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Sunday 29 May 2022

सीतामढ़ी के दर्शनीय स्थल नेपाल यात्रा भाग 42 नीलम भागी Nepal Yatra Part 42 Neelam Bhagi


आटो चलते ही राजा ने हमसे आगे वाली ई रिक्शाओं के पीछे  अपना ऑटो न चला कर सीधा चलने लगा। मैंने पूछा,’’पहले हलेश्वर स्थान क्यों नहीं जा रहे हो, सब तो वहां जा रहें हैं? मेरे प्रश्न के जवाब में उसने कहानी समझाई कि पहले पास के मंदिरों के दर्शन करा देता हूं। एक तो ई रिक्शा वैसे ही धीरे चलती है। दूसरा इधर से पुलिस ने पास वाला रास्ता बंद कर रखा है। घूम के जाना पड़ता है। हम  आखिर में हलेश्वर स्थान छोटे रास्ते से जायेंगे। आप पुलिस से कह देना कि हम महिलाएं परदेसी टूरिस्ट हैं। हमारी गाड़ी छूट जायेगी, हमें जाने दो। परदेसी महिलाओं को वो जाने देगा।’’हम पांचों मैनें, रोशनी, सुरेखा, राजकली, सरला ने ये कहानी याद कर ली।   

 रेलवे स्टेशन से डेढ़ किमी. की दूरी पर जानकी मंदिर में श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण की मूर्तियां हैं। जानकी मंदिर के महन्त के प्रथम पूर्वज विरक्त महात्मा और सिद्ध पुरूष थे। अब मेरी इन पाँचों सखियों को कोई जल्दी नहीं है। बड़ी श्रद्धा और आराम से दर्शन कर रहीं हैं। राजा कहानी समझाने के बाद हमें मंदिरों पर उतार कर, वह भी इत्मीनान से ऑटो में बैठ जाता है। वह बिल्कुल नहीं कहता कि जल्दी करो, और जरा भी हाय तौबा नहीं मचाता है।  



उर्बीजा कुंड  जानकी मंदिर से कुछ दूरी पर यह पवित्र स्थल स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि उस कुंड के जीर्णोद्धार के समय लगभग 200 साल पहले सीताजी की एक प्रतिमा प्राप्त हुई थी। जिसकी स्थापना जानकी मंदिर में की गई हैं। सखियां जब पंडित जी कोई मंदिर से संबंधित कहानी सुनाते हैं तो बड़ी श्रद्धा से सुनती हैं।



  हम पुनौरा धाम की ओर चल पड़े। पुनौरा जानकी मंदिर के दर्शन किये। सखियां वहां आरती में शामिल हुईं। वहां बड़ी श्रद्धा से बैठी रहीं। यहां भी अब बहुत सफाई है। धूप दीप जलाने के लिए अलग स्थान बना है। जानकी कुण्ड देखा। जगह जगह बोर्ड लगे थे। उस पर लिखा था कृपया थूकिए नहीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि लोगों को यहाँ इतना थूकना क्यों पड़़ता है?  विवाह मंडप बना है। वहां आकर अल्प साधन सम्पन्न लोग शादी कर लेते हैं। अभी भी शादी हुई है। मैंने दुल्हा दुल्हिन की फोटो ली। सखियों को बुलाया तब वे उठ कर आईं। मैंने उन्हें पूरा परिसर घुमाया। आकर ऑटों में बैठे। मुझे सखियों की एक बात बहुत ही पसंद है। जब वे मंदिर से बाहर होती या ऑटों में होतीं तो उस शहर और दीन दुनिया से बेख़बर आपस में खूब बतियातीं हैं। मंदिर में जाते ही भगवान के दर्शनों में खो जातीं हैं। तब उनके चेहरे से श्ऱद्धा टपकती है। जब मैं उनको चलने को कहती तो वे मन मार के उठतीं हैं और चल पड़तीं हैं।






   अब राजा हमें हलेश्वर मना किए रास्ते से लेकर चल पड़ा। पुलिस जी ने ऑटो रुकवाया तो हम पाँचों कोरस में राजा द्वारा याद करवाई हुई कहानी, सुनाने लगीं। पुलिस जी ने हमें कहा,’’देखिए हम आप से कुछ नहीं कह रहे हैं। ये ऑटोवाला बहुुत बदमास है। सुन रे! इन्हें बड़ी मज्जिद की तरफ से हलेश्वर स्थान लेकर जा। बीच में रुकिए मत टाइम बहुत हो गया है।’’अब वह हमें सीतामढ़ी के गली मोहल्लों के दर्शन करवाता, शहर के बीच में स्थित वैष्णों देवी मंदिर लाया। हमें उतार कर बोला,’’पहले हैंडपम्प से हाथ गोड़ धो लो।’’एक सखी नल चलाने लगी। सबने हाथ पांव धोकर मंदिर में प्रवेश किया। क्रमशः 

   


Friday 18 March 2022

अल्लीपुर हरदोई से नैमीषारण्य, 52वां शक्तिपीठ मां ललिता देवी भाग 7 नीलम भागी


अब हमें नैमिषारण्य के लिए निकलना था। केमिस्ट्री लेक्चर सिद्धार्थ  मिश्रा जी से गाड़ी का इंतजाम करने को कहा। वे बोले,’’आप खाना खाइये उसके बाद चाय कॉफी पीजिए, तब तक गाड़ी आ जायेगी। हरदोई से अल्लीपुर 16 किमी दूर है। गाड़ियां हरदोई से ही आतीं हैं। अल्लीपुर से आपको नैमिषारण्य 52 किमी दूर पड़ेगा।’’ 2200 रू में गाड़ी आई जिसमें मैं, अक्षय अग्रवाल जी, सुनीता बुग्गा और उनके पति जी बैठे। दो सीट खाली गईं। इससे पूछ, उससे पूछ के चक्कर में समय लग जाता इसलिए हम चल दिए क्योंकि मुझे अपनी आदत पता कि नैमिषारण्य में मुझसे देर होनी ही थी। हरे भरे खेतों से हरदोई, जहां से होते हुए हम सीतापुर की ओर चल दिए।

अच्छी बनी सड़क दोनों ओर पेड़ों से छती होने के कारण रास्ते की सुन्दरता बढ़ रही थी। दूर से ऐसा लगता जैसे हम पेड़ों की गुफा के अंदर प्रवेश कर रहे हैं।

ड्राइवर उस्मान गोमती पार करते ही जो वह जानता था, वह बताता जा रहा था। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिप्रदा से शुरू होने वाली विश्व प्रसिद्ध 84 कोसी(252किमी)  नैमिषारण्य परिक्रमा चक्रतीर्थ या गोमती नदी में स्नान करके गजानन को लडडू का भोग लगा कर यात्रा शुरु करते हैं। रोज आठ कोस पैदल चलते हैं। 15 दिन तक ये यात्रा चलती है। महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियां दान देने से पहले तीर्थो का दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी। इंद्र ने सभी तीर्थों को नैमिषारण्य में 5 कोस की परिधी में आमंत्रित कर स्थापित किया। महर्षि दधीचि ने सबके दर्शन करके शरीर का त्याग किया था। दूर दूर से श्रद्धालू परिक्रमा करने आते हैं। यात्रा में लोगों का प्यार और सहयोग बहुत मिलता है। भंडारा, चाय और पीने के पानी की व्यवस्था रहती है। बागों में रुकते हैं। कुछ यात्री अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। परिक्रमा में वे पेड़ पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते, न लड़ते झगड़ते, न ही किसी की निंदा करते हैं। भजन कीर्तन चलता रहता है। उन दिनों उसे जरा फुर्सत नहीं मिलती।   


फाल्गुन मास की पूर्णिमा को यात्रा सम्पन्न होती है। और.... 

गाड़ी ललिता देवी मंदिर के सामने रोक कर बोला,’’जूते गाड़ी में उतार दीजिए।’’ कड़ाके की ठंड थी हम जुराबों के साथ चल दिए।


 52वां शक्तिपीठ मां ललिता देवी के नाम से जाना जाता है। एक बार दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया। जिसमें भगवान शिव व सती को नहीं बुलाया क्योंकि वे शिव को अपने बराबर नहीं समझते थे।। सती बिना निमंत्रण के वहां गई। जहां वे अपनेे पति का अपमान नहीं सह पाईं और यज्ञ कुंड में कूद गईं। शिवजी को जैसे ही पता चला उन्होंने यज्ञ कुंड से सती को निकाला और वे तांडव करने लगे। ब्रह्माडं में हाहाकार मच गया। विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सति के शरीर को 51 भागों में अलग किया। जो भाग जहां गिरा वह शक्तिपीठ बन गया। 51 शक्तिपीठ है। मां का 52वां भाग नैमिषारण्य में गिरा। जाकि हृदय भाग था। इस शक्तिपीठ में स्थापित देवी को त्रिपुर सुन्दरी, राज राजेश्वरी और ललिता मां के रूप में जाना जाता है।  यहां श्रद्धालु जो भी मनोकामना लेकर आता है, मां उसे खाली हाथ नहीं भेजती और सभी की मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं। यह माता ललिता  देवी का प्रसिद्ध धाम है। यहां भक्त मन्नत का धागा बांध कर जाते हैं। मन्नत पूरी होने पर वह धागा खोलने आते हैं। इस शक्तिपीठ पर पूरे साल श्रद्धालुओं के दर्शन पूजन का क्रम बना रहता है। मैं दिसम्बर में गई थी अभी कोरोना का कुछ असर था यानि गया नहीं था। तब भी दर्शनार्थी कम न थे। नवरात्रों में तो भक्तों की संख्या में कई गुना इजा़फा हो जाता है। यहां बंदर खूब थे। गर्भ ग्रह से बाहर धूनी जलती रहती है। 


 

जानकी कुण्ड तीर्थ  ललिता देवी से ईशान कोण में थोड़ी ही दूर जानकी कुण्ड है। यहां पर भगवती सीता पृथ्वी को साक्षी कर धरती माँ की गोद में समा गईं। यह स्थान जहाँ माँ भगवती सीता जी परीक्षा देती हुई भूमि में प्रविष्ट हुई वह जलकुण्ड के रूप में विद्यमान है। दर्शनों के बाद हम गाड़ी में बैठे और चक्रतीर्थ की ओेर चल दिए। क्रमशः