है। रात को चंद्रमा  देखकर अर्घ्य देकर व्रत का पारण होता है। अगर पहली करवा चौथ है तो वह मायके में होता है। अब  कुछ बदल रहा है। फिल्मों और सीरियल में पंजाबी करवा चौथ दिखाने से अब यह लगभग पूरे भारत में रखा जाने लगा है।

कुछ राज्यों में सरगी खाने का तो कोई मतलब ही नहीं। रात 12:00 बजे तक जो खाना पीना है, खा लो। और कई तरह के पकवान बनाने का रिवाज है, व्रत में कैसे टाइम कटेगा इसलिए व्रती ही यह सब बनाती हैं। पहले करवा चौथ में बहू के मायके से ही बायना आएगा, जो सास को दिया जाता है। बहुत कम परिवारों में जीजी उस समय इस बात को लेकर क्लेश करती है। मसलन मम्मी के लिए साड़ी ढंग की नहीं आई है। बहू की भूख प्यास तो यह सीन देखकर गायब हो जाती है। मम्मी, बेटे की पहली करवा चौथ पर आंसू टपकाते हुए, जीजी को चुप कराती है और साथ में बोलती जाती है," सूरत देख देख कर बेटा इतना बड़ा किया है पर मैं तो मां हूं न, जो लाए हैं, पहनूंगी ही।" फिर माहौल शांत होता है। तब तक चांद निकल आता है। 

शोभा की मेड ने पिछली करवा चौथ पर कहा," आंटी आपकी उम्र हो गई है। शाम को चाय पानी क्यों नहीं लेती! आप  डायबिटिक हो। आपके साथ  शुरू नहीं करवाया था तो क्या हुआ!" वह नींबू पानी में नमक चीनी मिलाकर  लाई। और शोभा से बोले," आंटी पति भी तो सास का बेटा है न, डॉक्टर साहब आपका शुरू करवा देते हैं, आप पी लो।"आंटी हम तो घर-घर काम करती हैं। मैडम लोग व्रती होती हैं, छुट्टी तो कर नहीं सकते इसलिए जरूरत होती है तो चाय पानी पी लेती हूं।जीजाजी डॉक्टर हैं। उन्होंने कहा," मैं इतनी बार समझा चुका हूं कि खा पी लिया कर, मानती नहीं है।" अब उस मेड ने शोभा का करवा चौथ का स्टाइल बदल दिया है। डॉ शोभा ने चुपचाप पी लिया।

 


Wednesday, 16 October 2024

दिवाली की लाजवाब तैयारी!! नीलम भागी

 


अंकुर जून के महीने में सपरिवार बाहर चला गया था। हमेशा जाता है पर अपने पौधों का पूरा इंतजाम करके ही जाता है। इस बार भी वैसे ही गया। बीच में मैं भी उसके पौधे देख आती थी। लू लगने के कारण, मैं भी नहीं जा पाई। इस बार इतनी भयंकर गर्मी होने से, जब लौटा तो देखा, उसके पौधे मर गए थे या अंतिम सांस ले रहे थे।  वह बहुत लगन से उन पर फिर से लग गया। क्योंकि हमेशा  दिवाली में वह अपने पौधों को सजाता है। इस बार भी उसकी मेहनत रंग ला रही है। इसके पौधे पनप रहे हैं। कुछ कंटेनर अभी बचे हुए हैं। छत का घर है इसलिए वजन के कारण कोकोपीट भरता है। पूछने पर बताने लगा कि जब ज्यादा समय होगा तभी और कोकोपिट मंगा कर सारे गमले एक साथ भर देगा। वरना बचा हुआ संभालना पड़ेगा। दिवाली पर हमें प्रदूषण प्रदूषण करके रोना नहीं है, उसे काम करने में अपना योगदान देना है। ऐसा हरियाली बढ़ाने से ही होगा।